कर्नाटक में गुरुवार, 27 नवंबर की शुरुआत धुंधली सुबह के साथ हुई. ठीक ऐसी ही धुंध प्रदेश के सियासी आसमान में भी छाई रही. कांग्रेस की प्रदेश ईकाई के दो सबसे कद्दावर नेताओं में सीएम कुर्सी को लेकर जंग छिड़ी है. अभी तक ये साफ नहीं हो पाया कि क्या सिद्दारमैया 5 साल तक सीएम बने रहेंगे या ढाई साल बाद अब डीके शिवकुमार को कुर्सी दे दी जाएगी. इस उधेड़बुन के बीच पार्टी के विधायक अपने-अपने नेताओं के लिए 'लॉबिंग' कर रहे हैं.
डीके शिवकुमार के सामने कमजोर पड़ रहा सीएम सिद्दारमैया का खेमा? करीबी मंत्रियों तक ने चौंकाया
कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए डीके शिवकुमार और सिद्दारमैया के बीच खींचतान जारी है. इसी बीच सिद्दारमैया के साथी ने कह दिया है कि अगर आलाकमान डीके शिवकुमार को सीएम बनाता है तो वो इस फैसले को स्वीकार करेंगे.
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इसी बीच एक बड़ा धमाका सिद्दारमैया के बेहद करीबी माने जाने वाले कर्नाटक के गृहमंत्री जी परमेश्वर ने किया है. गुरुवार को जी परमेश्वर ने कहा कि अगर कांग्रेस आलाकमान डीके शिवकुमार को सीएम बनाता है तो वह इस फैसले को स्वीकार करेंगे. परमेश्वर का ये बयान सीएम सिद्दारमैया के लिए अच्छी खबर नहीं है क्योंकि परमेश्वर उनके करीबी हैं. एक दिन पहले सिद्दा के एक और करीबी मंत्री सतीश जारकीहोली ने भी इसी तरह की बात कही थी.
वहीं डीके शिवकुमार के लिए राहत वाली बात है. सीएम के करीबी मंत्रियों के यह कहने पर ऐसा लग सकता है कि सिद्दारमैया खेमा डीके शिवकुमार को कुर्सी देने के मुद्दे पर नरम है.
हालांकि इसके कुछ ही मिनट बाद मुख्यमंत्री के एक और करीबी नेता के बयान ने डिप्टी सीएम की उम्मीदों को धक्का दिया. कर्नाटक सरकार में मंत्री जमीर अहमद खान ने परमेश्वर से ठीक उलट बोलते हुए साफ शब्दों में कहा कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री नहीं बदलेगा और सिद्दारमैया इस पद पर बने रहेंगे.
इससे संदेश गया कि सिद्दारमैया के खेमे में ही इस मुद्दे पर दो फांक बनती दिख रही है.
कांग्रेस के लिए बड़ी टेंशनडीके शिवकुमार और सिद्दारमैया के बीच सीएम की कुर्सी की ये लड़ाई फिलहाल कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी टेंशन बनी हुई है. इंडिया टुडे के रिपोर्टर सगाय राज ने सूत्रों के हवाले से बताया कि डीके शिवकुमार ने सिद्दारमैया सरकार के मंत्री सतीश जारकीहोली से 25 नवंबर को देर रात मुलाकात की थी. जारकीहोली सिद्दारमैया खेमे के नेता माने जाते हैं. इस मीटिंग में शिवकुमार ने जारकीहोली से सीएम पद के लिए समर्थन मांगा था और याद दिलाया कि उनके और मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें 2.5 साल बाद उन्हें सत्ता सौंपने की बात कही गई थी. ये सब 5-6 सीनियर लीडर्स की मौजूदगी में हुआ था, लेकिन इस वादे का सम्मान नहीं किया गया.
कुर्सी का ये विवाद तब और गहरा गया जब डीके शिवकुमार के समर्थक विधायक दिल्ली पहुंच गए और हाईकमान से प्रदेश के सीएम पद पर अंतिम फैसला लेने को कहा.
इसी बीच, सिद्दारमैया के समर्थक विधायकों ने भी मीटिंग की, जिसका मकसद आलाकमान को ये समझाना था कि सीएम पद की कुर्सी खाली नहीं है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी इस सियासी संकट को संज्ञान में लिया है. और जल्द ही इसके निपटारे की बात कही है. शिवकुमार और सिद्दारमैया ने भी कहा कि बातचीत के लिए उन्हें अगर दिल्ली बुलाया जाता है तो वे जरूर जाएंगे.
इसी बीच सिद्दारमैया के 'साथी' जी परमेश्वर ने इंडिया टुडे से बात करते हुए बताया कि उनकी खुद की महत्वाकांक्षा भी सीएम बनने की है, लेकिन अगर सत्ता बदलती है और डीके शिवकुमार को सीएम बनाया जाता है तो वह इस फैसले को स्वीकार करेंगे. जिस समय परमेश्वर ये बातें कह रहे थे, तभी जमीर अहमद खान भी ये ऐलान कर रहे थे कि 'कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली नहीं है.'
सिद्दारमैया के बेटे ने क्या कहा?वहीं, सीएम सिद्दारमैया के बेटे और एमएलसी यतींद्र सिद्दारमैया ने भी इस लड़ाई में स्पष्ट तौर पर पिता का पक्ष लिया है. उन्होंने भी कहा है कि कर्नाटक में सीएम बदलने की जरूरत नहीं है. यतींद्र के मुताबिक,
एक पार्टी कार्यकर्ता और विधायक के रूप में मुझे फिलहाल ऐसी कोई स्थिति नहीं दिखती जहां मुख्यमंत्री बदलने की जरूरत हो. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर कोई आरोप नहीं है. कोई घोटाला नहीं है. उन्होंने अच्छा शासन दिया है और विधायक उनका समर्थन कर रहे हैं. इसलिए मुझे बदलाव की कोई जरूरत नहीं दिखती.

उन्होंने आगे कहा कि कुछ लोगों ने ये कहा कि मुख्यमंत्री का पद किसी और को (डीके शिवकुमार को) दिया जाना चाहिए. जो लोग यह फैसला लेना चाहते हैं, उन्हें हाईकमान से संपर्क करना चाहिए. हाईकमान के इस मामले पर बोलने से पहले हम जो भी राय व्यक्त करेंगे वह सही नहीं होगी.
कांग्रेस विधायकों के दिल्ली जाने पर यतींद्र ने कहा कि ये पहली बार नहीं है जब MLA लॉबी करने के लिए दिल्ली गए हैं. ऐसा पहले भी अलग-अलग पार्टियों में हो चुका है. हम हाईकमान की बात पर कायम हैं. बदलाव की कोई जरूरत नहीं है. कोई भी गैर-जरूरी बदलाव नहीं होना चाहिए.
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