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बिहार SIR में झोल? ERO को किसने भेजे प्री-फिल्ड नोटिस? ड्राफ्ट वाले वोटर्स भी नप गए

अब सवाल है कि अगर ERO ने नहीं तो ये नोटिस वोटर्स को किसने भेजे थे? क्योंकि, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1950 का कानून कहता है कि किसी भी विधानसभा क्षेत्र का ERO और केवल ERO ही किसी वोटर की एलिजिबिलिटी पर संदेह कर सकता है. ERO ही संबंधित वोटर को सुनवाई के लिए नोटिस जारी कर सकता है. चुनाव आयोग के किसी और अधिकारी को ये अधिकार नहीं है.

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बिहार SIR के जौरान ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल लोगों को भी नोटिस भेजे गए थे (india today)

उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत देश के 5 राज्यों में वोटर्स लिस्ट का गहन पुनरीक्षण (SIR) चल रहा है. यानी वोटर्स लिस्ट की कायदे से जांच हो रही है कि कहीं कोई फर्जी वोटर इस लिस्ट में न रह जाए. लोगों से गणना प्रपत्र भरवाया जा रहा है. इसके आधार पर 31 दिसंबर 2025 को ड्राफ्ट वोटर्स लिस्ट जारी की जाएगी. इसी बीच बिहार में संपन्न हो चुके SIR में कथित तौर पर बड़ी गड़बड़ी होने की बात सामने आई है. कहा जा रहा है कि इस गड़बड़ी ने वहां की SIR प्रक्रिया की ‘शुचिता’ पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.

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‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2025 में जब बिहार में एसआईआर चल रहा था और ड्राफ्ट वोटर्स लिस्ट प्रकाशित हो चुकी थी, उसी समय राज्य के सभी इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स (ERO) के पर्सनल लॉग इन पोर्टल पर एक खास तरह के नोटिस दिखने लगे थे. ये नोटिस चुनाव आयोग के सेंट्रलाइज्ड पोर्टल पर ERO के पर्सनल लॉग-इन में उनके ही नाम से वोटर्स को जारी किए गए थे. इनमें कथित तौर पर कहा गया था कि SIR प्रक्रिया में 'वोटर्स के दिए डॉक्युमेंट्स अधूरे' हैं, लिहाजा अपनी पात्रता साबित करने के लिए सभी जरूरी दस्तावेजों को लेकर सुनवाई में आएं. 

रिपोर्ट कहती है कि ये नोटिस कई ऐसे वोटर्स के नाम भी भेजे गए थे, जिन्होंने पहले ही अपने फॉर्म भर दिए थे और उसके साथ जरूरी दस्तावेज भी जमा कर दिए थे. इतना ही नहीं, उनके नाम भी अगस्त 2025 वाले ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल थे. एक्सप्रेस ने बताया है कि लाखों की संख्या में बिहार के वोटर्स को ये नोटिस भेजे गए, लेकिन चुनाव आयोग की ओर से इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया गया है.

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किसने भेजा नोटिस?

अब सवाल है कि अगर ERO ने नहीं तो ये नोटिस वोटर्स को किसने भेजे थे? क्योंकि, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1950 का कानून कहता है कि किसी भी विधानसभा क्षेत्र का ERO और केवल ERO ही किसी वोटर की एलिजिबिलिटी पर संदेह कर सकता है. ERO ही संबंधित वोटर को सुनवाई के लिए नोटिस जारी कर सकता है. चुनाव आयोग के किसी और अधिकारी को ये अधिकार नहीं है. 

मामला चौंकाने वाला इसलिए भी है क्योंकि इन नोटिस पर ERO के नाम तो थे, लेकिन कथित तौर पर उन्हें जारी ERO ने नहीं किया था. रिपोर्ट बताती है कि चुनाव आयोग के पोर्टल पर उनके पर्सनल लॉग-इन में पहले से ही भरे हुए ये नोटिस अपने आप दिख रहे थे. ERO को सिर्फ ये करना था कि वो या सहायक ERO (AERO) इन नोटिसों पर हस्ताक्षर करें और फिर बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) के जरिये मतदाताओं तक पहुंचाएं. दावा किया जा रहा है कि सेंट्रलाइज्ड सिस्टम से ये नोटिस वोटर्स को भेजे गए थे.

इस प्रक्रिया से जुड़े बिहार सरकार के 5 अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस को नाम न छापने की शर्त पर ये जानकारी दी है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि बिहार के कई ERO ने इन नोटिसों को न तो आगे बढ़ाया और न ही उन पर कोई कार्रवाई की.

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आरजेडी प्रत्याशी को भी भेजा गया था नोटिस

जिन लोगों को नोटिस मिला था, उनमें आरजेडी के विधायक ओसामा शहाब भी शामिल थे. वो सीवान के रघुनाथपुर में वोट डालते हैं. नोटिस के बाद भी उनका नाम वोटर्स लिस्ट में बरकरार रखा गया था. उनके बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) जय शंकर प्रसाद चौरसिया ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि शहाब का मामला टेक्नीकल था और डॉक्युमेंट दोबारा जमा कराने के बाद सुलझ गया। था. चौरसिया ने ये भी बताया कि जिन भी नोटिसों की जिम्मेदारी उन्हें दी गई थी, उनमें से किसी का नाम वोटर्स लिस्ट से नहीं काटा गया.

इसी बूथ के एक अन्य मतदाना तारिक अनवर ने चौंकाने वाली बात बताई. उन्होंने कहा कि उन्हें नोटिस का कारण समझ नहीं आया क्योंकि सारे डॉक्युमेंट्स तो उन्होंने जमा करा दिए थे. अनवर ने बताया कि जब वो सुनवाई के लिए संबंधित अधिकारी के पास गए तो उन्हें बताया गया कि उनका नाम वोटर्स लिस्ट में पहले से जुड़ा है.

नोटिस में क्या था?

एक्सप्रेस के मुताबिक, ये नोटिस दिखने में एक जैसे थे. सब पहले से भरे हुए थे और हिंदी फॉर्मेट में थे. इनमें वोटर का नाम, EPIC नंबर, विधानसभा क्षेत्र, बूथ नंबर, क्रम संख्या और एड्रेस दर्ज था. हर नोटिस में वोटर से कहा गया था कि वो अपनी पात्रता साबित करने के लिए डॉक्युमेंट्स के साथ ERO के सामने पेश हों. इन नोटिसों पर उन्हें जारी करने की कोई साफ तारीख भी नहीं लिखी थी.  

हालांकि अधिकारियों का कहना है कि सीरियल नंबर के आखिरी आठ अंक नोटिस जारी करने की तारीख बताते हैं. जैसे अगर सीरियल नंबर के आखिरी 8 अंक ‘13092025’ हैं तो इसका मतलब 13 सितंबर 2025 है. ज्यादातर नोटिस में संदेह के कारण के तौर पर ‘दूसरे नंबर के ऑप्शन’ पर टिक लगा था. इस ऑप्शन में लिखा था- ‘जमा किए गए दस्तावेज अधूरे हैं.’ 

एक्सप्रेस ने बताया कि इस मसले पर उन्होंने चुनाव आयोग से सवाल किया लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (Chief Electoral Officer) से भी संपर्क की कोशिश विफल रही. वो इस पर कॉमेन्ट करने के लिए मौजूद नहीं थे.

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