फिल्म: ऐ दिल है मुश्किल । निर्देशक: करण जौहर । कलाकार: रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, ऐश्वर्या राय बच्चन, फवाद खान, लीज़ा हेडन, इमरान अब्बास । अवधि: 2 घंटे 38 मिनट
'ऐ दिल है मुश्किल' का 'पेड रिव्यू' ले आए हैं, गालियां देने यहां पधारें
पढ़ लीजिए, पूरी तरह बायस्ड होकर लिखा है.
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फिल्म में रणबीर और अनुष्का.
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अगर अयान और अलीजे की इस कहानी को लें तो न्यू यॉर्क में दोनों मिलते हैं एक पार्टी में. अलीजे बेपरवाह नाच रही होती है बिना किसी बंधन के. अयान की नजरें टिक जाती हैं. वो देख लेती है. अगले ही पल दोनों एक कमरे में होते हैं. सेक्स करने के लिए. लेकिन अयान के किस में बचपना सा होता है और दोनों किसी कारण रुक जाते हैं. फिर वो सेक्स का प्लान केंसल कर देते हैं. इस पार्टी से निकलने के बाद दोनों मिलने लगते हैं. अलीजे उस पर रीझ जाती है. उसे अपना bestest दोस्त मानती है. लेकिन अयान उसके प्रति आकर्षित है और इसे प्यार कहता है. यहां पर यथास्थिति बन जाती है. अलीजे कहती है कि प्यार में जुनून है और दोस्ती में सुकून है. जैसे ही चीजें शारीरिक हो जाएंगी वो दोस्ती चली जाएगी और दोस्ती प्यार से भी ज्यादा कीमती होती है. अयान ये समझ नहीं पाता. कई उपाय करता है इस स्थिति को समझने के लेकिन नहीं समझ पाता. लेकिन उसके मन में अलीजे को पाने की चाहत बनी रहती है.लव क्या है? दोस्ती क्या है?

ये ऐसा विषय है जिस पर बात करने के लिए एक बहुत विकसित समाज या विकसित पीढ़ी की जरूरत है. धीरे-धीरे हम उस दिशा में जा रहे हैं लेकिन अभी वैसे नहीं हैं. अभी तो हाल ये है कि फिल्म रिलीज करवाने के लिए भी करण जौहर को शुरुआती क्रेडिट्स में सैनिकों को नमन करना पड़ा. ये वैसा ही है कि हम अपने कल्चर में बच्चे को पीटते हैं कि अंकल के पैर क्यों नहीं छुए थे. क्यों न पीटें? उसे संस्कार जो सिखाने हैं. करण संस्कारी हुए तो फिल्म शुरू हुई.ख़ैर, यही वजह है कि इस फिल्म के सब पात्र न्यू यॉर्क, लंदन, वियेना में ही मिलते हैं. पार्टियों में, होटलों में, डीजे नाइट्स में, रेस्टोरेंट्स में, चार्टर प्लेन्स में, बर्फ में, बार्स में, एयरपोर्ट पर. आधुनिक समाजों में, रुपये-पैसे की आश्वस्ति के साथ. उस स्थिति में जहां रूढ़िवादी समाज नहीं है, दो टाइम पेट पालने का झंझट नहीं है, दखल देने के लिए मम्मी-डैडी नहीं हैं, नैतिकता सिखाने वाले गुंडे नहीं हैं. इसी बीच आशिकी बनाम दोस्ती की बात चलती है. ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आने वाले दशकों में हमें इसी विमर्श की ओर बढ़ना है. न सिर्फ महानगरों में बल्कि छोटे शहरों में भी. आप चाहें न चाहें ये तो होगा. सेक्स, शारीरिक संबंधों को लेकर कैजुअलनेस, स्वच्छंदता, आज़ादी ख़याली ये सब युवाओं के लिए प्राइमरी चिंताएं होंगी. अब यहां से आगे करण बहुत ज्यादा उत्तर हमें नहीं दे पाते हैं. वो जो महत्वपूर्ण काम करते हैं, वो इस सवाल को रखकर करते हैं. अपने अब तक के ज्ञान के हिसाब से वो जो निष्कर्ष देते हैं वो प्यारा है, खुशी भरा है, इमोशनल है, मानवीय है.
अगर वे या कोई और चर्चा करना चाहे तो एक जरूरी सवाल ये भी रहता है कि आख़िर दोस्ती कहां खत्म होती है और आशिकी कहां शुरू होती है. क्या होठों पर किस करने से पहले तक कि तमाम स्थितियां दोस्ती हैं और वही वर्जना का बिंदु है?फिल्म के तकनीकी विभागों की बात करें तो करण और निरंजन आयंगर के लिखे संवादों के स्तर पर कुछ ताज़ा बातें हैं. जैसे एक सीन में अयान अलीजे के साथ वक्त बिता पाने की अपनी खुशी को जाहिर करने के लिए कहता है, "मैं भुर्जी पराठा खाता हूं तो बहुत खुश होता है. आज भी मैं इतना खुश हूं कि दिल का पेट भर गया है." करण की पिछली फिल्मों के मुकाबले इसमें मेलोड्रामा बिलकुल घट गया है. बेधड़की के साथ दृश्य लिखे गए हैं. कहीं काफी इंटेंस हैं. रणबीर के साथ कुछ दृश्यों में ऐसे पलों का निर्माण होता है जो बेहद ताज़ा और नए लगते हैं. फिल्म के गाने स्वतंत्र रूप से भी उतने ही ताकतवर हैं जितने कि फिल्म के अंदर रखे जाएं तो भी. https://www.youtube.com/watch?v=CvPdtf8Ijj4 https://www.youtube.com/watch?v=QrbIx5qBDJk कमियों की बात करें तो कहानी व दृश्यों में हार्मनी के स्तर पर हैं.
अपने विषय और इस संबंध में सवाल पूछने के लिहाज से 'ऐ दिल है मुश्किल' बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है. फिल्म में कई जगह ऐसे इंटेंस, इमोशनल अनुभव हैं जिन्हें मिस नहीं करना चाहिए.आज का दूसरा रिव्यू यहां पढ़ें: फिल्म रिव्यू - शिवाय : न ही शून्य और न ही इकाई, मुझको देओ सर दर्द की दवाई
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