पहलगाम हमले (Pahalgam Attack) के बाद पाकिस्तान पर एक्शन तेज करने के सिलसिले में भारत ने सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को निलंबित कर दिया. अब सवाल था कि भारत इस निलंबन का फायदा किस तरह से उठा सकता है? क्या पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में आने वाली तीनों पश्चिमी नदियों का पानी पूरी तरह से रोका या मोड़ा जा सकता है? अगर हां तो कितना समय और पैसा इसमें लगेगा? इस सवाल का जवाब मिलता, इससे पहले भारत ने चिनाब नदी पर बने बगलिहार डैम का गेट बंद कर दिया. इससे पाकिस्तान के हिस्से में नदी के पानी का प्रवाह बहुत कम हो गया है.
पाकिस्तान का पानी रोकना शुरू, पूरी तरह बंद करने के लिए कितने बांध और चाहिए?
India Pakistan Tension: भारत ने बगलिहार डैम से पाकिस्तान जाने वाले पानी के प्रवाह को रोक दिया है. वैसे तो इसे रूटीन कवायद बताया जा रहा है लेकिन इसके बंद होने से पाकिस्तान के हिस्से वाली चेनाब में पानी की धारा बेहद कम हो गई है.

इसे भारत की ओर से पाकिस्तान पर ‘वॉटर स्ट्राइक’ कहा जा रहा है क्योंकि चिनाब का पानी कम होने से न सिर्फ पाकिस्तान की खेती पर असर पड़ेगा बल्कि वहां पर्यावरण भी बुरा प्रभावित होगा. खबरों के मुताबिक, बगलिहार के अलावा झेलम नदी पर बने किशनगंगा बांध के साथ भी भारत ऐसा करने वाला है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि रिजरवायर से गाद निकालने की कवायद के तहत बांध बंद किया गया है.
इससे पाकिस्तान की ओर नदी के पानी का प्रवाह 90 फीसदी तक कम हो गया. हालांकि, ये एक रूटीन काम है और इसमें कुछ नया नहीं है लेकिन भारत के इस एक्शन पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि ये काम उत्तर भारत की नदियों पर अगस्त में किया जाता रहा है.
अभी ये तय नहीं है कि भारत का ये एक्शन सिंधु जल समझौते के निलंबन पर आधारित है या नहीं लेकिन इस पर चर्चा तेज हो गई है कि पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों पर भारत की कितनी ऐसी परियोजनाएं हैं, जिससे पाकिस्तान पर असर डाला जा सकता है? मतलब ये कि पानी की धारा जब मुड़े तब मुड़े. फिलहाल हमारे पास जो विकल्प हैं, उससे पाकिस्तान को कितना ‘दंडित’ किया जा सकता है?

सबसे पहले जानते हैं कि भारत के हिस्से वाली पश्चिमी नदियों पर कितने बांध बने हैं? कितने बन रहे हैं? कितने चालू हैं? इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में पश्चिमी नदियों पर 6 चालू जलविद्युत परियोजनाएं हैं. हालांकि उनमें से किसी को भी स्टोरेज डैम के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है. मतलब ये कि पानी स्टोर करने के लिए इनके पास ज्यादा जगह नहीं है. ये सभी ‘रन फॉर रिवर प्रोजेक्ट’ के तहत बने हैं, जिसमें पानी रोकने की व्यवस्था नहीं होती.
चेनाब नदी पर बने बांधसबसे पहले चेनाब नदी की बात करते हैं. इस पर कुल 6 बांध परियोजनाएं हैं. इनमें से 3 चालू हालात में हैं. तीन निर्माणाधीन हैं.
चेनाब पर 1 हजार मेगावाट की पाकलदुल परियोजना पर काम चल रहा है. किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी की एक सहायक नदी पर इसे बनाया जा रहा है. पश्चिमी नदियों पर यह पहला ऐसा प्रोजेक्ट है, जिसमें स्टोरेज की सुविधा है. इसमें 125.4 मिलियन क्यूबिक मीटर या 0.1 एमएएफ पानी स्टोर किया जा सकता है.
किश्तवाड़ जिले में स्थित 390 मेगावाट का दुलहस्ती जलविद्युत संयंत्र एनएचपीसी ने बनाया है. ये भी रन फॉर रिवर प्रोजेक्ट है, जिसमें ज्यादा पानी संग्रह करने की व्यवस्था नहीं है.
एनएचपीसी के मुताबिक, 540 मेगावाट रतले जलविद्युत परियोजना जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर प्रस्तावित है. यह परियोजना भी 'रन ऑफ रिवर' योजना के रूप में तैयार की जा रही है.
बगलिहार डैम भी चिनाब नदी पर बना बांध है. यह रामबन जिले में आता है.2008 में ये प्रोजेक्ट तैयार हुआ था. 475 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी संभालने की क्षमता इस प्रोजेक्ट में है. यहां से 900 मेगावॉट बिजली तैयार होती है.
सावलकोट जलविद्युत परियोजना भी रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है. ये रामबन और उधमपुर जिले में चिनाब नदी पर प्रस्तावित है. सावलकोट परियोजना 7994.73 MUs की सालाना एनर्जी उत्पन्न करेगी.
सलाल डैम चिनाब की सबसे अहम परियोजनाओं में से एक है. 690 मेगावॉट की जलविद्युत परियोजना यहां एक्टिव है और साल 1987 से यह काम कर रहा है. सलाल बांध भारत में चिनाब पर बना आखिरी बांध है. भारत इसे स्टोरेज डैम की तरह बनाना चाहता था लेकिन पाकिस्तान की आपत्ति के बाद इसे ‘रन ऑफ द रिवर’ की तरह डिवेलप किया गया. इस बांध को लेकर पाकिस्तान को डर था कि अगर भारत यहां पानी जुटाता है तो किसी भी झड़प की स्थिति में ज्यादा पानी छोड़ पाकिस्तान में बाढ़ ला सकता है. या सूखे की स्थिति में पानी रोक सकता है.
झेलम नदी पर परियोजनाएंबगलिहार के अलावा किशनगंगा बांध को भी भारत द्वारा बंद करने की संभावना है. ऐसी खबरें हैं. बांदीपोरा में झेलम नदी पर बने 3x110 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट को 2018 में कमिशन किया गया था. अंडरग्राउंड पावरहाउस के जरिए इससे बिजली बनाने का काम किया जा रहा है.
उरी क्षेत्र में झेलम नदी पर 240 मेगावाट उरी-2 पनबिजली परियोजना का उद्घाटन 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने किया था. ये पहले से चालू 480 मेगावाट उरी-1 पनबिजली परियोजना के निचले क्षेत्र में स्थित है. इस परियोजना में बांध की ऊंचाई 52 मीटर है. जबकि लंबाई 157 मीटर है. बांध से 4.23 किलोमीटर लंबी सुरंग से पानी पावरहाउस तक जाता है, जिसमें 60-60 मेगावाट की 4 इकाइयां हैं. प्रत्येक की क्षमता 112.4 करोड़ यूनिट बिजली प्रति वर्ष है. 8 अक्टूबर 2005 को आए भयानक भूकंप के बावजूद बिजली परियोजना का काम निर्धारित समय पर पूरा हुआ.
सिंधु नदी पर बने बांधनिम्मो-बाजगो पावर स्टेशन (3x15 मेगावाट) सिंधु नदी पर बनाया गया महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है. यह भी ‘रन आफ द रिवर’ स्कीम है, जो लद्दाख के लेह जिले के अलची गांव के पास है. इस पावर स्टेशन में 59 मीटर ऊंचा तथा 248 मीटर लम्बा कंक्रीट ग्रैविटी बांध है जिसमें 3.3 मीटर व्यास वाली एवं 63 मीटर लंबी 03 पेनस्टॉक हैं. एनएचपीसी के अनुसार, 45 मेगावॉट की क्षमता वाले पावर हाउस की सभी 3 इकाईयों को 239.33 मिलियन यूनिट्स बिजली उत्पादन के लिए डिज़ाइन किया गया है.
44 मेगावाट (4X11 मेगावाट) का चुटक पावर स्टेशन सिंधु नदी की सहायक सुरू नदी पर बना है. यह लद्दाख के कारगिल जिले में स्थित है. पावर स्टेशन को साल 2012-13 में चालू किया गया था.
आइए जानते हैं कि भारत पश्चिमी नदियों पर बनी अपनी परियोजनाओं के जरिए पाकिस्तान का कितना पानी रोक सकता है?
सिंधु जल समझौते के तहत पश्चिमी नदियों पर भारत का अधिकार सीमित था. यानी कि भारत खेती के लिए या फिर 'रन ऑफ द रिवर' के तहत बिजली परियोजनाओं के इस्तेमाल के लिए इन नदियों के पानी का इस्तेमाल कर सकता है. ‘रन ऑफ द रिवर’ प्रोजेक्ट में पानी के कुदरती बहाव से बिजली पैदा की जाती है. इसमें परंपरागत बिजली प्रोडक्शन की तरह बड़े पैमाने पर पानी का भंडारण नहीं किया जाता.
इन परियोजनाओं के लिए भारत ने पश्चिमी नदियों पर जलाशय यानी कि रिजरवायर बना रखे हैं. इसके जरिए कुल 3.6 एमएएफ से ज्यादा पानी संग्रह नहीं किया जा सकता है. इसको ऐेसे कहें कि भारत की मौजूदा जल संग्रहण व्यवस्था के जरिए सिंधु, चिनाब और झेलम से सालाना बहने वाले पानी का 1 प्रतिशत भी हम नहीं रोक सकते.
सलाल, किशनगंगा, बगलिहार, उरी, दुलहस्ती और निमू बाजगो बांध के रिजरवायर इन नदियों में एक साल में बहने वाले पानी का केवल 0.4 प्रतिशत ही रोक पाते हैं. रतले, पाकल दुल, क्वार और किरू जलविद्युत परियोजनाओं पर काम चल रहा है. इनका निर्माण नवंबर 2021 और मई 2022 के बीच शुरू हुआ और अगले साल फरवरी और नवंबर के बीच पूरा होने की उम्मीद है. ऐसे में जब ये सभी जलविद्युत परियोजनाएं पूरी हो जाएंगी तब भी भारत की पश्चिमी नदियों का पानी रोकने की क्षमता 2 प्रतिशत तक बढ़ पाएगी.
पाकिस्तान का पानी रोकने के लिए कितने बांध लगेंगे?
अभी भारत के पास जितने बांध है, वो पानी स्टोर करने के उस्ताद नहीं हैं. वे रन फॉर रिवर परियोजना के तहत बने हैं और बिजली उत्पादन में मदद करने के बाद पानी नदी में प्रवाहित होकर पाकिस्तान चला जाता है. सिंधु जल समझौता निलंबित होने के बाद भारत के पास अवसर है कि अब वह पाकिस्तान को सूचित किए बिना ऐसे डैम बना सकता है जिसमें अधिक मात्रा में पानी संचित किया जा सके. अब सवाल ये है कि अगर भारत पाकिस्तान का सारा पानी रोकना चाहे तो उसे ऐसे कितने बांध बनाने होंगे? इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम के विश्लेषण के अनुसार भारत को इसके लिए भाखड़ा नांगल के आकार के कम से कम 22 बांधों की आवश्यकता होगी.

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार पश्चिमी नदियों से हर साल औसतन 136 एमएएफ (मिलियन एकड़-फुट) पानी बहता है. इसको ऐसे समझें कि 1 एमएएफ पानी 10 लाख एकड़ भूमि यानी तीन दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के बराबर इलाके को 1 फुट गहरे पानी में डुबो सकता है. अगर पश्चिमी नदियों से बहने वाला पानी पूरी तरह रोक दिया जाए तो यह 42241 वर्ग किलोमीटर में फैले पूरे जम्मू और कश्मीर को 13 फीट पानी में ढक सकता है.
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