22 जून 2012. एक आदमी ने धमाका किया. देश भर में. सब कुछ तबाह कर के रख दिया. सबसे ज़्यादा चोट उस पैमाने को आई थी जो सालों से फिल्मों को चलने और न चलने वाली कैटेगरी में बांट देता था. एक फ़िल्म जिसकी असल भाषा खड़ी हिंदी नहीं है, जिसके गानों में फॉरेन लोकेशन में कूदते हीरो-हिरोइन नहीं है, जिसकी म्यूज़िक में वो 'ग्रूव्स' नहीं हैं, जिसमें गालियों की भरमार है. और सबसे बड़ी बात - फिल्म साढ़े पांच घंटे लम्बी है. अनुराग कश्यप. जिद्दी और क्रूर. उसी ज़िद और क्रूरपन से फ़िल्म बनाने वाला. फिल्म जो मनोज बाजपई, ऋचा चड्ढा, पियूष मिश्रा, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी और हुमा कुरैशी से लैस थी. फ़िल्म दो पार्ट्स में आने वाली थी. पहला पार्ट रिलीज़ हुआ और मानो खजाना हाथ लग गया. लोग थियेटर में खुद को भरने लगे. खुद जाते, फिर दोबारा दोस्तों को ले जाते. फिल्म की एक कल्ट फॉलोविंग बनती चली गयी. डायलॉग ऐसे कि ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए. लोग पिच्चर हॉल से बाहर निकलते और पूछते, "कहां गाड़े थे?" लौटते हैं फिल्म के कुछ मज़ेदार सीन्स की ओर -
1. 
"इंसान जो है बस दो नस्ल के होते हैं. एक होते हैं हरामी, और दूसरे बेवकूफ़! और ये सारा खेल इन दोनों का ही है. अब कब कौन हरामी बेवकूफी पर उतर आता है और कब कोई बेवकूफ़ हरामजदगी का तालाब बन जाता है, पता ही नहीं चलता. ये वासेपुर की कहानी थोड़ी टेढ़ी है. बाहर से देखो तो सीधे-सादे लोगों की बस्ती है वासेपुर. और अन्दर आओ तो एक से बढ़के एक हरामजादे इसमें छुपे बैठे हैं. अब वो अंत में क्या साबित हुए, वो अलग बात है. कम से कम जीते जी तो सारे के सारे अपने आप को फन्ने खां ही समझते थे.
हम मुसलमानों की ये महाभारत आज की नहीं है. जमाने से चली आ रही थी. वासेपुर में तो ये लड़ाई शिया सुन्नी की भी नहीं थी. यहां तो सभी सुन्नी ही थे. ये लड़ाई थी कुरैशियों और बाकी के मुसलामानों में. और लड़ाई बाद में हुई. पहले एकतरफ़ा होती थी. कुरैशी जो हैं वो कसाई होते थे और कसाइयों से सबकी फटती थी. वो दबाते थे और बाकी के दबते थे. अब कुरैशियों का खुलेआम राज था वासेपुर में. तब जब ये गांव होता था धनबाद के बाहर और तब जब धनबाद बंगाल के हिस्से में आता था. आजादी के बाद धनबाद बंगाल से बिहार में चला गया और वासेपुर भी फैलते हुए धनबाद का एक हिस्सा हो गया. अभी धनबाद झारखंड में है और वासेपुर धनबाद के बीचों-बीच.
बहरहाल, कहानी अभी भी चल रही है. लेकिन शुरू तब हुई थी जब धनबाद के आस-पास अंग्रेजों ने सारे धान के खेतों पर कब्ज़ा करके कोयला निकालने का काम शुरू किया. तब जब रेल गाड़ियां कोयले पर चलती थीं. और सारी आधुनिक फैक्ट्रियां और मशीनें सब कोयले पर चलती थीं. तब जब यहां सुल्ताना डाकू हुआ करता था और उनकी ट्रेनें लूटता था."
2. 
"आप आपने मजदूर साथियों के साथ सही कर रहे हैं?" "यहां कोई किसी का साथी नहीं है. साले ऊ अंग्रेज रोटी छोड़ के गए थे, यहां बन्दर बांट रहे हैं. और तुमको का लगता है? ई खदान रामाधीर सिंह के बाप छोड़ के गए थे का? पहले वो अंग्रेज बाहुबली थे, अब आज ई रामाधीर सिंह है. और कल रामाधीर सिंह की लास पे पैर रखके साहिद खान बाहुबली बनेगा."
3. 
"हमारे अब्बू उसकी गाड़ी में बैठ के उसके साथ गए थे. हमारी जिंदगी का एक्कै मकसद है. बदला. रामाधीर सिंह को बड़प्पन का सीढ़ी चढ़ते देखा नहीं जाता. उस हरामी को हमें मिटाना है. गोली नहीं मारेंगे साले को, कह के लेंगे उसकी! उसे उसकी औकात बतायेंगे. धीरे-धीरे उसका सब कुछ छीन लेंगे. अपने आपै मर जाएगा मादर**!"
4. 
"ये जो कोयला है न, बहुत मजेदार चीज होती है. दिखता पत्थर की तरह है पर पत्थर जैसा गाढ़ा नहीं है. हल्का है. और इसको डालो पानी में. अब ये सोखेगा पानी. और हो जायेगा भारी!
ये साला राष्ट्रीयकरण जबसे हुआ है, बहुत जुलुम हो रहा है तुम लोग पे. साला हमारा यूनियन हम मजदूरों का यूनियन, हमें उधार देके सूद के नाम पे हर महीने हमरा वेतन खा रहा है. और ये कईसे हो रहा है? सब चीफ़ साहब की देखरेख में हो रहा है. साला एसपी सिन्हा जबतक रहेगा, तब तक न हमारे घर में चूल्हा जलेगा, न छत बिछेगी. साला हमरे घर में खाने को नहीं है यहां लोगों के पास, और वो अपने घर में गार्डन-गार्डन खेल रहा है."
5. 
"सरदार खान कहां है? सरदार खान? आया क्या यहां गंजा? सरदार खान?" "अरे कौन है?" "कौन है?" "अये!! अरे अरे! अरे! ई हरामजादी बोल रही है कि ई नगमा है." "वो बोली हम नगमा हैं?" "अरे का कर रही है?" "तुमको नगमा दिखाई देने लगी? चू** समझते हो का हमको?" "अरे हम सो गए थे. पता नहीं चला. पता नहीं चला हमको." "अन्दर घुसने से पहले घर दिखा था कि नहीं? कि नींद में चल रहे थे?" "अरे हम नसे में थे. पता नहीं चला. ई हमरा फ़ायदा उठाई है." "हट!!" "अरे फ़ायदा... अरे का कर रही है? मर जायेगी ये." "मरने दो." "अरे मर्डर हो जायेगा! 302 लग जायेगा." "हटो, नहीं सच में मार देंगे." "बिना औलाद की मां हो जाएगी. अरे...हम बता रहे हैं." "नहीं छोड़ेंगे तुमको आज." "नगमा! हम बता रहे हैं." "कहां भाग रहा है डरपोक? कभी न कभी तो घर आएगा तू हरामखोर. भड़* साला रं*बाज!"
6. 
"ई कहां लेके आये हैं?" "यहीं. कोई आदमी अवैध कब्ज़ा कर रहा है जमीन पर." "कौन? अरे कौन कब्ज़ा कर रहा है?" "सरदार खान." "कौन सरदार खान?" "वही जो अपने असगर की जीप चलाता है धनबाद स्टेशन पर ना. अरे अपने लोगों को लियाता ले जाता है है उधर से." "अरे! साला ऊ कबसे इतना बड़ा गुंडा हो गया?" "ऑफिस बुलाओ उसको." "नहीं आएगा. बोले थे उसको. तो कहने लगा कि सौदा करना है तो उसके पास आना होगा." "और यहां हम दस आदमी खड़ा कर देंगे तो का कर लेगा साला ऊ?" "जेपी!" "अरे बाउजी कह रहे हैं हम काट के रख देंगे साले को. समझता क्या है?" "जेपी! छोटा आदमी गुंडई करना चाहता है करने दो. मजा लेना चाहता है मजा लेने दो. उसके मुंह लगोगे बराबर मे बिठाओगे, अच्छा लगेगा?" "तो हम का करें?" "वो अवैध तरीक अपना रहा है, तुम वैध तरीका अपनाओ. धनबाद थाना तुमरे हाई कमान में आता है न?" "हम्म." "बुलाओ एसपी को खाने पे बुलाओ. उसके मुंह में तार डाल के गां* से निकाल के इसी प्लाट में पतंग न उड़ाई तो हमरा नाम नहीं."
7. 
"अरे कहां लिखा है जमीन आपका है? आपका है तो कागज दिखाइये." "जमीन हमरे लोगों का है. डील कर चुके हैं हम. और ये जो अवैध कब्जे का जो तुम चुतियापा कर रहे हो न, ठीक नहीं होगा तुम्हारे लिए." "सोच समझ के बोलिए सिंह साहब! वैध-अवैध का फ़र्क हमको मत समझाइये. ई रहा जमीन का कागज. पूरे दस रुपिये में खरीदे हैं."
"दस रूपये में? तुमको पता है, कि हमरे सामने औकात क्या है तुम्हारी भो**के? यहीं पे काट के रख देंगे..."
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"अये! अये एसपी साहब! अपना कुर्सी पर बैठे रहेंगे तो सबके लिए अच्छा रहेगा.
विधायक सर, आं* चाहे जितना बड़ा हो जाए, लां* के नीचे ही रहता है." "तुमको पता नहीं है कौन हैं हम. साले एक विधायक पर हाथ उठाते हो तुम?" "आपको नहीं पता हम कौन हैं. घर वापस जाके जब अपने पिता जी का गां* खुजा रहे होगे न, पूछना इनसे, हम कौन हैं.
एसपी साहेब! एक विधायक को सरेआम थाने में थप्पड़ मारने के लिए कितना दिन जेल में रहना पड़ता है?" "और एसपी साहेब हमऊ जायेंगे अब तो अन्दर. लेओ..."
8. 
"सलामवालेकुम!" "अरे! कैसे? आओ आओ! अरे एहसान हियां बैठो यार. यहां बैठों. यहां आओ. यहां आओ.
यार कल रात को बहुत भयानक सपना देखे हम. शाहिद खान याद है न? वो जो हमारा पहलवान हुआ करता था?" "वो आया था सपने में?" "हैं?" "वही आया था सपने में क्या?" "उसका लौंडा. उसके लौंडे का भूत आया था सपने में. जिसको मार के गाड़े थे तुम. कहां गाड़े थे? कहां गाड़े थे?
याद...याद तो है तुमको कहां गाड़े थे." "वहीँ गाड़े थे." "हैं? तो अब अईसा करो कि वहां जाओ. और खोदकर के उसके सरीर का जो अवसेस बचा है उसको ले के आओ. काहे की पण्डित जी कह रहे हैं कि उसका सरीर अभी जिंदा है. तभी भूत बनके आके हमको डरा रहा है. हैं?" "जी ठीक है." "भो**के. अब तो सच बोल दे भो**के. नहीं तो तुमको मार के गाड़ देंगे हम." "गलती हो गयी मालिक हमसे. गलती हो गयी हमसे." "गलती हो गयी? तुम्हारी इस एक गलती से कितना तमासा होगा, इसका अंदाजा नहीं है तुम्हें."
9. 
"खड़ा हुई जा." "का भइय्या?" "नया बहाली है का? हैं? यहां का करने आए हो? इस जगह का नाम वासेपुर है. समझ गए?" "अरे ऊ धनबाद में पहलवान का सरदार खान छूरा मार दिहिस है मार्किट में. हमने सुना यहीं उठा के लाया है." "अरे तो जब सरदार खान मार्किट में निकलेगा तब उसको पकड़ लेना. ठीक है न? ई वासेपुर है. यहां कबुत्तर भी एक पंख से उड़ता है और दुसरे से अपना इज्जत बचाता है. समझ गए? चलो..."
10. 
"हजरात! हजरात!! हजरात!!! बड़े अफ़सोस के साथ ऐलान करना पड़ रहा है कि कल शाम वासेपुर में एक लड़की को अगवा कर लिया गया है. जनाब अगले तीन घंटे में लड़की सही सलामत अपने घर वापस नहीं पहुंची तो पूरे इलाके में इतना बम मारेंगे कि इलाका धुआं धुआं हो जायेगा. और हियां के मंत्री श्री रामाधीर सिंह के पूरे खानदान से रं* का नाच नचाएंगे. हज़रात! हज़रात!! हज़रात!!!"
11. 
"ए फईजल! अब्बा का लास लेके घर जा." "देखिये पुलिस को कार्यवाई करने दीजिये." "आई साला! ई हमरे अब्बा का लास है. इनका जनाजा सीधे घर जाएगा. हमरे अब्बू पे कौनो कानूनी कार्यवाई नहीं होगा. बूझे?"
12. 
"हमको तो नहीं लगता है ऊ कुछ भी कर सकता है. उसको गांजा से फुरसत कहां? का होता है अपने जवान लड़का को खोना. हमरा पहला औलाद था दानिस." "सांत हो जाओ. सांत हो जाओ. हम सब संभा..." "फैजल! कब खून खौलेगा रे तेरा? गांजा के नसा में धुत्त था जब तुमरे अब्बू को मार दिया. और अब दिन दहाड़े भाई को मरवा दिया. तुमरा हाथ से कब चलेगा रे गोली? हम्म? कब छोड़ेगा रे अपना गंजेड़ी नसेड़ी दोस्त सब को? और बदला लेगा बाप भाई का? अपन आंख तो देख. गांजा पी-पी के कितना लाल हो गया है." "अये नगमा." "भड़* तोके अंगुली खाना खाए के चाही तो हम खिला देंगे. घूर काहे रहे हो? चाकू कहां है?" "लाओ उंगली काट देते हैं." "क्या कर रही है रे बुढ़िया!" "लाओ दसों उंगलियां काट देते हैं." "बुढ़िया हाथ कट जायेगा. अरे बुढ़िया..." "अरे नगमा पागल हो गयी हो का?" "चुप्प! आप बीच में मत बोलियेगा.
बाप का, दादा का, भाई का सबका बदला लेगा रे तेरा फैजल!"
13. 
"अरे फैजल! अरे कहां थे भाई? हम चुनाव जीते हैं जसन हो रहा है, तुम कहां थे भाई?" "घर में सब थूंकते हैं हमपे. बाजार में निकलो तो सब हंसते हैं साले." "काहे?" "ई सब भो**वाले बोलते हैं कि फैजल खान ने दोस्ती में अपने बाप और भाई का बलि चढ़ा दिया. बुढ़िया बोलती है कि हम जन्मे न होते आज सरदार खान के घर में मातम न होता." "मतलब?" "मतलब ये कि, जलाओ..." "बहुत तगड़ा है बे. घूर काहे रहा है बे?" "हम तो सोचते थे संजीव कुमार के घर में हम बच्चन पैदा हुए हैं. लेकिन जब आंख खुली देखा साला हम तो ससी कपूर हैं. बच्चन तो कोई और है."
14. 
"दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे?" "चार बार देख रक्खी है." "हम आपके हैं कौन?" "कबका हट गया." "रंगीला?" "देख लिए." "करन अर्जुन? चल ना! करन-अर्जुन अर्जुन देख के आते हैं. सारुख सलमान दोनों हैं." "हाथ पकड़ोगे तुम." "नहीं पकड़ूंगा." "पकड़ोगे." "मां कसम नहीं पकड़ूंगा." "क्यूं गाल नहीं दबाओगे?" "मां कसम नहीं छूऊंगा." "और गोदी में पॉपकॉर्न गिरेगा तो ढूंढोगे नहीं?" "मां कसम नहीं ढूंढूंगा." "नहीं ढूंढोगे?... सट के बैठोगे?" "नहीं सटूंगा." "तो अपनी अम्मा के साथ ही जाओ न. हमारा क्या ज़रुरत है?"
15. 
"हम तुमसे कितनी बार कहे हैं कि पब्लिक में गुंडा उंडा लोग का नाम न लिया करो." "अरे ऊ जो है न, वो...जो सरदार खान को मारा था. फैजल ने उसको मार दिया." "अबे तो ठीकै तो किया." "लेकिन वो तो अपना आदमी था न बाऊजी." "सुल्तान का था. सुल्तान अब अपना आदमी नहीं है. समझे?" "लेकिन बाऊजी..." "तुम, अपनी भावनाओं को डालो अपनी गां* में. साले यहां बैठे छुटभइय्या नेताओं...छोटे-छोटे बच्चों के साथ नेतागिरी करते हो. अबे अपने क्षेत्र में जाओ थोड़ा मोटिवेशन दो लोगों को. औ कल रात को कहां थे?" "सिनेमा देखने गए थे." "कौन सा सिनेमा?" "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे." "बेटा तुमसे ना हो पायेगा. हमें तुम्हारे लक्षण बिलकुल ठीक नहीं लग रहे, तुमसे ना हो पायेगा. चू*या."