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फील्ड मार्शल मानेकशॉ को 7 गोलियां लगीं, डॉक्टर्स ने पूछा तो बोले- अरे कुछ नहीं, एक गधे ने लात मार दी

जिन्होंने इंदिरा गांधी से कहा था कि नाक मेरी भी लंबी है लेकिन मैं इसे दूसरों के मामले में नहीं घुसाता.

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फोटो - thelallantop
रौबीले मूछों वाले. हर बात में तुरंत स्मार्ट सा जवाब देने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल SHFJ मानेकशॉ के बारे में तो आपने सुना ही होगा. उन्हें करीब से जानने वालों का मानना था कि सैम मानेकशॉ हर इंच से एक पक्के आर्मी वाले थे. हम याद कर रहे हैं उनसे जुड़े कुछ मज़ेदार किस्से और उनके एक से एक स्मार्ट जवाब. वो कहते थे कि अगर कोई सिपाही कहता है कि वो मौत से नहीं डरता, तो या तो वो झूठ बोल रहा है, या फिर वो गोरखा है. ऐसी ही कुछ और भी बातें थीं उनकी. वही सब बताते हैं आपको. 1) भारत- पाकिस्तान के बीच जब 1971 की लड़ाई शुरू होने वाली थी. तब उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल मानेकशॉ से पूछा कि क्या लड़ाई के लिए तैयारियां पूरी हैं? इस पर मानेकशॉ ने तपाक से कहा- "आई ऍम ऑलवेज रेडी Sweety."  इंदिरा गांधी को Sweety कहने का हुनर मानेकशॉ के पास ही था. 2) 1971 के भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के बीच में ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि मानेकशॉ आर्मी की मदद से तख्तापलट की कोशिश करने वाले हैं. इस पर मानेकशॉ ने सीधे जाकर इंदिरा गांधी से कह दिया कि- "क्या आपको नहीं लगता कि मैं आपकी जगह पर आने के लायक नहीं हूं, मैडम? आपकी नाक लंबी है. मेरी नाक भी लंबी है, लेकिन मैं दूसरों के मामलों में नाक नहीं घुसाता हूं." sam manekshaw 3) लड़ाई के मैदान में सात गोलियां लगने के बाद जब जनरल मानेकशॉ मिलिट्री अस्पताल पहुंचाए गए, तब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि क्या हुआ है. मानेकशॉ का कहना था कि अरे कुछ नहीं, एक गधे ने लात मार दी. अच्छा, इसी से याद आया! अगर आप देखना चाहें तो 'अ लाइफ लिव्ड सच' नाम से एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई गई थी. हम नीचें लिंक दे रहे हैं. इसमें फील्ड मार्शल मानेकशॉ की हाज़िरजवाबी और प्रभावशाली पर्सनालिटी डॉक्यूमेंट की गई थी. उनके परिवार, उनकी मिलिट्री सर्विस के बारे में भी उनसे बातें की गई थी इस डाक्यूमेंट्री में. 4) 1962 में जब मिजोरम की एक बटालियन ने भारत- चाइना की लड़ाई से दूर रहने की कोशिश की तो मानेकशॉ ने उस बटालियन को पार्सल में चूड़ी के डिब्बे के साथ एक नोट भेजा. जिस पर लिखा था कि अगर लड़ाई से पीछे हट रहे हो तो अपने आदमियों को ये पहनने को बोल दो. फिर उस बटालियन ने लड़ाई में हिस्सा लिया और काफी अच्छा काम कर दिखाया. अब मानेकशॉ ने फिर से एक नोट भेजा जिसमें चूड़ियों के डिब्बे को वापस भेज देने की बात की गई थी. 5) 1971 की लड़ाई के बाद उनसे पूछा गया था कि अगर बंटवारे के वक़्त अगर पाकिस्तान चले गए होते तो क्या होता. इस पर मानेकशॉ हंसते हुए बोले होता क्या, पाकिस्तान 71 की लड़ाई जीत जाता. वैसे फिर लगे हाथ बता दें आपको कि फील्ड मार्शल मानेकशॉ की सर्विस 1934 से 2008 तक थी. जिसमें उन्होंने दूसरे वर्ल्ड वॉर, 1962 के भारत-चाइना वॉर, 1965 के भारत-पाकिस्तान वॉर और 1971 के भारत-पाकिस्तान वॉर में हिस्सा लिया. भारत-चाइना वॉर और उसके बाद की सारी लड़ाइयों मानेकशॉ की लीडरशिप में लड़े गए थे.

(ये स्टोरी पारुल ने लिखी है.)

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