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पड़ताल: रूह अफ़्ज़ा को तबलीग़ी जमात से जुड़ा प्रोडक्ट बताते दावों का सच क्या है?

सोशल मीडिया पर दावा, "रूह अफ़्जा की कंपनी में सिर्फ़ मुसलमान ही काम के लिए रखे जाते हैं?"

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धड़ल्ले से शेयर किए जा रहे दावों का सच जान लीजिए.
दावा
सोशल मीडिया पर रूह अफ्ज़ा की तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि ये तबलीग़ी जमात का प्रोडक्ट है. और, इसे बनाने वाली कंपनी में सिर्फ़ मुसलमान ही नौकरी कर सकते हैं.
6 अप्रैल, 2020 को, फ़ेसबुक यूजर रमाकांत कौशिक ने पोस्ट (आर्काइव लिंक)
किया,
मैंने तो त्याग कर रक्खा है इसका
Posted by Ramakant Kaushik
on Monday, 6 April 2020
इस पोस्ट को 2,800 से अधिक बार शेयर किया जा चुका है.
ट्विटर पर भी ऐसे ही मेसेज शेयर किए जा रहे हैं, जिसमें दावा किया जा रहा है कि रूह अफ़्ज़ा में तबलीग़ी जमात के लोगों ने थूका होगा. (आर्काइव लिंक)

ये दावा वॉट्सऐप पर भी वायरल हो रहा है.

पड़ताल

‘दी लल्लनटॉप’ ने इस दावे की पड़ताल की. हमारी पड़ताल में ये दावे ग़लत निकले. मौटे तौर पर दो दावे किए जा रहे हैं.
पहला दावा
तबलीग़ी जमात का प्रोडक्ट है रूह अफ़्ज़ा.
तथ्य
रूह अफ़्ज़ा बनाने वाली कंपनी का नाम है ‘हमदर्द’. हमने हमदर्द की वेबसाइट
को खंगाला. भारत-पाकिस्तान का विभाजन होने से चार दशक पहले का किस्सा है. 1906 में हक़ीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद ने पुरानी दिल्ली की गलियों में ‘हमदर्द दवाखाना’ की शुरुआत की थी. यूनानी पद्धति से इलाज करने वाला ये छोटा-सा क्लिनिक कुछ ही समय में पॉपुलर हो गया. विभाजन के बाद, हमदर्द की एक ब्रांच पाकिस्तान में और 1971 में दूसरी ब्रांच बांग्लादेश में शुरू हुई.
हमदर्द की शुरुआत पुरानी दिल्ली की एक गली में छोटे से क्लिनिक के तौर पर हुई थी.
हमदर्द की शुरुआत पुरानी दिल्ली की एक गली में छोटे से क्लिनिक के तौर पर हुई थी.


कीवर्ड्स से सर्च करने पर हमें ‘लाइवमिंट’ की एक रिपोर्ट
(आर्काइव लिंक)
मिली. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, अब्दुल मजीद ने 1907 में ‘रूह अफ़्ज़ा’ की रेसिपी तैयार की थी. कंपनी की वेबसाइट पर दर्ज जानकारी के अनुसार, हमदर्द के प्रोडक्ट प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बनते हैं.  
वहीं तबलीग़ी जमात के इतिहास और काम के बारे में ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट
(आर्काइव लिंक
) में विस्तार से बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, जमात की स्थापना मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने, 1926 में, मेवात में की थी. इसका उद्देश्य ऐसे मुसलमानों का संगठन तैयार करना था, जो उनकी नज़र में असली इस्लामिक कानूनों का पालन करें. फिलहाल, तबलीग़ी जमात 150 देशों में फैला है और इसके फॉलोवर्स की संख्या लाखों में है.
दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाक़े में इनका हेडक्वार्टर है. मार्च के महीने में तबलीग़ के एक कार्यक्रम में शामिल हुए सैकड़ों लोग नोवेल कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए. 
तबलीग़ी जमात एक धार्मिक संगठन है. हमदर्द और तबलीग़ी जमात की स्थापना के साल में दो दशकों का अंतर है. दोनों के उद्देश्य अलग-अलग हैं. हमें ऐसी कोई प्रामाणिक रिपोर्ट नहीं मिली, जिसमें हमदर्द और तबलीग़ी जमात का कोई कनेक्शन बताया गया हो.
दूसरा दावा
इस कंपनी में सिर्फ़ मुसलमान ही नौकरी कर सकते हैं.
तथ्य
कीवर्ड्स की मदद से सर्च करने पर हमें ‘आज तक’ की 12 जून, 2017, को पब्लिश हुई एक वीडियो रिपोर्ट (आर्काइव लिंक)
  मिली. इसका टाइटल था,
वायरल टेस्ट: क्या हमदर्द में केवल मुसलमानों को मिलती है नौकरी?

‘आज तक’ न्यूज़ चैनल ने हमदर्द के दिल्ली ऑफ़िस में जाकर इस बात की तस्दीक भी की थी. इस वीडियो रिपोर्ट में 2:46 मिनट पर रिसेप्शनिस्ट अपना नाम भूमिका उप्पल बताती हैं. इसी रिपोर्ट में आगे भी कई ऐसे स्टाफ़ मिलते हैं, जो गैर-मुस्लिम हैं. ये दावा 2018 में भी वायरल हुआ था. 
इस अफ़वाह की पड़ताल लल्लनटॉप  2018
में भी कर चुका है.

04 फ़रवरी,
2018 को पब्लिश रिपोर्ट के अनुसार, रूह अफ़्ज़ा बनाने वाली कंपनी ‘हमदर्द’ में काम करने वाले कर्मचारियों में हिंदू-मुसलमान का अनुपात लगभग बराबर है. ‘हमदर्द इंडिया’ के कई महत्वपूर्ण पदों पर गैर-मुस्लिम कर्मचारी पोस्टेड हैं. 

2020 में एक बार फिर ‘हमदर्द लेबोरेट्रीज़ इंडिया’ से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क किया. कंपनी के चीफ़ सेल्स एंड मार्केटिंक ऑफ़िसर, मंसूर अली ने बताया,
किसी भी अन्य भारतीय संस्था की तरह, हमें अपने साथियों और सहयोगियों पर गर्व है. हमारे साथी हमारी ताकत हैं, और वो इस देश की असली तस्वीर पेश करते हैं. हमारे साथी देश के हर एक राज्य, हर एक धर्म, हर एक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमें गर्व है कि हम अपने साथियों का चुनाव - योग्यता, अनुभव और मानवीय मूल्यों, के आधार पर करते हैं. इससे इतर कोई भी दावा झूठा है और उसको स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. इन तथ्यों की पुष्टि के लिए कोई भी व्यक्ति देशभर में मौजूद हमारे ऑफ़िस, हमारी फ़ैक्ट्रियों या देशभर में फैली सेल्स टीम से मिल सकता है, देख सकता है.
वायरल पोस्ट्स के सवाल पर उन्होंने कहा,
सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट्स के जरिए हमारे प्रोडक्ट्स को बेकार साबित करने की कोशिश की जा रही है और संवेदनशील धार्मिक मुद्दों से जोड़कर नफ़रत, असहिष्णुता और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है. इनका मकसद, इस मुश्किल वक़्त में लोगों के बीच दरारें पैदा करना है. हमपर प्यार और भरोसा रखने वाले देशवासियों से अपील है कि वो इन नफ़रती पोस्ट्स के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद रखें. हम नफ़रत फैलाने वाले इन पोस्ट्स को सोशल मीडिया से हटवाने के लिए सरकारी एजेंसियों के साथ काम कर रहे हैं.
नतीजा
सोशल मीडिया पर ‘रूह अफ़्ज़ा’ को लेकर किए जा रहे दावे ग़लत निकले. तबलीग़ी जमात और रूह अफ़्ज़ा बनाने वाली कंपनी ‘हमदर्द’ अलग हैं. हमदर्द यूनानी चिकित्सा पद्धति से संबंधित प्रोडक्ट्स बनाती है, जबकि तबलीग़ी जमात ‘इस्लाम’ का प्रचार करने वाला धार्मिक संगठन है. ऐसी कोई प्रमाणिक रिपोर्ट नहीं है, जिसमें तबलीग़ी जमात का संबंध रूह अफ़्ज़ा बनाने वाली कंपनी ‘हमदर्द’ से बताया गया हो.
ये दावा भी ग़लत है कि हमदर्द में गैर-मुस्लिम काम नहीं करते. हमदर्द में हर धर्म, जाति, रंग, क्षेत्र से आए लोग काम करते हैं. दी लल्लनटॉप से बातचीत में 'हमदर्द इंडिया' ने सोशल मीडिया पर वायरल सांप्रदायिक दावों का खंडन किया. बीते सालों के दौरान कई और मीडिया रिपोर्ट्स ने भी इस झूठे दावे की पोल खोली है. 

अगर आपको भी किसी ख़बर पर शक है
तो हमें मेल करें- padtaalmail@gmail.com
पर.

हम दावे की पड़ताल करेंगे और आप तक सच पहुंचाएंगे.

कोरोना वायरस से जुड़ी हर बड़ी वायरल जानकारी की पड़ताल हम कर रहे हैं. इस लिंक पर क्लिक करके जानिए वायरल दावों की सच्चाई.