केरल के कोझिकोड जिले में करिपुर एयरपोर्ट के पास ‘वक्फ संशोधन कानून’ के खिलाफ एक मार्च निकाला गया. अब इस मार्च पर विवाद खड़ा हो गया है. विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने 'मुस्लिम ब्रदरहुड' और 'हमास' से जुड़े चर्चित और विवादास्पद चेहरों की तस्वीरें हाथों में थाम रखी थीं. इसके बाद से केरल के सियासी हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है.
कौन थे सैय्यद कुतुब, हसन बन्ना जिनके पोस्टर वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन में दिखे तो बवाल मच गया?
Kerala के करिपुर एयरपोर्ट के पास Waqf Amendment Act 2025 के खिलाफ मार्च निकाला गया. इसमें Hamas और Muslim Brotherhood से जुड़े चेहरों की तस्वीरें दिखीं, जिससे विवाद खड़ा हो गया है.

इंडिया टुडे से जुड़ीं शिबीमोल केजी की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार, 9 अप्रैल को 'सॉलिडैरिटी यूथ मूवमेंट' और 'स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन' (SIO) ने मिलकर ‘वक्फ संशोधन कानून’ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इसके तहत करीपुर में कालीकट इंटरनेशनल एयरपोर्ट तक मार्च निकाला गया.
इस बीच कुछ प्रदर्शनकारियों ने मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख विचारक सैय्यद कुतुब, हमास नेता याह्या सिनवार, मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक शेख हसन अल-बन्ना और जेल में बंद छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद के पोस्टर दिखाए. एक नज़र इन चारों चेहरों को जान लेते हैं.
याह्या सिनवार हमास के एक प्रमुख नेता थे. उनका जन्म 1962 में गाजा पट्टी के खान यूनिस शरणार्थी शिविर में हुआ था. इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ गाजा में पढ़ाई के दौरान वो इस्लामी विचारधारा से प्रभावित हुए. उन्होंने फिलिस्तीनी संगठन हमास के सशस्त्र विंग की स्थापना में अहम भूमिका निभाई और अगस्त 2024 में संगठन की राजनीतिक शाखा के प्रमुख बने. 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हमले में सिनवार को मुख्य साजिशकर्ता माना गया. 16 अक्टूबर 2024 को राफा क्षेत्र में इजरायल ने एक मुठभेड़ में सिनवार को मार गिराया.
2. हसन अल-बन्नाहसन अल-बन्ना मिस्र के धार्मिक और राजनीतिक नेता थे. उनका जन्म 1906 में हुआ था. 1928 में उन्होंने 'मुस्लिम ब्रदरहुड' की स्थापना की, जिसका मकसद इस्लामिक मूल्यों का पुनर्जागरण करना था. धीरे-धीरे यह संगठन एक शक्तिशाली आंदोलन में तब्दील हो गया. कुछ समय के लिए हसन अल-बन्ना ने सरकार के साथ एक सामरिक गठबंधन बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन वे और उनके अनुयायी सरकार के लिए खतरा बन गए थे. 1949 में मिस्र सरकार की मिलीभगत से हसन अल-बन्ना की हत्या कर दी गई. मुस्लिम ब्रदरहुड को कई देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है.
3. सैय्यद कुतुबसैय्यद कुतुब मिस्र के इस्लामी विचारक और लेखक थे. उन्होंने अपनी शुरुआती जिंदगी धर्मनिरपेक्ष विचारों के साथ बिताई लेकिन अमेरिका में पढ़ने के दौरान वेस्टर्न कल्चर की आलोचना करते हुए कट्टर इस्लामी विचारों को अपनाया. वे मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े और जेल में रहते हुए अपनी प्रसिद्ध किताब 'Signposts in the Road' लिखी. ये किताब बाद में कट्टरपंथियों के लिए मार्गदर्शक बनी. 1966 में उन्हें मिस्र की सरकार ने फांसी दे दी.
उमर खालिद, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के पूर्व छात्र नेता हैं. 2016 में पहली बार वे चर्चा में आए जब उन पर देशद्रोह का आरोप लगा. 2020 में दिल्ली दंगों की साजिश के आरोप में उन्हें अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया. उन पर आरोप है कि उन्होंने दिल्ली दंगे भड़काने में भूमिका निभाई, जबकि वे खुद को निर्दोष बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने केवल शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था. खालिद को अभी जेल में हैं और उन्हें जमानत नहीं मिली है.
इस प्रदर्शन पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता के सुरेन्द्रन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने राज्य सरकार पर कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. उन्होंने एक्स पर कहा,
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि प्रदर्शनकारियों को हमास आतंकवादियों और ग्लोबल जिहाद के वैचारिक पिता सैय्यद कुतुब की तस्वीरें दिखाते हुए देखा गया. क्या यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन है या हम केरल की धरती पर जिहादी चरमपंथ का खुलेआम महिमामंडन देख रहे हैं? केरल पुलिस चुप क्यों है? मुख्यमंत्री पिनरई विजयन इस खतरनाक कट्टरपंथ को बिना रोक-टोक के पनपने क्यों दे रहे हैं?
वहीं, केरल पुलिस ने प्रदर्शन के दौरान गैरकानूनी जमावड़े और ड्यूटी पर मौजूद पुलिसकर्मियों को रोकने के आरोप में 6 नामजद और करीब 3000 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है. हालांकि, अभी तक मार्च में दिखी तस्वीरों को लेकर कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई है.
पिछले हफ्ते वक्फ (संशोधन) बिल संसद से पारित हो गया था. अब ये कानून बन गया है और 8 अप्रैल से देशभर में लागू हो गया है. कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी पार्टियों ने इस कानून को 'असंवैधानिक' बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. वहीं, सरकार ने इसे 'पिछड़े मुसलमानों और समुदाय की महिलाओं के लिए पारदर्शिता और सशक्तिकरण की ताकत' बताया है.
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