फिल्म: जॉली LLB 3
राइटर- डायरेक्टर: सुभाष कपूर
एक्टर्स- अक्षय कुमार, अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला, सीमा बिस्वास, गजराज राव, हुमा कुरैशी, अमृता राव,
रेटिंग- 3.5 स्टार्स
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फिल्म रिव्यू- जॉली LLB 3
अक्षय कुमार, अरशद वारसी और सौरभ शुक्ला की नई फिल्म 'जॉली LLB 3' कैसी है, जानिए ये रिव्यू पढ़कर.


भारतीय सिनेमा में इन दिनों फ्रैंचाइज़ कल्चर अपने चरम पर है. हर स्टूडियो एक यूनिवर्स बना रहा है. उन सबके साथ कमोबेश एक ही किस्म की समस्या पेश आ रही है. कि अगली फिल्म में नया क्या करें. कैसे उस फ्रैंचाइज़ को मनोरंजक और प्रासंगिक दोनों बनाए रखा जाए. कॉप यूनिवर्स की हालत आपने 'सिंघम अगेन' में देखी. स्पाय यूनिवर्स की पिछले दो फिल्में 'टाइगर 3' और 'वॉर 2' भी इससे दो-चार हो चुकी हैं. मगर उसी देश में एक ऐसी फिल्म फ्रैंचाइज़ भी है, जो फिल्म-दर-फिल्म खुद को बेहतर करती जा रही है. वो फ्रैंचाइज़ है 'जॉली LLB'. इस सीरीज़ की तीसरी किश्त इन दिनों सिनेमाघरों में लगी हुई है, जिसका नाम है 'जॉली LLB 3'. न स्टार्स का जमावड़ा, न एग्जॉटिक लोकेशंस, न भौंडे VFX, न भारी-भरकम बजट. इनका सारा फोकस सिर्फ एक ही चीज़ पर है कि हर फिल्म के कॉन्टेंट को पिछली फिल्म से बेहतर कैसे बनाया जाए. इसी का नतीजा है कि 'जॉली LLB 3' अपनी फ्रैंचाइज़ की पिछली दोनों फिल्मों से बेहतर और सार्थक फिल्म बनकर निकलती है.
इस फिल्म की कहानी 2011 में उत्तर प्रदेश के भट्ट-परसौल में हुए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हुए विरोध से प्रेरित है. मगर क्रिएटिव लिबर्टी लेते हुए मेकर्स ने उस घटना में तमाम बदलाव किए हैं. फिल्म की कहानी यूपी से उठकर राजस्थान के बीकानेर पहुंच चुकी है. बेसिक प्लॉट यही है कि एक बड़ा बिज़नेसमैन अपने रसूख की बदौलत एक किसान राजाराम सोलंकी की जमीन हड़प कर लेता है. जिसके बाद उसकी पत्नी जानकी इस मामले को कोर्ट में लेकर जाती है. जहां दोनों जॉली यानी जगदीश्वर मिश्रा और जगदीश त्यागी मिलकर उनके लिए लड़ते हैं.
'जॉली LLB' फ्रैंचाइज़ चुटिले ढंग से एक ज़रूरी सामाजिक मसले पर बात करती है. मगर कॉमेडी और गंभीरता के बीच जो तालमेल है, वही इस फ्रैंचाइज़ की यूएसपी है. मगर दोनों में से कोई भी चीज़ एक-दूसरे पर भारी नहीं पड़नी चाहिए. वरना मैजिक खत्म हो जाएगा. 'जॉली LLB 3' इस बात का बेहद ख्याल रखती है. वो आपको ज्ञान बांटने के फेर में फन नहीं मारती. न ही हंसाने के चक्कर में अपने मैसेज से समझौता करती है. और मैसेज भी ऐसा कि आप जब-जब खाने की मेज पर बैठेंगे, तब तब आपको सालेगा.
'जॉली LLB' में अरशद वारसी ने काम किया था. 'जॉली LLB 2' में अक्षय कुमार लीड थे. तीसरी किश्त में इन दोनों जॉलियों को साथ लाया गया है. ऐसे में ये बड़ा चैलेंज था कि उनके एकोमोडेट कैसे किया जाएगा. ट्रेलर से ये अंदाज़ा लगा था कि ये दोनों लोग एक-दूसरे से लड़ेंगे. मगर फिल्म में ऐसा नहीं होता. अक्षय और अरशद के किरदार एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा हैं. एक झोलू-छिछला आदमी है. जो जैसे-तैसे करके अपना धंधा चला रहा है. दूसरा अपने पेशे को लेकर बेहद संजीदा है. इसलिए स्ट्रगल कर रहा है. मगर ये दोनों जानकी का केस लड़ने के लिए साथ आ जाते हैं.
फिल्म में जस्टिस सुंदर लाल त्रिपाठी का एक सीन है. जिसका रोल सौरभ शुक्ला ने किया है. एक दिन खेतान के खिलाफ केस लड़ते हुए सुंदर लाल दोनों जॉलियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं. इस पर उनका असिस्टेंट उनसे सवाल करता है. पूछता है कि करियर में उन्होंने कभी किसी का पक्ष नहीं लिया. सिर्फ अपना काम किया. इस बार में जॉलियों का साथ देना तो पार्शियलिटी है. जवाब में सुंदर लाल कहते हैं कि अब तक वो सिर्फ उसे फॉलो कर रहे थे, जो संविधान में लिखा हुआ था. मगर इस बार वो उस लिखे के पीछे की भावना को एक मौका देना चाहते हैं. 'लेटर' और 'स्पिरीट' में से 'स्पिरीट' को चुनना चाहते हैं. वो बताते हैं कि दोनों जॉली अक्खड़ हैं. बद्तमीज़ हैं. कम पढ़े-लिखे हैं. मगर अपने काम को लेकर ईमानदार हैं. और एक नेक काम के लिए लड़ रहे हैं.
'जॉली LLB 3' की दूसरी रिमार्केबल बात है इसकी डिटेलिंग. जैसा मैंने आपको पहले बताया कि ये फिल्म बीकानेर में सेट है. हमारे सिनेमा के एडिटर गजेंद्र सिंह भाटी भी बीकानेर से आते हैं. जब भी वो अपने घर लौटते हैं, तो हम उन्हें छोड़ने रेलवे स्टेशन जाते हैं. दिल्ली का सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन. इस फिल्म में जब जानकी अपने घर लौट रही होती है, तो वो सराय रोहिल्ला स्टेशन से ट्रेन पकड़ने जाती है. ये बड़ी बेसिक बात है. इस सीन को किसी भी स्टेशन पर फिल्माया जा सकता था. मगर मेकर्स ने इसके लिए 'सराय रोहिल्ला स्टेशन' ही चुना.
एक और चीज़ जो आपका ध्यान खींचती है, वो है फिल्म का एंड क्रेडिट रोल. जब फिल्म खत्म हो जाती है, एक म्यूज़िक के साथ फिल्म पर काम करने वाले लोगों के नाम स्क्रीन पर आते हैं. उस म्यूज़िक में खड़ताल नाम के इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल किया गया है. जो कि मारवाड़/बीकानेर में भी बजाया जाता है. इस तरह की छोटी-छोटी बातें, फिल्ममेकिंग की विधा में आपका यकीन पुख्ता करती हैं.
इस फिल्म का क्लाइमैक्स एक कोर्ट में घटता है. यहां इस बात पर चर्चा होती है कि इंडिया में गरीबी को ग्लोरिफाई किया जाता है. लोग लग्ज़री को लेकर अपराधबोध महसूस करते हैं. जो कि नहीं होना चाहिए. कैसे किसान देश को पीछे खींच रहे हैं. ये पूरा सीन आपकी आखें खोलने का काम करता है. क्योंकि ये डिबेट इतनी कमाल है कि आपको चार नई चीज़ें पता चलती हैं. आपका नज़रिया बदलती हैं. हालांकि इस सीन को देखते हुए मुझे यूं लगा कि इसे थोड़ा छोटा किया जा सकता था. क्योंकि एक समय के बाद मामला बहुत प्रीची हो जाता है. दूसरा तर्क ये है कि अगर उस सीन को थोड़ा भी छेड़ा जाता, तो फिल्म अपने विषय के प्रति थोड़ी बेईमान साउंड कर सकती थी. वो लकीर बहुत पतली है. इन मौकों पर फिल्म खूब सारे अंक बटोरती है.
अगर आप स्क्रीनटाइम के लिहाज से देखें, तो इस फिल्म की महिलाओं के पास ज़्यादा स्पेस नहीं है. मगर उन महिलाओं के बिना ये फिल्म हो ही नहीं सकती थी. सीमा बिस्वास ने राजाराम सोलंकी की पत्नी जानकी का रोल किया है. इस फिल्म में तमाम दिग्गज एक्टर्स काम कर रहे हैं. मगर परफॉरमेंस के मामले में सीमा किसी को अपने आसपास भी नहीं फटकने नहीं देतीं. फिल्म की शुरुआत में वो रोती हैं. और ये फिल्म खत्म भी उनके रुदन पर ही होती है. आखिर में स्क्रीन ब्लैक हो जाता है. मगर नेपथ्य से 20-25 सेकंड तक उनके रोने की आवाज़ आती रहती ह. ये दोनों विलाप अलग हैं. पहला दुख से उपजता है. दूसरा उस दुख को धोता है. एक चक्र पूरा होता है.
मगर 'जॉली LLB 3' के बारे में ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि ये परफेक्ट फिल्म है. क्योंकि फिल्म में कुछ ऐसे सीन्स हैं, जिन्हें आसानी से काटकर अलग किया जा सकता था. और उससे फिल्म के स्वास्थ्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वो उतनी ही मजबूत बनी रहती. मसलन फिल्म से अक्षय कुमार का इंट्रोडक्ट्री सीन. वो फिल्म में कॉमिक एलीमेंट के अलावा कुछ नहीं जोड़ती. न उसका कहानी से कोई वास्ता है, न किरदार से. ठीक वैसे ही फिल्म में सौरभ शुक्ला का एक रोमैंटिक ट्रैक है. उसे आसानी से छांटा जा सकता था. उससे फिल्म थोड़ी और टाइट होती. खिंचाव कम होता.
'जॉली LLB 3' टिपिकल एंटरटेनमेंट नहीं है. वो सिनेमा होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारी समझती है. उसे ओन करती है. ये फिल्म आपको सिर्फ एंटरटेन नहीं करती, एड्यूकेट भी करती है. एक संदेश देती है, जो शायद वॉट्स ऐप पर नहीं मिलता.
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