The Lallantop

Review: फ्लाइंग जट्‌ट क्यों, अल्लाह-हु-अक़बर बोलने वाला मुस्लिम सुपरहीरो क्यों नहीं!

'एबीसीडी' वाले निर्देशक रेमो डिसूजा की नई फिल्म में टाइगर श्रॉफ एक सिख सुपरहीरो बने हैं.

post-main-image
फिल्म के एक दृश्य में टाइगर श्रॉफ.

फिल्म: अ फ्लाइंग जट्‌ट । निर्देशक: रेमो डिसूजा । कलाकार: टाइगर श्रॉफ, अमृता सिंह, केके मेनन, जैकलीन फर्नांडिस, नेथन जोन्स, गौरव पांडे, श्रद्धा कपूर (अतिथि भूमिका) । अवधि: 2 घंटे 30 मिनट

आगे Spoilers/खुलासे हैं, अपने विवेक से ही पढ़ें. पंजाबी फिल्मों में दलितों और हाशिये पर रखी गई जातियों के किरदार वैसे भी नहीं रखे जाते हैं, उन्हें देखकर लगता है कि पंजाब में सिर्फ और सिर्फ जट्‌ट रहते हैं. अब निर्देशक रेमो डिसूजा की नई हिंदी फिल्म भी अपने शीर्षक से ये सिद्ध करने की कोशिश करती है कि पंजाब/सिख का एक ही पर्याय है - 'जट्‌ट'. शीर्षक रखा गया है 'अ फ्लाइंग जट्‌ट'. इसकी कहानी अमन नाम के लड़के पर केंद्रित है. वह अपनी मां मिसेज ढिल्लों के साथ करतार सिंह कॉलोनी में रहता है. यह कॉलोनी उसके पिता के नाम पर है. आस-पास काफी हरियाली है. महानगर में ये ऐसी जगह है जहां प्रदूषण नहीं पहुंचा है. कॉलोनी के सामने की एक बहुत पुराना विशाल वृक्ष है. जिस पर सिख धर्म का एक चिन्ह बना है जिस वजह से इसे बहुत माना जाता है. मन्नत मांगी जाती है तो पूरी होती है. लेकिन इस ज़मीन पर एक बिजनेसमैन की नजर है. ये भूमिका केके मेनन ने निभाई है. उसे शुरू में अतिरिक्त रूप से दुष्ट बताया गया है. वह मिसेज ढिल्लों से भी बात करता है लेकिन वो आक्रामक महिला है और उसे चलता कर देती है. इस पूरी प्रक्रिया में उसका घबराने वाला बेटा अमन डरा-सहमा होता है. टाइगर श्रॉफ द्वारा निभाया ये केंद्रीय पात्र एक स्कूल में बच्चों को कराटे सिखाता है. लेकिन बहुत नर्म-नेक दिल युवक है, बच्चे भी उसका कहना नहीं मानते. उसे ये भी भय है कि कहीं वो बिजनेसमैन उसकी मां को कुछ न कर दे. मां चाहती है कि उसका बेटा अपने पिता जैसा बने. सवा लाख से अकेला लड़ जाए. सच्चा सिख बने. लेकिन बचपन से अमन ने सिखी से दूरी बनाई क्योंकि बच्चे मजाक उड़ाते थे कि सरदार के 12 बज गए. इसीलिए उसने केश भी कटा लिए थे. अब पिता की नीली पग भी नहीं पहनना चाहता. फिर एक घटना के दौरान उस वृक्ष से स्पर्श होने से अमन में अलौकिक शक्तियां आ जाती हैं. मां उसके लिए सुपरहीरो की ड्रेस सील देती है. वो लोगों को बचाने लगता है. कृति नाम की लड़की पर उसका क्रश है. उससे प्यार करता है. जैकलीन फर्नांडिस द्वारा निभाया ये पात्र सुपरहीरो पर मोहित होने, उछलने, अति-उत्साहित होने और घायल हो जाने पर उसे संभालने का काम करता है. फिल्म में संदर्भों की बात करते हैं. दैवीय वृक्ष जब दिखाया जाता है तो तुरंत जेम्स कैमरून की फिल्म 'अवतार' याद आती है जिसमें 10 फुट ऊंचे नीले प्राणियों वाले ग्रह पैंडोरा में ऐसा ही दैवीय वृक्ष होता है जिसे अमेरिकी खनिजों की खोज करने वाली कंपनी की प्राइवेट आर्मी नष्ट करने वाली है. अध्यात्म, धर्म, पर्यावरण के तीनों संदर्भ दोनों वृक्षों में हैं. 'अ फ्लाइंग जट्‌ट' में भी पर्यावरण प्रदूषण को प्रमुख मसला बनाने की कोशिश की गई है. बच्चों में वृक्ष लगाने की आदत डालने की सरकारी विज्ञापन फिल्म भी ये कहीं लग सकती है. लेकिन फिल्म कई चीजों को मिक्स कर देती है. एक समय ऐसा लगने लगता है कि वह प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत कैंपेन को सपोर्ट करने की कोशिश में है और क्या पता इसी से प्रभावित होकर अगले साल के शुरू में इसे नेशनल अवॉर्ड भी दे दिया जाए. इसमें हॉलीवुड के सुपरहीरो जॉनर का भारतीयकरण करने की कमज़ोर कोशिश है. निर्देशक रेमो अपनी पिछली कहानियों में भी मातृत्व, तिरंगे, देशप्रेम, फिरंगियों को हराने, गणेश भगवान जैसे भावुक तत्वों पर निर्भर रहे हैं. यहां भी वे धर्म का भौंडा इस्तेमाल करते हैं. उनकी फिल्म देखकर पहली बार ज्ञात होता है कि पेड़ों का भी धर्म होता है. एक वृक्ष है जिस पर सिखों का धार्मिक चिन्ह बना है. उसी का निशान जब अमन की पीठ पर बन जाता है तो उसमें शक्तियां आ जाती हैं. चाकू, गोलियों के घाव पल भर में ठीक हो जाते हैं, वो उड़ सकता है, जिस सामग्री को छू दे तो वो 'रोबोट' के चिट्‌टी की तरह उसमें फीड हो जाती है. वो अंतरिक्ष में पहुंच जाता है लेकिन उसे सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होती. लेकिन फिल्म के विलेन राका की शक्तियां प्रदूषण की अधिकता से बढ़ती है. फैक्ट्रियों के धुएं, सिगरेट के धुएं, प्रदूषण वगैरह बढ़ता है, पेड़ कटते हैं तो वो इतना ताकतवर हो जाता है कि सिख धर्म की अलौकिक शक्तियां होने के बावजूद फ्लाइंग जट्‌ट को अधमरा कर देता है. तब फ्लाइंग जट्‌ट के घाव भरने की जादुई शक्ति भी काम करनी बंद कर देती है! तर्क छोटे पड़ने लगते हैं. लेकिन फिर शहर में प्रदूषण विरोधी रैली निकलती है. एक-दो. एक-दो पौधारोपण कार्यक्रम होते हैं और फ्लाइंग जट्‌ट फिर ठीक हो जाता है. और हां, इस बार उसमें अतिरिक्त शक्तियां आ जाती हैं क्योंकि वो अपने पिता की नीली पग पहन लेता है. क्योंकि उसकी मां उसे बताती है कि सिखों के 12 बज गए जुमले के असली मायने क्या हैं. वह बताती है कि कैसे 300 साल पहले अफगान लुटेरे (अफगानिस्तान के शासक) अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर हमला बोल दिया था. कैसे वो सिखों की बहन-बेटियों को उठाकर ले गया था ताकि उनकी इज्जत लूट सके. लेकिन फिर बहादुर सिखों ने रात 12 बजे उनके शिविरों पर धावा बोला और एक-एक बहन-बेटी को उसकी इज्जत समेत रिकवर किया. 12 बज गए के असली मायने ये हैं. फिल्म में ये सारी बातें एनिमेटेड फिल्म के जरिए बताई जाती है. और हां, औरतों के अलावा सिख वीर जिन्हें बचाते हैं अन्य धावों में वो होते हैं ललाट पर तिलक लगाए, ब्राम्हण. फिल्म में एक और बात आप नोटिस करेंगे/करेंगी. कि इसमें इस सुपरहीरो को ठूस-ठूस कर सिख आइडेंटिटी दी गई है. 'राज करेगा खालसा' गीत चलता है, नारे चलते हैं. शक्तियां आने के बाद उसे वैसे ही जो आवाजें सुनाई लगती है जरूरतमंद लोगों की जैसे स्पाइडरमैन, सुपरमैन जैसे सुपरहीरो जो सुनाई देती रही हैं, उनमें सबसे पहली एक सिख बच्चे की होती है. और खास बात, फ्लाइंग जट्ट को सिर्फ उन्हीं दुखियारों की आवाज सुनाई देती है (ज्यादातर मौकों पर) जो सिख चिन्ह वाले वृक्ष के आगे खड़े होकर रब से मदद मांग रहे होते हैं. विलेन बिजनेसमैन की पहली मीटिंग में भी दो पगड़ी बांधे पात्र दिखाए जाते हैं जो बहुत odd लगता है. आश्चर्य की बात है कि पूरी फिल्म में कहीं कोई मुस्लिम पात्र नहीं दिखता. हां, अब्दाली जरूर मुस्लिम पात्र होता है. लेकिन क्यों ये सुपरहीरो कोई मुस्लिम नहीं हो सकता था? जिसने सिर पर धार्मिक टोपी पहनी होती. कुर्ता होता. टखनों से काफी ऊपर तक सलवार होती. पीछे काला लबादा उड़ रहा होता जैसे फ्लाइंग जट्‌ट का उड़ता है. उस पात्र के लंबी काली दाढ़ी होती. मूछें साफ होतीं. जब भी उसके पास शक्तियां कम पड़ती तब वो 'अल्लाह-हु-अक़बर' बोलता या नमाज पढ़ता या कुछ ऐसा ही करता और वह ठीक हो जाता. फिर वह महानगर में बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण से पैदा हुए राका नाम के अंग्रेज (स्टीरियोटाइप) दरिंदे को मार देता.
सवाल ये भी है कि क्या ऐसा कोई सुपरहीरो सिख या मुस्लिम या हिंदू होना चाहिए. वो भी अपनी कट्टर identities के साथ?
पर्यावरण के मैसेज में भी फिल्म confused लगती है. एक जगह दिखाया जाता है कि फैक्ट्रियों का धुंआ और उससे निकलने वाला औद्योगिक कचरा शहर की हवा और नदियों के पानी को प्रदूषित कर रहा है. लेकिन इससे पहले जब फिल्म शुरू हो रही थी और क्रेडिट्स आ रहे थे तो उनके साथ एक एनिमेशन फिल्म चल रही थी जिसमें दिखाया गया कि पेड़, फैक्ट्रियां, फ्लाइओवर, न्यूक्लियर प्लांट सब जब ताश के पत्तों की तरह ढह जाते हैं तो नीली कॉस्ट्यूम में फ्लाइंग जट्‌ट का कार्टून उन्हें फिर से धकेल देता है और वे फिर से खड़े हो जाते हैं. इस दौरान वो फैक्ट्रियों को बचा रहा होता है. एक स्थान पर निर्देशक रेमो जबरन एक quote भी फ्रेम में घुसा देते हैं, लिखा आता है, 'Everything has an alternative except mother earth. - Remo' तर्कों के मामले में ये फिल्म संत गुरमीत राम रहीम की हास्यास्पद फिल्म 'एमएसजी: मैसेंजर ऑफ गॉड' जैसी साबित होती है. उस श्रेणी में जाने से बड़ा अपमान किसी फिल्मकार का दूसरा नहीं हो सकता. प्रस्तुतिकरण और कथ्य में 'अ फ्लाइंग जट्‌ट' की क्वालिटी वैसे ही है जैसी दूरदर्शन के सुपरहीरो सीरियल 'शक्तिमान' की होती थी. वो शक्तिमान का घूमकर उड़ना, उसका अंतरिक्ष में पहुंचना, किलविश का मेकअप, गंगाधर के दो दांत.. ये सब कमजोर गुणवत्ता वाले और अवैज्ञानिक दृश्य मासूम बच्चों को सम्मोहित करने के लिए काफी थे लेकिन जो लोग बच्चे नहीं हैं और गलती से बड़े हो गए हैं उनके लिए कष्ट है. इस फिल्म के साथ भी ठीक वैसा ही है.