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वक्फ संशोधन बिल को लेकर सरकार पर लगे आरोप, JPC रिपोर्ट के कौन से हिस्से गायब?

Waqf Bill JPC Report: इस मुद्दे को लेकर राज्यसभा में विपक्षी सांसदों ने विरोध किया और वॉकआउट कर दिया. इसके बाद सदन के नेता जेपी नड्डा ने कहा कि विपक्ष इस मुद्दे पर चर्चा नहीं करना चाहता. बल्कि राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है. आखिर ये पूरा मामला है क्या?

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सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि समिति के अध्यक्ष के पास समिति पर संदेह जताने वाले अंशों को हटाने का अधिकार है. (फोटो- PTI)

संसद में बजट सेशन चल रहा है. आज सत्र की कार्रवाई के दौरान वक्फ संशोधन बिल को लेकर विपक्ष के कई सांसदों ने सरकार को घेरा. सांसदों ने आरोप लगाया कि वक्फ संशोधन विधेयक पर JPC रिपोर्ट से उनके असहमति नोट के कुछ हिस्से हटा दिए गए हैं. वहीं सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि कोई असहमति नोट नहीं हटाया गया है. सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि समिति के अध्यक्ष के पास समिति पर संदेह जताने वाले अंशों को हटाने का अधिकार है.

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संसद में ये मामला बढ़ा तो विपक्षी सांसदों, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के बीच बैठक हुई. जिसके बाद ये निर्णय लिया गया कि विपक्षी सदस्यों के असहमति नोटों को उनके मूल रूप में JPC की ड्राफ्ट रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा. राज्यसभा में इस मुद्दे पर बोलते हुए विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा,

"कई सदस्यों ने अपनी असहमति जताई है. उन्हें कार्यवाही से हटाना और केवल बहुमत के विचार को रखना निंदनीय और लोकतंत्र विरोधी है."

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संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों पर जवाब भी दिया. उन्होंने कहा कि कुछ भी हटाया नहीं गया है. उन्होंने कहा,

“सदन को गुमराह न करें, विपक्षी दल अनावश्यक मुद्दा बना रहे हैं. आरोप झूठे हैं. जेपीसी ने पूरी कार्यवाही की, किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया.”

जेपीसी रिपोर्ट पर समिति के सदस्य और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा,

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"आज लोकसभा सांसदों का एक समूह, जिसमें ए राजा, कल्याण बनर्जी, इमरान मसूद, मोहम्मद जावेद, गौरव गोगोई और मैं शामिल थे, स्पीकर से मिलने गए. हमने उन्हें बताया कि हमारे असहमति नोटों के कई पेज और पैराग्राफ जेपीसी रिपोर्ट से हटा दिए गए हैं. वो इतने दयालु थे कि उन्होंने महासचिव से कहा कि वो हमारे असहमति नोटों में से वो सब कुछ शामिल करें जो नियमों के अनुसार हो. बाद में, हम संसदीय पुस्तकालय में बैठे और रिपोर्ट में अधिकांश हटाए गए पेजों को शामिल किया. समिति के कामकाज पर संदेह व्यक्त करने वाले पैराग्राफ को शामिल नहीं किया गया, क्योंकि वो नियमों के विरुद्ध थे."

शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत ने भी जेपीसी की कार्यवाही के बारे में चिंता जताई और दावा किया कि आवश्यक रूप से खंड-दर-खंड चर्चा नहीं की गई. सावंत ने कहा,

"समिति का गठन विधेयक में किए गए खंड-दर-खंड प्रावधानों पर चर्चा करने के लिए किया गया था. जेपीसी अध्यक्ष से पूछा जाना चाहिए कि क्या गवाहों द्वारा दिए गए उत्तर जेपीसी सदस्यों को दिए गए थे. नहीं, उन्हें नहीं दिए गए. जेपीसी की बैठकों में खंड-दर-खंड चर्चा कभी नहीं की गई. इस वजह से, हमने असहमति नोट दिया. उन्होंने हमारे द्वारा दिए गए असहमति नोट को हटा दिया है. हम आज पेश की जाने वाली वक्फ रिपोर्ट के खिलाफ हैं."

किरेन रिजिजू ने क्या बताया?

मामले को लेकर किरेन रिजिजू ने मीडिया को बताया कि नियम के अनुसार, कमेटी पर सवाल खड़ा करने वाले बयानों को अध्यक्ष द्वारा हटाया जा सकता है. राज्यसभा में विपक्षी सांसदों के विरोध और वॉकआउट करने के बाद सदन के नेता जेपी नड्डा ने कहा कि विपक्ष इस मुद्दे पर चर्चा नहीं करना चाहता. बल्कि राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है. उन्होंने कहा,

"संसदीय कार्य मंत्री ने बताया है कि कुछ भी हटाया नहीं गया है. विपक्ष ने बहुत गैर जिम्मेदाराना तरीके से काम किया है. ये तुष्टिकरण की राजनीति है. प्रश्नकाल में सबसे बड़ा सवाल ये है कि कुछ लोग भारतीय राज्य के खिलाफ लड़ने की कोशिश कर रहे हैं."

बता दें कि राज्यसभा में कार्यवाही के दौरान तीन सांसद वेल तक पहुंच गए. तृणमूल के समीरुल इस्लाम और नदीमुल हक, व डीएमके के एमएम अब्दुल्ला के वेल में पहुंचने पर उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने उन्हें कार्रवाई की चेतावनी भी दी. मामले पर रिजिजू के स्पष्टीकरण के बाद एक विपक्षी सांसद ने सवाल किया, "मंत्री को कैसे पता?" इस पर सत्ता पक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे "अपमानजनक" टिप्पणी बताया. इसको लेकर रिजिजू ने कहा कि संसदीय कार्य मंत्री होने के अलावा वो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री भी हैं, और वक्फ कानून उनके मंत्रालय से जुड़ा हुआ है.

वीडियो: JPC की बैठक में भिड़े सांसद, कल्याण बनर्जी के हाथ में 4 टांके क्यों लगाने पड़े?

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