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बुखार में पैरासिटामोल और आइबूप्रोफेन लेते हैं तो इस खतरे के बारे में जरूर जान लें

पैरासिटामोल और आइबुप्रोफेन पेनकिलर्स हैं. जब इन दवाओं को एंटीबायोटिक के साथ खाया जाता है, तब बैक्टीरिया के जीन में तेज़ी से बदलाव आता है. इससे एंटीबायोटिक का असर भी घट जाता है.

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अगर दो अलग तरह की दवाएं एक साथ ले रहे हैं, तो पहले डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें (फोटो: Freepik)

बुखार है. हल्का सिरदर्द है. बदनदर्द हो रहा है. पैरासिटामोल खा ली. चोट लग गई है. गठिया या दांत में दर्द है तो आइबूप्रोफेन या ब्रूफ़ेन ले ली.

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भारत में ज़्यादातर लोग बुखार और दर्द से निपटने के लिए पैरासिटामोल और आइबूप्रोफेन जैसी दवाएं लेते हैं. ये बड़ी आसानी से मेडिकल स्टोर पर मिल जाती हैं. डॉक्टर के पर्चे की ज़रुरत भी नहीं पड़ती. आप अपने ही घर में देख लीजिए, दवाओं के डिब्बे में ये रखी मिल जाएंगी.

अगर आप भी ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं तो आपके लिए एक बुरी ख़बर है. 25 अगस्त को Antimicrobials and Resistance नाम के जर्नल में एक स्टडी छपी. इसे यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया के रिसर्चर्स ने किया है.

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इस रिसर्च से पता चला कि ये दवाएं भी एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस की वजह बन सकती हैं. ट्विस्ट ये है कि पैरासिटामोल और आइबूप्रोफेन, ये दोनों ही एंटीबायोटिक ‘नहीं’ हैं. मगर फिर भी इनसे एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस का ख़तरा है.

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ज़्यादा एंटीबायोटिक खाने से बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ अपनी इम्यूनिटी तैयार कर लेता है (फोटो: Freepik)

मगर ये एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस होता क्या है, जिसे लेकर पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है.

देखिए, जब हम बहुत ज़्यादा एंटीबायोटिक्स खाते हैं तो धीरे-धीरे बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ अपनी खुद की इम्यूनिटी बना लेता है. इसलिए इन दवाओं का उन पर कोई असर नहीं होता. बीमारी ठीक नहीं होती. इसे ही एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस कहते हैं. दुनियाभर में बहुत सारे लोगों की जान एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस की वजह से जा रही है.

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साल 2024 में दि लैंसेट जर्नल में एक स्टडी छपी. इसके मुताबिक, 2021 में करीब 47 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस की वजह से हुई.

अब तक ये माना जाता था कि केवल ज़्यादा एंटीबायोटिक्स खाने से एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस होता है. पर इस रिसर्च का दावा है कि नॉन-एंटीबायोटिक दवाएं, जैसे ये पेनकिलर्स भी एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस की वजह बन सकते हैं. ये दवाएं बैक्टीरिया की जेनेटिक बनावट में बदलाव ला सकती हैं.

रिसर्चर्स ने 9 नॉन-एंटीबायोटिक दवाओं पर स्टडी की. इन दवाओं के नाम हैं- आइबूप्रोफेन, डाइक्लोफेनाक, एसिटामिनोफेन यानी पैरासिटामोल, फ्यूरोसेमाइड, मेटफॉर्मिन, एटोरवास्टेटिन, ट्रामाडोल, टेमाज़ेपाम और सूडोएफ़ेड्रिन.

ये दवाएं रेसिडेंशियल एज्ड केयर फैसिलिटीज़ में दी जाने वाली बड़ी ही आम दवाएं हैं. रेसिडेंशियल एज्ड केयर फैसिलिटीज़ वो जगहें होती हैं, जहां बुज़ुर्ग रहते हैं. उनकी देखभाल की जाती है.  

स्टडी में इन दवाओं को सिप्रोफ्लोकसासिन नाम की एंटीबायोटिक के साथ मिलाकर ई. कोलाई बैक्टीरिया पर टेस्ट किया गया. ये वही बैक्टीरिया है, जो अक्सर पेट से जुड़े इंफेक्शन पैदा करता है. ये पेशाब के इन्फेक्शन की भी वजह बनता है.

पता चला कि जब ई. कोलाई बैक्टीरिया को सिर्फ सिप्रोफ्लोक्सासिन एंटीबायोटिक दी गई. तब दवा ने अच्छा असर किया. पर जैसा अक्सर होता है, बैक्टीरिया की जेनेटिक बनावट यानी उसके DNA में बदलाव आए.

वहीं, जब सिप्रोफ्लोक्सासिन के साथ कुछ नॉन-एंटीबायोटिक दवाएं भी दी गईं. खासकर आइबूप्रोफेन या पैरासिटामोल, तो बैक्टीरिया की जेनेटिक बनावट में थोड़ी तेज़ी से बदलाव आया और एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस भी बढ़ा.

लेकिन जब दोनों, यानी आइबूप्रोफेन और पैरासिटामोल को सिप्रोफ्लोक्सासिन के साथ दिया गया. तो बैक्टीरिया की जेनेटिक बनावट में बहुत तेज़ी से बदलाव आया. बैक्टीरिया ने काफ़ी तेज़ी से एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस विकसित कर लिया. सिर्फ सिप्रोफ्लोक्सासिन ही नहीं, बैक्टीरिया पर कई दूसरी एंटीबायोटिक्स का असर भी कम हो गया.

मगर ऐसा हुआ क्यों? रिसर्च के मुताबिक, जब एंटीबायोटिक के साथ आइबूप्रोफेन या पैरासिटामोल जैसी दवाएं ली जाती हैं. तब इससे बैक्टीरिया का डिफेंस सिस्टम ज़्यादा एक्टिव हो जाता है. इस दौरान बैक्टीरिया अपने अंदर आए एंटीबायोटिक को पंप करके बाहर निकाल देता है. इसे इफ्लक्स कहते हैं. नतीजा? एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर पाती और बैक्टीरिया जल्दी ही रेज़िस्टेंट बन जाता है. यानी दवा उस पर असर नहीं करती. बैक्टीरिया दूसरी एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ भी मज़बूत हो जाता है.

रिसर्चर्स का कहना है कि ये खासकर बुज़ुर्गों के लिए गंभीर समस्या है. क्योंकि वो कई दवाएं एक साथ खाते हैं. जैसे पेनकिलर्स, एंटीबायोटिक्स, नींद की दवा, दिल की दवा, बीपी की दवा, शुगर की दवा वगैरह.

हमने आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट, डॉक्टर पी. वेंकट कृष्णन से इस स्टडी पर उनकी राय पूछी. जाना कि क्या पेनकिलर्स और एंटीबायोटिक्स को साथ में नहीं लेना चाहिए या सिर्फ सावधानी बरतनी है?

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डॉक्टर पी. वेंकट कृष्णन, सीनियर कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, आर्टेमिस हॉस्पिटल्स

डॉक्टर कृष्णन कहते हैं कि पैरासिटामोल और आइबूप्रोफेन जैसी दवाएं, आमतौर पर सुरक्षित मानी जाती हैं. इसे अक्सर दर्द या बुखार में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन जब इन्हें किसी एंटीबायोटिक के साथ दिया जाता है, तो बैक्टीरिया पर अनचाहा असर पड़ता है. दवाओं का ये कॉम्बिनेशन बैक्टीरिया को और मज़बूत बना सकता है. इससे एंटीबायोटिक्स का असर घटता है. ये दिक्कत उन लोगों को ज़्यादा होती है, जो कई दवाएं एक साथ लेते हैं.

हालांकि इसका मतलब ये नहीं कि पेनकिलर लेना पूरी तरह बंद कर दिया जाए. लेकिन इन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं लेना चाहिए. एंटीबायोटिक्स के साथ लेने से बचना चाहिए. कई दवाएं एक साथ लेना खतरनाक हो सकता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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