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'धुरंधर' में संजय दत्त ने जिस पाकिस्तानी पुलिसकर्मी का रोल निभाया, उसकी कहानी खून उबाल देगी!

ता-जिंदगी पूरे कराची में उसे एसपी चौधरी असलम के नाम से जाना गया. वही एसपी चौधरी असलम, जिसने कराची के गुंडों के मन में खौफ बनाया हुआ था. जब गुंडे की लाश गिराने के लिए एसपी चौधरी की पिस्टल लोड होती थी, तो नेता स्पीड डायल पर फोन मिलाने लगते थे. एसपी चौधरी से गुहार लगाते कि गुंडे को छोड़ दो.

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फोटो में चौधरी असलम खान और 'धुरंधर' में संजय दत्त का किरदार (फोटो-इंडिया टुडे)

जगह पाकिस्तान के कराची का डिफेंस फेज 8. ये कराची के हाईप्रोफाइल क्लिफटन कैंट के इलाके में मौजूद एक रिहायशी कॉम्प्लेक्स है, जिसमें पुलिस और सशस्त्र रक्षा बल से जुड़े लोग रहते हैं. इस दिन भोर फूटी ही थी कि एक वैन तेजी से फेज 8 की गली को चीरते हुए एक बड़े से बंगले के मेन गेट से जाकर टकरा गई.

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वैन के अंदर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का एक आत्मघाती बॉम्बर विस्फोटक से रिग की हुई जैकेट पहने हुए था. वैन के गेट से टकराते ही जोरदार धमाका हुआ. वैन और अंदर बैठे लोगों के चिथड़े हुए ही. उस बंगले का आधा हिस्सा भी उड़ गया. और जिस जगह ब्लास्ट हुआ, वहां 2 मीटर गहरा गड्ढा बन गया था. 8 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. दो दर्जन के आसपास लोग घायल हो गए. हर तरफ से काला धुआं उठ रहा था.

थोड़ी ही देर बाद उस काले धुएं को चीरते हुए एक अधेड़ आदमी उस बंगले से बाहर निकला. जब ब्लास्ट हुआ, तो वो आदमी अपने बिस्तर पर बीवी बच्चे के साथ सो रहा था. धमाके से बिस्तर से गिर गया था. पूरा परिवार सलामत था.

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जब काले धुएं के गुबार से ये शख्स बाहर आया, तो वो सफेद कलफदार पठान सूट पहने हुए था. भारी शरीर, पेट थोड़ा निकला हुआ. पैर में एक जूती. चेहरा झुर्रियों और सफेद-लाल-काली दाढ़ी से भरा हुआ. उसने मुंह में एक सिगरेट दबाई हुई थी और हाथ में एक पिस्टल थी. वो अपनी गाढ़ी-पथराई आंखों से इस मंजर को देख रहा था.

उस शख्स ने होश संभाला. आसपास पड़े मृतकों की लाशें उठाने लगा, और घायलों की मदद करने लगा. थोड़ी ही देर में तालिबान के अटैक की जानकारी फैल गई. पुलिस की टीम और मीडिया वाले सब पहुंच गए.

मीडिया के कैमरे जब इस सफेद पठान सूट वाले व्यक्ति के सामने घूमे, तो उसने पहले ऑफ कैमरा गालियां दीं. फिर कैमरे पर उस ब्लास्ट वाले गड्ढे को दिखाते हुए भारी आवाज में कहा, 

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"हमला करने वालों को ठीक इसी जगह दफ्न करूंगा."

वह आदमी चुप नहीं हुआ. आगे कहा,

"मैं पीछे नहीं हटूंगा. कयामत के दिन तक इन आतंकियों के खिलाफ अपना जिहाद जारी रखूंगा. अगर वो जहन्नुम में मिल गए, तो वहां भी नहीं छोड़ूंगा."

गुस्साए-भनभनाए इस आदमी का परिचय है, सिंध पुलिस का टॉप कॉप और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट चौधरी असलम खान.

ता-जिंदगी पूरे कराची में उसे एसपी चौधरी असलम के नाम से जाना गया. वही एसपी चौधरी असलम, जिसने कराची के गुंडों के मन में खौफ बनाया हुआ था. जब गुंडे की लाश गिराने के लिए एसपी चौधरी की पिस्टल लोड होती थी, तो नेता स्पीड डायल पर फोन मिलाने लगते थे. एसपी चौधरी से गुहार लगाते कि गुंडे को छोड़ दो.

लेकिन न सुनने की आदत में उसने ल्यारी के सबसे बड़े दहशतगर्द रहमान डकैत को एनकाउंटर में मार गिराया था. इस्लामाबाद में बैठी हुकूमत भी उसे अंगूठे के नीचे रखने की नाकाम कोशिश करती रहती थी. लेकिन वो किसी की नहीं सुनता था. वही चौधरी असलम जिसके बारे में बातें फिर से शुरू हुईं, जब आदित्य धर ने अपनी मूवी ‘धुरंधर’ में ल्यारी की गैंगबाजी को दिखाने की कोशिश की.

फिल्म जैसी है, सो है. लेकिन हम यहां कराची के कॉप चौधरी असलम खान की कहानी बताते हैं.

कराची का ल्यारी टाउन बना था मुसीबत 

जब साल 2000 में दुनिया ने नई सदी में प्रवेश किया, उस समय पाकिस्तान के लिए बहुत कुछ बदल चुका था. इसी वक्फे में ये मुल्क एकाधिक आतंकी घटनाओं में नामजद हो चुका था. चाहे कंदहार प्लेन हाईजैक हो, चाहे अमरीका के ट्विन टॉवर्स पर हमला हो, इंटेलिजेंस एजेंसियों को हरेक सूत्र पाकिस्तान से जुड़ता दिखता था.

लेकिन पाकिस्तान की हुकूमत और वहां की पुलिस इस बात से सबसे कम परेशान थी. उसे पता था कि जितनी भी लानत मिलेगी, अमरीका की नजरों में बरकत तो बनी रहेगी. उसकी सबसे बड़ी मुसीबत उसके पोर्ट टाउन कराची में सुलग रही थी. खासकर ल्यारी टाउन वाले इलाके में.

दरअसल, सोवियत-अफगान युद्ध खत्म होने के बाद बहुत सारे हथियार ल्यारी में जगह बना चुके थे. और पाकिस्तान की सियासत का एक हिस्सा भी इस इलाके से जुड़ता था. साल 1980 से लेकर साल 2000 के बीच ल्यारी का इलाका लोकल गैंग्स की लड़ाई में उलझा हुआ था. 70 के दशक में बेनजीर भुट्टो के पापा और पाकिस्तान के तत्कालीन सदर जुल्फीकार अली भुट्टो ने ल्यारी के लोगों को जमीन से जुड़े अधिकारों में जगह दी थी. तब से ये तय हो गया कि ल्यारी के लोग अपनी वफादारी भुट्टो परिवार की ओर रखेंगे. इसलिए ल्यारी को भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) का गढ़ माना जाता रहा.

लेकिन भुट्टो परिवार की नीतियां और कथित सदकर्म ही काफी नहीं थे. पॉलिटिक्स को चलाते रखने के लिए कुछ मसल पावर भी चाहिए थी. इसलिए उन्हें साथ मिला रहमान बलोच और उसके चचेरे भाई उजैर बलोच का. ल्यारी के सबसे बड़े गुंडे और गिरोहबाज. शराब बेचने, हथियार बेचने, हफ्ता वसूलने, अपहरण कर फिरौती उठाने जैसे कामों से दोनों भाइयों ने ल्यारी की गलियों में दहशत भर रखी थी.

लेकिन हर किस्म की दहशत और दहशतगर्द को चुनौती देने वाले आते ही हैं, ऐसा संसार का नियम कहता है. इसीलिए मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) नाम के पॉलिटिकल मूवमेंट ने वो चुनौती पेश की. कहा जाता है ल्यारी टाउन पर तो PPP और रहमान बलोच गिरोह का कब्जा था. लेकिन वो ल्यारी जिस बड़े शहर कराची का हिस्सा था, उस पर MQM और उसके मसलमैन अरशद पप्पू का कब्जा था.

MQM और PPP में कोई खास अदावत तो नहीं थी. लेकिन इनके पालतू अरशद पप्पू और बलोच गैंग में लफड़े जरूर थे. अरशद पप्पू ने उजैर बलोच के पापा फैज मोहम्मद को मार दिया था. रहमान बलोच के पापा ददल बलोच की कब्र पर जाकर पेशाब कर दिया था. और दूसरी ओर रहमान बलोच गैंग ने अरशद पप्पू ने भी पलटकर अरशद पप्पू के गैंग के मेम्बर्स और नाते-रिश्तेदारों को निबटा दिया था. तो ऐसे में ल्यारी के इलाके में राजनीति समर्थित गैंगवार हो रहे थे.

और नई सदी की शुरुआत में ये सबकुछ बदल गया था. ल्यारी ने परवेज मुशर्रफ का सैन्य शासनकाल नकार दिया था. देशनिकाला झेलने के बाद बेनजीर भुट्टो अपनी पॉलिटिक्स सम्हालने की कोशिश कर रही थीं. और उन्हें ल्यारी से बेहतर जगह नहीं दिखी थी. उन्होंने शुरुआत की भी थी, लेकिन साल 2007 में उनका कत्ल भी कर दिया गया था.

ल्यारी की सड़कें अस्थिरता और कत्ल-ए-आम का शिकार हो चुकी थीं. दिनदहाड़े गोलियां चल रही थीं. पुलिस की हालत ये थी कि उसके हाथ बंधे हुए थे. रहमान बलोच उर्फ रहमान डकैत, उसके भाई उजैर बलोच और दूसरी ओर अरशद पप्पू गैंग के लोग, सब किसी ने किसी नेता से जुड़े हुए थे. पुलिस उन्हें छू भी नहीं सकती थी.

ऐसे में याद किया गया एसपी चौधरी असलम को. ऐसा क्यों? इसके पीछे कुछ वजहें थीं, और उसे समझने के लिए चौधरी असलम की कहानी समझनी होगी.

कॉप असलम खान की कहानी

साल 1963 में खैबर पख्तूनख्वा में पड़ने वाले मनसेहरा जिले के ढोढ़ीयाल गाँव में एडवोकेट अकरम खान स्वाती को बेटा पैदा हुआ. 'स्वाती' उनके कबीले का नाम था.  बेटे का नाम रखा - असलम खान स्वाती. जब असलम खान आठवीं दर्जे की पढ़ाई कर रहा था, तब पूरा परिवार कराची चला आया. पढ़ाई-लिखाई खत्म हुई. साल 1987 में पुलिस में भर्ती हुई. सबसे पहले इन्स्पेक्टर की कुर्सी मिली. फिर साल 1991 में कालाकोट थाना इंचार्ज. और साल 1994 में गुलबहार थाना प्रभारी. इसी साल अपने नाम में असलम खान ने ‘चौधरी’ लगाया.

इसी समय कराची में अल्ताफ हुसैन की बनाई पार्टी MQM पर कत्ल-ए-आम के इल्जाम लग रहे थे. MQM दरअसल विभाजन के समय भारत से पाकिस्तान गए लोगों की वकालत करने वाली पार्टी हुई. इन्हें 'मोहाजिर' कहा जाता है. MQM पर इल्जाम था कि उसने लोगों का कत्ल किया, बॉडी को जूट के बोरों में भरकर सड़कों पर नुमाइश के लिए छोड़ दिया. और उनकी सबसे अधिक अदावत बलोचबहुल ल्यारी के लोगों के साथ हुआ करती थी.

सरकार ने MQM पर लगाम लगाने के लिए ऑपरेशन शुरू किया. चौधरी असलम खान ने कमान सम्हाली. MQM पर पिस्टल गरजी. एनकाउंटर हुए. अरेस्ट हुए. लेकिन साल 1999 में चौधरी असलम ने बड़ा विकेट चटकाया. MQM के कार्यकर्ता और फेमस शार्प शूटर सौलत मिर्जा को अरेस्ट कर लिया. सौलत को तब पकड़ा गया, जब वो बैंकॉक से लौटा था, और कराची एयरपोर्ट से बस बाहर निकल ही रहा था. ये बड़ी पकड़ थी. इनाम में चौधरी असलम खान को DSP की कुर्सी मिली. और सौलत मिर्जा को फांसी की सजा.

साल 1999 में ही पाकिस्तान बड़ी करवट से गुजर रहा था. जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्तापलट कर कुर्सी हथिया ली थी. MQM ने इसका फायदा उठाया और परवेज मुशर्रफ का पल्लू पकड़ लिया. अब MQM को हुक्मरानों का संरक्षण मिल गया था. चौधरी असलम को अपना ऑपरेशन बीच में रोकना पड़ा. लेकिन कुछ ही दिनों बाद ऑपरेशन फिर से शुरू हुआ. अब परवेज मुशर्रफ की चाह थी कि ल्यारी से उठने वाली आवाजें बंद हो जाएं. लिहाजा अब ऑपरेशन के निशाने पर ल्यारी को चलाने वाले गुंडे थे. वहां के लोकल गैंग.

चौधरी असलम ने शोएब खान को पकड़ लिया, लिहाजा साल 2005 में प्रमोशन करके SP बना दिया गया. चौधरी असलम ने ल्यारी को साफ करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई. ल्यारी टास्क फोर्स. एडवांस वेपन. पुलिस की वर्दी से दूरी, और एनकाउंटर में माहिर पुलिसवालों की एक टीम. पूरे ल्यारी में एनकाउंटर शुरू हुए. कहा जाता है कि जो गुंडे मरना नहीं चाहते थे, वो सरेंडर कर देते थे.

साल 2006 में ही चौधरी असलम ने मुखबिर की टिप पर भरोसा किया. और ल्यारी टास्क फोर्स ने बलूचिस्तान से अब्दुल रहमान बलोच उर्फ रहमान डकैत को एक मुठभेड़ के बाद अरेस्ट कर लिया. अफसरों ने चौधरी असलम की पीठ थपथपाई. टास्क फोर्स जिस वादे के साथ बनी थी, उस वादे को पूरा किया जा रहा था. लेकिन रहमान डकैत को कैद में रखना इतना आसान नहीं था. उसने जेल के लोगों को घूस खिलाई. और आराम से हवालात खोलकर टहलते हुए जेल से फरार हो गया.

चौधरी असलम और ल्यारी टास्क फोर्स की क्या गजब किरकिरी हुई थी. एसपी ने कसम खाई, अब रहमान डकैत को अरेस्ट नहीं करना है. बल्कि उसकी लाश गिरानी है.

प्लानिंग शुरू ही हुई थी कि एक और मुसीबत आ गई. साल 2006 में ही चौधरी असलम ने मशहूर डकैत माशूक ब्रोही और उसके साथी रसूल बख्श ब्रोही को एक पुलिस एनकाउंटर में मार गिराया. इस एनकाउंटर के बाद चौधरी असलम पर दो बड़े इल्जाम लगे.

पहला - एनकाउंटर में मारा गया दूसरा शख्स रसूल ब्रोही एक मजदूर था.
दूसरा - ये पूरा एनकाउंटर फर्जी था.

चौधरी असलम को फोर्स से सस्पेंड कर दिया गया. और जेल में डाल दिया गया.

16 महीने तक जेल में रहने के बाद चौधरी असलम को जमानत मिली. बाहर पाकिस्तान भी बदलने लगा था. तानाशाह मुशर्रफ के खिलाफ आवाजें उठने लगी थीं. बेनजीर भुट्टो भी मुल्क वापिस आ चुकी थीं. साल 2008 के चुनाव में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग- N के गठबंधन ने जीत भी दर्ज कर ली थी. लिहाजा चौधरी असलम को भी फोर्स में वापिस ले लिया गया.

चौधरी असलम पुरानी किलस से भरा हुआ था. अब वो एसपी इंवेस्टिगेशन ईस्ट हो चुका था. उसने रहमान डकैत को जीरो इन करने का प्लान बनाया. और फिर साल 2009 में कराची के बाहरी इलाके बिन कासिम के इलाके में एक मुठभेड़ में रहमान डकैत की मौत हो गई. पुलिस ने कहा कि ये एक मुठभेड़ थी, लेकिन सब जान रहे थे कि एसपी चौधरी असलम ने अपना इंतकाम पूरा कर लिया है.

एसपी चौधरी का ऑपरेशन चलता रहा. हर दो दिन पर ल्यारी मुठभेड़ और कत्ल की खबरों से गूंज उठता. चौधरी असलम पर विदेशी अखबारों में प्रोफाइल लिखी गई. उसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा गया. उसने कहा,

"मैं किसी का एनकाउंटर नहीं करता, आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ती है."

साल 2012 में एसपी चौधरी फिर से सुर्खियों में आया. जब उसने और उसकी पूरी टीम ने ल्यारी को चारों ओर से घेर लिया, और गुंडों को खत्म करने की नीयत से 12 दिनों तक ऑपरेशन चलाया. लगा था कि अब चौधरी असलम की टीम ल्यारी को गुंडों से फ्री करा लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. एसपी चौधरी को कम सफलता हाथ लगी. 12 पुलिसकर्मी मारे गए सो अलग.

एसपी चौधरी को अपना ऑपरेशन बंद करना पड़ा. लेकिन उनकी जरूरत खत्म नहीं हुई थी. हुकूमत ने उन्हें कहा कि वो सिर्फ गुंडों को डील न करें, आतंकियों को भी डील करें. अगर आप चौंकें, तो उसके पहले जान लें कि पाकिस्तान के लिए भी आतंकी होते हैं. और वो हैं तालिबान के लोग और बलोच विद्रोही.

चौधरी असलम ने अपना ऑपरेशन शुरू किया. अब तालिबान और बलोच फ्रीडम मूवमेंट से जुड़े मिलिटेन्ट्स को मारना शुरू किया. तहरीक-ए-तालिबान को सबसे अधिक बुरा लगा. उसने एकाधिक असफल प्रयास किए. मगर सफल हुए 9 जनवरी 2014 को, जब ल्यारी एक्सप्रेस वे पर एक बम धमाके में एसपी चौधरी असलम खान की जान चली गई. कभी वर्दी न पहनने वाले, चेन स्मोकर चौधरी असलम खान स्वाती के शरीर के टुकड़े खोजे नहीं मिल रहे थे.

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