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मूवी रिव्यू-थॉर : लव एंड थंडर

कहानी थॉर की है तो फिल्म में थॉर की उदासियां भी मिलती जाती हैं. जिन्हें टिपिकल थॉरीय पराक्रम की फुहारों से लाइट बनाए रखने की कोशिश होती है.

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थॉर की चौथी फिल्म में गोर, द गॉड बुचर पारंपरिक विलेन है

यदि आपका विश्वास है कि एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी ईश्वर है, जिसने विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएं कि उसने यह रचना क्यों की? कष्टों और संतापों से पूर्ण दुनिया – असंख्य दुखों के शाश्वत अनंत गठबंधनों से ग्रसित! एक भी व्यक्ति तो पूरी तरह संतुष्ट नहीं है.

भगत सिंह ने ये बात 'मैं नास्तिक क्यों हूं' में लिखी थी. लगभग ऐसे ही विचार की ज़मीन तैयार करते हुए 'थॉर : लव एंड थंडर' शुरू होती है. भगत सिंह उस लेख में एक जगह कहते हैं, 'मैं तो उस सर्वशक्तिमान परम आत्मा के अस्तित्व से ही इनकार करता हूं.' भगत सिंह हमारे हीरो हैं, वो भगवान को नहीं मानते थे. थॉर की चौथी फिल्म में गोर, द गॉड बुचर पारंपरिक विलेन है. वो देवताओं को मानता था, देवताओं को अपने दुःख का कारण जानता था इसलिए वो तमाम देवताओं को मार देना चाहता था. अपने मंसूबे को पूरा करने के लिए वो एक-एक कर देवताओं को निर्ममता से मारना शुरू कर देता है.

दूसरी ओर थॉर है. अतीत के दुखों को झेलता हुआ. प्रेम में प्रेम से भागता हुआ. और बार-बार के दुखों से उकताकर ब्रम्हांड की लड़ाइयों में समय काटता. गार्डियंस ऑफ़ गैलेक्सी के साथ मदद मांगने वालों की ओर से लड़ते हुए थॉर अपने दिन बिता रहा होता है. इसके बाद जो कुछ भी होता है, वो बताना मात्र और मात्र स्पॉइलर होगा, इसलिए कहानी के नए हिस्से बताना यहीं थमता है, अब हम सिर्फ फिल्म के फील पर बात करेंगे.

कहानी थॉर की है. माहौल ऐसा बनाया गया है, जो आपको ब्लिप के बाद पसरी उदासी से घेरे रखता है. चूंकि कहानी थॉर की है तो फिल्म में थॉर की उदासियां भी मिलती जाती हैं. जिन्हें टिपिकल थॉरीय पराक्रम की फुहारों से लाइट बनाए रखने की कोशिश होती है.

यही वो समय है, जब फिल्म के अच्छे-बुरे पहलुओं की बात कर लें.

थॉर: लव एंड थंडर’ में आई थॉर का चौथा पार्ट है. इस फ़िल्म से क्रिस हेम्सवर्थ
अच्छे पहलू 

1. कोर्ग, कोर्ग और कोर्ग : रैग्नारॉक में चंद डायलॉग्स के साथ फैन फैवरेट बने इस किरदार के पास कहने-करने को इस फिल्म में भी बहुत कुछ था. वो एक बार फिर अपनी बातों और कामों से ध्यान खींचते रहते हैं.
2. डॉ. जेन फ़ोस्टर : ट्रेलर में आपने उन्हें माइटी थॉर के तौर पर जितना देखा, कहानी उससे कहीं ज़्यादा और फिल्म के फ्लो को मेंटेन रखने के लिए आवश्यक है. विज्ञान और जादू की कई थ्योरीज बताती आईं जेन फ़ोस्टर इस बार भी दोनों के साथ कमाल करती दिखीं, जो सिनेमाहॉल में हल्ला मचवाने के लिए काफी थीं. यही वजह रही कि आप उन्हें माइटी थॉर मान लेने को भी मजबूर होते हैं, या कम से कम उन्हें डॉक्टर जेन फोस्टर कहने के लिए. ऐसा क्यों ये फिल्म देखकर समझ आएगा. 
3. गोर, द गॉड बुचर : दृढ निश्चयी विलेन के तौर पर और ताकतों के साथ क्रिश्चियन बेल फिल्म पर छाए रहते हैं. जिस तरह की रंगहीन दुनिया और रंगहीन शक्तियों से वो भय का माहौल बनाते हैं. वो अच्छी एक्टिंग के बिना काफी भोथरा नज़र आता. यहीं पर क्रिश्चियन बेल पर लगाये सारे डॉलर्स वसूल होते हैं. कई बार आपको लगता है कि तमाम उछलकूद के बीच एक्टिंग सिर्फ इसी पक्ष से होती नज़र आ रही है. 
4. स्टॉर्मब्रेकर : डूबते तारे की शक्तियों, कॉस्मिक धातु उरू और ग्रूट के बाहुओं से बने स्टॉर्मब्रेकर का थॉर से इमोशनल कनेक्ट भी फिल्म में दिखता है. MCU के लिहाज से म्योनिर अगर आपको अब भी थॉर का मूल हथियार लगता है तो गिल्ट में भरने के लिए तैयार रहें. फिल्म के कुछ हंसाने वाले सीन स्टॉर्मब्रेकर के हवाले से आते हैं. साथ ही इस बार स्टॉर्मब्रेकर की और खूबियां खुलकर सामने आती हैं. एक बार फिर वही बात कि जिन पर बात करना स्पॉइलर होगा. 
5. जाने-पहचाने चेहरे : MCU जिस स्टेज पर आ पहुंचा है, कई दुनिया एक साथ खुल जाती हैं. कई नए चेहरे दिखते हैं, लेकिन 'थॉर : लव एंड थंडर' इस मामले में हल्की फुहार देती है कि कई जाने-पहचाने चेहरे कम लेकिन संतुष्ट करने की मात्रा में दिखते हैं. इस छोटी बात से बहुत फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन फील के मामले में बहुत सूदिंग लगता है.

बुरे पहलू 

1. ये फिल्म थॉर की चारों फिल्मों में सबसे कमजोर तो नहीं लेकिन सबसे कम कनेक्ट करने वाली फिल्म है. फिल्म में आपको सीट से उछालने वाले कई सीन मिलेंगे. फिल्म में आपको 'ये तो सोचा ही नहीं' या 'यही तो देखना था' जैसे मोमेंट भी आएंगे. लेकिन वैसे भाव नहीं आते जैसा जेल में बंद लोकी को मां की मौत की ख़बर मिलने पर आते थे. वो सुख नहीं मिलता, जैसा डिस्ट्रॉयर से पिटे थॉर के हाथ में हथौड़ा आते ही मिला था. 
2. कमजोर स्क्रिप्ट : आप थॉर की कहानी देखना चाहते हैं, स्क्रीन पर जो हो रहा है वो विजुअल ट्रीट है. फाइट सीन बहुत अच्छे हैं. VFX कमाल हैं. गोर और थॉर की लड़ाई की कोरियोग्राफी भी बहुत अच्छी है. कोरियोग्राफी उतनी भी नहीं है, जितनी आपने शांग ची में देखी, लेकिन जितना कुछ भी है, बेहतरीन है. आप इस फिल्म के बारे में अच्छा महसूस करना चाहते हैं, यहीं टाइका वैटीटी चूक जाते हैं. आप फिल्म के बारे में अच्छा महसूस नहीं कर पाते, क्योंकि कहानी ऑर्गेनिक नहीं लगती. कुछ तो जबरन ठूंसा हुआ लगता है. अंत में आप खुद से सवाल करने लगते हैं, अगर ये कहानी आपको न दिखाई जाती तो भी कोई फर्क पड़ता?

तो फिल्म किस बारे में है?

सवाल खड़े करती है. आप भक्त हैं. देवताओं में या किसी शक्ति में भरोसा करते हैं, उसी के भरोसे हैं लेकिन वही शक्ति आपके सबसे गाढ़े वक़्त में काम नहीं आती तो क्या करेंगे. यही सवाल गोर और थॉर दोनों के सामने आता है. फिल्म की सुंदरता ये है कि दोनों ही एक ही तरीके से रिएक्ट करते हैं. एक जरा ज्यादा  वायलेंट तरीके से और दूसरा सुधारात्मक कदम उठाते हुए. थॉर आम समस्या दिखाता है. ज़िम्मेदार लोगों के सामने सवाल खड़े करते हुए. जबकि जिम्मेदार लोगों की अलग प्राथमिकताएं हैं. वो उसे मात्र फैक्ट सामने रखने का दंड देते हैं. यहां आप थॉर से रिलेट कर पाते हैं. असल समस्या बताने पर, सुधार के प्रयास की जगह सजा मिलती है. और मजे की बात ये कि सजा उसे नहीं मिलती, जो दोषी है. मात्र फैक्ट रखना ही ईशनिंदा मान लिया जाता है. वही जो चहुंओर होता दिखता है. लेकिन अंत में तमाम चीजें डिज्नी की किसी अन्य फिल्म की तरह प्रेम को सर्वोपरि बता देती हैं.

टाइटल ड्रॉप फिल्म के आख़िरी दृश्य में होता है. जो अंतत: नाम को चरितार्थ करता है और अच्छा भी महसूस कराता, फिल्म के लिए भी और थॉर के लिए भी. 

फिल्म में दो क्रेडिट सीन हैं. मिड क्रेडिट सीन एक नए कैरेक्टर को प्रस्तुत करता है और कहानी को आगे ले जाने का वादा करता है. वहीं एंड क्रेडिट सीन फुलफिलिंग है. चेहरे पर मुस्कान छोड़ जाता है.

कुल जमा 'थॉर : लव एंड थंडर' अच्छी नीयत से जबरन बनाई गई फिल्म लगती है.