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उत्तराखंड के गवर्नर ने धर्मांतरण और UCC से जुड़ा बिल लौटा दिया, सरकार बोली- 'टाइपिंग मिस्टेक है, इसलिए'

Uttarakhand Anti-Conversion Bill: संशोधित बिल में शादी के मुफ्त रजिस्ट्रेशन की समयसीमा बढ़ाने का प्रावधान है. इसके अलावा जबरन धर्मांतरण के लिए अधिकतम सजा बढ़ाने का भी प्रावधान किया गया है.

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उत्तराखंड के राज्यपाल गुरमीत सिंह (बाएं) ने सीएम पुष्कर सिंह धामी (दाएं) की सरकार के बिल लौटाए. (X @LtGenGurmit @pushkardhami)
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अंकित शर्मा

उत्तराखंड सरकार के भेजे गए दो अहम बिलों को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) गुरमीत सिंह ने वापस सरकार को लौटा दिया है. इनमें एक बिल धर्मांतरण कानून से जुड़ा है, जबकि दूसरे का ताल्लुक समान नागरिक संहिता (UCC) में किए गए संशोधन से है. कांग्रेस ने इसे लेकर राज्य की राज्यपाल पर सवाल खड़े किए हैं. विपक्ष ने दावा किया कि राज्यपाल ने संवैधानिक आधार पर बिल वापस नहीं किए.

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उत्तराखंड की भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार के बिल वापस होने के मामले ने तूल पकड़ा तो स्थिति साफ करने की कोशिश की गई है. मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) के सूत्रों से बताया गया है कि यह कोई नीतिगत या कानूनी आपत्ति नहीं है, बल्कि दोनों बिलों के ड्राफ्ट में कुछ लिपिकीय यानी टाइपिंग और तकनीकी गलतियां पाई गई थीं.

आजतक से जुड़े अंकित शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, CMO के सूत्रों ने बताया,

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"उत्तराखंड में कठोर धर्मांतरण कानून पहले से लागू है, लेकिन इससे जुड़े विधेयक के ड्राफ्ट में कुछ लिपिकीय (टाइपिंग/तकनीकी) खामी पाई गई थीं. इन्हीं खामियों को दूर करने के लिए लोकभवन ने बिल को प्रशासकीय विभाग, यानी धर्मस्व एवं संस्कृति विभाग को वापस भेजा है. अब विभाग इन खामियों को ठीक करके दोबारा लोकभवन को मंजूरी के लिए भेजेगा, जिसके बाद अध्यादेश के जरिए इसे लागू किया जाएगा."

इसी तरह, सीएम पुष्कर सिंह धामी की सरकार के समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर भेजे गए संशोधन बिल में भी लिपिकीय खामियां सामने आई हैं. उत्तराखंड में UCC पहले से लागू है, जिसमें विवाह पंजीकरण का प्रावधान भी शामिल है. शादी के मुफ्त रजिस्ट्रेशन की समय-सीमा को एक साल तक बढ़ाने के लिए यह संशोधन बिल भेजा गया था. तकनीकी गलती पाए जाने के कारण लोकभवन ने इसे भी लौटा दिया है.

लोकभवन से बिलों की वापसी पर को कांग्रेस ने 'BJP का सिर्फ दिखावा'  बताया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस के उत्तराखंड उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा,

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"वे (गुरमीत सिंह) नियमित तौर पर (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी और पीएम से अपनी मुलाकातों के बारे में बात करते हैं, और चुनाव आने पर राष्ट्रवाद की बात करते हैं."

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (CPI(ML)L) के नेता इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि राज्यपाल ने संवैधानिक आधार पर बिल वापस नहीं किया था. उन्होंने कहा,

"वे उत्तराखंड के संवैधानिक प्रमुख हैं और राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं ले सकते. उन्होंने चुनावों के दौरान रैलियों में हिस्सा लिया है. यहां तक ​​कि धर्मांतरण विरोधी बिल भी विधायी विभाग की तकनीकी गलतियों के कारण वापस किया गया था, ना कि संवैधानिक मुद्दों के कारण."

मैखुरी ने पिछले साल फरवरी में बनभूलपुरा में स्थानीय लोगों पर पुलिस की कथित गोलीबारी का जिक्र किया. उन्होंने आरोप लगाया कि उस दौरान तनाव को कम करने में राज्यपाल गुरमीत सिंह की भूमिका 'असरदार नहीं' थी. उन्होंने बताया कि इस हादसे में 5 लोगों की मौत हुई थी.

उन्होंने कहा,

"हमने उनके दखल की मांग की थी क्योंकि इलाके में प्रशासन हिंसक कार्रवाई कर रहा था. उन्होंने शांति बनाए रखने के हमारे अनुरोध पर सहमति जताई, लेकिन शाम तक कार्रवाई और बढ़ गई. संवैधानिक पद पर होने के बावजूद, उन्होंने समाधान के लिए काम नहीं किया."

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC), जनवरी 2024 में पास हुई थी. इसके बाद सरकार ने अगस्त 2025 के मानसून सत्र में इसमें कुछ अहम संशोधन किए. इन संशोधनों के तहत, पहले से शादीशुदा होते हुए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने पर सात साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा जबरदस्ती, दबाव या धोखाधड़ी से किसी रिश्ते में आने पर भी यही सजा तय की गई है.

UCC में जोड़ी गई नई धारा 390-A के तहत अब रजिस्ट्रार जनरल को शादी, तलाक, लिव-इन रिलेशनशिप और उत्तराधिकार से जुड़े रजिस्ट्रेशन को रद्द करने का अधिकार भी दिया गया है.

वहीं, उत्तराखंड का धर्मांतरण कानून पहले 2018 में लागू हुआ था. 2022 में इसमें संशोधन किया गया. अब 2025 में प्रस्तावित नए संशोधन में जबरन धर्मांतरण के मामलों में अधिकत सजा 10 साल से बढ़ाकर उम्रकैद तक करने का प्रावधान किया गया है.

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