साल 2019. बुधवार की एक रात. तारीख का यहां कोई खास महत्व नहीं. उस रात होता है एक मर्डर. पुलिस सबूत तलाशने में जुट जाती है. लेकिन सीधा हत्यारे की फोटो ही उनके पास पहुंच जाती है. एक शख्स को उठाकर थाने लाया जाता है. पुलिस उसके साथ मारपीट करती है. तमाम तरह के हथकंडे अपनाती है. लेकिन उस शख्स का कहना है कि उसने मर्डर नहीं किया. पुलिस अधिकारी उससे कन्फेशन निकाल नहीं पा रहा. ऊपर से उसे सूचित किया जाता है कि पुलिस ने एक और बंदे को उठाया है. जिसकी शक्ल हूबहू पहले वाले बंदे से मिलती है. इनमें से खूनी कौन है, पुलिस को अब बस यही पता लगाना है.
मूवी रिव्यू: गुमराह
बहुतायत में बनने वाली थ्रिलर फिल्में फिज़ वाली सोडा बॉटल जैसी होती हैं. फिज़ खत्म होते ही मज़ा खत्म. 'गुमराह' ऐसी ही सोडा बॉटल की तरह है.

ये कहानी है 2019 में आई तमिल फिल्म ‘थड़म’ और 2023 में आई हिंदी फिल्म ‘गुमराह’ की. बताने की ज़रूरत नहीं कि ‘गुमराह’ ‘थड़म’ का ऑफिशियल हिंदी रीमेक है. ‘थड़म’ के साथ पैरेलल ड्रॉ करते हुए ही आज के रिव्यू में बात करेंगे. कि ये फिल्म ओरिजनल से कितना ऊपर-नीचे है.
# बचपन में मेरे ट्यूशन टीचर एक बात कहते थे. कि खाने को मीठी और कड़वी गोली मिले तो पहले कड़वी चुनना. ताकि बात में मीठे का स्वाद ज़्यादा समय तक मुंह में रहे. पहले बात करेंगे ‘गुमराह’ के नेगेटिव पॉइंट्स की. ‘गुमराह’ को फॉर्मूला फिल्म वाला ट्रीटमेंट देने की कोशिश की गई है. जैसे एक ड्रामैटिक एक्शन सीक्वेंस और गाने. ये दोनों ही ऐसी चीज़ें हैं जो फिल्म के नैरेटिव में कुछ जोड़ने का काम नहीं करते. बढ़ाते हैं तो बस फिल्म की लेंथ. कुछ चीज़ों को जस-का-तस दिखाया जा सकता था. बिना बात का ड्रामा फिल्म को नुकसान ही पहुंचाता है. फिल्म में जैसे गाने हैं, उस लिहाज़ से ये गाना मुक्त फिल्म होती तो बेहतर था.
‘थड़म’ का एक मज़बूत पक्ष था उसका इमोशनल साइड. ‘गुमराह’ उस हिस्से के साथ पूरी तरह इंसाफ नहीं कर पाती. अगर आपने ‘थड़म’ देखी है तो एंड वाला सीन याद कीजिए. ‘गुमराह’ उसे इस तरह से दिखाती है कि उसका इमोशनल रेलेवेंस नहीं बचता. पूरी कहानी की भागदौड़ को समेटकर ये आखिरी सीन मुंह में मिठास छोड़कर जा सकता था. लेकिन ‘गुमराह’ में उसे ऐसे ही छोड़ दिया गया. ओरिजनल में भी था, इसलिए हमने भी रख लिया. क्यों रखा, इसका जवाब ये ऑडियंस को नहीं देती.
# ‘गुमराह’ ने किन चीज़ों को बेहतर ढंग से दिखाया, अब बात उन पर. ‘थड़म’ सिर्फ एक मर्डर इन्वेस्टिगेशन थ्रिलर नहीं थी. फिल्म और भी थीम्स को छूती है. जैसे पावर रखने वाले दो लोगों की ईगो. एक नॉट-सो परफेक्ट फैमिली. ‘गुमराह’ इन पक्षों को सही तरह से दिखा पाती है. ऊपर से ‘थड़म’ के कुछ प्लॉट होल्स को भी अपने तरीके से भरने की कोशिश करती है. कुछ ऐसे अहम सीन हैं, जिन्हें ओरिजनल से उठाकर कॉपी-पेस्ट नहीं किया गया. ‘गुमराह’ उनमें कुछ जोड़ती है. जहां आपको देखकर लगता है कि यहां मामला ओरिजनल से बेहतर था. ‘गुमराह’ ओरिजनल की कुछ चीज़ों को लेकर उनमें सुधार करती है. मगर साथ ही ओरिजनल की तुलना में कुछ कमियां भी छोड़ देती है.
# ‘गुमराह’ शुरू से लेकर एंड तक अपने कैरेक्टर्स को एक ही शेड में रखती है. आदित्य रॉय कपूर ने अर्जुन और सूरज के किरदार निभाए. अर्जुन एक सिविल इंजीनियर है. अच्छे पैसे कमाता है. सोसाइटी में उसकी इज़्ज़त है. वहीं दूसरी ओर है सूरज. उसके लिए ही फिल्मों में लुक्खा और मवाली जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है. फिल्म के पहले सीन से लेकर एंड तक ये दोनों इसी शेड में दिखते हैं. और सिर्फ यही नहीं, बल्कि पुलिसवाले बने रॉनित रॉय और मृणाल ठाकुर भी. कहानी के किरदार एक रंग में दिखते हैं. नतीजतन एक्टर्स के पास ज़्यादा रेंज अपनाने का स्कोप नहीं रहता. बावजूद इसके जो उन्हें कागज़ पर लिखा मिला, उसे वो पूरी तरह निभा पाते हैं. जैसे हैं वैसे बने रहते हैं. कैरेक्टर ब्रेक नहीं करते.
बहुतायत में बनने वाली थ्रिलर फिल्में एक सोडा बॉटल की तरह होती हैं. उनको लेकर उत्साह तब तक ही बना रहता है, जब तक उनकी बॉटल में फिज़ रहता है. ‘थड़म’ और ‘गुमराह’ ऐसी ही फिल्में हैं. मेरी राय में तो ‘थड़म’ ऐसी फिल्म नहीं थी, जिसका रीमेक किया जाए. खैर, अब बन गई है. ‘गुमराह’ एक ऐवरेज फिल्म है. पूरी तरह से रिजेक्ट कर देने लायक भी नहीं. मगर मस्ट वॉच या बेस्ट थ्रिलर फिल्मों में रखने लायक भी नहीं. वन टाइम वॉच किस्म की फिल्म है.
वीडियो: मूवी रिव्यू : Doctor G