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मुक्ति भवन : एक होटल जहां लोग मरने के लिए जाते हैं

भारत में इसी नाम की फिल्म 7 अप्रैल को रिलीज होने जा रही है.

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फिल्म के एक सीन में एक्टर आदिल हुसैन और ललित बहल.
कुछ फ़िल्में आती हैं. जिनका बनना सुनाई नहीं देता. लेकिन एक रोज़ वो बस दिख जाती हैं. इनके ट्रेलर या पोस्टर के साथ दो पत्तियां दिखती हैं. जो बताती हैं, इस फिल्म ने बाहर कहीं कई इनाम जीते होंगे. एक ऐसी ही फिल्म और है. 'मुक्ति भवन' अगर आपको नाम से ये लगे कि ये मृत्यु के आसपास होगी तो आप सही हैं. इनाम की जो बात कही वो ये कि इस फिल्म को यूनेस्को का भी अवॉर्ड मिला है, अवॉर्ड का नाम कुछ ऐसा टेढ़ा है कि मुझसे लिखते नहीं बन रहा, कोई Enrico Fulchignoni जैसा लिखा है.
ये 77 बरस के दयानंद की कहानी है. जो एक रोज़ अपने परिवार से कहते हैं कि उन्हें लगता है उनका आख़िरी समय आ गया है. लेकिन वो शहर में नहीं मरना चाहते बल्कि बनारस में जाकर मरना चाहते हैं. उनके बेटे राजीव को तमाम चीजें किनारे कर उन्हें बनारस छोड़ने जाना पड़ता है.
वहां वो मुक्ति भवन नाम की जगह में रुकते हैं. ये ऐसी जगह है जहां बनारस में मरने के इच्छुक लोग आकर रहते हैं. शेष क्या हुआ आप फिल्म और ट्रेलर में देखिएगा. ट्रेलर हम दिखाते हैं जो अभी आया है. फिल्म देखने के लिए आपको अप्रैल के सात दिन बीतने का वेट करना होगा. आदिल हुसैन भी हैं फिल्म में. जो राजीव का रोल कर रहे हैं. https://youtu.be/1A1Sp6-GcmI वैसे मुक्ति भवन है क्या ये भी जानिए. लोगों में बनारस में मरने का कितना चाव है ये आपको पता ही है. वहां की नदी, मंदिर, शंकर जी से कनेक्शन, और मोक्ष वाली बात लोगों में बहुत सा धार्मिक चार्म भर देती है. अच्छे शब्दों में इसे मोक्ष की लालसा भी कह देते हैं. 'काशी करवट' टर्म तो सुना होगा आपने? तो बाहर से लोग मरने बनारस आते हैं, बनारस में मरने को जगह भी तो चाहिए? तो एक होटल लेते हैं. Mukti bhavan 2 ऐसा एक होटल है मुक्ति भवन. लगभग 15 हजार के आसपास लोग इस होटल में मर चुके हैं. बनारस में ये जगह गिरजाघर चौराहा के पास है. बताते हैं इस जगह को 1958 में किन्हीं विष्णु बिहारी डालमिया ने बनवाया था. 10 से 12 कमरे वाले इस होटल में रहने को बस 15 दिन मिलते हैं. फिर आप जानो आपका राम जाने. 15 दिन तक वो जरुर आपका ख्याल रख लेते हैं.
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