डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया. तीनों ही मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां हैं. बरसात के मौसम में इन तीनों बीमारियों के मामले बढ़ने लगते हैं. पर अक्सर लोग डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया में अंतर नहीं कर पाते. क्योंकि इनके लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं.
डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के बीच क्या अंतर है?
ये तीनों ही मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां हैं. डेंगू और चिकनगुनिया एडीज़ एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है. वहीं मलेरिया फीमेल एनाफिलीज़ मच्छर के काटने से होता है.
.webp?width=360)
हमने आकाश हेल्थकेयर में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के सीनियर कंसल्टेंट, डॉक्टर प्रभात रंजन सिन्हा से तीनों के बीच का फ़र्क समझा. साथ ही तीनों बीमारियों से बचने का तरीका भी जाना.

पहले बात डेंगू की. डॉक्टर प्रभात बताते हैं कि डेंगू बुखार, एडीज़ एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है. बारिश के मौसम में जगह-जगह पानी इकट्ठा हो जाता है. जैसे पुराने टायरों, टूटे गमलों, कूलर, छतों पर रखे डिब्बों या गड्ढों में. इस रुके हुए पानी में एडीज़ मच्छर तेज़ी से पनपते हैं. फिर ये मच्छर जब किसी ऐसे व्यक्ति को काटता है, जिसे डेंगू हो चुका है. यानी उस व्यक्ति के खून में डेंगू वायरस मौजूद है. तब ये मच्छर खून के साथ वायरस को भी अपने शरीर में ले लेता है. उसके बाद ये संक्रमित मच्छर किसी दूसरे व्यक्ति को काटता है. ऐसे डेंगू का वायरस दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाता है और ये चेन चलती रहती है. डेंगू का मच्छर दिन में काटता है. खासकर सुबह और शाम में.
डेंगू का मुख्य लक्षण तेज़ और लगातार बना रहने वाला बुखार है. इसके साथ हड्डियों और मांसपेशियों में तेज़ दर्द होता है. ठंड लगती है. थकान, बदनदर्द, आंखों के आसपास दर्द, उल्टी, दस्त और शरीर पर चकत्ते भी देखे जाते हैं. कभी-कभी खांसी भी आ सकती है. ये लक्षण आमतौर पर तीन से पांच दिन तक बढ़ते रहते हैं. डेंगू में प्लेटलेट्स शुरू में कम नहीं होते. लेकिन जब वायरस शरीर से जाने लगता है, तब प्लेटलेट्स गिरते हैं. इससे हेमरेज या खून का लीकेज हो सकता है. कई बार बुखार जाने के बाद भी प्लेटलेट्स कम होते रहते हैं. इसलिए मरीज़ की निगरानी ज़रूरी होती है. डेंगू की कोई खास दवा नहीं है. इसका इलाज लक्षणों के आधार पर किया जाता है.
अब बात मलेरिया की. मलेरिया फीमेल एनाफिलीज़ मच्छर के काटने से होता है. जब ये मच्छर प्लाज़्मोडियम नाम के परजीवी से संक्रमित हो जाता है और उसके बाद किसी इंसान को काटता है. तब ये परजीवी उस व्यक्ति के खून में चला जाता है. जिससे मलेरिया हो जाता है.
मलेरिया का मच्छर साफ या थोड़े गंदे ठहरे हुए पानी में पनपता है. जैसे कूलर, गमले, टंकी या तालाब के पानी में.
अगर मलेरिया के लक्षण दिखें, तो ब्लड टेस्ट कराना ज़रूरी है. जैसे मलेरिया पैरासाइट टेस्ट या रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट. मलेरिया का इलाज किया जा सकता है. इसके लिए डॉक्टर एंटी-मलेरियल दवाइयां देते हैं.
जहां तक बात चिकनगुनिया की है, तो ये एडीज़ एजिप्टी मच्छर के काटने से होता है. वही मच्छर, जो डेंगू वायरस भी फैलाता है. अगर कोई संक्रमित मच्छर पहले किसी चिकनगुनिया से पीड़ित व्यक्ति को काट चुका है. और, उसके बाद किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है. तो वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान के शरीर में पहुंच जाता है और वो भी चिकनगुनिया से संक्रमित हो जाता है.
चिकनगुनिया के लक्षण काफी कुछ डेंगू से मिलते-जुलते हैं. इसमें अचानक तेज़ बुखार आता है. शरीर और जोड़ों में भी खूब दर्द होता है. बुखार ठीक हो जाने के बाद भी शरीर और जोड़ों में लंबे समय तक दर्द बना रहता है.
डेंगू और चिकनगुनिया में मुख्य फर्क ये है कि डेंगू में ब्लीडिंग और प्लेटलेट्स गिरने का खतरा होता है. पर चिकनगुनिया में ऐसा नहीं होता.
चिकनगुनिया को डायग्नोज करने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है. इसका कोई खास इलाज नहीं है. लक्षणों के हिसाब से दवाएं दी जाती हैं.
अब बात तीनों से बचाव की. पहला, अपने आसपास कहीं भी पानी जमा न होने दें. जहां ऐसा होने की संभावना हो. जैसे पुराने टायर, गमले, कूलर या टंकी में, तो उन्हें रोज़ खाली करें या ढककर रखें.
दूसरा, पूरी बांह के कपड़े पहनें. खासकर अगर आपके आसपास मच्छर बहुत ज़्यादा हों. सुबह और शाम के समय खिड़की-दरवाज़ें बंद रखें. इन्हें तभी खोलें, जब ज़रूरत हो. साथ ही, मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और मॉस्किटो रेपेलेंट लगाएं.
तीसरा, किसी भी लक्षण को नज़रअंदाज़ न करें. तुरंत डॉक्टर से मिलें. ज़रूरी जांचें कराएं ताकि आपका इलाज हो सके. बुखार होने पर अपने आप या केमिस्ट से पूछकर दवाई न लें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
वीडियो: सेहत: बारिश के मौसम में फंगल इंफेक्शन क्यों हो जाता है?