तमिलनाडु की डीएमके सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने बीते दिनों दिए अपने भाषण में सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना महामारी से की थी. इस बयान के बाद से केवल तमिलनाडु ही नहीं देशभर में विवाद चल रहा है. देश के कुछ हिस्सों में स्टालिन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और उनकी पार्टी पर सनातन धर्म को खत्म करने का आरोप लग रहा है. इसी बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है, जिसमें कुछ लोग हाथ जोड़कर रोते बिलखते नज़र आ रहे हैं. उनके पास में ही पुलिसवाले भी खड़े हैं जिनसे वे मदद की गुहार लगा रहे हैं. साथ में भगवान गणेश की मूर्तियां भी नज़र आ रही है. पुलिसवालों की मौजूदगी में उस जगह को सील किया जा रहा है.
DMK के राज में तमिलनाडु में गणेश मूर्तियां जब्त, निर्माण पर बैन? वायरल वीडियो की असली कहानी
एक वीडियो वायरल है, जिसमें कुछ लोग हाथ जोड़कर रोते बिलखते नज़र आ रहे हैं. उनके पास में ही पुलिसवाले भी खड़े हैं जिनसे वे मदद की गुहार लगा रहे हैं. साथ में भगवान गणेश की मूर्तियां भी नज़र आ रही हैं. पुलिसवालों की मौजूदगी में उस जगह को सील किया जा रहा है.

वीडियो को शेयर करके डीएमके पर सनातन विरोधी होने का दावा किया जा रहा है. मिसाल के तौर पर, एक ट्विटर यूजर ने लिखा,
”डीएमके का एक और सनातन धर्म विरोधी कृत्य, अब वे गणेश उत्सव को निशाना बना रहे हैं. करूर में 10 लाख की गणेश मूर्तियां जब्त, गरीब श्रमिक रो रहे हैं और प्रभु गणेश के आगमन से ठीक पहले उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है. क्या यह सनातन को ख़त्म करने की दिशा में एक और कदम है?”
(पोस्ट का आर्काइव लिंक यहां देखा जा सकता है.)
इसके अलावा कई अन्य यूजर्स ने वायरल वीडियो को फेसबुक पर भी शेयर किया है.

‘दी लल्लनटॉप’ की पड़ताल में वायरल दावा भ्रामक निकला. दावे की सच्चाई जानने के लिए हमने गूगल पर तमिल भाषा में कुछ कीवर्ड सर्च किए. हमें तमिलनाडु की मीडिया वेबसाइट ‘Dinamalar’ पर 15 सितंबर को छपी एक रिपोर्ट मिली. इसमें एक वीडियो एंबेड है, जिसमें वायरल वीडियो का हिस्सा देखा जा सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, विनायक चतुर्थी (गणेश महोत्सव) को लेकर करूर जिले के विभिन्न इलाकों में मूर्ति बनाने का कार्य चल रहा है. वहां के सुंगागेट के पास 300 से अधिक मूर्तियों को तैयार करने का काम जोरों पर हुआ. यहां से प्रशासन को केमिकल मिलाकर मूर्ति बनाए जाने की शिकायत मिली थी, जिसके बाद, तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जिला सहायक अभियंता जयकुमार ने जांच की.
रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान प्रशासन ने अपनी जांच में पाया कि मूर्तियों को बनाने में प्रतिबंधित 'प्लास्टर ऑफ पेरिस पाउडर' सहित अन्य केमिकल मिलाए जा रहे हैं. इस कारण जिन जगहों पर ये मूर्तियां बनाई जा रही थीं, उन्हें सील कर दिया गया. रिपोर्ट में जिला प्रशासन के हवाले से बताया गया है कि मूर्तियों पर केवल प्राकृतिक रंग का ही प्रयोग किया जाए. इन्हें केवल मिट्टी, कागज की लुगदी और नारियल के रेशे की लुगदी से ही बनाया जाना चाहिए.

हमने मामले की अधिक जानकारी के लिए करूर जिला कलेक्टर टी प्रभुशंकर से संपर्क किया. उन्होंने वायरल दावे का खंडन किया. उन्होंने हमें बताया,
“यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग इस घटना को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं. इसका भ्रामक तरीके से प्रचार हो रहा है. मद्रास हाइकोर्ट का साल 2017 का और तत्कालीन तमिलनाडु सरकार का साल 2018 का एक आदेश है, जिसमें मूर्तियां बनाते समय ‘प्लास्टर ऑफ पेरिस’ के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इसे केवल बायो डिग्रडेबल वस्तुओं से ही बनाया जाना चाहिए."
कलेक्टर ने आगे बताया,
“तमिलनाडु कुम्हार संघ ने पुलिस को शिकायत दी कि कुछ लोग मूर्तियां बनाने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसके बाद राजस्व अधिकारियों, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों और पुलिस ने घटना स्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने मूर्तियों की जांच की तो पता चला कि ये पीओपी से बनी हैं. हमने मूर्ति निर्माताओं को बार-बार पीओपी का उपयोग न करने की चेतावनी दी थी. इसमें कोई धार्मिक एंगल शामिल नहीं है. हमने निर्णय लिया है कि विसर्जन समाप्त होने के बाद हम 25 सितंबर को उनकी मूर्तियां वापस कर देंगे. हमारी एकमात्र चिंता यह है कि ऐसी मूर्तियों को जलाशय में विसर्जित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.”
करूर के कलेक्टर ने ट्वीट करके भी वायरल दावे का खंडन किया है. उनके ट्वीट में मद्रास हाईकोर्ट के ऑर्डर की कॉपी और सीपीसीबी की गाइडलाइन भी मौजूद है.
हमने इंडिया टुडे की चेन्नई संवाददाता शिल्पा की मदद से करूर जिले में मूर्तियां बनाने वाले राजेंद्रन से बात की. उन्होंने भी वायरल दावे का खंडन किया. राजेंद्रन ने बताया,
”हम पर्यावरण अनुकूल चीजों का इस्तेमाल करके मूर्तियां बनाते हैं. प्लास्टर ऑफ पेरिस एक केमिकल है जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है. यह मिट्टी और पानी के लिए हानिकारक है. सरकार ने पीओपी के उपयोग पर बैन लगाया है. जो भी लोग मूर्तियां बनाने में इको फ्रेंडली चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें अधिकारियों से कोई परेशानी नहीं हो रही है.”
इसके अलावा हमें न्यूज एजेंसी ‘ANI’ की वेबसाइट पर 15 सितंबर को छपी एक रिपोर्ट मिली. इसके मुताबिक, तमिलनाडु में गणेश चतुर्थी से पहले भगवान गणेश की पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियां तैयार की जा रही हैं. रिपोर्ट में मदुरै के मूर्ति बनाने वाले कारीगरों के हवाले से बताया गया है कि वे परंपरागत रूप से मिट्टी से गणेश प्रतिमाएं बनाते हैं. इस साल उन्हें बहुत कम ऑर्डर मिले हैं. अब जबकि बरसात का मौसम शुरू हो गया है, मूर्ति बनाने का काम थोड़ा धीमा हो गया है, जिसका असर उनके व्यापार पर पड़ा है.’
नतीजाकुलमिलाकर, हमारी पड़ताल में वायरल दावा भ्रामक निकला. तमिलनाडु की डीएमके सरकार मूर्तियां बनाने वालों को नहीं बल्कि प्रतिबंधित केमिकल का इस्तेमाल करके मूर्तियां बनाने वालों पर बैन लगा रही है.
(चेन्नई से संवाददाता शिल्पा नायर के इनपुट के साथ.)
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