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सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्या पढ़ लिया कि आरे के जंगलों की कटाई पर रोक लगा दी?

लेकिन एक गड़बड़ी भी हो गयी है.

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फोटो - thelallantop
मुंबई के आरे जंगलों के पेड़ गिर गए. लगभग 2600 पेड़. महाराष्ट्र सरकार ने काट गिराए. मेट्रो शेड बनाने के लिए. और सारे पेड़ काट दिए गए तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया. और पेड़ न काटे जाएं. अगली सुनवाई तक यही स्थिति बनाए रखें. 21 अक्टूबर तक. तो महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अब और पेड़ काटने ही नहीं हैं.
लेकिन ये आरे का मामला क्या है और सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंच गया? वो भी तब, जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस मामले पर एक याचिका खारिज कर दी थी.
असल में देखें तो आरे कोई जंगल नहीं है. आज़ादी के तुरंत बाद, यानी 1950 में, मुंबई के बीचोबीच आरे की नींव रखी गयी. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू खुद आए थे उद्घाटन में. पौधा लगाया. और डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए आरे मिल्क कॉलोनी प्रकाश में आई.
पेड़ लगे तो धीरे-धीरे बड़े हुए. और कॉलोनी बदल गयी जंगल में. लेकिन एक ऐसा जंगल, जो बस अपनी काया में ही जंगल था. पेड़ घने थे, इसलिए ही जंगल था. वन विभाग के दस्तावेज़ों में ये ज़मीन जंगल की नहीं है.
इस जंगल को बचाने के लिए फ़िल्मी हस्तियाँ और नेता भी जुट गए हैं
इस जंगल को बचाने के लिए फ़िल्मी हस्तियाँ और नेता भी जुट गए हैं

साल बीते. मुंबई आगे भागती गयी. शहर का विस्तार होता गया. आने-जाने की दिक्कतें शुरू हुईं, मुंबई की मशहूर लोकल ट्रेन ने लम्बे समय तक साथ दिया. लेकिन फिर भी कई हिस्सों को एक-दूसरे से जोड़ने की ज़रुरत थी. साल 2000 में प्रस्ताव आया कि मुंबई को मेट्रो की भी ज़रुरत है. निर्माण शुरू हुआ और 2014 में मुंबई को पहली मेट्रो मिली. और बनने के साथ ही मेट्रो को विस्तार देने का भी प्रस्ताव आया.
और 2015 में आए इस प्रस्ताव में मुंबई मेट्रो लाइन-3 को सामने लाया गया. लम्बाई 33.5 किलोमीटर. कफ परेड से लेकर 27 स्टेशन होते हुए आरे डिपो तक. आरे डिपो. यानी वही जगह जहां आरे कॉलोनी जंगल में तब्दील हो चुकी है. और ये डिपो बनाने के लिए मुंबई मेट्रो कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRCL) को पेड़ काटने की ज़रुरत थी. लगभग 2600 पेड़.
पेड़ काटने के नाम पर मुंबई निवासियों ने बहुत प्रदर्शन किये. तख्तियां उठायीं. नारे लगाए. मुख्यमंत्री से लगायत National Green Tribunal (NGT) तक ख़त लिखे गए, याचिका दायर की गयी, लेकिन हर जगह MMRCL ने यही कहा, आरे कोई जंगल नहीं है. चूंकि आरे की स्थापना डेयरी जैसे व्यावसायिक उपयोग के लिए की गयी थी, इसलिए ये वन विभाग की ज़मीन नहीं है.
29 अगस्त 2019. बृहन्मुंबई महानगर पालिका ने मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन को इजाज़त दे दी कि इलाके के लगभग 2600 पेड़ काट दिए जाएं. और मेट्रो डिपो/शेड का काम शुरू किया जाए. लेकिन 2 सितम्बर को पर्यावरण एक्टिविस्ट जोरू भथेना ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. याचिका दायर हुई कि पेड़ों की कटाई पर रोक लगायी जाए. साथ ही एनजीओ वनशक्ति द्वारा एक और याचिका दायर की गयी कि इस इलाके को इकोलॉजिकल सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जाए.
मुंबई मेट्रो, जिसके लिए पेड़ काटे जाने की योजना है.
मुंबई मेट्रो, जिसके लिए पेड़ काटे जाने की योजना है.

4 अक्टूबर 2019. हाईकोर्ट ने आरे में पेड़ काटने के विरोध में दायर की गयी दोनों ही याचिकाओं को खारिज कर दिया. कहा कि आरे जंगल नहीं है. चीफ जस्टिस प्रदीप नद्रजोग और जस्टिस भारती डांगरे की बेंच ने ये भी साफ़ किया कि याचिकाकर्ताओं को इस मामले में जो राहत चाहिए, वो या तो सुप्रीम कोर्ट से मिल सकती है, या तो NGT से. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पहले 16 अप्रैल 2019 को ही आरे में मेट्रो शेड की जगह बदलने की याचिका खारिज कर दी थी.
पढ़ लीजिए : ये कौन-सा जंगल है, जिसके लिए मुंबई वाले मेट्रो रेल को लात मारने को तैयार हैं

 
तो फिर मामला सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस मामले में कैसे आदेश दिया?
इसके पीछे ग्रेटर नॉएडा में पढ़ाई कर रहे एक छात्र का हाथ है. कौन-सा छात्र? रिशव रंजन. ग्रेटर नॉएडा के लॉएड लॉ कॉलेज में बीए-एलएलबी में चौथे वर्ष का छात्र. रिशव रंजन ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी लिखी 6 अक्टूबर को. इस चिट्ठी पर ही सुप्रीम कोर्ट ने Suo Moto Cognizance यानी स्वतः संज्ञान लिया था. लेकिन ऐसा क्या लिखा था रिशव रंजन ने अपनी चिट्ठी में, जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले का स्वतः संज्ञान लिया, जिससे जुड़ी याचिका को पहले भी एक बार खारिज कर दिया था?
आरे को लेकर ये पत्र चीफ जस्टिस को लिखा गया है.
आरे को लेकर ये पत्र चीफ जस्टिस को लिखा गया है.

रिशव रंजन ने अपनी चिट्ठी में लिखा,
"जिस समय हम ये ख़त लिख रहे हैं, उस समय मुंबई प्रशासन मुम्बई के फेफड़ों की हत्या करने पर जुटा हुआ है. यानी ठीक इसी समय आरे जंगल के पेड़ काटे जा रहे हैं. यही नहीं, प्रशासन की किस कार्रवाई का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे हमारे दोस्तों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. उन्हें अपने सम्बन्धियों और परिजनों से बात नहीं करने दिया जा रहा है. इन सभी लोगों की ज़मानत याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट से खारिज कर दी गयी है."
फिर उन्होंने आरे के जंगलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है. उन्होंने कहा,
"आरे में लगभग 5 लाख पेड़ हैं. तरह-तरह के पेड़, पक्षी, जानवर हैं. यहां के लगभग 33 हेक्टेयर के क्षेत्रफल पर मुंबई मेट्रो का कार शेड बनना प्रस्तावित है."
रिशव रंजन के ख़त से साफ़ होता है कि आरे में बनने वाले मेट्रो प्रोजेक्ट में और भी कई दिक्कतें हैं. दरअसल आरे के बीच से मीठी नदी गुज़रती है. रिशव रंजन ने बताया है कि जिन पेड़ों को कार शेड के लिए हटाया जाना है, वे मीठी नदी के किनारे मौजूद हैं. यानी मेट्रो कार शेड मीठी नदी के किनारे बनेगा. रिशव रंजन ने कहा कि ये सवाल उठता है कि नदी के किनारों के पेड़ों को काटकर क्यों ऐसी इंडस्ट्री की नींव रखी जा रही है, जिससे प्रदूषण फैलता है.
इस चिट्ठी में रिशव रंजन से मांग रखी कि पेड़ काटने पर सुप्रीम कोर्ट तुरंत रोक लगाए, और सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा किया जाए.
आरे के जंगल को बचाने के लिए लम्बे समय से आन्दोलन हो रहे हैं.
आरे के जंगल को बचाने के लिए लम्बे समय से आन्दोलन हो रहे हैं.

आज यानी 7 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की और कहा कि पेड़ों की कटाई को रोका जाए और सभी लोगों को रिहा किया जाए. लेकिन अपने ख़त में रिशव रंजन ने एक और बात लिखी है. मांग की है कि मेट्रो कारपोरेशन की गतिविधियों पर तुरंत रोक लगाईं जाए.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कि भी आदेश पारित नहीं किया गया है कि मेट्रो कारपोरेशन अपना काम जारी रखे, या रोक दे.
राजनीति भी कमाल की शै है
हां. राजनीति अपना काम कर रही है. मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र के लिए आरे के जंगल महत्त्वपूर्ण मुद्दा हैं. दो बड़ी पार्टियां - शिवसेना और बीजेपी - गठबंधन में हैं, लेकिन आरे को लेकर दोनों के रुख एकदम अलग हैं. शिवसेना के उभरते हुए नेता आदित्य ठाकरे ने कहा है कि आरे के जंगलों का हनन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने साफ़ किया है कि मेट्रो कार शेड की जगह में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.
उद्दव ठाकरे.
उद्दव ठाकरे

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी कहा है कि जनता आरे के जंगलों को काटने वालों को कभी माफ़ नहीं करेगी. लेकिन शिवसेना इस तथ्य से संभवतः सभी का ध्यान खींचना चाह रही है कि इस समय महाराष्ट्र के पर्यावरण मंत्री रामदास कदम खुद शिवसेना से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में कई लोगों ने शिवसेना के शीर्ष नेताओं का ध्यान इस ओर खींचना चाहा कि पर्यावरण मंत्रालय खुद शिवसेना के पास है, शिवसेना ने चुप्पी साध ली.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भुनाने में शिवसेना ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. पार्टी की प्रवक्ता मनीषा कायंदे ने इण्डिया टुडे से बातचीत में कहा,
"सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पर्यावरण प्रेमियों और इसका विरोध कर रहे मुंबई के नागरिकों की एक नैतिक जीत है. आरे के जंगल काटना सरकार की एक बड़ी चूक थी, सरकार को चाहिए कि वो आरे को जंगल घोषित करे."



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