भारतीय सेना ने एक नया ड्रोन बनाया है. इस ड्रोन को 'खड्ग' नाम दिया गया है. इंटेलीजेंस जुटाने और सर्विलांस में ये ड्रोन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. ये एक हाई-स्पीड ड्रोन है. जिसकी रफ़्तार 40 मीटर प्रति सेकेंड है. अगस्त 2024 में भारत की National Aerospace Laboratories (NAL) ने स्वदेशी ड्रोन प्रोग्राम लॉन्च किया था. उसी प्रोग्राम के तहत ये ड्रोन बनाया गया है. रूस-यूक्रेन जंग में बड़े पैमाने पर इस किस्म के सुसाइड ड्रोन्स का इस्तेमाल यूक्रेनी सेना द्वारा रूसी वाहनों और सेना को टारगेट करने के लिए किया गया था.
'सुसाइड' मिशंस को अंजाम देगा भारतीय सेना का नया 'खड्ग' ड्रोन, एक स्कूटी की कीमत में आएंगे 3 ड्रोन
ये एक 'कामिकाज़े' ड्रोन है. जो दुश्मनों पर गिरने के साथ ही खुद को भी तबाह कर लेगा. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के फिदायीन हमलावरों को Kamikaze नाम दिया गया था.
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इस ड्रोन को कामिकाज़े क्यों कहा जा रहा है, ये आगे जानेंगे, पर उससे पहले जानते हैं इस ड्रोन की कुछ ख़ास बातें जो इसे बाकी मानव रहित विमानों से अलग बनाती हैं. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक इस ड्रोन को रडार से डिटेक्ट कर पाना लगभग असंभव है. वजह है इसका छोटा साइज और इसकी स्पीड. 40 मीटर प्रति सेकेंड की रफ़्तार से चलने वाले इस ड्रोन को जब तक कोई देखेगा और कमांड देगा, तब तक ये काफी दूर निकल चुका होगा.

खड्ग ड्रोन की रेंज 1.5 किलोमीटर है. जीपीएस और हाई डेफिनिशन कैमरे से लैस इस ड्रोन से जासूसी के मिशंस को भी अंजाम दिया जा सकता है. पर ये सर्विलांस से अधिक हमला करने के लिए उपयुक्त माना जा रहा है. किसी भी समय ये ड्रोन 700 ग्राम तक उच्च क्षमता के विस्फोटक से लैस रहता. अगर ऑपरेटर को ड्रोन पर कोई खतरा दिखता है तो वो ड्रोन को किसी भी टारगेट पर क्रैश कर सकता है. विस्फोटक से लैस होने की वजह से ये ड्रोन गिरते ही धमाका करेगा जिससे इसे नुकसान पहुंचाने वाला तबाह हो जाएगा. यूक्रेन की सेना ने रूसी वाहनों और सैनिकों के खिलाफ इस तरह के ड्रोंस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस ड्रोन की कीमत 30 हजार रुपये बताई जा रही है. अब समझते हैं कि इस ड्रोन को कामिकाज़े क्यों कहा जा रहा है.
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिक सुसाइड मिशन पर निकलते थे, उन्हें पता होता था कि वो वापस नहीं लौटेंगे. फिर भी वो पूरे जोश के साथ जंग पर जाते और अपने प्लेन को दुश्मन के एयरक्राफ्ट कैरियर और जहाजों पर क्रैश कर देते. उन्हें ही नाम दिया गया Kamikaze. और इसी आधार पर भारत ने बनाया है ये ड्रोन जो दुश्मन को तबाह करने के लिए खुद उसके ऊपर जा गिरते हैं. इसीलिए इसे 'कामिकाज़े' ड्रोन कहा जा रहा है. पहली बार कामिकाज़े कैसे अस्तित्व में आए इसकी कहानी भी दिलचस्प है.
साल 1944 की बात है. अक्टूबर का महीना. अमेरिका का जंगी बेड़ा फिलीपीन्स के पास लेट नाम की एक खाड़ी तक पहुंच चुका था. जापान के अधिकतर लड़ाकू विमान नष्ट हो चुके थे. उनकी एयर फ़ोर्स जर्जर हालत में थी. अमेरिकी मान कर चल रहे थे कि वो जल्द ही जापानी मेनलैंड पर चढ़ाई करने में सफल होंगे. लेकिन फिर एक रोज़ उन्हें एक डरावना नज़ारा दिखाई दिया. एक छोटा बॉम्बर विमान अचानक कहीं से आया. बॉम्बर विमान नीची उड़ान भरते हुए बम गिराने की कोशिश करते हैं. लेकिन इस विमान ने ऐसा नहीं किया. उसने सीधे नीचे की ओर डाइव किया और मित्र राष्ट्रों के एक क्रूजर शिप से जा टकराया. शिप पर एक बड़ा धमाका हुआ.

नेवी के एडमिरल का मानना था की ये शायद कोई हादसा हुआ है. बेचारा पायलट शायद वक्त पर बॉम्बर विमान को ऊपर नहीं ले जा पाया. लेकिन फिर कुछ ही देर में अचानक एक के बाद एक बॉम्बर विमान आए और पिछले विमान की तरह डाइव कर शिप्स से टकरा गए. शिप डूब गया.उस रोज़ अमेरिकी नेवी एक नए टर्म से रूबरू हुई, कामिकाज़े. जापानी फौज की वो टुकड़ी जो विमानों से फिदायीन हमले करती थी. ये ऐसे पायलट थे जिन्हें सिर्फ जहाज को टेक-ऑफ करने की ट्रेनिंग दी जाती थी.

युद्ध के बाद एक अद्भुत बात जो पता चली वो ये थी कि जापान ने पांच हज़ार के क़रीब प्लेन बचाकर रखे थे, जिन्हें कामिकाज़े अटैक के लिए तैयार किया गया था. इनका इस्तेमाल तब किया जाना था जब अमेरिकी फ़ौज जापान के मेनलैंड पर हमला करती. हालांकि इसकी ज़रूरत नहीं पड़ी. जैसा कि हम जानते हैं अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला कर दिया. जिसके कारण जापान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा. जापान के समाज में सम्राट की महत्ता देखते हुए उन्हें पद पर बरकरार रहने दिया गया. हालांकि एक नए संविधान के तहत सम्राट से सारी ताकत छीन ली गई. समर्पण की शर्तों के तहत जापान को सिर्फ़ रक्षा के लिए एक फ़ोर्स बनाने का अधिकार दिया गया. और कामेकाजी का अध्याय हमेशा के लिए समाप्त हो गया.
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