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भारत रंग महोत्सव में नहीं है तो केवल कालिदास की नाम-पट्टिका!

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सौजन्य से आयोजित 19वें भारत रंग महोत्सव यानी ‘भारंगम’ के 10वें रोज़ का हाल.

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नाटक आनंद रघुनंदन का एक दृश्य
आज की उज्जयिनी है नई दिल्ली और इस उज्जयिनी का केंद्र है मंडी हाउस. इस केंद्र में भटक रहा है कालिदास. वह देख रहा है कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सौजन्य से आयोजित 19वें भारत रंग महोत्सव यानी ‘भारंगम’ में नहीं है तो केवल कालिदास की ही नाम-पट्टिका! लगभग 100 नाटक, लेकिन यह कैसा नाटक कि कालिदास का एक भी नाटक नहीं? अभिमंच, बहुमुख, सम्मुख, श्रीराम सेंटर और कमानी के मंचों पर विभिन्न नाट्य-प्रदर्शन चल रहे हैं. इन्हें विविध दर्शक-समुदाय घेरे हुए हैं. ‘उत्तर रामचरितम्’, ‘मध्यमव्यायोगम्’, ‘भगवदज्जुकीयम्’, ‘उरुभंगम्’ सबके संवाद गूंज रहे हैं, लेकिन कालिदास के एक भी नाटक को मंचित होने की अनुमति नहीं मिली. अनुसूया, प्रियंवदा, दुष्यंत, माणवक और दुर्वासा रुआंसे खड़े हैं. कालिदास के दुर्भाग्य का अंत नहीं है. वह एक रंगकर्मी से पूछ रहा है कि भाई मेरा नाटक कब करोगे? रंगकर्मी कह रहा है कि बगैर सरकारी ग्रांट के भी कहीं नाटक होता है महाराज! कालिदास ‘भारंगम डायरी’ लिख रहा है. शमशेर के शब्दों में कहें तो कह सकते हैं कि सूर्य उसकी अस्थियों के मौन में डूब रहा है. सूर्य के डूबते ही नए-नए नाटक शुरू होते हैं. कल यानी भारंगम के 10वें रोज़ भी पांच नाटक हुए— सोहिनी सेनगुप्ता निर्देशित बांग्ला नाटक ‘पांचजन्य’, विजयेंद्र कुमार टांक निर्देशित ‘गुंडा’, गुरु गौरांग बारिक निर्देशित उड़िया नाटक ‘मुगल तमाशा’, संजय उपाध्याय निर्देशित ‘आनंद रघुनंदन’, विनी कार्वाल्हो और रेमन आयर्स निर्देशित ब्रिटिश नाटक ‘दि अनपैरेलल्ड एडवेंचर ऑफ वन हैंस पी फाल’. नाटकों की भांति ही बहुत कुछ दुनिया में नहीं होता है, कालिदास की नाक के नीचे होता है. इसलिए कालिदास अपनी आंखें नहीं मूंद पाता. वह लगातार अपनी डायरी में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और भारंगम के बारे में वह कर रहा है जिसे दुष्प्रचार कहते हैं. लेकिन तमाम गोरखधंधे अपनी गति से जारी हैं और कालिदास का जलना और चलना भी. कालिदास ने कल रात ऊब कर अपनी डायरी में दर्ज किया कि मुझे अब और नाटकों की जरूरत नहीं है, मेरी जिंदगी में पर्याप्त नाटक है.
'एक दिन में व्यक्ति लगभग 21,600 नि:श्वास लेता है, मेरी 21,599 विवशता की होती हैं.'
कालिदास निर्विवाद और निष्पक्ष होना चाहता है, लेकिन इस तरह क्या वह अपराधों का मूक हिस्सेदार नहीं हो जाएगा? जैसा कि देवेंद्र ने अपनी एक कहानी ‘अवांतर कथा’ में कहा है. क्या यह सब कुछ जो यहां दर्ज हो रहा है, क्या इसे ‘अवांतर कथा’ समझ कर भुला दिया जाएगा? कालिदास के मन में प्रश्न बहुत हैं. कालिदास के मन में आत्मरिक्ति से उपजी आत्मरति बहुत है. मेट्रो स्टेशन से बाहर उतर कर भगवानदास रोड पर बने जूस कॉर्नर में बनाना शेक पीकर कालिदास राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के गेट की तरफ बढ़ रहा है. अब सिक्योरिटी गार्ड उससे पूछेगा कि आप कौन? वह कहेगा कि मैं कालिदास. गार्ड कहेगा कि तो मैं क्या करूं? कालिदास कहेगा कि मेरा कोई नाटक नहीं है इस भारंगम में. मैं भी कवि-नाटककार हूं. ‘प्रस्तुतियोग्य नाटककार प्रस्तुत होकर ही रहता है. तुम नहीं हो, इसलिए प्रस्तुत नहीं हुए!' गार्ड कहेगा. कालिदास राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अंदर घुसकर इन पट्टिकाओं को देख रहा है : kalidas वह कहीं नहीं है. अब वह थिएटर बाजार की ओर घूम रहा है. लाल कालीन पर चल रहा है. यह चलना उसे एक शख्सियत होने का भ्रम दे रहा है. वह बाहर आ गया है. वह आज कोई नाटक नहीं देखेगा. डियर पार्क जाएगा और गाएगा : ‘‘हम जिएंगे, हरिणशावक! जिएंगे न? एक बाण से आहत होकर हम प्राण नहीं देंगे. हमारा शरीर कोमल है, तो क्या हुआ? हम पीड़ा सह सकते हैं. एक बाण प्राण ले सकता है, तो उंगलियों का कोमल स्पर्श प्राण दे भी सकता है. हमें नए प्राण मिल जाएंगे. हम कोमल आस्तरण पर विश्राम करेंगे. हमारे अंगों पर घृत का लेप होगा. कल हम फिर वनस्थली में घूमेंगे. कोमल दूर्वा खाएंगे. खाएंगे न?’’ * [ प्रस्तुत कथ्य सुरेंद्र वर्मा के उपन्यास ‘काटना शमी का वृक्ष पद्मपंखुरी की धार से’ के कुछ अंशों से प्रेरित है. आखिरी पैरागाफ मोहन राकेश के नाटक ‘आषाण का एक दिन’ से साभार है. लेखक इन दोनों लेखकों के प्रति बहुत कृतज्ञ है.] *** 19वें भारंगम से जुड़ी कुछ और रपटें यहां पढ़ें : मुखौटे बदलते हुए जारी है भारंगम मनोज बाजपेयी ने क्या जवाब दिया जब किसी ने पूछा, एनएसडी के गेट से भगा देते हैं एक्टर कैसे बनूं! …और यों ‘लॉरेटा’ से प्यार हो जाता है ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में गोलियां चला कर बुरे दिनों की भड़ास निकाली: नवाजुद्दीन