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'महाराज' की असली कहानी: धर्मगुरु के खिलाफ हुआ वो कोर्ट केस जिसने पूरे सिस्टम को हिलाकर रख दिया

Aamir Khan के बेटे Junaid Khan ने उस पत्रकार का रोल किया जिसे महिलाओं के हक की बात रखने के लिए घर से निकाल दिया गया था.

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जुनैद खान की पहली फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ होने वाली थी. (फोटो क्रेडिट: उर्विश कोठारी)

25 जनवरी 1862. भारतीय कानून के इतिहास में ये तारीख बहुत मायने रखती है. वो बात अलग है कि इस दिन जो हुआ, हमने उसे धर्म, आस्था के चलते दबा के रखा. या फिर बस उसे ब्रिटिश इतिहास के पन्नों में दबाकर रख दिया. जदुनाथ महाराज ने एक लड़के के खिलाफ केस किया था. मानहानि का केस किया. आरोप था कि उस लड़के ने महाराज और उनके भक्तों की छवि खराब करने की कोशिश की है. धर्म को बदनाम करने की कोशिश की है. उस तारीख पर बॉम्बे कोर्ट के बाहर बड़ी तादाद में लोग जमा हुए थे. कुछ महाराज के भक्त थे. कुछ बस देखने आए थे कि आज क्या होने वाला है. और कुछ बस उस लड़के की हिम्मत के साक्षी बनना चाहते थे. 

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करसनदास मुलजी नाम का वो लड़का पेशे से पत्रकार था. सत्यप्रकाश मैगज़ीन का संस्थापक था. लेकिन सिर्फ करसनदास मुलजी की नौकरी उनका परिचय नहीं हो सकती. साल 1832 में बॉम्बे में जन्मे करसनदास स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति थे. एल्फिनस्टोन कॉलेज से पढे. वहां स्टूडेंट सोसाइटी ने ज्ञानप्रसारक मंडली शुरू की. करसनदास उससे जुड़े. वो हमेशा से रूढ़िवादी प्रथाओं के खिलाफ मुखर रहे. खुलकर उनका विरोध किया. फिर चाहे वो विधवा महिलाओं के पुनर्विवाह की बात हो या महिलाओं की शिक्षा की. कॉलेज के दौरान उनकी मुलाकात हुई नर्मद से. एक और खुले विचारों वाले शख्स. आगे चलकर ये दोनों पूरा सिस्टम हिला कर रख देने वाले थे. 

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करसनदास ने महिलाओं के लिए ‘स्त्रीबोध’ नाम की मैगज़ीन शुरू की थी.

करसनदास अपने विचारों को ज़्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे. उस समय में ऐसा करने का सिर्फ एक ही माध्यम था – पत्रकारिता. साल 1851 में उन्होंने रास्त गोफतार नाम के अखबार के लिए लिखना शुरू किया. उसी साल एक साहित्यिक प्रतियोगिता हुई. करसनदास ने उसके संबंध में एक लंबा लेख लिखा. जहां उन्होंने विधवा स्त्रियों के पुनर्विवाह का समर्थन किया. जब ये लेख छपा तो हाय-तौबा मच गई. ये खबर उनकी मौसी तक भी पहुंची. दरअसल करसनदास की मां के निधन के बाद उनकी मौसी ने उनका ख्याल रखा. अपने घर में जगह दी. हालांकि इस लेख पर वो बहुत बिगड़ीं. उन्होंने करसनदास को घर से निकल जाने को कहा. बिना कोई विरोध जताए करसनदास ने घर छोड़ दिया.  

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वो रास्त गोफतार के साथ काम करते रहे. लेकिन अपने काम से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगता था कि वो इससे ज़्यादा कर सकते हैं. इसी सोच के साथ 1855 में उन्होंने अपनी मैगज़ीन शुरू की. नाम था ‘सत्यप्रकाश’. अब करसनदास हर तरह के दबाव या बंदिश से मुक्त थे. उन्होंने समाज की दकियानूसी मान्यताओं की बखिया उधेड़ना शुरू किया. किसी प्रोग्रेसिव इंसान की भाषा में कहें तो – आग ऐसी लगाई मज़ा आ गया. 

करसनदास मुलजी ने अपनी आवाज़ उठाते हुए ये नहीं देखा कि वो किसके खिलाफ लिख रहे हैं. एक वैष्णव होते हुए उन्होंने अपनी आस्था को कर्तव्य के बीच नहीं आने दिया. उन्होंने कई वैष्णव पुजारियों के दोगलेपन को एक्सपोज़ किया, कि कैसे वो अपनी महिला भक्तों के साथ अमानवीय बर्ताव कर रहे थे. 21 सितंबर 1861 की तारीख को उन्होंने एक आर्टिकल लिखा. उसका शीर्षक था ‘हिंदुओनो असल धर्मा हलना पाखंडी मातो’. यहां लिखा गया कि कैसे कुछ पुजारी महिला भक्तों के यौन उत्पीड़न कर रहे थे. जदुनाथ महाराज ने इसके जवाब में करसनदास मुलजी के खिलाफ 50,000 रुपये का मानहानि का केस कर दिया. महाराज की तरफ से 31 गवाह बॉम्बे हाई कोर्ट में पेश हुए. वहीं करसनदास मुलजी ने 33 गवाहों को पेश किया. 

22 अप्रैल 1862 को इस केस का जजमेंट आया. जज आर्नोल्ड ने मानहानि के दावे को खारिज कर दिया. जज ने कहा कि यहां धार्मिक विचारधारा की बात नहीं, बल्कि नैतिकता का सवाल है. डिफेंडेंट और उनके गवाहों का पक्ष साफ है – जो नैतिक रूप से गलत है, उसे धर्म के हिसाब से सही नहीं माना जा सकता. उन्होंने करसनदास की हिम्मत की मिसाल दी, कि कैसे उन्होंने इतने शक्तिशाली गुरुओं का घिनौना चेहरा समाज के सामने उजागर किया है. इस पूरे ट्रायल में करसनदास की जेब से 14,000 रुपये खर्च हो गए थे. कोर्ट ने उन्हें 11,500 रुपये का मुआवजा दिया. ये केस इस बात की मिसाल बना कि आप कितने भी रसूखदार हों, कानून के सामने सब बराबर हैं.  

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आमिर खान के बेटे जुनैद खान ने ‘महाराज’ नाम की फिल्म में करसनदास मुलजी का रोल किया है. यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी इस फिल्म को सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने डायरेक्ट किया है. जयदीप अहलावत ने जदुनाथ महाराज का रोल किया. ये फिल्म 14 जून को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ होने वाली थी. लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने फिल्म पर रोक लगा दी. नेटफ्लिक्स ने सिर्फ फिल्म का पोस्टर रिलीज़ किया था. उन्हें डर था कि टीज़र या ट्रेलर ड्रॉप करने पर विवाद हो सकता है. फिल्म को चुपचाप रिलीज़ करने का प्लान था. लेकिन फिर मामला कोर्ट में चला गया. धार्मिक भावनाएं आहत होने की बात उठी. उसके बाद कोर्ट ने फिल्म पर रोक लगा दी है. बॉलीवुड हंगामा की रिपोर्ट के मुताबिक YRF और नेटफ्लिक्स मिलकर गुजरात कोर्ट के फैसले को चैलेंज करने वाले हैं. रिपोर्ट में कोट किए गए सोर्स ने बताया कि ये फिल्म सौरभ शाह की किताब 'महाराज' पर आधारित है. सौरभ ने कहा कि ये फिल्म किसी भी तरह से वैष्णव समाज को गलत रोशनी में नहीं दिखाती.    
                          
            
 

वीडियो: आमिर खान के बेटे जुनैद की पहली फिल्म विवादों से बचने के लिए ओटीटी पर आ रही है?

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