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सआदत हसन मंटो को जानना समझना है तो इससे बढ़िया मौका नहीं मिलेगा

मंटो एक्सपर्ट बनने का लल्लनटॉप तरीका

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मंटो को जानने के लिए उनकी कहानियों से बेहतर ज़रिया कोई नहीं.
"ज़माने के जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं, अगर आप उससे वाकिफ़ नहीं हैं तो मेरे अफसाने पढ़िये और अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि ज़माना नाक़ाबिले-बर्दाश्त है." ये कहने का माद्दा जो शख्स रखता था उसका नाम है और रहती दुनिया तक रहेगा 'सआदत हसन मंटो.' आज मंटो की बरसी पर हम आपको गिनती की चीजें बता दे रहे हैं. इनको पढ़ डालो, मंटो एक्सपर्ट बन जाओगे. और हमको थैंक्यू बोलने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमारा तो दिल ही कुछ ऐसा है. तो स्टार्ट करते हैं. 1. लिहाफ के इर्द गिर्द मंटो के ऊपर इनके टाइम के लोगों ने ढेर सारा लिखा है. इनकी लाइफ की फिलॉसफी और इनका लिट्रेचर समझने के लिए जरूरी है कि थोड़ा उनको पढ़ लिया जाए. इनमें से ज्यादातर उनके रहते लिखा गया. जैसे मोहम्मद असदुल्लाह ने लिखा है, मंटो मेरा दोस्त और उपेंद्र नाथ अश्क ने लिखा है मंटो मेरा दुश्मन. इस्मत चुगताई ने 'लिहाफ के इर्द गिर्द' नाम से मंटो पर जो लिखा है, उसको पूरा चाट मारो, कसम से इंसान हो जाओगे. क्योंकि इस्मत-मंटो बिल्कुल एकदूसरे के जैसे थे. दोनों अश्लील और बदनाम लेखकों के रूप में मशहूर थे. दोनों पर अश्लीलता लिखने का मुकदमा हुआ था. कई बार दोनों की अदालत में साथ साथ पेशी होती थी और साथ में बरी हो जाते थे. इस लेख का एक अंश पढ़िए और मंटो पर गूढ़ ज्ञान पाने के लिए पूरा लेख पढ़िए, लिंक नीचे मिलेगा. मंटो से फोन पर मालूम हुआ, उन पर मुकदमा चला है. उसी कोर्ट में, उसी रोज उसकी भी पेशी है. फिर सफिया और मंटो दौड़े आये. मंटो एकदम खुश-खुश जैसे किसी ने विक्टोरिया-क्रॉस दे दिया हो. मैं दिल में बहुत शर्मिन्दा थी और ऊपर-ऊपर बहादुरी जता रही थी. मगर मंटो से मिलकर शाहिद की भी ढांढस बँध गयी और मुझे भी बड़ी तसल्ली हुई. दिल में तो धड़धड़ी हो रही थी. मगर मंटो ने तो ऐसी हिम्मत बढ़ाई कि मेरा भी डर निकल गया. “अरे एक ही तो मारके की चीज़ लिखी है आपने. अमाँ शाहिद, तुम भी यार क्या आदमी हो? यार, तुम भी चलना. तुमने जाड़ों का लाहौर नहीं देखा. खुदा की कसम हम तुम्हें अपना लाहौर दिखायेंगे. क्या तीखी सर्दी पड़ती है. तली हुई मछली, अहहह! व्हिस्की के साथ! आतिशदान में दहकती हुई आग, जैसे प्यार करने वालों के दिल जल रहे हों, और ब्लड रेड माल्टे! अहा, जैसे महबूबा का चुम्बन!” “अरे चुप करे मंटो साहब” सफिया नरवस होने लगीं.

जब चला मंटो पर अश्लीलता का मुकदमा, ज़ुबानी इस्मत चुगताई

 2. टोबा टेक सिंह ये मंटो की सबसे फेमस कहानी है. पागलों की कहानी, जो अच्छे खासे दिमाग वालों की चैन चेन तोड़ दे. इनकी ज्यादातर कहानियां भारत पाकिस्तान विभाजन का दर्द उकेरती हैं, उनमें से एक ये है. उसका एक हिस्सा पढ़ो. लेकिन बाद में ऑफ दी पाकिस्तान गवर्नमेंट की जगह ऑफ दी टोबा टेकसिंह गवर्नमेंट ने ले ली और उसने दूसरे पागलों से पूछना शुरू किया कि टोबा टेकसिंह कहां है जहां का वो रहने वाला है. लेकिन किसी को भी नहीं मालूम था कि वो पाकिस्तान में है या हिन्दुस्तान में. जो यह बताने की कोशिश करते थे वो खुद इस उलझाव में गिरफ्तार हो जाते थे कि स्यालकोट पहले हिन्दुस्तान में होता था, पर अब सुना है कि पाकिस्तान में है. क्या पता है कि लाहौर जो अब पाकिस्तान में है कल हिन्दुस्तान में चला जायगा या सारा हिन्दुस्तान ही पाकिस्तान बन जायेगा. और यह भी कौन सीने पर हाथ रखकर कह सकता था कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दोनों किसी दिन सिरे से गायब नहीं हो जायेंगे. पूरी कहानी- टोबा टेक सिंह 3. खोल दो उसी बंटवारे से जिसने तकरीबन 5 लाख जिंदगियां लील ली थीं, मंटो की ये कहानी निकलती है. दरबदर होने के भभ्भड़ में एक लड़की अपने परिवार से बिछड़ जाती है. उसके साथ कई दिनों तक बलात्कार होता है. कहानी का एक हिस्सा: पूरे तीन घंटे बाद वह ‘सकीना-सकीना’ पुकारता कैंप की खाक छानता रहा, मगर उसे अपनी जवान इकलौती बेटी का कोई पता न मिला. चारों तरफ एक धांधली-सी मची थी. कोई अपना बच्चा ढूंढ रहा था, कोई मां, कोई बीबी और कोई बेटी. सिराजुद्दीन थक-हारकर एक तरफ बैठ गया और मस्तिष्क पर जोर देकर सोचने लगा कि सकीना उससे कब और कहां अलग हुई, लेकिन सोचते-सोचते उसका दिमाग सकीना की मां की लाश पर जम जाता, जिसकी सारी अंतड़ियां बाहर निकली हुईं थीं. उससे आगे वह और कुछ न सोच सका. सकीना की मां मर चुकी थी. उसने सिराजुद्दीन की आंखों के सामने दम तोड़ा था, लेकिन सकीना कहां थी , जिसके विषय में मां ने मरते हुए कहा था, "मुझे छोड़ दो और सकीना को लेकर जल्दी से यहां से भाग जाओ." 4. ठंडा गोश्त ये मंटो की सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक है. पूरी कहानी नीचे लिंक में पढ़िए. उसका एक हिस्सा ये है. ईशर सिंह ने कुछ कहना चाहा, मगर कुलवंत कौर ने इसकी इजाज़त न दी: ‘‘क़सम खाने से पहले सोच ले कि मैं भी सरदार नेहाल सिंह की बेटी हूं… तिक्का बोटी कर दूंगी अगर तूने झूठ बोला… ले अब खा वाहे गुरू की क़सम… क्या इसकी तह में कोई औरत नहीं…?’’ ईशर सिंह ने बड़े दुख के साथ इस बात (स्वीकारोक्ति) में सर हिलाया. कुलवंत कौर बिल्कुल दीवानी हो गई. उसने लपक कर कोने में से किरपान उठाई, म्यान को केले के छिल्के की तरह उतारकर एक तरफ फेंका और ईशर सिंह पर वार कर दिया.

पूरी कहानी- ठंडा गोश्त

5. मैडम डिकॉस्टा ये एक ऐसी खुशमिजाज़ पड़ोसन की कहानी है, जिनके खोपरे का तेल पहले पेट और फिर दिल छू जाता था. वो उस तेल से बता देती थीं कि प्रेग्नेंट औरत को लड़का होगा या लड़की. उसका अंश पढ़ो. बाकी कहानी लिंक में. एक दिन, जब मैडम डिकॉस्टा मेरे बच्चे के जन्म का इन्तज़ार कर-कर के थक-हार चुकी थी, मैंने उसे बाहर फाटक के पास अपने दो बड़े लड़कों, एक लड़की और पड़ोस की दो औरतों के साथ बातें करते हुए देखा. मैं यह सोच कर मन-ही-मन बहुत कुढ़ी कि वह मेरे बच्चे के लेट हो जाने के बारे में बातें कर रही होगी. चुनांचे जब उसने घर का रुख़ किया तो मैं जंगले से परे हट गयी. पर उसने मुझे देख लिया था. सीधी ऊपर चली आयी. मैंने दरवाज़ा खोल कर उसे बाहर बालकनी ही में मूढ़े पर बैठा दिया. मूढ़े पर बैठते ही उसने बम्बई की हिन्दुस्तानी और ग्रामर-रहित अंग्रेज़ी में कहना शुरू किया- ‘तुमने कुछ सुना?… मातमा गांडी ने क्या किया?… साली कांग्रेस एक नया कानून पास करना मांगटी है. मेरा ड्रिक ख़बर लाया है कि बॉम्बे में प्रोहिबीशन हो जायगा…. तुम समझता है, प्रोहिबीशन क्या होता है?’ पूरी कहानी- मैडम डिकॉस्टा