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'क्लासिकल गाना मतलब जो आप लोग 'आ आ' करते हो वही ना?'

म्यूजिक बैंड 'अद्वैता' के लीड क्लासिकल सिंगर उज्ज्वल नागर से बातचीत.

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उज्ज्वल
उज्ज्वल नागर सिंगर हैं. शरीर से दुबले, आंखों पर चश्मा और मद्धम मुस्कान. पहली आभा IIT या IIM के एक पढ़ाकू मेधावी छात्र की उभरती है. लेकिन जब माइक पर आते हैं तो अपनी भारी आवाज से चौंकाते हैं. बीते 6 मार्च को 'हिंदी महोत्सव' हुआ दिल्ली के कनॉट प्लेस में. एक सेशन आपकी वेबसाइट 'द लल्लनटॉप' और उसकी भाषा पर भी था. इसमें तीन लोग आए, जो अपने-अपने फील्ड में 'लल्लनटॉप' काम कर रहे हैं. ये हैं लेखक प्रभात रंजन, आरजे रौनक और सिंगर उज्ज्वल नागर. इससे पहले हमने उज्ज्वल से बातचीत की. आपको पढ़वा रहे हैं. उज्ज्वल 'कोक स्टूडियो' और 'द डीवारिस्ट' जैसे मशहूर म्यूजिक शोज में परफॉर्म कर चुके हैं. म्यूजिक बैंड 'अद्वैता' के लीड क्लासिकल सिंगर हैं. गिटार की संगत और मॉडर्न सेटअप में उनका क्लासिकल फ्यूजन आप यूट्यूब पर सुनिए. उनका एक पैर लोक में है, तो दूसरा शास्त्र में. और देह, इस कथित पॉपुलर कल्चर के बीच पूरी ठसक के साथ खड़ी है. लय होती हुई. https://youtu.be/vZf_V6e7D1s उज्ज्वल को सुर के सबक कोख से ही मिलने शुरू हो गए थे. मां पहली गुरु बनीं. श्रीमती उर्मिला नागर. खुद कथक और हिंदुस्तानी म्यूजिक में रची पगी. ककहरा पूरा हुआ तो संगत मिली मरहूम उस्ताद बशीर अहमद खान की. सीकर वाले गुरुजी. वह पंडित सोमनाथ मरदूर और पंडित श्रीराम उमदेकर से भी संगीत की बारीकियां सीख रहे हैं. उज्ज्वल से फोन पर बात हुई. पढ़ें और सुनें:
क्लासिकल म्यूजिक के साथ ऐसा क्या किया जाए कि ये पीढ़ी उसे स्वीकार करे? असल इंडियन क्लासिकल म्यूजिक ईमानदारी से कभी भी आम जनता से जुड़ाव वाला नहीं रहा. हमेशा से उनकी सीमित ऑडियंस रही है. 1920-30 में जब सिनेमा और प्लेबैक सिंगिंग नहीं थी, क्लासिकल म्यूजिशियन ही स्टार थे. तब भी एक खास तबका ही सुनने जाता था. थोड़ा विरोधाभास भी था कि गाने-बजाने वालों को लोग अच्छा नहीं मानते थे. लेकिन जो म्यूजिक की कद्र करते थे, वे क्लासिकल म्यूजिशियंस की बड़ी कद्र करते थे. आज के समय में क्लासिकल वाले लोग बाकी आर्टिस्ट के साथ मिलकर फ्यूजन करते हैं. इसलिए असल क्लासिकल से यूथ का तआरुफ अब तक नहीं हुआ है. https://www.youtube.com/watch?v=1KhUitFqGgs हालांकि बॉलीवुड में देखिए, सेमीक्लासिकल म्यूजिक का एक मॉर्डन रूप उभर रहा है. इससे फायदा ये होता है कि जो इंडियन क्लासिकल से बिल्कुल अछूते हैं, वो इंट्रोड्यूस हो जाते हैं. वैसे मुझे लगता है कि ये पैकेजिंग जान-समझकर नहीं की जाती. ये बस समय का प्रभाव है. मौका लगता है तो नई चीज पैदा हो जाती है. जानबूझ कर करने की कोशिश थोड़ी दूर ही चल पाती है.
इस दिशा में कोक स्टूडियो और अनप्लग्ड जैसे शोज का रोल क्या रहा? हां ये पॉइंट अच्छा है. ज्यादा योगदान तो मैं पाकिस्तान वाले कोक स्टूडियो का मानूंगा. पहले वहीं पॉपुलर हुआ. वहां की फोक कंपोजीशंस को मॉडर्न तरीके और नई सेटिंग में प्रेजेंट किया गया. इंडिया में ये शो आया, ये अच्छी बात रही. इंडिपेंडेंट और फोक म्यूजिक को जगह मिली. कोक स्टूडियो पर भी अद्वैता का वो क्लासिकल-फ्यूजन आया. अद्वैता को पॉपुलैरिटी मिली. नसीरुद्दीन सामी हैं दिल्ली घराने के. उनका 'मुंदरी मोरि काहे को सुनिए.' शुरू में आलाप है, फिर वह कंपोजीशन में जाते हैं और तबले की जगह ड्रम्स का प्रयोग किया गया है. लेकिन वो गा क्लासिकल वोकलिस्ट की तरह ही रहे हैं. तब आप उतनी गूढ़ता से नहीं सुनते, लेकिन साउंड इंटरेस्टिंग करता है. https://www.youtube.com/watch?v=5IMHuCKp9TA
यहां से तो बात म्यूजिक सुनने के तौर तरीके पर  आ जाती है. समय नहीं है अब किसी के पास. ईयर फोन लगाकर काम करते हुए म्यूजिक सुना जाता है. हां बिल्कुल. पहले क्लासिकल में चार-चार घंटे के प्रोग्राम होते थे. अब 45-50 मिनट का होता है. उसमें भी अलाप, तानों और रिदम के साथ बहुत बैलेंस बनाकर चलना पड़ता है. कोक स्टूडियो हरिहरन के गुरु गुलाम मुस्तफा खां साहब की 'आवो आवो बलमा' सुनिए. 7-8 मिनट के अंदर क्लासिकल का प्रेजेंटेशन है. कर्नाटक संगीत के साथ हिंदुस्तानी का इंटरप्ले है. क्लासिकल म्यूजिक में ये बदलाव हौसला बढ़ाने वाला है, बशर्ते इसे एआर रहमान जैसे अच्छे लोग करें. वरना क्लासिकल की जनरल व्याख्या तो यही है कि वो जो तुम लोग 'आ आ' करते रहते हो. https://www.youtube.com/watch?v=5MO4NLvfP5Q
अद्वैता किस लीक पर काम कर रहा है? मतलब पॉपुलर को ध्यान में रखते हुए म्यूजिक करते हैं या..? अद्वैता अलग-अलग बैकग्राउंड के 8 लोगों का बैंड है. मैं और हमारा तबला प्लेयर क्लासिकल बैकग्राउंड के हैं. बाकी लोग वेस्टर्न म्यूजिक वाले हैं. तो हम अपना अपना म्यूजिक करते हैं और स्टेज पर एक दूसरे के म्यूजिक पर अपने स्टाइल में रिएक्ट करते हैं. 11 साल हो गए इस बैंड को. अद्वैता ने कभी ये नहीं सोचा कि ये ज्यादा चलेगा तो ये करते हैं. हर आदमी अपना फ्लेवर लाने की कोशिश करता है.
आने वाला समय किस तरह के म्यूजिक का है? बादशाह, अरिजित, हनी सिंह जैसे सिंगर्स को याद रखते हुए बताएं. ये बहुत दिलचस्प समय है. हर किस्म का म्यूजिक हो रहा है. लोगों को लगता होगा कि यह फ्यूजन का समय है, पर फ्यूजन में भी बहुत फ्यूजन हैं. एक बॉलीवुड और क्लासिकल का है, एक क्लासिकल प्लस वेस्टर्न का. आज कल तो स्पैनिश और जैज का फ्यूजन भी हो सकता है. इलेक्ट्रॉनिक और इंडियन का भी हो सकता है. बल्कि वेस्टर्न क्लासिकल और पॉप की संगत भी फ्यूजन भी है. बादशाह रैप करते हैं, उनकी भी डिमांड है. अरिजित बेहतरीन सिंगर है. हर किस्म का म्यूजिक है, इसलिए ये कहना मुश्किल होगा कि आने वाला टाइम किसका है.
क्या गाने में सहज हैं. क्या गाना पसंद करते हैं? क्लासिकल के अलावा. ऐसा नहीं है कि मैंने गजल न गाई हो. मां अच्छी गजलें गाती हैं, उनसे सीखी हैं. कुछ भजन हैं जो सीखे हैं. लेकिन मैं गजल या ठुमरी सिंगर के तौर पर खुद को पेश नहीं करना चाहता. https://www.youtube.com/watch?v=FbF2gSKQAUY
जब मन शांत होता है तो क्या सुनते और गाते हैं? राग जोग बहुत पसंद है. अहिर भैरव पसंद है. शाम के वक्त यमन भी गाता हूं. भजन जानकी नाथ सहाय बहुत पसंद है. कुमार गंधर्व का 'उड़ जाएगा हंस अकेला' भी. कुमार गंधर्व. बॉलीवुड में अरिजित का 'ओ कबीरा मान जा' और सोनू निगम का 'अभी मुझ में कहीं' पसंद है. कोक स्टूडियो का अबू और फय्याज की कव्वाली कम ख्याल गाना 'कंगना' बहुत पसंद है. सबसे पसंदीदा गजल सिंगर मेहदी हसन हैं. https://www.youtube.com/watch?v=ue5YCXpCz1k
इंडिया के वे सिंगर जिन्हें कम सुना गया है और जिन्हें सबको सुनना चाहिए? सुमन कल्याणपुर, उस्ताद अमीर खां. गुलाम मुस्तफा खां साहब. सुरेश वाडेकर, किशोरी अमोणकर, प्रभा आत्रे. https://www.youtube.com/watch?v=aPj8nRdJ3B8
और बॉलीवुड में आपके सबसे पसंदीदा सिंगर कौन हैं? श्रेया घोषाल. सुनिधि चौहान. मेल सिंगर्स में भी नई और अच्छी आवाजें आ रही हैं. पर मुझे उदित नारायण और हरिहरन जी की आवाज बहुत पसंद है. शंकर महादेवन भी कमाल के सिंगर हैं. https://www.youtube.com/watch?v=DO2VNNLd_Jw
इंडिया का बेस्ट बैंड? बेस्ट तो कुछ कह ही नहीं सकते. इतने बैंड हैं, इतना अच्छा काम कर रहे हैं. बेस्ट सब्जेक्टिव हो गया है. फिर भी सबसे पहला नाम इंडियन ओशियन का है. उसके अलावा शक्ति बैंड है. ऑल सीजन बैंड नहीं है. मिलकर साल में एक बार परफॉर्म करते हैं.
गायकी में अपना क्या फ्यूचर देखते हैं? प्लेबैक में या स्टेज पर या कहीं और? यार इतना तो मैंने सोचा नहीं. अभी तो बस अच्छा करना चाहता हूं. क्लासिकल की जड़ें बेहतर करना चाहता हूं. ज्यादा से ज्यादा ज्ञान लेना चाहता हूं. आपको गुरुओं से सीख के उसे अपने में ढाल के अपना स्टाइल बनाना होता है. उसी कोशिश में हूं. हर आदमी खुद पर मेहनत कर रहा है. प्लेबैक की तरफ रुख नहीं है पर मौका मिला तो जरूर करूंगा. मेरे लिए वह उन लोगों तक पहुंचने का मौका होगा, जिन्होंने मुझे कभी नहीं सुना.