जिन लोगों को कब्ज़ रहता है या पेट साफ़ नहीं होता, वो अक्सर देर तक टॉयलेट सीट पर बैठे रहते हैं. इससे आसानी से स्टूल पास नहीं होता. बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है. इतना ज़ोर लगाने से एनस यानी गुदाद्वार में दर्द होता है. ये दर्द घंटों बाद तक महसूस होता है. मगर लोग इस पर ख़ास ध्यान नहीं देते. ये सोचकर कि ठीक हो जाएगा. 'अब इस बारे में किसको बोलें'! ये एक बहुत बड़ी गलती है.
बवासीर सोचकर खाते रहे दवाई, निकला एनल कैंसर, दोनों में अंतर कैसे पता करें, फिर बचें कैसे?
स्टूल पास करने के दौरान ज़ोर लगाने से व्यक्ति को पाइल्स की शिकायत हो सकती है. पाइल्स खुद कैंसर नहीं बनते. मगर उसकी वजह से अंदरूनी परतों में होने वाला बदलाव कैंसर की वजह बन सकता है. डॉक्टर से सब कुछ जानें.
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कई बार स्टूल पास करते हुए, ज़ोर लगाने के कारण गुदाद्वार में कट लग जाता है. ये दर्द इसी का नतीजा है. इसे कहते हैं एनल फिशर. यही नहीं, ज़्यादा ज़ोर लगाने की वजह से बवासीर यानी पाइल्स की दिक्कत भी हो जाती है. इसमें गुदाद्वार की नसें सूज जाती हैं. इन दोनों की सूरतों में दर्द के साथ स्टूल में खून आता है. कई और लक्षण भी महसूस होते हैं, जो एनल कैंसर यानी गुदाद्वार के कैंसर से मिलते-जुलते हैं. इन्हें देखकर लोग अक्सर डर जाते हैं. जैसे स्टूल की बनावट और रंग में बदलाव आना. इसलिए, आज समझिए कि क्या एनल फिशर या बवासीर की वजह से गुदाद्वार का कैंसर हो सकता है. साथ ही जानिए, एनल फिशर और बवासीर होने का कारण. इनमें क्या फर्क होता है. और, गुदाद्वार के कैंसर का पता लगाने के लिए डॉक्टर कौन-सा टेस्ट करते हैं.
एनल फिशर क्या होता है?
ये हमें बताया डॉक्टर सुखविंदर सिंह सग्गू ने.

एनल फिशर एनस (गुदाद्वार) के पास एक छोटा-सा कट या अल्सर (घाव) होता है. इसकी वजह से व्यक्ति को ब्लीडिंग हो सकती है. गुदाद्वार में जलन और खुजली हो सकती है. कब्ज़ की शिकायत हो सकती है. ये सारे लक्षण एनल फिशर की वजह से हो सकते हैं. शौच करने के आधे-एक घंटे तक दर्द भी हो सकता है.
पाइल्स क्या होता है?
पाइल्स में गुदाद्वार (एनस) की नसों पर ज़्यादा दबाव पड़ता है. ये नसें मुख्य रूप से तीन होती हैं और एनस के आसपास होती हैं. दबाव पड़ने से ये नसें फूल जाती हैं और गांठ जैसी बन जाती हैं. इसे पाइल्स कहा जाता है. पाइल्स होने पर गुदाद्वार में खुजली और जलन होती है. कब्ज़ रहता है. बिना दर्द के खून निकलता है. ये सारे लक्षण पाइल्स के हैं. इसे हेमरॉइड्स भी कहा जाता है. दोनों ही स्थितियों में समय पर डॉक्टर से मिलकर इलाज कराना ज़रूरी है.
क्या एनल फिशर या पाइल्स से एनल कैंसर हो सकता है?
अगर किसी को पाइल्स के लक्षण महसूस हो रहे हैं. जैसे ब्लीडिंग होना, गुदाद्वार में खुजली और जलन होना, कब्ज़ रहना. इसी के साथ, अगर कुछ और लक्षण भी दिख रहे हैं. जैसे व्यक्ति का वज़न कम हो रहा है. वो ज़्यादा बार स्टूल पास करने जा रहा है. 4-5 बार जा रहा है. स्टूल की बनावट में बदलाव आया है. तब आपको ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. ये भी देखना है कि स्टूल का रंग कहीं काला तो नहीं हो गया. या उसमें काले रंग का खून तो नहीं आ रहा. या फिर खून थक्कों के रूप में जमा तो नहीं है. अगर ऐसा है, तो ये एनल कैंसर का इशारा हो सकता है. लिहाज़ा, अगर आपको पाइल्स या एनल फिशर है तो डॉक्टर को दिखाएं.
अगर आप डॉक्टर को नहीं दिखाते और बस दवा लेते रहते हैं तो ये ठीक नहीं है. क्योंकि, ब्लीडिंग पाइल्स से भी हो सकती है और कैंसर से भी. हालांकि, एनल फिशर और पाइल्स का कैंसर से संबंध नहीं होता. यानी इनकी वजह से कैंसर नहीं होता. कैंसर होने का कारण अलग होता है. अगर आपको पाइल्स की वजह से कब्ज़ की शिकायत है, तो एनस (गुदाद्वार), रेक्टम (मलाशय) और कोलन (बड़ी आंत) की अंदरूनी परत (म्यूकोज़ा) में सूजन आ सकती है. लगातार सूजन की वजह से वहां की कोशिकाओं (सेल्स) में बदलाव आने लगते हैं. धीरे-धीरे ये बदलाव ग्रोथ (उभार, सूजन या गांठ) का रूप ले सकते हैं और आगे चलकर कैंसर हो सकता है.

पाइल्स खुद कैंसर नहीं बनते. मगर उसकी वजह से अंदरूनी परतों में होने वाला बदलाव कैंसर की वजह बन सकता है. इसलिए, ज़रूरी है कि पाइल्स या कब्ज़ जैसे लक्षणों को हल्के में न लें और डॉक्टर से जांच कराएं. डॉक्टर सबसे पहले डिजिटल रेक्टल एग्ज़ामिनेशन करते हैं. इसमें उंगली से चेक किया जाता है कि अंदर सूजी हुई नसें हैं या कोई ठोस ग्रोथ है. अगर ग्रोथ है, तो वो कैंसर की हो सकती है. वहीं अगर नसों में सूजन है, तो वो पाइल्स की हो सकती है. इसके बाद प्रोक्टोस्कोपी की जाती है. इसमें एक छोटा उपकरण डालकर एनस को अंदर से देखा जाता है. अगर कुछ असामान्य ग्रोथ दिखती है, तो कोलोनोस्कोपी कराई जाती है. फिर बायोप्सी करके कैंसर की पुष्टि की जा सकती है.
अगर आपको एनल फिशर और पाइल्स से बचना है, तो पहले कब्ज़ से बचें. इसके लिए अपनी डाइट में फाइबर से भरपूर चीज़ें खाएं और खूब पानी पिएं. साथ ही, टॉयलेट में ज़्यादा देर तक न बैठें और ज़बरदस्ती स्टूल पास करने की कोशिश न करें. जब भी प्रेशर बने, तुरंत स्टूल पास करने जाएं. साथ ही, बहुत देर तक एक जगह न बैठें. काम के बीच में ब्रेक लेते रहें. रोज़ थोड़ी एक्सरसाइज़ और अपना वज़न कंट्रोल में रखें. अगर ये सब करेंगे तो आपका पेट ठीक से साफ होगा और कोई दिक्कत नहीं होगी.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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