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सुप्रीम कोर्ट ने दो जजों को ट्रेनिंग के लिए भेज दिया, नियमों की अनदेखी कर जमानत दी थी

ये मामला दिल्ली में दर्ज एक धोखाधड़ी के केस से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों ने कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया और सबूतों की अनदेखी करते हुए आरोपियों को जमानत दे दी.

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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई में खामियों को ध्यान में रखते हुए ACMM, सेशन्स जज और हाई कोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया. (फोटो- PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने 6 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में नियमों का पालन ना करते हुए बेल दिए जाने पर दिल्ली की अदलात के दो जजों को ट्रेनिंग के लिए भेज दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों ने कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया और सबूतों की अनदेखी करते हुए आरोपियों को जमानत दे दी. शीर्ष अदालत ने जजों के फैसले की कड़ी आलोचना की और जांच में पुलिस की ओर से हुई गंभीर चूक को लेकर विभागीय जांच के आदेश भी दिए.

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6 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक ये मामला दिल्ली में दर्ज एक धोखाधड़ी के केस से जुड़ा है. 1 करोड़ 90 लाख रुपये लेकर एक कपल ने एक कंपनी को जमीन देने का वादा किया था. बाद में उन्हें ये पता चला कि जमीन पहले ही बेच दी गई है. ऐसी स्थिति में उन्होंने कंपनी को पैसे वापस करने से इनकार कर दिया. जिसके बाद कंपनी ने दोनों के खिलाफ मामला दर्ज कराया. कंपनी ने दावा किया कि ब्याज सहित उसकी बकाया राशि 6 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई है.

मामले में 2017 में दर्ज शिकायत के आधार पर 2018 में FIR लिखी गई. 2023 में मामला दिल्ली हाई कोर्ट गया तो कपल को अग्रिम जमानत नहीं मिली. हाई कोर्ट ने उनके रवैये की कड़ी आलोचना भी की. कोर्ट  ने उस वक्त टिप्पणी की कि कपल ने पैसे लौटाने का झूठा वादा किया और अदालत को कई सालों तक गुमराह किया.

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लेकिन नवंबर 2023 में ACMM (एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट) ने उन्हें जमानत दे दी. मजिस्ट्रेट ने तर्क दिया कि मामले में चार्जशीट दायर हो चुकी है, इसलिए हिरासत की कोई जरूरत नहीं है. इस आदेश को अगस्त 2024 में सेशन्स जज ने भी बरकरार रखा. और दिल्ली हाई कोर्ट ने भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

मामला जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच के पास पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने आरोपियों की करतूतों को नजरअंदाज कर दिया. बेंच ने ये भी कहा कि निचली अदालत ने हाई कोर्ट की पहले की टिप्पणियों पर विचार नहीं किया. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जमानत का आधार तथ्य और आरोपियों के आचरण पर केंद्रित होने चाहिए.

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मामले की सुनवाई जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने की.
स्पेशल ट्रेनिंग की सजा

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई में खामियों को ध्यान में रखते हुए ACMM, सेशन्स जज और हाई कोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया. साथ ही आरोपियों को दो हफ्ते के भीतर समर्पण करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि उसके निर्देश स्वतंत्रता के सिद्धांतों को कमजोर करने के लिए नहीं हैं. बल्कि ये जवाबदेही और न्यायिक अनुशासन (यानी, ज्यूडिशियल डिसिप्लिन) के पालन को सुनिश्चित करने के लिए थे. बेंच ने अपने आदेश में कहा,

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"अगर हम ACMM द्वारा आरोपियों को दी गई जमानत और सेशन्स जज के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर देते हैं, तो हम भी अपने कर्तव्य में विफल होंगे. 10 अक्टूबर 2023 और 16 अगस्त 2024 के आदेशों को पारित करने वाले ज्यूडिशियल ऑफिसर्स को कम से कम सात दिनों के लिए स्पेशल ट्रेनिंग के लिए जाना होगा."

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ACMM और कड़कड़डूमा कोर्ट के सेशन्स जज को दिल्ली ज्यूडिशियल एकेडमी में स्पेशल ट्रेनिंग लेनी होगी. इसके अलावा, कोर्ट ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को मामले की जांच में जुड़े अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकता से जांच करने का निर्देश दिया.

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