ये 77 बरस के दयानंद की कहानी है. जो एक रोज़ अपने परिवार से कहते हैं कि उन्हें लगता है उनका आख़िरी समय आ गया है. लेकिन वो शहर में नहीं मरना चाहते बल्कि बनारस में जाकर मरना चाहते हैं. उनके बेटे राजीव को तमाम चीजें किनारे कर उन्हें बनारस छोड़ने जाना पड़ता है.वहां वो मुक्ति भवन नाम की जगह में रुकते हैं. ये ऐसी जगह है जहां बनारस में मरने के इच्छुक लोग आकर रहते हैं. शेष क्या हुआ आप फिल्म और ट्रेलर में देखिएगा. ट्रेलर हम दिखाते हैं जो अभी आया है. फिल्म देखने के लिए आपको अप्रैल के सात दिन बीतने का वेट करना होगा. आदिल हुसैन भी हैं फिल्म में. जो राजीव का रोल कर रहे हैं. https://youtu.be/1A1Sp6-GcmI वैसे मुक्ति भवन है क्या ये भी जानिए. लोगों में बनारस में मरने का कितना चाव है ये आपको पता ही है. वहां की नदी, मंदिर, शंकर जी से कनेक्शन, और मोक्ष वाली बात लोगों में बहुत सा धार्मिक चार्म भर देती है. अच्छे शब्दों में इसे मोक्ष की लालसा भी कह देते हैं. 'काशी करवट' टर्म तो सुना होगा आपने? तो बाहर से लोग मरने बनारस आते हैं, बनारस में मरने को जगह भी तो चाहिए? तो एक होटल लेते हैं.

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