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'लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना अवैध नहीं, पुलिस इन्हें सुरक्षा दे', इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Allahabad High Court ने कहा कि भारत में पश्चिमी विचारों का हमेशा स्वागत हुआ है, और Live In Relationship भी ऐसा ही एक विचार है. कुछ लोगों के लिए यह अनैतिक है, जबकि दूसरे इसे कम्पैटिबिलिटी के लिए एक सही विकल्प मानते हैं.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट (PHOTO-Wikipedia)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली 12 महिलाओं की याचिका पर फैसला सुना दिया है. इन महिलाओं ने जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी. अदालत ने इनके जिलों के पुलिस मुखिया को आदेश दिया है कि इन महिलाओं को तत्काल सुरक्षा दी जाए, जिससे ये बिना डर के जिंदगी जी सकें.

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इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विवेक कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने कहा कि हो सकता है लिव-इन-रिलेशनशिप सबके लिए स्वीकार्य न हो. लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसे रिश्ते वैध नहीं हैं. शादी के पवित्र बंधन के बिना रहना कोई अपराध नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक हाईकोर्ट कुल 12 महिलाओं की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इन सभी मामलों के एक जैसे नेचर की वजह से हाईकोर्ट ने सभी मामलों को एक साथ क्लब कर दिया. कोर्ट ने कहा कि सभी रिट पिटिशंस में चूंकि एक सा ही विवाद है, लिहाजा इसका फैसला एक कॉमन जजमेंट से किया जाएगा. याचिकाकर्ताओं द्वारा डाली गई रिट पिटिशन में उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उनकी सुरक्षा पुलिस करे. उन्होंने खुद को परिवारजनों, रिश्तेदारों और दूसरे साथियों से जान का खतरा बताया था. 

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सरकारी वकील ने कहा- ‘समाज की कीमत पर ये स्वीकार नहीं’

ऑर्डर में सरकारी वकील की दलील का भी जिक्र किया गया है. सरकारी वकील ने कहा, 

लिव-इन रिलेशनशिप को हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. ये रिश्ते किसी कानून से बंधे नहीं हैं, और दोनों में से कोई भी पार्टनर जब चाहे इस रिश्ते से बाहर निकल सकता है. यह एक कॉन्ट्रैक्ट है. जिसे पार्टियां हर दिन रिन्यू करती हैं और इसे कोई भी पार्टी दूसरी पार्टी की मर्जी के बिना खत्म कर सकती है.

वकील ने आगे कहा,

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ऐसे रिश्ते का कोई कानूनी दर्जा नहीं है. ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चों का कानूनी दर्जा तय नहीं होगा, और इससे लिव-इन पार्टनर्स की जिदगी में बहुत सारी दिक्कतें पैदा होंगी. इसलिए, कोर्ट से कोई भी राहत मांगने से पहले, उन्हें पहले शादी कर लेनी चाहिए. अगर इन याचिकाओं को मंजूरी दी जाती है, तो इससे राज्य पर याचिकाकर्ताओं की पर्सनल पसंद की निगरानी करने, पुष्टि करने और सुरक्षा करने की एक ऐसी जिम्मेदारी आ जाएगी जिसकी इजाजत नहीं है.

सरकारी वकील ने कहा कि जिन जोड़ों ने अपने माता-पिता और रिश्तेदारों की मर्जी के खिलाफ 'शादी' की है, उन्हें तो सुरक्षा दी जा सकती है, लेकिन बिना शादीशुदा जोड़ों को कोई सुरक्षा नहीं दी जा सकती. उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस को बिना शादी के साथ रहने वाले जोड़ों के लिए पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने कहा कि भारत में पश्चिमी विचारों का हमेशा स्वागत हुआ है, और लिव-इन रिलेशनशिप भी ऐसा ही एक विचार है. कुछ लोगों के लिए यह अनैतिक है, जबकि दूसरे इसे कम्पैटिबिलिटी के लिए एक सही विकल्प मानते हैं. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बहस के दौरान सरकारी वकील ने 28 अप्रैल, 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक डिवीज़न बेंच के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था.

लेकिन हाईकोर्ट ने इस मामले को 2023 के मामले से अलग बताया. मौजूदा आदेश में कोर्ट ने कहा कहा,

यह साफ है कि कोर्ट ने यह नहीं कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले सभी जोड़े कोर्ट की सुरक्षा के हकदार नहीं हैं. यह फैसला माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों के अनुसार नहीं था, और मौजूदा मामलों के तथ्य भी पूरी तरह से अलग हैं.

कोर्ट ने आगे कहा, 

यहां पिटीशनर, जो कि बालिग हैं, ने शादी की पवित्रता के बिना साथ रहने का फैसला किया है, और उनके फैसले पर कोर्ट का फैसला करना सही नहीं है. अगर पिटीशनर ने कोई जुर्म नहीं किया है, तो इस कोर्ट को कोई वजह नहीं दिखती कि प्रोटेक्शन देने की उनकी अर्जी क्यों नहीं मानी जा सकती. इसलिए, कोऑर्डिनेट बेंच के फैसलों का पूरा सम्मान करते हुए, जिसने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स को प्रोटेक्शन देने से मना कर दिया है, यह कोर्ट वही नजरिया नहीं अपना सकता.

कोर्ट ने आगे कहा कि केस के फैक्ट्स और हालात को देखते हुए, इस कोर्ट का मानना ​​है कि पिटीशनर शांति से साथ रहने के लिए आजाद हैं और किसी भी व्यक्ति को उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल देने की इजाज़त नहीं दी जाएगी.

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