पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कर्नल पुष्पेंद्र सिंह बाथ पर कथित हमले के मामले में चंडीगढ़ पुलिस की लापरवाही पर सख्त नाराजगी जताई है. सोमवार, 14 जुलाई को कोर्ट ने इस मामले में किसी भी आरोपी पंजाब पुलिस कर्मी की गिरफ्तारी ना होने पर कड़ी आपत्ति जताई, जबकि एक आरोपी की अग्रिम जमानत मई में ही खारिज हो चुकी है.
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High Court ने 2 अप्रैल को मामले की जांच Punjab Police से हटाकर Chandigarh Police को सौंपी गई थी. कोर्ट ने जांच की जिम्मेदारी चंडीगढ़ पुलिस के एक IPS अधिकारी को दी, जो पंजाब कैडर के नहीं हैं. इसके बावजूद अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस राजेश भारद्वाज ने चंडीगढ़ पुलिस से आरोपियों की गिरफ्तारी ना करने पर सवाल किया. उन्होंने कहा कि पुलिस का यह रवैया 'गलत उदाहरण' पेश कर रहा है और यह साफ तौर पर आरोपियों को बचाने जैसा है. कोर्ट ने चंडीगढ़ के एसपी मंजीत श्योराण को 16 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है. उनसे पूछा गया है कि चार महीने बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं हुई.
क्या है पूरा मामला?
कर्नल पुष्पेंद्र सिंह बाथ वर्तमान में नई दिल्ली में कैबिनेट सचिवालय में डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं. 13-14 मार्च की रात कर्नल बाथ पंजाब के पटियाला-समाना रोड पर एक ढाबे के पास अपने बेटे के साथ थे. वहीं कुछ पंजाब पुलिस कर्मियों ने उन पर कथित तौर पर हमला किया. कर्नल का कहना है कि उन्हें बुरी तरह पीटा गया, जिससे वे बेहोशी की हालत में पहुंच गए.
उनकी पत्नी और रिश्तेदारों ने कई बार पुलिस को फोन किया. पटियाला के SSP डॉ. नानक सिंह से भी कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की गई, लेकिन शुरुआत में FIR दर्ज नहीं की गई. बाद में पंजाब के राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद 22 मार्च को पटियाला के सिविल लाइंस थाने में गंभीर धाराओं में FIR दर्ज हुई.
हालांकि, इससे पहले 15 मार्च को ही ढाबा मालिक की शिकायत पर एक अलग FIR दर्ज कर ली गई थी, जिसे पीड़ित पक्ष ने आरोपों को दबाने की साजिश बताया.
पुलिस की जांच पर उठे सवाल
पंजाब पुलिस की कार्रवाई में पक्षपात की आशंका को देखते हुए कर्नल बाथ ने हाई कोर्ट का रुख किया. कोर्ट के आदेश के बाद 2 अप्रैल को मामले की जांच पंजाब पुलिस से हटाकर चंडीगढ़ पुलिस को सौंपी गई थी. कोर्ट ने जांच की जिम्मेदारी चंडीगढ़ पुलिस के एक IPS अधिकारी को दी, जो पंजाब कैडर के नहीं हैं. इसके बावजूद अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई.
पीड़ित ने कोर्ट को बताया कि आरोपी अधिकारी पटियाला में खुलेआम घूम रहे हैं, गवाहों को डरा रहे हैं और केस को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. मुख्य आरोपी इंस्पेक्टर रॉनी सिंह की जमानत 23 मई को खारिज हो चुकी है, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. याचिका में यह भी कहा गया है कि मेडिकल रिपोर्ट में हेराफेरी की गई और पुलिस आरोपियों को बचाने में लगी है. कुछ दस्तावेजों में ओवरराइटिंग की गई, पर इन्हें फॉरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजा गया.
इसके अलावा आरोप है कि पुलिस ने फर्जी डेली डायरी रिपोर्ट (DDR) भी दर्ज की ताकि आरोपियों को बचाया जा सके. चंडीगढ़ पुलिस के एक अधिकारी इंस्पेक्टर ज्ञान सिंह पर शिकायतकर्ता और उनके बेटे को धमकाने के भी आरोप लगे हैं.
पीड़ित के अनुसार, सभी आरोपी एक अन्य हाई कोर्ट में लंबित फर्जी एनकाउंटर केस में भी नामजद हैं, जो कथित हमले से कुछ घंटे पहले हुआ था. इसी वजह से पंजाब पुलिस उन्हें बचाने में लगी है. कोर्ट ने टिप्पणी की कि चंडीगढ़ पुलिस की निष्क्रियता इस केस की निष्पक्ष जांच के मकसद को ही विफल कर रही है. अब एसपी को 16 जुलाई को कोर्ट में पेश होकर पूरी स्थिति साफ करनी होगी.
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