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फिल्म रिव्यू: अक्टूबर

वरुण धवन की फिल्म जिसे आप थोड़ी और लंबी कर देना चाहते हैं.

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वरुण धवन और बनिता संधू की फिल्म 'अक्टूबर' का पोस्टर और एक सीन.
फिल्म का नाम 'अक्टूबर'. हीरोइन का नाम शिउली. शिउली एक फूल है. हरसिंगार को बंगाली भाषा में शिउली कहते हैं. कम समय के लिए खिलता है. खिलने का मौसम अक्टूबर में आता है.
फिल्म 'अक्टूबर' की कहानी उतनी ही है, जितनी ट्रेलर में दिखाई गई है. ये पूरी फिल्म बस एक ही लाइन पर बनी है.
'व्हेयर इज़ डैन?'
यानी डैन कहां है? डैन यानी दानिश वालिया यानी वरुण धवन का कैरेक्टर. जिसका पता पूछती हैं शिउली. शिउली यानी फिल्म की हीरोइन बनिता संधू. एक लाइन से कितना कुछ कहा या किया जा सकता है, इस फिल्म को देखकर ही पता चलता है.
होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करके कुछ बच्चे एक फाइव स्टार होटल में ट्रेनिंग लेने जाते हैं. इसी ग्रुप के दो बच्चे फिल्म अक्टूबर की कहानी की अहम कड़ी हैं. डैन और शिउली. डैन अपने काम से हमेशा इरिटेटेड रहता है. क्योंकि वो किसी के लिए काम नहीं करना चाहता, अपना रेस्टॉरेंट खोलना चाहता है. शिउली एक अच्छे स्टूडेंट की तरह अपनी ट्रेनिंग ले रही होती है. एक ही कॉलेज में पढ़ने के अलावा इन दोनों में कोई कनेक्शन नहीं है. लेकिन एक बड़ी घटना के बाद सब कुछ बदलने लगता है. और उस बदलाव का कारण है शिउली के मुंह से निकला एक सेंटेंस. वही, जो आपने ऊपर पढ़ा.
फिल्म के एक सीन में वरुण धवन.
फिल्म  में वरुण धवन का किरदार एक कामचोर ट्रेनी का है.

'अक्टूबर' कहानी के मामले में कोई बहुत कमाल की फिल्म नहीं है. लेकिन उस कहानी को जिस तरह से पर्दे पर उतारा गया है, वो प्रोसेस बहुत खूबसूरत है. फिल्म के साउंडट्रैक में यूं तो पांच गाने हैं लेकिन फिल्म में बस शांतनू मोइत्रा का बनाया बैकग्राउंड स्कोर ही चलता रहता है. लेकिन ये कहीं भी खलता नहीं है न ही बोझिलता पैदा करता है. फिल्म की कहानी के साथ कदम मिलाता हुआ चलता है. लेकिन अगर गानों की बात करें, तो फिल्म की रिलीज़ से पहले ही इसके सारे गाने रिलीज़ कर दिए गए थे. वैसे तो सभी गानों की अपनी-अपनी स्पेशैलिटी है लेकिन राहत फतेह अली खान का गाया 'तब भी तू मेरे संग रहना' लूप पर सुना जा सकने वाला है.

फिल्म में एक दिक्कत है. वो है इसकी रफ्तार. फिल्म शुरू में तो सही गति से चल रही होती है लेकिन हॉस्पिटल में फिल्माए गए सीन फिल्म को स्लो करते हैं. इसका मतलब ये नहीं कि वो सीन आपको उबाते हैं या फिल्म की तारतम्यता को खराब करते हैं. लेकिन फिल्म से आपको जो समझाने की कोशिश की जा रही है, वो इन्हीं सीन्स की वजह से संभव हो पाता है. 'जीवन क्या है?' अगर आपको इस लाइन के बारे में सोचना है, तो थोड़ा स्लो तो जाना ही पड़ेगा है. हर किए और कहे की डीटेलिंग करनी ही पड़ेगी. ये आप अपने साथ करके ट्राय करते हैं. और वो माफ है.
फिल्म के एक सीन में वरुण और बनिता.
फिल्म  अक्टूबर की शूटिंग दिल्ली और मनाली  में हुई है.

'अक्टूबर' में कलाकार तो कई हैं लेकिन हीरो है स्टोरी. और उसका एक्ज़िक्यूशन. ट्रेलर देखकर पता लगता है कि फिल्म बिलकुल सीरियस होगी. लेकिन यहां आप सरप्राइज़ होते हैं. टफ से टफ सिचुएशन में फिल्म को आपको गुदगुदा देती है. उसके लिए कोई अलग से एफर्ट नहीं किया जाता, वो लिखा ही वैसे गया है. इसे जूही चतुर्वेदी ने लिखा है. जूही इससे पहले भी शूजीत सरकार के लिए 'विक्की डोनर' और 'पीकू' जैसी फिल्में लिख चुकी हैं. ये फिल्म मटिरियलिज़्म और प्रैक्टिकैलिटी से बहुत दूर है. प्रैक्टिकैलिटी से दूर होने का मतलब है आपको हर बात में प्रैक्टिकल होने की जरूरत नहीं. कुछ चीज़ों को 'गो विद द फ्लो' वाले मोड में छोड़ दीजिए. वो वैसे ही मजा देंगी. ये फिल्म वो चीज़ बताती है.
फिल्म के एक सीन में बनिता संधू.
फिल्म के बनिता संधू का किरदार एक साउथ इंडियन लड़की का है.

वरुण धवन की पिछली फिल्म 'जुड़वा 2' थी. लेकिन थोड़ा और पीछे जाने पर पता लगता है कि उनके खाते में 'बदलापुर' जैसी फिल्म भी है. इसलिए काबिलियत वाले मसले को ज़्यादा छेड़ने की जरूरत नहीं है. जब आप अक्टूबर देखते हैं, तो वरुण इसमें ठीक-ठाक से लगते हैं. हाल ही में कॉलेज से निकले बच्चों की बाल-सुलभ चंचलता और बेफिक्री उनमें दिखती है. सीरियस वाले पार्ट में भी उनका काम सही है. लेकिन इस फिल्म का नेचर ऐसा है कि हल्की लाइनों से सीरियस टोन को थोड़ा न्यूट्रलाइज़ किया गया है. वरुण धवन उन सीन्स में थोड़े से कम मेच्योर लगते हैं. लेकिन वरुण की प्रोसेसिंग आपको दिखाई देती है. बनिता संधू का फिल्म में ज़्यादा समय हॉस्पिटल में ही गुज़रा है, जहां आप उनके लिए बुरा फील करते हैं. आपको उनका कैरेक्टर कुछ फील करवा पा रहा है, इसका मतलब साफ है कि डायरेक्टर ने उनके लिए जो प्लान किया था वो सही से हो गया है. दो और कैरेक्टर हैं इस फिल्म में, एक तो शिउली की मां, जो आईआईटी की प्रोफेसर हैं और दूसरी शिउली की बेस्ट फ्रेंड. ये दोनों कैरेक्टर तकरीबन लास्ट तक रहते हैं, और कायदे से रहते हैं.
फिल्म के एक सीन में शिउली की मां बनी गीतांजली राव.
फिल्म के एक सीन में शिउली की मां बनी गीतांजली राव. गीतांजली इस फिल्म में आईआईटी की प्रोफेसर बनी हैं.

'अक्टूबर' कोई ऐसी फिल्म नहीं है, जिसमें भरपूर एंटरटेनमेंट है. लेकिन उसमें जो है, उसे खुद देखकर महसूस किया जा सकता है. ये फिल्म आपका थोड़ा नज़रिया बदलेगी, थोड़ा टोन डाउन करेगी और थोड़ा सा संवेदनशील हो जाने की गुज़ारिश करेगी. आगे आप जैसा सोचें.


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