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गुलाल के डुकी बना की बातें अगर करंट मारती हैं तो असल के के मेनन को सुनिए

फ़िल्मों में कसे और कड़े डायलॉग बोलने वाला ये ऐक्टर असल जीवन में भी वैसा ही है.

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फोटो - thelallantop
के के मेनन. गुलाल का डुकी बना, शौर्य का ब्रिगेडियर प्रताप, सरकार का विष्णु. इनके डायलॉग बोलने के तरीके ने हम सभी को इम्प्रेस किया हुआ है. कई बार ऐसा भी हुआ है कि नेगेटिव कैरेक्टर या विलेन का रोल निभाने वाले के के की बातें सुन ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि उनके पाले में आकर खड़ा हुआ जाए या उसका साथ दें जो सही है. के के मेनन जिस दृढ़ता के साथ डायलॉग बोलते हैं वो कमाल का है. फ़िल्म गुलाल में मुंह पर रंग पोते खड़ी भीड़ के सामने जंग का आह्वान करते गुस्से से भरे के के मेनन अपने डायलॉग्स के दम पर हमेशा याद रखे जायेंगे. वो खुद कहते भी हैं कि सिनेमा युगों-युगों तक याद रखे जाने वाली चीज है. गुलाल में डुकी बना की भूमिका के बाद सरकार में विष्णु के रोल ने सब कुछ बराबर कर दिया. पहले उन्हें बताना पड़ता था कि वो के के मेनन हैं और ऐक्टिंग करते हैं. मगर सारकार के बाद लोग उन्हें जानने लगे. फ़िल्म सरकार में भले ही उनका कोई बहुत बड़ा रोल न रहा हो और न ही उनके हिस्से कोई भारी डायलॉग आये हों लेकिन उस फ़िल्म में उनकी आंखें ही सारा खेल करने को काफी थीं. गुलाल में हमें इन दोनों ही चीज़ों का कॉकटेल मिल चुका था. दिक्कत बस यही थी कि गुलाल उस कदर कमर्शियली सक्सेसफुल नहीं हो पाई जैसे सरकार. लिहाज़ा सरकार वो फ़िल्म बनी जिसके बाद के के मेनन को पूछा जाने लगा. हाल ही में उनकी फ़िल्म आई 'द ग़ाज़ी अटैक'. फ़िल्म में उनके काम की खूब तारीफ़ हो रही है. उस फ़िल्म के प्रमोशन के दौरान उन्होंने कुछ तीखी बातें कहीं. ऐसी बातें जो अमूमन एक फ़िल्म इंडस्ट्री का ही आदमी नहीं कहता पाया जा सकता. इसके पहले भी वो अपने मन की बात को काफ़ी बेबाक तरीके से, बिना घुमाए-फिराए कहते आये हैं. पढ़ते हैं, उनकी कुछ ऐसी बातें जो लगता है कि बिना किसी फ़िल्टर के कह दी गई हैं. उन्हें कहते वक़्त किसी भी तरह से उन्हें दबाया नहीं गया है और न ही किसी पर सवाल करने से के के डरे हैं. #1 kk om puri मेरे लिए ओमपुरी कभी मर ही नहीं सकता. वो बहुत बड़ा इंसान है. मुझे बस एक बात का दुख है. जो प्यार, इज्ज़त और स्नेह ओम पुरी को उनके मरने के बाद मिल रहा है, काश वो उन्हें उनके जीते जी मिल पाता. हिन्दुस्तानियों के साथ ये एक समस्या है. एक मनोवैज्ञानिक समस्या है कि हम लोगों को उनके जीते जी क्रेडिट नहीं देते. हम उनके मरने का इंतज़ार करते रहते हैं. हम उन्हें तब तक क्रेडिट नहीं देते जब तक उनकी पीआर मशीनरी बढ़िया न हो. अगर पीआर बढ़िया है तो फ़र्क नहीं पड़ता वो ऐक्टर कैसा है. हम उसपर प्यार बरसाते रहते हैं. ओम जी और नसीर जी जैसे लोगों पर तो हम ध्यान ही नहीं देते. कल को कोई मर जाए तो हम अचानक उसे याद कर-कर के उसे क्रेडिट देते फिरेंगे. हम उस देश में रहते हैं जहां जब सत्यजीत रे को लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला तो हमें ये अहसास हुआ कि हमारे बीच एक महान फ़िल्म-मेकर मौजूद है. #2 kk kunba मैं ये सोचकर टाइम वेस्ट नहीं करता कि मैं अंडर-रेटेड हूं या कुछ भी. मैं लोगों को नहीं बदल सकता. उनकी सोच को नहीं बदल सकता. जैसा कि मैंने कहा, एक मनोवैज्ञानिक समस्या है. हम ऐसे लोगों की भीड़ हैं जिसे सजावट पसंद है. परिवार, कुनबा पसंद है. एक ऑडियंस और इंडियन होने के नाते आप इन सब को कैसे रोक सकेंगे? नहीं रोक सकते. बहुत वक़्त पहले जब मैंने अपना करियर शुरू किया था, तो मैंने डिसाइड किया था कि जब मैं अपने घर से बाहर निकलूंगा तो कोई बैकग्राउंड स्कोर नहीं लेकर चलूंगा. कोई बॉडीगार्ड नहीं होगा. लोग मुझसे प्यार करते हैं. मुझे डर महसूस नहीं होता. मैंने बहुत पहले उस सब शूं-शा से किनारा कर लिया था. इसलिए मुझे कोई शिकायत नहीं है. मगर लोगों को वही सब अच्छा लगता है. मुझे सब नकली लगता है. #3 KK 300 400 crore पिछले 22 सालों से ऑडियंस कह रही है कि वो बदलेगी. लेकिन बदल नहीं रही. पहले स्मिता पाटिल आईं. फिर साथ में शबाना. अर्थ और अर्ध सत्य रिलीज़ हुई और कहा जाने लगा कि चीज़ें बदलेंगी. लेकिन कुछ नहीं बदला. कोई भी घटिया फ़िल्म 300 करोड़ 400 करोड़ कमा लेगी और क्रेडिट ले जायेगी. मेरी सभी मेनस्ट्रीम फ़िल्म-मेकर्स से ये अपील है कि आप 'दंगल' देखिए. वैसी फ़िल्म बनाइए. लेकिन दिक्कत ये है कि ऐसे कामों में बहुत मेहनत लगती है, जो लोग करना नहीं चाहते. वो चाहते हैं कि बस ऐसे ही 400 करोड़ आ जायें. आप राजू हिरानी या आमिर खान की तरह की फिल्में बना सकते हैं. मुझे नहीं लगता ये सब कभी भी बदलेगा. जिस दिन बदलेगा, मैं तब तक ज़िन्दा नहीं रहूंगा. लोग एक बार किसी फ़िल्म के बारे में अच्छा सुनते हैं तो वो उसे देखना चाहते हैं. मुंह से दिए गए रिव्यू बहुत मदद करते हैं. लेकिन वो सब बॉक्स ऑफिस के कलेक्शन में नहीं दिखता.

#4  kk dangal

मैं फ़िल्म इंडस्ट्री से निराश नहीं हूं. मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं. मैं ठीक हूं. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि मुझे कुछ ऐसे गर्व करने वाले मौके मिलें जिनमें मुझे इस इंडस्ट्री से जुड़े होने की खुशी हो. जब मैंने दंगल' देखी तो मुझे गर्व हुआ. जब मैंने 'लगे रहो मुन्नाभाई' देखी तो मुझे इस इंडस्ट्री का हिस्सा होने पर गर्व हुआ. मगर ये बार-बार और जल्दी-जल्दी क्यूं नहीं हो सकता? मुझे वो प्राउड करने वाले पल चाहिए. फिल्मों के बारे में भूल जाइये. इन बेहतरीन फिल्मों के बीच आप छुपना चाहते हैं क्यूंकि जो भी बेवकूफ़ी चल रही होती है, आप उसका हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं.

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#5 kk pink अगर छोटे रोल करने वालों को भी पहचान मिल रही है तो अच्छा है. लेकिन मुझे नहीं पता कि ये कब तक चलेगा. जैसे, मुझे जानना है कि 'पिंक' में काम करने वाली तीन लड़कियों का आगे क्या होता है. दिक्कत ये है कि मैं नाम नहीं ले सकता, लेकिन कब तक लोग अपनी देह के दम पर फ़िल्में ढोते रहेंगे? ये बेवकूफ़ी है. #6 kk menon web series मुझे अच्छा लगेगा कि मुझे किसी वेब सीरीज़ में काम करने को मिलेगा. मैं ज़रूर करना चाहूंगा. लेकिन मैं यही आशा करता हूं कि ये टीवी की ही तरह करप्ट न हो जाए. जब हम टीवी में काम करते थे तब सब कुछ प्योर था. एक घंटे के स्लॉट्स. स्टार बेस्टसेलर्स, छोटी कहानियां. जैसे छोटी फिल्में हों. लेकिन डेली सोप्स ने उन्हें पूरी तरह से करप्ट कर दिया. आई होप ऐसा कुछ वेब सीरीज़ के साथ न हो. #7 kk social media मैं सोशल नेटवर्क को मानता हूं. ये ज़रूरी है मगर ये एक शैतान सा भी है. कम्युनिकेशन अगर कम हो तो बुरा होता है मगर यदि ज़्यादा हो तो ये आपको मार देता है. मेंटली मार सकता है. मैं यही सब नहीं करना चाहता हूं. मैं क्या बोलूंगा? "सुनो! मेरी फ़िल्म रिलीज़ हो रही है." ये कहके मुझे क्या मिलेगा? इसके सिवा मैं और क्या कहूंगा? "मैं बहुत खूबसूरत हूं. मुझे शिमला और मनाली में देखो." मुझे वो करना है जो लोगों की जिंदगियां बदले. मैं क्यूं खुद को हर जगह फैलाता चलूं. #8 kk paisa देखिये ऐसा है कि मुझे पैसे से बैर नहीं है. न ही पैसे वालों से. मेरी प्रॉब्लम यही है कि मैं अपनी ज़िन्दगी सिर्फ पैसे कमाते हुए नहीं बिता सकता. क्यूंकि मैं उसको एक बेसिक चीज मानता हूं. तो मेरा जो फ़ोकस है वो ये है कि खाना, पैसा, और कुछ और चीज़ें हैं, वो खाने के बाद हजम हो जाती हैं. वो खतम हो जाती है. तो जब आप सिनेमा करते हैं, या कोई कला से सम्बंधित कोई चीज करते हैं तो आपका मकसद होना चाहिए कि वो मरणोपरांत भी लोगों के ज़हन में चलती रहें. आपका घर खतम हो जायेगा एक दिन. सारी चीज़ें खतम हो जायेंगी. आप खतम हो जायेंगे. जो आप काम करते हैं वो सालों तक चलता रहता है. तो इस मकसद से मैं काम करने की कोशिश करता हूं. ऐसा नहीं है कि हर बार मैं सफल होता हूं. सिर्फ पैसा ही कमाना है तो फिर डाका भी डाल सकते हैं. उसमें क्या है? #9 kk menon outsider मैं इनसाइडर, आउटसाइडर में विश्वास नहीं रखता. आप अन्दर से आएं, बाहर से आएं, ऊपर से या नीचे से कहीं से भी आएं, आपमें हुनर है तो आप एक्सेप्ट हो जाएंगे. हां ये अलग बात है कि एक जैसी ज़मीन न मिले. जैसे कि कुछ चीज़ें हैं जो हमारी इंडस्ट्री में अनिवार्य हो गई हैं आज-कल. जैसे कि तीन दिन का बिज़नेस. अब मेरा मानना ये है कि जब आप तीन दिन के बिज़नेस पर जब आप ध्यान देते हो तो आप सिनेमा नहीं बना रहे हो. सिनेमा जैसा कि मैंने कहा कि युगों-युगों तक रहने वाली चीज़ है. तो, ऐसी चीज़ें हैं हमारी इंडस्ट्री में. इसका ये मतलब नहीं कि आप आउटसाइडर हैं. आपकी कला की सराहना हो रही है और आप जो करना चाहते हैं वो आप कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि किसी की वजह से आपने कोई काम कर लिया. इसलिए मैं खुद को आउटसाइडर या इनसाइडर नहीं कह सकता. #10 kk menon bapauti मेरे मन में जो आता है मैं बोल देता हूं. मेरा मानना है कि 20 साल में मेरा इतना तो हक़ बनता है. मैं कटाक्ष भी करता हूं. इतना जनता हूं कि मेरी बातों से किसी को चोट नहीं पहुंचती है. इतना है कि मेरे कहने से अगर कोई बात बनती है उनकी तो भला होता है. ये अच्छी बात है. मैं स्पोर्ट्स इसलिए पसंद करता हूं कि आप उसमें जब तक परफॉर्म नहीं करते हो तब तक स्टार नहीं बन सकते. जब तक आप वो 100 रन या 5 विकेट नहीं लेते हो, आप किसी के बेटे हो, आपको निकाला जाएगा. आप जब वहां परफॉर्म करते हो, तब आप स्टार बनते हो. उस तरह का मापदंड हमारे यहां नहीं है. इंडस्ट्री में थोड़ी बहुत बपौती है. उसके ख़िलाफ़ मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा. वो किस्मत की बात है. लेकिन उस अवसर का इस्तेमाल अच्छा करें लोग तो अच्छी बात है.

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