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फौज के लिए सब कुछ देने को तैयार थे… अब इलाज के लिए तरस रहे हैं, दर्दभरी 500 कहानियां

Indian Armed Forces में अधिकारी बनकर देश सेवा करने का सपना संजोने वाले लगभग 500 Cadets आज जीवन से संघर्ष करने को मजबूर हैं. इनको ट्रेनिंग के दौरान विकलांगताओं के चलते छुट्टी दे दी गई थी. ये कैडेट अब इलाज के बढ़ते खर्चे से जूझ रहे हैं, क्योंकि इनको मिलने वाला मासिक भत्ता उनकी जरूरतों के लिहाज से बेहद कम है.

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ट्रेनिंग के दौरान मेडिकली अनफिट जवानों को भूतपूर्व सैनिक का दर्जा नहीं मिल पाता (इंडिया टुडे)

विक्रांत राज. बचपन से आर्मी ऑफिसर बनने का सपना. लेकिन अब बोली लड़खड़ाती है. और हर कदम पर सहारे की जरूरत पड़ती है. इसी तरह शुभम गुप्ता कभी लड़ाकू विमान उड़ाने के सपने देखते थे, लेकिन अब वे पानी का एक ग्लास भी पकड़ नहीं पाते. वहीं किशन कुलकर्णी अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए मां पर निर्भर हैं. और हरीश सिंहमार में जीने की इच्छा भी शेष नहीं है. लेकिन ये हमेशा से ऐसे नहीं थे.इन्हें देश के शीर्ष सैन्य संस्थानों नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) और भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की ट्रेनिंग के लिए चुना गया था. लेकिन तकदीर ऐसी कि आज गुमनामी के साये में जीवन से संघर्ष में जुटे हैं.

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ये सभी नाम उन 500 ऑफिसर कैडेट में शामिल हैं, जिन्हें 1985 से अब तक सैन्य संस्थानों में ट्रेनिंग के दौरान हुई विकलांगताओं के चलते मेडिकल आधार पर छुट्टी दे दी गई. देश की सुरक्षा के लिए दुश्मन से दो-दो हाथ करने का सपना संजोने वाले ये कैडेट अब बढ़ते इलाज के खर्चे से जूझ रहे हैं, क्योंकि इनको मिलने वाला मासिक भत्ता उनकी जरूरतों के लिहाज से बेहद कम है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक,  अकेले नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA)में साल 2021 से जुलाई 2025 तक 20 कैडेट्स को मेडिकल कारणों के चलते छुट्टी दे दी गई. नियमों के मुताबिक, इन कैडेट्स को भूतपूर्व सैनिक (ESM) का दर्जा नहीं मिलता है. इसके चलते वे भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ECHS) के तहत सैन्य सुविधाओं और सेना द्वारा सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए पात्र नहीं हो पाते. क्योंकि उनकी विकलांगता एक अधिकारी के तौर पर कमीशन प्राप्त करने से पहले ट्रेनिंग के दौरान हुई थी.

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इन ऑफिसर कैडेट्स को केवल 40  हजार रुपये प्रति माह तक का भत्ता मिलता है. वो भी उनकी विकलांगता की सीमा पर निर्भर करता है. विकांत राज की मां बताती हैं कि उनके बेटे के इलाज में औसतन हर महीने एक लाख का खर्च आता है. अगर उनको ESM का दर्जा मिला होता तो वो किसी मिलिट्री हॉस्पिटल में उनका इलाज करा पातीं.

शुभम गुप्ता बताते हैं कि विकलांगता पेंशन और पूर्व सैनिक का दर्जा उन्हें एक सम्मानजनक जिंदगी दे सकता है. वहीं हरीश अपना दर्द बताते हुए कहते हैं कि उनकी जिंदगी तो खत्म हो गई लेकिन किसी और युवा कैडेट के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए.

केंद सरकार ने इन कैडेट्स की मदद के लिए कुछ घोषणाएं की थीं. लेकिन सरकारी फाइलों की अपनी गति होती हैं. साल भर से एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर की धूल फांक रही हैं. अब इनके पैर तो होते नहीं. और जिनके जिम्में इसको बढ़ाने का काम हैं उनमें शायद मानवीय संवेदनाओं की कद्र नहीं बची है. 

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