राज शांडिल्य ने 2019 में एक फिल्म बनाई थी, ‘ड्रीम गर्ल’. फिल्म कॉमेडी की आड़ में सोशल मैसेज देना चाहती थी. लीड में आयुष्मान खुराना थे. उनके साथ नुसरत भरुचा थी. जिनका फिल्म में इतना रोल नहीं था. अब राज शांडिल्य ने एक और फिल्म लिखी और उसे अपने प्रॉडक्शन हाउस के अंडर बनाई. ये फिल्म है ‘जनहित में जारी’. एक और सोशल मैसेज वाली फिल्म, जो कॉमेडी के ज़रिए अपनी मैसेजिंग डिलीवर करना चाहती है. ‘जनहित में जारी’ को एक्टिंग फ्रंट पर नुसरत ने लीड किया है. ये सोशल कॉमेडी अपनी मैसेजिंग में कितनी असरदार साबित होती है, आज रिव्यू में उसी पर बात करेंगे.
मूवी रिव्यू: जनहित में जारी
मेनस्ट्रीम सिनेमा में सोशल मैसेज देने वाली फिल्मों का एक टेम्पलेट है. 'जनहित में जारी' उस टेम्पलेट को कितना फॉलो करती है, ये जानने के लिए रिव्यू पढिए.

कहानी सेट है मध्यप्रदेश के एक छोटे शहर में. नुसरत ने मनोकामना नाम का कैरेक्टर प्ले किया है. मनोकामना उर्फ मनु स्ट्रेटफॉरवर्ड टाइप लड़की है. जैसा महसूस करती है, बोल डालती है. जॉब करना चाहती है, खुद से पैसा कमाना चाहती है. लेकिन उसके घरवालों की मनोकामना कुछ और है. वो चाहते हैं कि बेटी की पहली फुर्सत में शादी हो जाए. अल्टीमेटम देते हैं कि या तो तुरंत जॉब ढूंढ लो वरना शादी कर लो. आनन-फानन में मनु को एक जगह नौकरी भी मिल जाती है. हालांकि, बाद में समझ आता है कि वो कंडोम बनाने वाली कंपनी है, और मनु को वहां बतौर सेल्स एग्ज़ेक्युटिव काम करना है. एक लड़की कंडोम बेचेगी. ये आइडिया पहले उसे हैरान करता है, चौंकाता है, और फिर यही रिएक्शन बाहर वालों का होता है.
मनु के कंडोम बेचने की न्यूज़ जब स्मॉल टाउन की ब्रेकिंग न्यूज़ बनेगी तो क्या होगा, वही आगे पता चलता है. मेनस्ट्रीम सिनेमा में सोशल मैसेज देने वाली फिल्मों का एक टेम्पलेट बन चुका है. पहला तो मैसेज कॉमेडी की पैकेजिंग में होगा, ताकि ऑडियंस को ज्ञाननुमा न लगे. लीड में कोई पॉपुलर एक्टर होगा. सपोर्टिंग आर्टिस्ट्स में कमाल के एक्टर्स होंगे. फिल्म के फर्स्ट हाफ में क्विक पंचेज़ होंगे, जिनमें से ज़्यादातर लैंड भी होते हैं. ये हाफ दौड़ता है, मतलब एवरेज सीन करीब दो से तीन मिनट का होगा. फर्स्ट हाफ में इतना कुछ घटता है जो आपको एंटरटेन करता है. फिर आता है सेकंड हाफ. जहां कहानी को बांधना होता है, ताकि कन्क्लूजन पर पहुंच सके. बस यहीं आकर ज्यादातर सोशल कॉमेडीज़ माफ करना गुस्से में इधर-उधर निकल जाती हैं.
‘जनहित में जारी’ इस पूरे टेम्पलेट को फॉलो करती दिखती है. बस कुछ हल्के बदलावों के साथ. फिल्म के ह्यूमर की ज़िम्मेदारी इश्तियाक खान, विजय राज और सपना सैंड जैसे एक्टर्स लेते हैं, फिर चाहे वो सिचुएशनल कॉमेडी हो या वन लाइनर्स. भागता हुए फर्स्ट हाफ में कहानी क्या से क्या हो गए देखते-देखते हो जाती है. फिर आता है टेस्ट लेने वाला सेकंड हाफ. जहां मनु को दुनियादारी की छोटी सोच से लड़ने के साथ-साथ एक और वजह तलाशनी है, कि वो कंडोम क्यों बेचना चाहती है. यहां देखकर लगता है कि फिल्म ने ‘ड्रीम गर्ल’ से सबक लिया है. जहां कहानी को समेटने के लिए मेन कैरेक्टर सबके सामने आकर एक लंबा सा मोनोलॉग दे दिया था. नुसरत की मनु ऐसा कुछ नहीं करती. कहानी में जिसका भी हृदय परिवर्तन होना है, वो उनके अनुभवों से होता है, न कि किसी मोनोलॉग से.
बस यहां समस्या ये आन पड़ती है कि ऐसे सीन्स को ठीक से जगह नहीं दी गई. मनु किसी नए किरदार से पहली बार मिली, और अगले ही सीन में उस किरदार के साथ कुछ बुरा हो गया. अब मनु उस इंसीडेंट को प्रेरणा बनाकर अपना मिशन पूरा करना चाहती है. वो घटना उतनी प्रभावशाली नहीं लगती कि किरदार या ऑडियंस पर कोई खास इम्पैक्ट पड़े. कई सारे सीन्स के बीच बस वो जस्ट अनदर सीन बनकर रह जाता है. आखिरकार आप पूरी फिल्म भी वन लाइनर्स या पंचेज़ के भरोसे नहीं चला सकते ना. आपकी कहानी का दिल अपनी सही जगह होना ज़रूरी है.
मनु जिस वजह से कंडोम बेचना चाहती है, फिल्म उसमें भी कन्फ्यूज़्ड दिखती है. मतलब कई वजहों को एक साथ मिलाने की कोशिश करती है. जैसे ऑडियंस को कंविंस करने की कोशिश कर रही हो कि ये नहीं तो वो वाली बात ही सही. सेकंड हाफ में भले ही पौराणिक मोनोलॉग वाले तरीके से मुक्ति पा ली गई हो, लेकिन फिर भी दिल्ली दूर दिखती है. फिल्म ने अपनी कास्ट में कई नए नाम जोड़े हैं. जिनमें से एक हैं अनुद सिंह ढाका. भोपाल से ताल्लुक रखने वाले अनुद ने डेब्यू के हिसाब से ठीक काम किया है. हालांकि, उनके हिस्से एक्टिंग हेवी सीन्स नहीं आते. और ऐसा फिल्म के सभी एक्टर्स के लिए है.
मनु बनी नुसरत को बिंदास लड़की वाले मोड में देखकर लगता नहीं कि वो प्रीटेंड करने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन सुई फिर से कमजोर राइटिंग पर आकर खड़ी हो जाती है, जो उन्हें चमकने लायक सीन्स नहीं देती. ‘जनहित में जारी’ में एक टिपिकल सोशल कॉमेडी वाले तमाम एलिमेंट्स हैं. लेकिन ये उन एलिमेंट्स के साथ-साथ प्रॉब्लम्स भी उधार ले लेती है. शायद इस उम्मीद में कि उन प्रॉब्लम्स को फिक्स कर पाएगी, पर कर नहीं पाती.
वीडियो: फिल्म रिव्यू - कार्गो