इंडोनेशिया में पिछले कुछ दिनों से सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं. राजधानी जकार्ता में सेना उतर चुकी है. इसका कारण सांसदों का भारी-भरकम हाउसिंग अलाउंस है. यह रकम इतनी बड़ी है कि इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के न्यूनतम वेतन से लगभग दस गुना ज्यादा है. इस फैसले ने आम जनता में गुस्सा भड़का दिया क्योंकि देश गरीबी और बेरोजगारी झेल रहा है.
इंडोनेशिया में सांसदों के भत्ते पर बवाल, सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़, पुलिस हेडक्वार्टर में आगजनी
राजधानी Jakarta में एक 21 साल के डिलीवरी ड्राइवर की मौत के बाद हालात और बिगड़ गए. एक वीडियो में दिखा कि इंडोनेशिया की एलीट पुलिस यूनिट की बख्तरबंद गाड़ी ने उसे कुचल दिया. इसके बाद पूरे देश में प्रदर्शन और हिंसा फैल गई.


प्रदर्शन कब शुरू हुए?
प्रदर्शन 25 अगस्त से शुरू हुए थे, जब हजारों लोग संसद भवन के बाहर इकट्ठा हुए. वे इस फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. उनका कहना था कि सांसदों को इतना बड़ा भत्ता देने वाली सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और सरकारी कामों पर खर्च घटा रही है.
AP की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शनकारी हाल की उन रिपोर्टों से नाराज हैं जिनमें कहा गया है कि देश के 580 सांसदों को सितंबर 2024 से हर महीने 50 लाख इंडोनेशियाई रुपिया (लगभग 2.67 लाख भारतीय रुपये) का हाउसिंग अलाउंस मिल रहा है. लोग इसे भ्रष्ट नेताओं और अमीर लोगों की फायदा उठाने वाली नीति मान रहे हैं.
प्रदर्शन कैसे हिंसक हुए?
दी गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक, 31 अगस्त को जकार्ता में एक 21 साल के डिलीवरी ड्राइवर की मौत के बाद हालात बिगड़ गए. एक वीडियो में दिखा कि इंडोनेशिया की एलीट पुलिस यूनिट की बख्तरबंद गाड़ी ने उसे कुचल दिया. इसके बाद पूरे देश में प्रदर्शन और हिंसा फैल गई. लोग सरकारी दफ्तरों और पुलिस हेडक्वार्टर में आग लगाने लगे और पुलिस के साथ भी भिड़ंत होने लगी.
कहां-कहां प्रदर्शन हुए?
केवल जकार्ता ही नहीं, बल्कि सुलावेसी, जावा, सुमात्रा, बोरनेओ और अन्य बड़े शहरों में भी भीड़ निकली. गोरोंतलो, बांडुंग, पलेंबंग, बनजर्मसिन, योगयाकर्ता और मकस्सर में भी प्रदर्शन हुए. कई जगहों पर आगजनी और लूटपाट की खबरें आईं.

मकस्सर में एक काउंसिल बिल्डिंग में प्रदर्शनकारियों के आग लगाने से तीन लोगों की मौत हुई. वहीं, सोलो में एक 60 साल के रिक्शा चालक को आंसू गैस के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां बाद में उनकी मौत हो गई.
सरकार ने क्या किया?
राष्ट्रपति प्राबोवो सुबियांटो एक पूर्व जनरल हैं और पद संभाले अभी एक साल ही हुआ है. उन्होंने एक बड़ी सैन्य परेड में हिस्सा लेने के लिए चीन की अपनी हाई-प्रोफाइल ट्रिप रद्द कर दी. प्राबोवो ने 31 अगस्त को सुरक्षा बलों को विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आदेश दिया.
उन्होंने कहा,
"गैरकानूनी गतिविधियों के संकेत मिल रहे हैं, जो यहां तक कि देशद्रोह और आतंकवाद तक की ओर ले जा रहे हैं."

उन्होंने आगे कहा,
"मैंने पुलिस और सेना को आदेश दिया है कि वे सरकारी संपत्ति को तबाह करने, लोगों के घरों और इकोनॉमिक सेंटर्स में लूटपाट करने वालों के खिलाफ कानून के मुताबिक हर मुमकिन सख्त कार्रवाई करें."
हालांकि, उन्होंने यह भी घोषणा की कि सांसदों के भत्ते (जिनमें विवादास्पद हाउसिंग अलाउंस भी शामिल है) में कटौती की जाएगी. उनकी विदेश यात्राओं में भी कटौती की जाएगी, जो प्रदर्शनकारियों के लिए एक रियायत मानी जा सकती है.
प्राबोवो ने मृत ड्राइवर के मामले में बताया कि पुलिस इस मामले से जुड़े 7 अधिकारियों की भूमिका की जांच कर रही है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि ड्राइवर के परिवार को आर्थिक मदद दी जाएगी. 1 सितंबर को उन्होंने हिंसा में घायल 40 पुलिसवालों का प्रोमोशन करने का भी एलान किया.
हालात कितने गंभीर हैं?
जकार्ता ग्लोब की रिपोर्ट के अनुसार, इंडोनेशिया के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (Komnas HAM) ने हिंसा में 25 अगस्त से अब तक कम से कम 10 मौतों का दावा किया है. Komnas HAM की अध्यक्ष अनीस हिदाया ने बताया कि मरने वालों में छात्र, ऑनलाइन मोटरसाइकिल टैक्सी ड्राइवर, रिक्शा चालक और स्थानीय सरकारी कर्मचारी शामिल हैं.
अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने जकार्ता में पांच दिनों के विरोध प्रदर्शन के बाद 1,240 से ज्यादा दंगाइयों को हिरासत में लिया है. जकार्ता के गवर्नर प्रमोनो अनंग के अनुसार, दंगाइयों ने बसों, सबवे और अन्य बुनियादी ढांचों को जलाया, जिससे 55 अरब इंडोनेशियाई रुपिया (लगभग 29.43 करोड़ भारतीय रुपये) तक का नुकसान हुआ है. उन्होंने यह भी बताया कि विरोध प्रदर्शनों में 700 लोग घायल हुए हैं.
इंडोनेशिया की हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
1 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र ने पुलिस की कथित बेरहम हिंसा की जांच की मांग की है. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने आरोप लगाया कि इंडोनेशियाई सरकार ने प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी या देशद्रोही बताकर गलत तरीके से दबाने की कोशिश की है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की एशिया डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली ने कहा कि प्रदर्शन के खिलाफ सरकार की प्रतिक्रिया खास तौर पर चिंताजनक है. उन्होंने कहा, "सुरक्षा बलों का प्रदर्शनकारियों के खिलाफ गैरजरूरी और बहुत ज्यादा बल प्रयोग करने का लंबा इतिहास रहा है."
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और कनाडा जैसे कई देशों के दूतावासों ने अपने नागरिकों को इस समय इंडोनेशिया में भीड़भाड़ और प्रदर्शन वाले इलाकों से दूर रहने की सलाह दी है.
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