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'कॉकपिट के नाम पर ताबूत', सिद्धार्थ यादव की मौत पर फूटा उस मां का गुस्सा, जिनकी कहानी पर बनी थी फिल्म 'रंग दे बसंती'

Gujarat Crash Siddharth Yadav: कविता गाडगिल ने सलाह दी है कि ऐसी दुर्घटनाओं को याद रखें. ग़ुस्सा करें. बेहतर की मांग करें. परवाह करने के लिए अगली दुर्घटना का इंतज़ार न करें. उन्होंने अपने भावुक पोस्ट में और क्या लिखा?

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कविता गाडगिल, दिवंगत फ़्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की मां हैं. (फ़ोटो - Facebook/Kavita Gadgil)

गुजरात के जामनगर के पास 2 अप्रैल को भारतीय वायुसेना (IAF) का 'जगुआर लड़ाकू विमान' दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस दुर्घटना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव (Siddharth Yadav) की मौत हो गई. अब इस घटना को याद करते हुए कविता गाडगिल (Kavita Gadgil) ने एक भावुक नोट लिखा है और भारतीय एयरफोर्स में मौजूद 'खामियों' की ओर ध्यान दिलाया है. कविता, अभिजीत गाडगिल (Abhijit Gadgil) की मां हैं, जिनकी 2001 में हुए मिग-21 दुर्घटना (MiG-21 crash in 2001) में मौत हो गई थी.

कविता गाडगिल ने सलाह दी है कि इन लड़कों (जैसे सिद्धार्थ यादव) को केवल फ़ोटो खिंचवाने और देशभक्ति वाले हैशटैग तक सीमित न रखें, बल्कि ऐसी दुर्घटनाओं को याद रखें. ग़ुस्सा करें. बेहतर की मांग करें. परवाह करने के लिए अगली दुर्घटना का इंतज़ार न करें.

75 वर्षीय गाडगिल ने फ़ेसबुक पर लिखा:

भारत के प्रिय नागरिकों, एक और जवान चला गया — फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव. वह युद्ध में शहीद नहीं हुआ, लड़ाई में नहीं मारा गया. लेकिन 46 साल पुराने जगुआर जेट में खो गया, जिसका इस्तेमाल बहुत पहले ही रोक देना चाहिए था. उनकी मौत एक ऐसे विमान को उड़ाते हुए हुई, जिसे दुनिया दशकों पहले ही रिटायर कर चुकी है. एक ऐसा विमान, जो मिग-21 की तरह आज भी हमारे आसमान में आतंक मचा रहा है — हमारे सबसे होनहार और बहादुर लोगों की जान ले रहा है. ये जानें दुश्मन की कार्रवाई के चलते नहीं, बल्कि हमारी अपनी उदासीनता (Apathy) की वजह से जा रही हैं.

फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की मौत 17 सितंबर 2001 को, राजस्थान के सूरतगढ़ में मिग-21 से जुड़ी एक हवाई दुर्घटना में हुई थी. इसे याद करते हुए 75 वर्षीय कविता गाडगिल लिखती हैं,

मेरे बेटे, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की भी इसी तरह 2001 में मौत हुई थी . तब से अब तक 340 से ज़्यादा भारतीय वायुसेना के विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं. 150 से ज़्यादा पायलट मारे गए हैं. ये आंकड़े भयावह हैं, लेकिन इन पर जो चुप्पी है, वह और भी ज़्यादा खतरनाक है. फिर भी हम आगे बढ़ते जा रहे हैं — न कोई जवाबदेही, न कोई सुधार, न कोई जन आक्रोश. इसके बजाय हमें सलाह मिलती है मंत्रियों और नौकरशाहों से, जो क्रांतियों की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. वे युवा बिजनेस पर्सन और सपने देखने वालों को पर्याप्त कोशिश न करने के लिए दोषी ठहराते हैं, जबकि उनकी अपनी मशीनरी, सार्वजनिक उपक्रम (PSUs), डिफेंस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन और राज्य का तंत्र साल दर साल हमारे सशस्त्र बलों को विफल करता आ रहा है.

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पुणे में रहने वाली कविता गाडगिल लिखती हैं,

हम वैश्विक शक्ति बनने की बात करते हैं. हम विश्व मंच पर सम्मान की मांग करते हैं. लेकिन हम अपने अधिकारियों को पुराने विमानों, उधार के समय और उधार के पुर्जों पर उड़ने वाली मशीनों में भेजते हैं और हम इसे वीरता कहते हैं. यह वीरता नहीं, हिंसा है — हमारे अपने लोगों के ख़िलाफ़ राज्य द्वारा मान ली गई हिंसा. दुर्घटना से दस दिन पहले सिद्धार्थ की सगाई हुई थी. वह अपना जीवन संवार रहा था और हमने उसे कॉकपिट के नाम पर एक ताबूत दिया. मुझे आपकी संवेदनाएं नहीं चाहिए. उनके ताबूतों को सलाम मत करो और अगले हफ़्ते की सुर्खियों में उन्हें मत भूल जाओ. वे इससे बेहतर के हकदार थे. हम उनसे बेहतर के लिए हासिल कर सकते थे.

अपने पोस्ट के अंत में कविता गाडगिल ने लिखा,

अगर हम कार्रवाई नहीं करेंगे, तो एक और मां ये लेटर लिखेगी. एक और घर झंडे से लदा होगा. एक और लड़का कभी वापस नहीं आएगा. और एक और देश कंधे उचकाकर आगे बढ़ जाएगा.

बताते चलें, अपने बेटे अभिजीत गाडगिल की मौत के बाद, कविता अपने बड़े बेटे केदार गाडगिल के साथ रहती हैं. उनके पति विंग कमांडर अनिल गाडगिल (रिटायर्ड) की अगस्त 2019 में मौत हो गई थी. कविता गाडगिल ने अनिल और केदार के साथ मिलकर, भारतीय वायुसेना के पुराने हो रहे लड़ाकू विमानों से जुड़ी चिंताओं को उजागर करते हुए लंबी लड़ाई लड़ी. साल 2006 में बनी फ़िल्म ‘रंग दे बसंती’ उनकी ही कहानी से प्रेरित थी.

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भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की सुरक्षा के लिए गाडगिल परिवार की लड़ाई दिलचस्प है. इस परिवार ने ‘अभिजीत एयर सेफ्टी फाउंडेशन’ और उसके स्कूल ‘जीत एयरोस्पेस इंस्टीट्यूट’ नाम के दो संस्थान स्थापित किये हैं. इन संस्थानों में एयरफ़ोर्स के लिए ट्रेनिंग दी जाती है.

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