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फ़िल्म रिव्यू: टोबा टेक सिंह

ऊपर दी गुड़-गुड़ दी एनेक्सी दी बेध्याना दी मूंग दी दाल ऑफ़ दी पाकिस्तान एंड हिन्दुस्तान ऑफ़ दी दुर्र फिट्टे मूंह!

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मंटो की कहानी पर बनी मूवी 'टोबा टेक सिंह' के एक दृश्य में पंकज कपूर. फिल्म ज़ी 5 नाम के स्ट्रीमिंग पोर्टल पर रिलीज़ की गई थी. अगस्त 2018 में.

बुल्ला कि जानां मैं कौन?

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चल बुलया चल ओत्थे चलिए जेत्थे सारे अन्ने (अंधे) न कोई साड्डी जात पेचाने, न कोई सानूं मन्ने.




बुल्ले शाह की इन दो नज़्मों के अलावा भी ‘टोबा टेक सिंह’ में बहुत कुछ है.
सआदत हसन मंटों और उसकी एक से ज़यादा कहानियां. पंकज कपूर और विनय पाठक की एक्टिंग, कुछ अच्छे डायलॉग्स, ढेर सारी संवेदनाएं, अक्लमन्दों का पागलपन और पागलों की अक्लमंदी.
Pagal एन के पंत, विश्वभानू, अजय कुमार, शेख नूर इस्लाम, विजय सिंह, दलजीत, चिराग वोहरा, गौरव द्वेवेदी, गगनदीप वासुदेव, जसपाल कौर देओल, रेखा विजयन जैसे सारे छोटे बड़े कलाकारों ने बड़ा खूबसूरत काम किया है. इसलिए सबका नाम लेना बनता है.


आप में से ज़्यादातर ने मंटो को पढ़ा होगा, उसकी टोबा टेक सिंह पढ़ी होगी. नहीं पढ़ी तो कोई बात नहीं, बस ये जान लीजिए कि इस अफसानानिगार ने ढ़ेरों अफ़साने लिखे. हर एक आलातरीन. लेकिन अगर वो वादाख्वार सिर्फ एक यही अफसाना – टोबा टेक सिंह, भर ही लिख लेता तो भी उसकी गिनती उर्दू के प्रगतिवादी लेखकों की पहली जमात में होती.
जब इतनी आलातरीन कहानी की स्क्रिप्ट बनती है तो टिप्पणी करने वालों को लगता है कि आधा काम तो पहले ही अच्छा हो गया. नींव तो पहले ही बन गई. अब ज़्यादा कुछ करना नहीं है फिल्म बनाने वालों को. लेकिन दरअसल है इसका ठीक उल्टा.
‘इंसाफ’! इस एक शब्द का वजन बहुत ज़्यादा होता है. ऑरिजनल कंटेंट के साथ इंसाफ कर पाने में ही फ़िल्मकार की एक फ़िल्मकार के तौर पर कामयाबी पिन्हा रहती है. और कहना न होगा कि केतन मेहता इसमें काफी हद तक कामयाब रहे हैं.
निर्देशक केतन मेहता अपनी पूरी टीम के साथ. निर्देशक केतन मेहता अपनी पूरी टीम के साथ.


टोबा टेक सिंह एक पागलखाने की कहानी है. जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान में रह गया. लेकिन इश्क की तरह ही पागलपन का भी कोई मज़हब नहीं होता. ये किसी पर भी ज़ाहिर हो सकता है. यूं इस पागलखाने में हर कौम के पागल हैं. एंग्लो इंडियन भी. सारे चैन-ओ-अमन से रहते हैं. जितने अमन से बाहर आलिम, फ़ाज़िल रहते हैं उससे कहीं ज़्यादा चैन-ओ-अमन से. लेकिन जब एक मुल्क का दो मुल्कों में बंटवारा होता है तो इस पागलखाने में भी अज़ाब आ जाता है. उसमें रह रहे पागलों के लिए ‘बंटवारा’ शब्द को समझ पाना इतना मुश्किल हो जाता है कि कुछ पागलों का पागलपन इकलौती इस बात से ही बढ़ने लगता है.
अगर आप इस प्लॉट को विद्या बालन की फिल्म बेगम जान के प्लॉट से कंपेयर कर रहे हैं तो गुज़ारिश है कि न करें. यहां बातें कुछ अलहदा हैं.
जिस पागलखाने में हेड बनकर कोई नहीं जाना चाहता वहां मंटो जाता है. उसे कहानियों की तलाश है, और उसे कहानियां मिलती भी हैं. मंटो का किरदार विनय पाठक ने निभाया है. जिस पागलखाने में हेड बनकर कोई नहीं जाना चाहता वहां मंटो जाता है. उसे कहानियों की तलाश है, और उसे कहानियां मिलती भी हैं. मंटो का किरदार विनय पाठक ने निभाया है.


तो तय होता है कि सारे मुस्लिम यहीं रहेंगे और सारे हिंदू और सिख पागलों को भारत भेजा जाएगा. एंग्लो इंडियन पागलों को लेकर दोनों मुल्क कन्फ्यूज़ हैं.
बहरहाल इस पागलखाने में एक सिख भी है – बिशन सिंह. पागल होने से पहले कभी वो ज़हीन भी था. जब वो ज़हीन था तो अपने गांव ‘टोबा टेक सिंह’ में रहता था. यूं अब जबकि वो पागल है तो उसे पागल खाने में सब टोबा टेक सिंह ही कहते हैं. इस टोबा टेक सिंह का किरदार पंकज कपूर ने निभाया है. और क्या खूब निभाया है.
पंकज कपूर की एक्टिंग टोबा टेक सिंह को एक लेवल और ऊपर उठा देती है. पंकज कपूर की एक्टिंग टोबा टेक सिंह के किरदार को एक लेवल और ऊपर उठा देती है.


यही इस फिल्म की कहानी का बेसिक प्लॉट है. लेकिन इसमें मंटो की कुछ और कहानियों को भी गूंथा गया है. जैसे ‘खोल दो’. जिसमें बंटवारे के दौरान रेप का शिकार हुई लड़की (किरदार गगनदीप ने निभाया है) अपने होश ओ हवस इस हद तक खो देती है कि ‘खोल दो’ कहते ही अपनी शलवार का नाड़ा खोल देती है. एक पत्थर दिल भी उसके दर्द से कराह उठता है.
ये एक घंटे से कुछ ज़्यादा की एक शॉर्ट फ़िल्म सरीखी है. हर पागल ने अपना किरदार बखूबी निभाया है. विनय पाठक, सआदत हसन मंटो बने हैं और दिन भर के ‘टोबा टेक सिंह’ को रात को शराब पीते हुए वर्कों में उतार देते हैं.
1947 के बैकड्रॉप में बनी इस फिल्म में पागलखाने वगैरह के सेट अच्छे हैं, और हमें वाकई एक पीरियड फिल्म का एहसास दिलाते हैं. एक जगह पर 1947 के बंटवारे की रियल फुटेज का इस्तेमाल किया गया है, जो न होती तो बेहतर था. दो नज्में जिनकी बात शुरुआत में की गई थी, बैकग्राउंड में चलती हैं, और फिल्म की कंटीन्यूटी में कोई असर नहीं डालतीं.
गगनदीप द्वारा निभाया गया एक अनाम लड़की का किरदार मंटो की एक दूसरी कहानी, 'खोल दो' से लिया गया है. गगनदीप द्वारा निभाया गया एक अनाम लड़की का किरदार मंटो की एक दूसरी कहानी, 'खोल दो' से लिया गया है.


‘अति’ की चाह करने वाले ये फिल्म स्किप कर सकते हैं क्यूंकि ये कमोबेश एक दस्तावेज़ सरीखी है, जो धीरे-धीरे खुलती है.
फिल्म ज़ी 5 नाम के स्ट्रीमिंग पोर्टल पर रिलीज़ की गई है. अपनी ज़िंदगी में से एक घंटा इस बात को देखने के लिए गुज़ारा जा सकता है कि कैसे पागल, ज़हीनों को ज़हीनियत का सबक सिखाते हैं. फिल्म इस चीज़ को समझने के लिए भी रेकमंड की जानी चाहिए कि क्यूं पंकज कपूर, पंकज कपूर हैं.


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