दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक महिला पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. क्योंकि उन्होंने अपने लिव इन पार्टनर के खिलाफ ‘लापरवाही’ से यौन अपराध का मामला दर्ज कराया था. अदालत ने महिला के एक बयान पर गौर किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि ये FIR ‘गलतफहमी’ के आधार पर दर्ज कराई गई थी. और वो अपनी मर्जी से इस रिश्ते में थीं. इसी बयान के आधार पर जुर्माना लगाया गया.
लिव इन पार्टनर पर यौन शोषण का किया केस, अब हाई कोर्ट ने महिला से कहा- भरो 20 हजार फाइन
Delhi High Court ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे आरोपों के गंभीर परिणाम होते हैं. इससे न केवल आरोपी बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी असर पड़ता है. पता है ये क्यों है?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, महिला को चार सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के पास जमा कराने का आदेश दिया गया है.
FIR रद्द करने का आदेशभारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 69 (धोखे से यौन संबंध बनाना) और 351(2) (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज कराया गया था. दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का आदेश दिया. 15 जुलाई को आए कोर्ट के फैसले में कहा गया कि ऐसे आरोपों के गंभीर परिणाम होते हैं. इससे न केवल आरोपी बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी असर पड़ता है.
अदालत ने शिकायतकर्ता की दलील का हवाला देते हुए कहा कि FIR तब दर्ज कराई गई, जब महिला मेडिकली और इमोशनली बुरे दौर से गुजर रही थीं. आदेश में कहा गया है,
समझौते के बावजूद मामले को आगे बढ़ायामहिला का स्पष्टीकरण कानूनी तरीके से नोट कर लिया गया है. लेकिन भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 और 351(2) पर जोर देना भी जरूरी है. इसके तहत शारीरिक हमले और गलत तरीके से प्रतिबंध लगाने जैसे गंभीर आरोपों से जुड़ी शिकायत को लापरवाही से दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
फैसले में आगे कहा गया है,
ऐसे आरोपों के गंभीर परिणाम होते हैं और ये न केवल अभियुक्त पर बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी असर डालते हैं.
कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि समझौते के बावजूद भी महिला ने आपराधिक मामले को आगे बढ़ाया.
ये भी पढ़ें: 'घर पर क्यों नहीं खिलाते?' आवारा कुत्तों को खाने खिलाने की याचिका पर भड़का सुप्रीम कोर्ट
कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोगअदालत ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को फंसाया गया है या किसी गलतफहमी के कारण उस पर आरोप लगाए गए हैं, तो उसे मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर करना, निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करेगा. अदालत ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता मामले को लेकर सक्रियता नहीं दिखा रही है और दोनों पक्षों के बीच समझौता भी हो गया है. ऐसे में आपराधिक कार्रवाई जारी रखने से कोई फायदा नहीं होगा. ये कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.
वीडियो: 'उदयपुर फाइल्स' में सेंसर बोर्ड ने लगवाए 150 कट, दिल्ली हाई कोर्ट ने रिलीज पर रोक लगा दी