साल 1979 की बात है. सोवियत टैंक अफगानिस्तान में दाखिल हो रहे थे. जंग के लिए लादी गई खूब सारी बारूद की गंध के साथ. वो दिन-रात चलते थे. इस तबाही ने ना सिर्फ सरहदें बदलीं. बल्कि नार्कोटिक्स यानी नशे का नक्शा भी बदलकर रख दिया. युद्ध के बाद अफगानिस्तान की घाटियां बियाबान हो चुकी थीं. एक घुप अंधेरे से निकलकर भी बहुत रोशनी महसूस नहीं हो रही थी. वो घाटियां जो कभी फलों के बागों के लिए जानी जाती थीं. यहां अब अफीम की खेती होने लगी. इस मुल्क को अमेरिकी और पाकिस्तानी फौज साथ मिलकर चलाना चाहती थीं. और उन्होंने इस मंसूबे को पूरा करने के लिए अफगान मुजाहिदों का सहारा लिया. उन्हें पैसे दिए-हथियार सौंपे. जिससे वो सोवियत सेना से लड़ सकें. पर, पैसे का जल्द इंतजाम कैसे हो. वह भी बिना रिकॉर्ड के. हेरोइन से बेहतर भला क्या ही तरीका हो सकता है.
कुत्ते, गधे, ऊंट से लेकर ड्रोन्स तक...पाकिस्तान से भारत आने वाले अवैध ड्रग्स का काला इतिहास
पाकिस्तान ड्रोन के ज़रिए भारत में नशा गिरा रहा है, जिससे अब ये सिर्फ़ नशे की नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की समस्या बन गई है. अफगान-सोवियत युद्ध के समय शुरू हुई ये हरकत अब पंजाब में सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है.


1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत-जंग चल रही थी. अमेरिका चाहता था कि सोवियत सेना को रोका जाए. क्योंकि वो कोल्ड वॉर का दौर था यानी अमेरिका और रूस सीधे तौर पर लड़ तो नहीं रहे थे. पर, एक दूसरे को कमजोर करने की हर कोशिश जारी थी. अमेरिका ने छिपकर CIA यानी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के ज़रिए मुजाहिदों को हथियार और ट्रेनिंग दी, ताकि वे खुद सोवियत सेना से लड़ सकें.

पर, यह लड़ाई आसान नहीं थी. क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान की सरहदें, पहाड़ी और खतरनाक थीं. इसलिए हथियार पहुंचाने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल रास्ते के तौर पर हुआ. जब मुजाहिदों को हथियार मिले तो उसके एवज में दिया गया ड्रग्स-अफीम, हेरोइन.
पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान की सरहद पर बसे छोटे-छोटे शहर, जैसे लांडी कोटल और बारा, हेरोइन बनाने की लैब और तस्करी के अड्डे बन गए. पर, ऐसा नहीं था कि ये जगहें इसकी उत्तपत्ति का पहले से केंद्र रही हों. लेकिन कहा जाता है कि सही प्रयोग वरदान और उसका गलत इस्तेमाल अभिशाप. बंगाल में आज भी पोस्तो की सब्जी बनती है. जो पॉपी फ्लावर से मिलता है. लेकिन लोगों ने इससे पोस्ता दाना निकालते-निकालते अफीम भी खोज ली. उधर, जनरल जिया-उल-हक की हुकूमत के दौरान नशे का कारोबार दबे पांव बढ़ता चला गया. किसी ने इसकी मुखालिफत नहीं की. क्योंकि लोग इसका नतीजा जानते थे. नशे की तस्करी का इस्तेमाल जंग के लिए पैसा जुटाने में किया जा रहा था.
कुछ समय बाद पाकिस्तानी सेना के हिस्से के पन्ने खुलने लगे. खुफिया एजेंसी ISI पर आरोप लगा कि उसकी निगरानी में हथियार और नशे की तस्करी हो रही है. और अमेरिका सबकुछ जानते हुए भी आंख मूंदकर यह सब चलने दे रहा था. साल 1985 आते-आते पाकिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा हेरोइन बनाने वाला मुल्क बन गया. ड्रग्स बनने से लेकर उसकी तस्करी तक का ये प्रोसेस कहलाया- गोल्डन क्रिसेंट.
पाकिस्तान से ड्रग्स भेजने के पुराने तरीके1989 में जंग तो ख़त्म हुई, लेकिन नशे का कारोबार चलता रहा. जो रास्ते और नेटवर्क उस वक़्त बने थे, वो अब भारत की ओर मुड़ गए. भारत और पाकिस्तान की लंबी खुली सीमा के रास्ते हेरोइन पंजाब तक पहुंचने लगी. 1980 के आख़िर तक, जब पंजाब पहले ही इंटरनल कॉन्फ्लिक्ट से जूझ रहा था, खालिस्तान मूवमेंट अपने ज़ोर पर था, तभी एक नशे की लहर फैली. जो हेरोइन कभी मुजाहिद्दीनों की बंदूकें चलाने के लिए काम आती थीं, अब वही भारत के गांवों को निगलने लगी. यह एक ऐसी जंग थी, जो भारत ने लड़ी नहीं- पर खूब नुकसान उठाना पड़ा.

1980-90 के दशक में तस्करी के लिए बहुत ही अजीब और ख़तरनाक तरीकों का इस्तेमाल होता था. कभी नशे के छोटे पैकेट्स कुत्तों के गले में बांधकर भेजे जाते. तो कभी छोटे पालतू जानवरों के पेट में भरकर. इन तरकीबों का इस्तेमाल बॉर्डर पर कड़े इंतजामों से बचने के लिए किया जाता था. कभी-कभी ऊंट और गधे भी इस काम में इस्तेमाल होते. थार के रेगिस्तान या पाकिस्तान के पठारी इलाक़ों में तस्कर छोटे-छोटे पैकेट लेकर खच्चरों और ऊंटों के झुंड के साथ भारत की तरफ आते. स्थानीय लोग, जिन्हें पता भी नहीं होता कि उनका जानवर माल लेकर जा रहा है, अनजाने में ही इस ड्रग्स की तस्करी का हिस्सा बन जाया करते.
फिर आए छोटे ट्रकों और टैक्सी वाले रास्ते, जहां हेरोइन को साबुन, आटा, कपड़े, या आम के डिब्बों के अंदर छिपाकर भारत पहुंचाया जाने लगा. कुछ तस्कर ड्रग्स के पैकेट को टूरिस्ट बसों या ट्रेन में सामान के बीच छिपा देते थे. यहां तक कि डाक/कूरियर सेवा का भी इस्तेमाल हुआ. ये बातें हवा-हवाई नहीं हैं. यूनाइटेड नेशंस ने भी तस्करी के इन तरीकों पर अपनी रिसर्च की है. उन्हें पब्लिश भी किया है. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी डिवेलप होती गई, तस्करी के तरीके भी बदलने लगे. बॉर्डर पार ड्रग्स पहुंचाने के लिए पाकिस्तान ने ड्रोन्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया.
पंजाब का ड्रग्स बिहार कैसे पहुंचा?साल 2016 में आई उड़ता पंजाब का ओपनिंग सीन आपको याद होगा. जब बॉर्डर पार, रात के अंधेरे में ड्रग्स का एक पैकेट भारत की तरफ फ़ेंक दिया जाता है. यह कल्पना भर नहीं है. बल्कि हकीकत पर आधारित तरीकों में से एक हैं. हाथ से फेंका हुआ पैकेट मान लीजिए किसी खेत में गिरा, तो जिसे मिलता है, वो इसे मार्केट तक पहुंचा देता है. ड्रग्स का यह बिजनस अब बिहार तक पहुंच चुका है. क्योंकि रोजगार के सिलसिले में पलायन करने वाले मजदूर यहां से सिर्फ पैसा नहीं बल्कि सूखा नशा जुटाकर भी लौटते हैं.
इंडिया टुडे ने अपनी साल 2017 की एक रिपोर्ट में छापा कि नीतीश कुमार के शराब-बंदी वाले फैसले ने बिहार को एक बुरे सपने में बदल दिया है. ग्राउंड पर अपनी इन्वेस्टिगेशन में पाया गया कि शराबबंदी के एक साल के भीतर शराब स्मगल होने लगी और सब्सटैंस जैसे हेरोइन, कोकीन और सोल्यूशन- जिसे बिहार में लोग सुलेशन बोलते हैं- शुरू हो गया. बिहार के अलग-अलग इलाकों में इसकी बिक्री होती है. इस काम में भी बच्चों का ही इस्तेमाल होता है. पान की दुकानों, टपरियों और कुछ जगहों पर तो खुलेआम भी.
यही वजह है कि कई बच्चे सूखे नशे के आदी बनते जा रहे हैं. एक रिपोर्ट में बताया गया कि पंजाब में जमींदारी करने वाले लोगों में से कुछ अपने मजदूरों को नशे का आदी बना देते हैं. और इसके जरिए उनसे बंधुआ मजदूरी कराई जाती है. इन बंधुआ मजदूरों में बिहार और यूपी से मजदूरी करने आए लोग शामिल हैं.
पंजाब की बिगड़ती हालत और राजनीतिइसी साल यानी 2 अक्टूबर 2025 को फ़िरोज़पुर पंजाब से एक तस्वीर आई. चार दोस्तों की ड्रग्स की वजह से मौत हो गई. इससे ठीक पहले पंजाब के खडूर में 10 दिन के अंदर 5 युवाओं ने जान गंवा दी. अभी सितम्बर 2025 में ही पंजाब के तरनतारन में दो भाइयों- मलकीत सिंह- उम्र 35 बरस और गुरप्रीत सिंह- उम्र 30 बरस की ड्रग्स की वजह से मौत हो गई. इनके घरवाले बताते हैं कि उन्हीं के मजदूरी के पैसे से घर चलता था लेकिन अब जब वो जा चुके हैं तो पूरा परिवार लाचार हो गया है.

जब पंजाब में नशे के कारोबार की बात हो रही है तो इसके हिस्से आने वाले विरोध को भी समझा जाना जरूरी है. कांग्रेस नेता परगट सिंह कहते हैं,
'पंजाब गुरुओं और सूफ़ी परंपरा के महान लोगों की भूमि है. इसे नशे में डूबता छोड़ना एक अपराध है. जब माता-पिता अपने बच्चों के शव सड़कों पर ले जाने को मजबूर होते हैं, तो यह केवल विरोध नहीं, बल्कि न्याय की एक हताश पुकार होती है. मैं न्याय और निर्णायक कार्रवाई होने तक पंजाब के युवाओं के लिए लड़ता रहूंगा. 'नशे के खिलाफ युद्ध' का ढोल भले ही बजाया जा रहा हो, लेकिन वास्तव में, यह हमारे युवाओं की जान की कीमत पर एक हार है.'
31 मई 2025 को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने वादा किया कि वो जितनी जल्दी हो सके प्रदेश में ड्रग्स की समस्या को ख़त्म करने की कोशिश करेंगे. लेकिन अब आरोप लगते हैं कि सिवाए नशा मुक्ति केन्द्रो में बढ़ोतरी के अलावा कुछ नहीं किया गया. साल 2025 में ही आप सरकार ने ‘युद्ध नशा विरुद्ध 2.0’ लॉन्च किया. कहा गया इसके तहत ग्राम और वार्ड स्तर पर 10 से 20 लोगों की समिति बनायी जाएगी, जो बॉर्डर पार से और अंदरूनी स्तर पर चल रहे ड्रग्स की तस्करी और खरीद-परोख्त पर निगरानी रखेगी. भगवंत मान ने अपने एक भाषण में यहां तक कह दिया कि अब 'नशे के जड़ की रीढ़ ही तोड़ दी गई है.' लेकिन आलम ये है कि ठीक उसके बाद सिर्फ सितंबर में ही कम से कम 15 लोगों की जान चली गई.
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने चिंता जताईसवाल ये है कि हम अचानक आपको नशे के बारे में, ड्रग्स के बारे में और पाकिस्तान से सप्लाई होने वाले हेरोइन के बारे में क्यों बता रहे हैं? इसलिए क्योंकि बढ़ते ड्रग्स से जुडी ख़बरों के बीच 10 अक्टूबर 2025 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में एक सुनवाई चल रही थी. सुनवाई एक ऐसे शख़्स पर जिसके ऊपर ड्रग्स की ट्रैफिकिंग करने का आरोप लगा था. लेकिन बात एक स्पेसिफिक केस से बढ़ कर पूरे पंजाब में ऐसे मामलों के बढ़ने पर पहुंच गयी.
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कुछ ज़रूरी बातें कहीं. जैसे-
भारतीय सुरक्षा बलों को पाकिस्तान से ड्रोन आदि से होने वाले तस्करी को पहचानने और उनका मुकाबला करने की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. साथ ही, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को और मज़बूत करने की ज़रूरत है. कोर्ट ने ऑर्डर में ये भी कहा कि, नशे की रीढ़ तोड़ने के लिए ज़रूरी ये है कि पंजाब में युवाओं के लिए रोज़गार के और रास्ते खोले जाएं ताकि चिट्टा यानी ड्रग्स ऑप्शन के तौर पर बचे ही न.

दी ट्रिब्यून ने अक्टूबर 2022 में एक रिपोर्ट छापी. इसमें लिखा कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विस-इंटेलिजेंस यानी ISI ने बहुत ही सिस्टमैटिकली पंजाब के युवाओं को ड्रग्स का शिकार बनाया है. इसे कुछ लोग ‘नार्कोटिक्स टेररिज़्म’ भी बोलते हैं.
13 फरवरी 2023 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पंजाब के इन्स्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस सुखचैन सिंह गिल ने बताया कि पिछले 7 महीनों में 10,576 नशा बेचने वालों को पकड़ा गया. पुलिस ने इस दौरान 667 किलो हेरोइन, 423 किलो अफीम, 25,548 किलो पॉपी के बीज और 51 लाख किलो मेडिकल ड्रग्स बरामद किया. ये सब एक खास अभियान के तहत हुआ, ताकि पंजाब में फैल रहे नशे के जाल को खत्म किया जा सके.
पहले पाकिस्तान के तस्कर पुराने तरीकों से बॉर्डर पार नशा भेजते थे- जैसे रात के अंधेरे में छिपकर रास्तों से लाना. लेकिन अब जब सीमा पर सुरक्षा कड़ी हो गई है, तो उन्होंने नई तकनीकें अपनाई हैं.
2019 में पहली बार पता चला कि पाकिस्तान से ड्रोन के ज़रिए नशा, हथियार और बारूद भारत में गिराया जा रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात की सीमा पर ड्रोन के दिखने के मामले हर साल बढ़ते जा रहे हैं.
-2020 में 77
-2021 में 104
-2022 में 311
- 2023 के पहले चार महीनों में ही 28 मामले सामने आ गए थे.
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, साथ ही डेटा के लिहाज से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि भारत के पास अभी तक अच्छी एंटी ड्रोन टेक्नोलॉजी नहीं है. इस पर काम किया जाना चाहिए ताकि पाकिस्तान से आ रहे ड्रोन को बिना किसी देरी के ख़त्म किया जा सके.

कितना कुछ तबाह हो गया. कितना कुछ घुट-घुटकर खत्म हो रहा है. स्याह सी कितनी कहानियां अभी कतार में हैं. उस नशे के चलते, जो खोखला कर रहा है सबकुछ. अभी कुछ और बताने को है क्या? सावधान हो जाइए. छोड़ दीजिए नशे की बुरी आदतों को.
नशा छोड़ने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें.
National Toll Free Helpline Number- 14446
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