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जब विनोद राठौड़ के एक गाने के लिए शाहरुख खान और ऋषि कपूर भिड़ गए

'दीवाना', 'बाज़ीगर' और 'खलनायक' जैसी हिट फिल्मों में गाने वाले विनोद राठौड़ आजकल कहां हैं?...

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'दीवाना' से पहले विनोद ऋषि कपूर की आवाज़ बन चुके थे. फोटो - स्क्रीनशॉट

साल 1992. 25 जून की तारीख. हर शुक्रवार की तरह ये भी शुक्रवार आया. साथ लाया एक हिन्दी फिल्म. ऋषि कपूर उसके हीरो थे. जनता सिनेमाघरों की सीटें ठीक से गरम भी नहीं कर पाई थी कि हीरो मारा गया. अब फिल्म का क्या होगा. ये सवाल आने से पहले जवाब बनकर आया एक लड़का. अपनी टोली के साथ, झुंड में. हवा से बात करते उसके बाल. लाल-सफेद यामाहा बाइक पर सवार. उसके लबों से पहले शब्द फूटते हैं,

कोई ना कोई चाहिए प्यार करने वाला, कोई ना कोई चाहिए हमपे मरने वाला. 

हिंदी मेनस्ट्रीम सिनेमा में शाहरुख खान की एंट्री हो चुकी थी. वो भी पूरे बाजे-गाजे के साथ. हालांकि उनकी पहली आवाज़ बने विनोद राठौड़ नया नाम नहीं थे. इससे पहले वो ऋषि कपूर की आवाज़ के तौर पर अपना नाम पुख्ता कर चुके थे. अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, जैकी श्रॉफ, सलमान खान, गोविंदा और शाहरुख खान समेत हर बड़े स्टार को उन्होंने अपनी आवाज़ दी. सिर्फ हीरो की आवाज़ बनकर ही नहीं छाए. जिस गाने में हीरो को आवाज़ नहीं दी, वो भी हिट हुआ. ‘बाज़ीगर’ का गाना ‘छुपाना भी नहीं आता’ याद कीजिए. खुद को एक तरफा प्रेमी समझने वाले भतेरे लड़कों का ऐंथम. विनोद राठौड़ ने हिंदी, अंग्रेज़ी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, फ़ारसी और अनेकों भाषाओं में करीब 3500 गाने गाए. 

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‘दीवाना’ - शाहरुख और विनोद राठौड़ को स्टार बनाने वाली फिल्म. 

एक वो दौर भी था एक्टर्स विनोद राठौड़ की आवाज़ के लिए आपस में लड़ जाया करते थे. उनका गाना फिल्म से हटाने पर बवाल हो जाता. अपने करियर में किसी एक्टर जैसी स्टारडम देखने वाले विनोद आज कल कहां हैं, ये सवाल ज़हन में आना लाज़मी है. आज इसी सवाल का जवाब जानेंगे. 

# “तलवार घर पे रख के आना, गाने के लिए आ जाओ”

लेट सिक्स्टीज़ का समय. पंडित चतुर्भुज राठौड़ का घर. ऐसा घर जिसके बच्चे पैदा होने के बाद रोते नहीं थे. बल्कि गाते थे. खेलने के लिए हाथों में झुनझुने नहीं होते थे. उनके नन्हे हाथ म्यूज़िक इंस्ट्रूमेंट पर पड़ते. पंडित चतुर्भुज को पांच बेटे हुए. तीन ने पिता की संगीत धरोहर को आगे ले जाने का फैसला लिया. बाकी दो की रुचि संगीत से इतर बिज़नेस में लगी. उन तीन बच्चों में से विनोद दूसरे नंबर पर थे. बड़े भाई श्रवण ने नाइंटीज़ के हिंदी म्यूज़िक पर राज किया. नदीम सैफी के साथ उनकी जोड़ी हिट रही. छोटे भाई रूप कुमार राठौड़ ने करियर में रूहानी गीतों की झड़ी लगा दी. 

पंडित चतुर्भुज के घर में संगीत सीखने और सिखाने का माहौल रहा. अपने बच्चों के साथ उन्होंने 30,000 से ज़्यादा लोगों को संगीत की शिक्षा दी. उनमें कल्याणजी-आनंदजी वाले कल्याणजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, पंकज उधास और सदाशिव पवार जैसे स्टूडेंट्स शामिल रहे. श्रवण, विनोद और रूप भी पिता से सीखते रहे. कहानी कुछ साल आगे बढ़ी. विनोद कॉलेज में पहुंचे. कद के साथ ज़ुल्फ़ों की लटें बढ़ चुकी थीं. साथ ही बढ़ चुकी थी दीवानगी, राजेश खन्ना के लिए. किशोर कुमार के गानों के लिए. विनोद मानते हैं कि किशोर कुमार का उनके प्रोफेशनल सिंगिंग करियर पर बहुत गहरा असर रहा. 

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संगीत की बड़ी हस्तियां पंडित चतुर्भुग से सीखने आती थीं. 

कॉलेज के दिनों में प्रैक्टिस के लिए किशोर कुमार के गाने गाते. उन्हें कैसेट में रिकॉर्ड कर के रख लेते. उन्हें अनुमान नहीं था कि ये कैसेट्स कैसे उनके काम आने वाली हैं. एक दिन उन्हें उषा खन्ना का फोन आया. उषा उनके पिता को लंबे समय से जानती थीं. लेकिन इस कहानी में सिर्फ ये एक लाइन ही उनका परिचय नहीं होगी. हिंदी कमर्शियल सिनेमा में क्रांति लाने वाली महिला रहीं उषा. म्यूज़िक बनाने का काम पुरुषों ने अपने हाथों में लिया हुआ था. ऐसे माहौल में उषा खन्ना शुरुआती फीमेल म्यूज़िक कम्पोज़र्स में से थीं जिन्होंने मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई. उषा उन दिनों ‘बैरागी’ नाम की फिल्म पर काम कर रही थीं. ये एक छोटे स्केल की फिल्म थी, जिसके बारे में ज़्यादा जानकारी सुनने-पढ़ने को नहीं मिलती. उषा चाहती थीं कि विनोद उस फिल्म के लिए गाएं. विनोद से सैम्पल मंगवाया. उन्होंने वो किशोर कुमार के गाए गानों वाली कैसेट भिजवा दी. उसके बाद उषा का उन्हें फोन आया,
विनोद राठौड़, राजपूत हो. तलवार घर पे रख के आना, गाने के लिए आ जाओ.  

विनोद अपना पहला गाना मोहम्मद अज़ीज़ के साथ गाने वाले थे. ये एक कव्वाली थी, ‘मेरे दिल में हैं अंधेरा, कोई शमा तो जला दे’. अप्रैल, 1986 में विनोद ने ये गाना रिकॉर्ड किया. अपने शुरुआती दौर में उन्होंने उषा के साथ करीब 30 गाने रिकॉर्ड किए. मगर इनमें से अधिकांश गाने उनकी पहचान नहीं बन सके. कैलेंडर में साल आ चुका था 1988. विनोद लगातार गाने रिकॉर्ड किए जा रहे थे. अब उनकी मुख्यधारा में एंट्री होनी थी. म्यूज़िक कम्पोज़र की जोड़ी शिव-हरि ने उन्हें बुलावा भेजा. वो दोनों लोग यश चोपड़ा की फिल्म ‘विजय’ पर काम कर रहे थे. शिव-हरि चाहते थे कि फिल्म में विनोद ऋषि की आवाज़ बनें. उन्होंने ‘ज़िंदगी हर जनम’ गाने में ऋषि को अपनी आवाज़ दी. ये प्रयोग सफल रहा. यश चोपड़ा और शिव-हरि को पसंद आया. 
यश चोपड़ा ‘चांदनी’ बनाने जा रहे थे. ऋषि कपूर और श्रीदेवी को लेकर. विनोद नाम का नया लड़का ही ऋषि की आवाज़ होगा, ये उन्होंने तय कर लिया. ‘चांदनी’ पर काम करना विनोद के लिए किसी सिंगिंग स्कूल में भर्ती होने जैसा था. क्योंकि उन्होंने फिल्म में लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ गाने रिकॉर्ड किए.

‘रूप की रानी चोरों का राजा’. बात हो रही थी ‘चांदनी’ की, अचानक से ये नाम कैसे टपक पड़ा. अनिल कपूर की फिल्मोग्राफी में भी ये फिल्म ऐसे ही एबरप्ट ढंग से आई. बहुत बड़ी फ्लॉप फिल्म. मगर 1992 में आया फिल्म का गाना ‘रोमियो नाम मेरा’ उनका पहला मसालेदार हिट गाना बना. ये साल उनके करियर की दिशा-दशा बदलने वाला था. 

# जब एक गाने पर शाहरुख और ऋषि कपूर भिड़ गए 

साल 1992 तक हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में एक बात का सिक्का जम चुका था. कि ऋषि कपूर को विनोद राठौड़ में अपनी नई आवाज़ मिल गई थी. ऋषि कपूर ‘दीवाना’ नाम की फिल्म पर काम कर रहे थे. परंपरा के अनुसार विनोद उनके गीत गाने वाले थे. एक गाना रिकॉर्ड भी किया, ‘ऐसी दीवानगी देखी नहीं’. ऋषि कपूर मानकर बैठे थे कि ये उनका ही गाना होगा. लेकिन..लेकिन..लेकिन... एक नए लड़के ने इस पर आपत्ति जताई. ये लड़का भी ‘दीवाना’ में हीरो था. उसका बिग स्क्रीन डेब्यू होने वाला था. हालांकि उस दौरान हेमा मालिनी की फिल्म ‘दिल आशना हैं’ की शूटिंग भी कर रहा था. लेकिन हर हालत में ‘दीवाना’ उससे पहले रिलीज़ होने वाली थी. 

शाहरुख खान चाहते थे कि उनके डेब्यू में कोई कसर न छूटे. इसलिए उनकी मांग थी कि ‘ऐसी दीवानगी’ उनका गाना बने. ऋषि कपूर भी ऐसा गाना जाने देने को तैयार नहीं थे. विनोद राठौड़ ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि दोनों एक्टर्स इस बात पर आपस में भिड़ गए. लंबे समय तक बातचीत भी बंद रही. इस बीच सफेद झंडा फहराने का काम किया फिल्म की प्रोड्यूसर शबनम ने. उन्होंने कॉल लिया कि ‘ऐसी दीवानगी’ को शाहरुख पर ही फिल्माया जाएगा. ऋषि कपूर की आवाज़ बने कुमार सानू. सारा विवाद सुलझने के बाद ‘दीवाना’ रिलीज़ हुई. बम्पर हिट साबित हुई. फिल्म के गाने सबकी ज़ुबान पर चढ़ गए.

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‘बाज़ीगर’ के गाने ‘छुपाना भी नहीं आता’ में विनोद राठौड़. 

इस पॉइंट के बाद आने वाले कई सालों तक विनोद को पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ने वाली थी. अक्षय कुमार, संजय दत्त, गोविंदा के करियर परवान चढ़ रहे थे. इन सभी एक्टर्स में एक बात कॉमन थी – विनोद कुमार ने सभी के लिए गाने गाए. संजय दत्त की ‘खलनायक’ की रिलीज़ से पहले उनकी गिरफ्तारी हुई थी. ऐसे में पब्लिक सेंटीमेंट उनके साथ जुड़ गया. फिल्म आई और जनता ने उसे सिर-आंखों पर चढ़ा लिया. ‘चोली के पीछे’ चार्टबस्टर बन गया. ‘मैं हूं खलनायक’ नुक्कड़ों पर गाया जाने लगा. ऑटो रिक्शा में चौबीसों घंटे बजता. संजय दत्त की बॉडी लैंग्वेज के हिसाब से इस गाने में विनोद की आवाज़ ढल गई. ऋषि कपूर के साथ अब वो संजय दत्त की भी आवाज़ बनने वाले थे. 

साल 1993 में उन्होंने फिर शाहरुख के लिए गाने गाए. फिल्म थी ‘बाज़ीगर’ और इस बार म्यूज़िक कम्पोज़र थे अनु मलिक. फिल्म में उन्होंने ‘किताबें बहुत सी’, ‘ऐ मेरे हमसफर’ और ‘छुपाना भी नहीं आता’ जैसे गाने गाए. फिल्म के प्रिंट में ये गाने सभी ने देखे और सुने. एक गाना ऐसा भी था जो शाहरुख को पसंद था. विनोद राठौड़ की आवाज़ में. जिस पर अब्बास-मुस्तन ने कैंची चला दी थी. वो गाना था, ‘समझ कर चांद जिसको’. अब्बास-मुस्तन ने फिल्म की लंबाई का हवाला देते हुए गाना उड़ा दिया. वो एक और गाना उड़ाना चाहते थे, ‘छुपाना भी नहीं आता’. मगर शाहरुख ने ज़िद की. कि इस गाने का फिल्म में होना बहुत ज़रूरी है. अब्बास-मुस्तन को मनाकर ही दम लिया और रिज़ल्ट सबके सामने है. 

# ‘शीशे से शीशा टकराए, जो भी हो अंजाम’

नाइंटीज़ में विनोद राठौड़ की आवाज़ ने कई फिल्मों को यादगार अल्बम्स में तब्दील किया. ‘राजा बाबू’, ‘जीत’ और ‘हीरो नंबर 1’ उन्हीं में से कुछ नाम हैं. हालांकि उस दशक के अस्त होने के साथ एक चीज़ में भारी गिरावट आई – विनोद राठौड़ के हिस्से आने वाले अच्छे गानों में. विनोद बताते हैं कि उस पॉइंट पर उन्हें खुद पर डाउट होने लगा था. कि क्या वो अब कभी वापसी कर पाएंगे या बस उनके करियर में इतनी ही चमक थी. करियर की ढलान पर हाथ पकड़कर उठाने का काम किया इस्माइल दरबार ने. वो संजय लीला भंसाली की म्यूज़िकल फिल्म ‘देवदास’ के लिए म्यूज़िक बना रहे थे. 

फिल्म में शाहरुख और जैकी श्रॉफ पर गाना फिल्माया जाना था. जहां दोनों लोग मस्त होकर शराब के नशे में झूल रहे हैं. शाहरुख के हिस्सा गाने वाले थे उदित नारायण. जैकी के लिए विनोद की आवाज़ चाहिए थी. विनोद आम आदमी के सिंगर थे. उनके गाने कैची रहते. सुनते ही झट से कनेक्ट महसूस होता. ‘छलक छलक’ ने भी वही असर पैदा किया. इस्माइल ‘हम दिल दे चुके सनम’ के लिए भी विनोद के साथ काम कर चुके थे. वहां दोनों ने ‘ढोली तारो ढोल बाजे’ गाना रिकॉर्ड किया था. ‘शीशे से शीशा’ कैची और पॉपुलर गाना बना. ऐसे परिणाम दिए कि विनोद के मन से सारे शंका के बादल छंट गए. 

# आज कल कहां हैं?

साल 2018 में विनोद भोपाल में एक शो के लिए गए थे. वहां एक लोकल चैनल ने उनसे बात की. पूछा कि आप आजकल फिल्मों में क्यों नहीं गा रहे. उन्होंने जवाब दिया कि हाल ही में मैंने सलमान खान की फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड किया है. इस फिल्म के ज़रिए उनके जीजा आयुष शर्मा को लॉन्च किया जाएगा. तब फिल्म का नाम था ‘लवरात्रि’. विनोद ने बताया कि ‘ढोली थारो ढोल बाजे’ की तर्ज़ पर इस गाने को बनाया गया है. फिल्म आई मगर ये गाना सुनने को नहीं मिला. एक रिकॉर्ड किया गाना क्यों कभी रिलीज़ नहीं हुआ, इसका कहीं भी जवाब नहीं मिलता. 

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विनोद आजकल कॉन्सर्ट्स में बिज़ी रहते हैं.  

खैर, बीते कुछ सालों से विनोद पूरी तरह मेनस्ट्रीम हिंदी फिल्मों से दूर हो चुके हैं. बीच-बीच में अपने अल्बम रिलीज़ करते रहते हैं. कॉन्सर्ट करते हैं. रिएलिटी शोज़ में नज़र आ जाते हैं. मगर फिल्मों में गाने का उनका कोई इरादा नहीं. टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि आजकल अच्छी हिंदी फिल्में बनना बंद हो गई हैं. नतीजतन अच्छे गानों में भी गिरावट आई है. इस कारण उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बनाना ही बेहतर समझा. 

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