केरल के एर्नाकुलम में एक जर्नलिस्ट रेस्टोरेंट में ग्रेवी न मिलने पर 1 लाख रुपये का मुआवजा मांगने डिस्ट्रिक कन्जूमर डिस्प्यूट फेडरल फोरम (DCDRC) पहुंच गए. लेकिन फोरम ने उनकी याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि रेस्टोरेंट पर मुफ्त ग्रेवी देने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है.
रेस्टोरेंट में 'एक्स्ट्रा ग्रेवी' मांगने से पहले ये खबर पढ़ लीजिएगा!
केरल में कन्जूमर फोरम एक्स्ट्रा ग्रेवी के विवाद पर फैसला सुनाया है. बहुतों को ये फैसला पसंद नहीं आएगा.

बार एंड बेंच में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल नवंबर 2024 में जर्नलिस्ट शिबू एस वयलाकथ अपने एक दोस्त के साथ कोलेनचेरी स्थित ‘द पर्शियन टेबल’ रेस्टोरेंट में गए. जहां उन्होंने खाने में पराठा और बीफ फ्राई का ऑर्डर दिया. उन्होंने खाने के साथ ग्रेवी परोसने की मांग कर दी. इस पर रेस्टोरेंट ने मुफ्त में ग्रेवी देने से मना कर दिया और बताया कि उनकी पॉलिसी के मुताबिक वे कॉम्प्लिमेंटरी (मुफ्त) में ग्रेवी नहीं परोसते हैं.
इस बात से नाखुश शिबु ने कुन्नाथुनाडु के सप्लाई ऑफिसर से इसकी शिकायत की. शिकायत मिलने पर पर सप्लाई ऑफिसर और फूड सेफ्टी ऑफिसर ने इसकी जांच की और पाया कि रेस्टोरेंट के मेन्यू में ग्रेवी शामिल ही नहीं थी. जिसके बाद शिबु ने कन्ज्यूमर फोरम का दरवाजा खटखटाया.
इस बार शिबु ने मानसिक तनाव के आधार पर 1 लाख रुपये की मांग की. साथ ही कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए 10 हजार रुपये और रेस्टोरेंट के खिलाफ एक्शन की डिमांड भी की.
शिबू ने यहां तर्क दिये कि ग्रेवी देने से मना करना कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 के तहत "प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथा" (restrictive trade practice) और "सेवा में कमी" (deficiency in service) है. उन्होंने यह भी कहा कि रेस्टोरेंट ने "आधा खाना" परोस कर फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड के पैरामीटर का भी उल्लंघन किया है.
जिला फोरम के प्रेसिडेंट DB बिनू और रामचंद्रन वी और श्रीविद्या टीएन की बेंच ने मामले की सुनवाई की. फोरम ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 2(11) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि 'सेवा में कमी' तभी मानी जाती. भोजन की क्वॉलिटी, उसकी मात्रा या सेफ्टी से संबंधित कोई समस्या हो. इस मामले में ऐसा कुछ भी साबित नहीं हो सका.
साथ ही कोर्ट ने बताया कि मेन्यू और बिल देखने पर पता चलता है कि स्टोरेंट ने न तो ग्रेवी परोसने का कोई वादा न ही इसके लिए कोई चार्ज वसूला था. तमाम तर्कों के आधार कोर्ट ने कंज्यूमर फोरम ने शिकायत को खारिज कर दी और स्पष्ट किया कि मुफ्त में ग्रेवी न देना कंज्यूमर राइट्स का उल्लंघन नहीं है.
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