एक मिसाइल को कहां से लॉन्च किया जा सकता है? आमतौर पर हमने यही देखा है कि मिसाइल को जमीन से, समुद्री जहाज से, या विमान से लॉन्च किया जाता है. कुछ मिसाइलों को गाड़ियों से भी लॉन्च किया जाता है. लेकिन भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने ट्रेन से मिसाइल लॉन्च की है. ये अग्नि मिसाइल (Agni Missile) का अग्नि प्राइम (Agni Prime Test) वेरिएंट है. DRDO और स्ट्रैटेजिक फोर्स कमांड (SFC) ने एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप (APJ Abdul Kalam Island) से इस टेस्ट को अंजाम दिया. ये मिसाइल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है, क्योंकि ट्रेन या रेल आधारित लॉन्चर (Rail Based Missile Launcher) पर मिसाइल लगाना और दागना अपने आप में बहुत ही जटिल काम है. तो जानते हैं क्या खासियत है इस मिसाइल और इसके 'रेल आधारित लॉन्चर' की.
'अग्नि प्राइम' मिसाइल अब ट्रेन से दागी जाएगी! न्यूक्लियर वॉरहेड से लैस, रेंज में पूरा पाकिस्तान
Agni Prime एक Ballistic Missile है जिसे Rail Based Launcher से दागा जा सकता है. एक अनुमान के मुताबिक अमृतसर के किसी रेलवे ट्रैक से अगर इस मिसाइल को लॉन्च किया गया तो 4 मिनट में इस्लामाबाद और 4 मिनट 20 सेकेंड में रावलपिंडी को हिट कर देगी.


अग्नि प्राइम एक बैलिस्टिक मिसाइल है. यानी पहले ये ऊपर जाती है जहां इसका ईंधन खत्म हो जाता है. वहां से ये मिसाइल पूरी स्पीड से अपने टारगेट पर आती है. यानी ये फायर होने के बाद सबसे पहले वायुमंडल में काफी ऊंचाई पर जाती हैं. इसे बूस्ट फेज कहा जाता है. वहां पहुंचने पर इनका बूस्टर बंद हो जाता है. इसके बाद ये अपने टारगेट की तरफ आना शुरू करती हैं जिसे मिडकोर्स फेज कहा जाता है. फिर ये वापस से वायुमंडल में प्रवेश कर अपने टारगेट पर अटैक करती हैं. इसे टर्मिनल फेज कहा जाता है. इन मिसाइल्स में पारंपरिक विस्फोटक (Conventional Warhead) के साथ-साथ न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने की भी क्षमता होती है. इसीलिए बैलिस्टिक मिसाइल्स को आज की तारीख में काफी अहम माना जाता है.

अग्नि प्राइम के टेस्ट के दौरान सबसे अधिक ध्यान खींचा उस लॉन्चर ने जिसपर इसे लगाया गया था. ये एक ट्रेन थी जिसपर लॉन्चर लगाकर अग्नि प्राइम को दागा गया. बैलिस्टिक मिसाइलें काफी बड़ी और भारी होती हैं. इसलिए इन्हें एक जगह से दूसरी जगह आसानी से नहीं ले जाया जा सकता. इन्हें दागने के लिए अक्सर जमीन में बने मिसाइल साइलो (वो जगह या ट्यूब जहां से मिसाइल दागी जाती है) का इस्तेमाल किया जाता है. आमतौर पर ये फिक्स साइलो होते हैं यानी मिसाइल को सिर्फ उसी जगह से दागना मुमकिन है. लेकिन रेल-आधारित लॉन्चर से न सिर्फ इसकी रेंज बल्कि इसकी खुद की सुरक्षा व गोपनीयता बढ़ा जाती है.
उदाहरण के लिए देखें तो भारत को अगर पाकिस्तान के आखिरी छोर पर हमला करना हो, और मिसाइल सिस्टम असम में कहीं तैनात हो. ऐसे में असम में लगी मिसाइल को टारगेट पर दागना मुश्किल होगा. साथ ही जल्द ट्रांसपोर्ट करना भी आसान नहीं होता क्योंकि इसमें लॉजिस्टिक्स और गोपनीयता, सबकुछ का ध्यान रखना पड़ता है. वहीं अगर ट्रेन आधारित लॉन्चर हो तो मिसाइल को कुछ ही घंटों की रेल यात्रा से रेंज में लाकर, मिसाइल दागकर वापस से असम भेजना आसान है. क्योंकि युद्ध के दौरान कुछ घंटे क्या, कुछ मिनट भी काफी निर्णायक साबित हो सकते हैं. रेल-मोबाइल आधारित लॉन्च सिस्टम को स्थिर पोजीशंस की तुलना में नष्ट करना अधिक कठिन होता है. क्योंकि वे किसी भी देश के रेल नेटवर्क पर कहीं भी, बड़ी तेजी से जा सकते हैं. साथ ही ये सुरंगों में जाकर सैटेलाइट की नजरों से भी छिप सकते हैं. दुश्मन से तनाव बढ़ने के समय में, रेल आधारित लॉन्चर्स को तेजी से डिपलॉय यानी तैनात किया जा सकता है.
अग्नि प्राइम: दो हजार किलोमीटर तक दुश्मन खाक7 जून, 2023 को, भारत के Strategic Forces Command ने अग्नि-प्राइम का पहला प्री-इंडक्शन (सेना में शामिल करने से पहले) लॉन्च किया था. इससे पहले भी कई टेस्ट्स किए गए थे जिसमें मिसाइल की सटीकता सिद्ध हुई थी. इसके बाद 3 अप्रैल 2024 कोअग्नि-प्राइम का दूसरा प्री-इंडक्शन लॉन्च हुआ. ये टेस्ट भी सफल रहा. और अब सितंबर 2025 में ट्रेन पर लगे लॉन्चर से इसका टेस्ट कर DRDO और SFC ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है. SFC के पास ही देश के परमाणु शस्त्रागार को संभालने का जिम्मा है, जबकि DRDO देश की हथियार प्रणालियों और उससे संबंधित सैन्य सिस्टम्स को विकसित करता है. अब अग्नि प्राइम के कुछ फीचर्स भी जान लेते हैं.
- श्रेणी: बैलिस्टिक मिसाइल
- रेंज: 1200-2000 किलोमीटर
- टाइप: कैनिस्टराइज्ड
- वॉरहेड: न्यूक्लियर हथियार ले जाने में सक्षम
- ईंधन: सॉलिड फ्यूल
यहां हमने एक शब्द का जिक्र किया, कैनिस्टराइज्ड मिसाइल. इसे भी समझ लेते हैं. तो जैसा कि नाम से जाहिर है, ये मिसाइल किसी कैनिस्टर जैसे ट्यूब में पहले से रखी हुई होती हैं. जैसे घरों में तेल का कैनिस्टर होता है, कुछ-कुछ वैसे ही. यानी लॉन्च से पहले इन्हें किसी तरह की तैयारी की जरूरत नहीं होती. एक तरह से ये 'रेडी-टू-फायर' मिसाइल होती हैं जिन्हें जरूरत पड़ने पर चंद मिनटों के अंदर लॉन्च किया जा सकता है. इनमें वॉरहेड भी पहले से लगा होता है जिससे जंग के दौरान काफी समय बचता है.
इस मिसाइल में ईंधन के लिए सॉलिड ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि लिक्विड ईंधन को लंबे समय तक स्टोर करना खतरनाक हो सकता है. साथ ही लिक्विड ईंधन जहरीला भी होता है. लंबे समय तक मिसाइल में रखने पर ये मिसाइल को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
वीडियो: दुश्मन के अंडरग्राउंड ठिकानों को खत्म करेगी अग्नि-5, बंकर-बस्टर मिसाइल पर भारत की तैयारी