अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद एक बार फिर चर्चा में है. एक इंटरव्यू के दौरान भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाबरी मस्जिद बनाकर उस जगह यानी मंदिर की पवित्रता नष्ट की गई. इस बयान के बाद उनकी खूब आलोचना हुई. प्रोफेसर मदन जी मोहन गोपाल की भी इस प्रतिक्रिया आई और उन्होंने कहा कि पूर्व CJI की यह टिप्पणी 'क्यूरेटिव याचिका' का आधार बन सकती है. यानी अगर ऐसा होता है, तो अयोध्या विवाद का मामला एक बार फिर कोर्ट में खुल सकता है.
राम मंदिर को लेकर कोर्ट में फिर चलेगा केस? पूर्व CJI चंद्रचूड़ के इस बयान पर मचा बवाल
एक इंटरव्यू के दौरान पूर्व CJI DY Chandrachud ने कहा कि बाबरी मस्जिद बनाकर उस जगह यानी मंदिर की पवित्रता नष्ट की गई. उनके इस बयान पर प्रोफेसर मदन जी मोहन गोपाल ने 'क्यूरेटिव याचिका' दायर करने की बात कही. पूरा मामला क्या है?


2019 में, तत्कालीन CJI रंजन गोगोई वाली पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया कि मुस्लिम पक्ष विवादित स्थल पर अपने कब्जे को साबित नहीं कर पाया. इस तरह कोर्ट ने विवादित स्थल को हिंदू पक्ष को सौंपने का फैसला सुनाया. फैसले में यह नहीं बताया गया कि पांच न्यायाधीशों में से इस फैसले को किसने लिखा. लेकिन यह माना जाता रहा है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ही इसके लेखक थे, जो पीठ में शामिल थे.
कोर्ट ने यह स्थल हिंदू पक्षकारों को दे दिया था. लेकिन फैसले में यह दर्ज किया गया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि बाबरी मस्जिद को किसी मंदिर की जगह पर बनवाया गया. लेकिन हाल ही में, सीनियर पत्रकार श्रीनिवासन जैन को दिए गए एक इंटरव्यू में पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने बाबरी मस्जिद के निर्माण को 'Act of Desecration' बताया. सरल शब्दों में समझें तो उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण, पहले बने मंदिर को अपवित्र करने का काम था. बस यहीं से आलोचनाओं का सिलसिला शुरू हो गया.
आलोचकों का कहना है कि जस्टिस चंद्रचूड़ का बयान, उन लोगों का बयान है जो इतिहास का बदला वर्तमान में लेने की वकालत करते हैं. पूर्व CJI पर आरोप लगे कि उन्होंने उन लोगों को वैलिडेशन दे दी है, जो बाबरी का ढांचा गिराए जाने के 'अपराध' को गर्व से जोड़ते हैं. कुछ ने ये आरोप भी लगाए कि जस्टिस चंद्रचूड़ के ताजा बयान और 6 साल पहले के जजमेंट में लिखी बातों में विरोधाभास है और अब इसी विरोधाभास के चलते क्यूरेटिव पिटीशन की बात चल रही है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बीच, प्रो. मदन जी गोपाल से यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीकट, केरल में एक सेमिनार के दौरान पूछा गया,
क्या पूर्व CJI चंद्रचूड़ का ताजा बयान मुस्लिम समुदाय के जख्मों पर नमक रगड़ने जैसा नहीं है?
प्रोफेसर जी गोपाल ने विस्तार से जवाब दिया. कहा-
अदालत की जिम्मेदारी है कि वो अपने फैसले से लोगों में भरोसा पैदा करे. न्याय सिर्फ होना नहीं चाहिए, होते हुए दिखना भी चाहिए. खासकर, उन लोगों को, जिनके पक्ष में फैसला नहीं आया है. ये मेरी निजी राय कि अयोध्या मामले में सही फैसला नहीं आया. अब सवाल है कि क्या हम सबको मिलकर एक क्यूरेटिव पिटीशन फाइल करनी चाहिए? शायद करनी चाहिए. देखते हैं, क्या हो सकता है.
प्रोफेसर गोपाल यहीं रुके. उन्होंने अयोध्या फैसले को अतार्किक भी बताया. कहा कि इस फैसले का तर्क स्थापित करने के लिए जो बातें अतिरिक्त जोड़ी गईं, उन्हें पढ़कर लगा कि ये फैसला थियोक्रेसी यानी धर्मतंत्र से आया है. उन्होंने कहा कि यह पूरा फैसला ही शक के दायरे में है.
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क्या होती है क्यूरेटिव याचिका?क्यूरेटिव याचिका, सुप्रीम कोर्ट के किसी आखिरी फैसले के खिलाफ एक कानूनी उपाय है, जिसे पुनर्विचार याचिका (review petition) खारिज होने के बाद दायर किया जाता है. इसका मकसद न्याय की गंभीर त्रुटियों को सुधारना है, लेकिन इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में ही स्वीकार किया जाता है.
अगर ऐसा लगे कि फैसला देते समय 'नैचुरल जस्टिस' के सिद्धांत को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया, तो ये पिटीशन काम आ सकती है. CJI समेत सुप्रीम कोर्ट के 3 सबसे वरिष्ठ जज सुनवाई करते हैं. भोपाल गैस त्रासदी, याकूब मेमन, 2012 दिल्ली गैंगरेप जैसे चर्चित मामलों में इसका इस्तेमाल हुआ.
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