
जया का फिल्मी करियर पीक पर कब पहुंचता और कब वो फिसलकर नीचे आ जाता है, दर्शकों को ये चीज़ भी बड़े अन-इंपॉर्टेंट तरीके से बताई जाती है.
अगर कोई फिल्म मेरे बारे में है, तो उसका हीरो कोई और कैसे हो सकता है. 'थलैवी' के साथ ये बड़ी कंफ्यूज़िंग चीज़ देखने को मिलती है. ये जयललिता की लाइफ पर बनी फिल्म है मगर इसकी कहानी अधिकतर मौकों पर MGR के बारे में बात करती है. फिल्म के एक बड़े हिस्से में जयललिता और MGR की लव स्टोरी दिखाई जाती है. जयललिता और MGR की प्रेम कहानी बड़ी प्रख्यात और विवादित रही. मगर फिल्म का एक बड़ा हिस्सा उस प्रेम कहानी को डेडिकेट किए जाने के बावजूद उस रिलेशनशिप की किसी कॉम्प्लेक्सिटी को नहीं दिखाया जाता.

फिल्म में MGR का रोल किया है अरविंद स्वामी ने. अरविंद ने इस रोल को बड़ी सहजता से निभाया है. कभी ओवर द टॉप नहीं जाने दिया.
जयललिता लार्जर दैन लाइफ कैरेक्टर थीं. उन्हें लोग वैसे ही देखते हैं. मगर फिल्म उस कैरेक्टर को लिमिट करने का काम करती है. करुणानिधी और MGR की दोस्ती से लेकर पॉलिटिकल राइवलरी तक को दिखाया जाता है. मगर जयललिता का कैरेक्टर इन दो किरदारों के बीच पिसकर रह जाता है. जयललिता एक ऐसी महिला थीं, जो तमिल फिल्म इंडस्ट्री से लेकर पॉलिटिक्स तक में फैली मिसोजिनी से लड़कर टॉप पर पहुंची थीं. इस बेसिक सी बात की रेलेवेंस तब जितनी थी, आज भी उतनी ही है. मगर डायरेक्टर ए.एल. विजय जयललिता के साथ हुई सनसनीखेज घटनाओं तक पहुंचने के चक्कर में उनकी उस स्ट्रगल को इग्नोर करके आगे बढ़ जाते हैं. अगर उन घटनाओं को ऐसे सीन्स में तोड़ा जाता, जिसके नेपथ्य में आपको जया का संघर्ष और पर्सनैलिटी दिखती, तब भी कोई बात होती. मगर यहां ऐसा कुछ नहीं होता.

विधान सभा में हुई वो घटना जिसके बाद जया मुख्यमंत्री बनने की शपथ लेती हैं.
ये फिल्म एक महिला के पुरुष शासित समाज से लड़कर खड़े होने की कहानी दिखाने का दावा करती है. मगर उस महिला की लड़ाई नहीं, सिर्फ कहानी दिखाती है. फिल्म में एक सीन है, जहां MGR की फिल्म से निकाल दिए जाने के बाद जया का किरदार प्रेस को बुलाकर MGR के कन्टेंपररी एक्टर शिवाजी गणेसन की तारीफ करती हैं. ताकि शिवाजी उन्हें अपनी फिल्म में कास्ट करें और MGR उनके पास वापस आ जाएं. इस सीन में जया का मैनेजर उनसे पूछता है कि MGR और शिवाजी में से बेहतर एक्टर कौन है. इसके जवाब में जया कहती हैं- 'मैं'. ये एक ऐसा सीन है, जहां आपको एक मिनट के लिए ही सही मगर जयललिता की रियल पर्सनैलिटी देखने को मिलती है. मगर जयललिता के व्यक्तित्व को समझने के लिए ये एक सीन नाकाफी साबित होता है.

फिल्म का वो सीन जिसमें जया खुद को शिवाजी गणेसन और MGR से अच्छा एक्टर बताती हैं.
'थलैवी' बड़े स्केल पर माउंट की हुई फिल्म लगती है. हर सीन और सीक्वेंस को भव्य बनाने की हरसंभव कोशिश की गई है. मगर जयललिता के किरदार को इतने सतही तरीके से दिखाया गया है कि ये सारी दिखावट खोखली लगने लगती है. 'थलैवी' एक पॉलिटिकल फिगर के बारे में बनी हुई फिल्म है. कंगना भी अपने आउटरेजियस पॉलिटिकल बयानों और अलाइमेंट के लिए जानी जाती हैं. मगर किसी फिल्म में उनकी परफॉरमेंस को उनके राजनीतिक झुकाव से अलग करके देखा जाना चाहिए. इस फिल्म में जयललिता के रोल में कंगना रनौत ने कमाल की लगी हैं. उन्हें जयललिता के कैरेक्टर में देखना सरियल एक्सपीरियंस है. मगर वो कैरेक्टर कभी अपने बूते खड़ा हुआ नहीं दिखता. उसकी लाइफ में सबकुछ दूसरों की वजह से हो रहा है. ऐसा लगता है कि जयललिता की बायोपिक में उनका सेकंड लीड रोल है. MGR के फिल्मी वर्ज़न MJR के रोज में अरविंद स्वामी सबसे वेल कास्टेड एक्टर लगते हैं. MGR अपने ट्रेड मार्क जेस्चर्स और स्टाइल के लिए जाने जाते हैं. उनके बोलने का सलीका भी बड़ा हटके था. मगर अरविंद उसे कॉपी करने की कोशिश नहीं करते. इस चीज़ ने उनके कैरेक्टर को कैरिकेचरिश होने से बचा लिया है. नासर ने एम. करुणानिधी का रोल किया है. फिल्म के हिंदी वर्ज़न में RM वीरप्पन उर्फ RNV का रोल किया है राज अर्जुन ने. इस किरदार को देखकर 'डर्टी पिक्चर' में इमरान हाशमी का निभाया इब्राहिम वाला कैरेक्टर याद आता है.

पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद विधान सभा में एंटर करतीं जयललिता.
'थलैवी' को देखते हुए मणिरत्नम की 'इरुवर' भी याद आती है. क्योंकि वो फिल्म MGR और करुणानिधी के फिल्मी दिनों से दोस्ती से लेकर पॉलिटिकल राइवलरी तक की कहानी दिखाती है. मगर उस फिल्म में इनकी कहानी के साथ-साथ तमिल नाडु की सामाजिक और राजनीतिक कहानी भी चलती रहती है. इस फिल्म में सिर्फ उन्हीं पॉलिटिकल इवेंट्स का ज़िक्र है, जिनसे फिल्म के मुख्य किरदारों का डायरेक्ट कनेक्शन है. बाकी चीज़ें रनिंग कमेंट्री में सुनने-देखने मिलती हैं. 'थलैवी' के एक सीन में करुणानिधी को MGR के लिए स्टेज से एक पोएट्री पढ़ने के अलावा उनके किसी फिल्मी कनेक्शन का ज़िक्र नहीं आता. करुणानिधी ने अपना करियर फिल्मों में लिखने से शुरू किया था. MGR के लिए भाषण भी वही लिखा करते थे. मगर इन चीज़ों को ये फिल्म पूरी तरह नज़रअंदाज कर देती है. ऐसा लगता है राइटर के.वी. विजयेंद्र प्रसाद ने डायरेक्टर विजय के साथ मिलकर कुछ पॉइंट्स तय किए, जिस पर फिल्म में बात करनी है. और बाकी पहलूओं को बिल्कुल ही अनछुआ छोड़ दिया.

एक रैली के दौरान अन्नादुराई, करुणानिधी और MGR.
अगर ओवरऑल बात करें, तो 'थलैवी' के पास भरपूर मौका था कि वो एक ऐसी बायोपिक बन सके, जिसकी मिसालें दी जातीं. मगर 'थलैवी' ये मौका बड़े मार्जिन से चूक जाती है. बाकी अगर आप ये फिल्म कंगना की परफॉरमेंस के लिए देखना चाहते हैं, तो निराश नहीं होंगे. मगर फिल्म देखने के बाद अरविंद स्वामी से इंप्रेस होकर आएंगे. अगर आप 'थलैवी' को जयललिता की बायोपिक मानकर देखेंगे, तो बोर नहीं होंगे. लेकिन उस पर्सनैलिटी के बारे में कुछ ऐसा पता नहीं चलेगा, जो आपको पहले से पता न हो.