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देवी: शॉर्ट मूवी रिव्यू (यू ट्यूब)

एक ऐसा सस्पेंस जो जब खुलता है तो न सिर्फ आपके रोंगटे खड़े कर देता है, बल्कि आपको परेशान भी छोड़ जाता है.

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'देवी' एक बहुत डार्क मूवी है. लेकिन इसका जो सब्जेक्ट है, उसके हिसाब से इसका इतना डार्क होना जायज़ लगता है.
पचपन. और दो थे. कुल मिला के एक सौ दस. तो मैं क्या घर चली जाऊं?
ये ज्योति किनकी उम्र बता रही है? और घर जाने की बात क्यूं कर रही है? क्या जहां वो अभी है, वो उसका घर नहीं है?
ज्योति. काजोल के किरदार का नाम. ‘देवी’ नाम की शॉर्ट मूवी में. काजोल के करियर की पहली शॉर्ट मूवी. 13 मिनट की ये शॉर्ट मूवी ‘लार्ज शॉर्ट फिल्म’ नाम के यू ट्यूब चैनल पर 02 मार्च, 2020 को रिलीज़ हुई है.
# कहानी-
देखिए, ये मूवी इतनी छोटी है कि इसके बारे में ज़्यादा कुछ बताना स्पॉइलर की कैटेगरी में आ जाएगा. तो बहुत शॉर्ट में इस शॉर्ट मूवी की कहानी बताते हैं.
एक घर है. जिसमें नौ औरतें रह रही हैं. ये सारी अलग-अलग बैकग्राउंड्स से आती हैं. जैसे कोई मराठी अनपढ़ स्त्री है, जिसकी 12 साल में शादी हो गई थी. वहीं दूसरी सुन बोल नहीं सकती. तीसरी को अंग्रेज़ी में बात करने में ही सुविधा होती है. चौथी शराब के नशे में टल्ली है. पांचवी मुस्लिम है. छठी स्टूडेंट है....
ये आपस में बातें कर रही होती हैं कि अचानक डोरबेल बजती है. इन सब औरतों की आपस में लड़ाई होने लग जाती है. इस बात को लेकर कि जो बाहर है, उसे अंदर आने दिया जाए कि नहीं? क्यूंकि इस छोटे से कमरे में भीड़ बढ़ती जा रही है.
इनकी बहस के बीच-बीच में, कुछ मिनटों के अंतराल में, डोरबेल लगातार बजती रहती है. और यूं इस डिस्कशन के और मूवी के क्लाइमेक्स में जो होता है, वो आपके रोंगटे खड़े देता है.
काजोल की पिछली मूवी 'तान्हाजी' थी. वो जितनी लाउड थी, 'देवी' उतनी ही साइलेंट (लेकिन हार्ड हिटिंग) है. काजोल की पिछली मूवी 'तान्हाजी' थी. वो जितनी लाउड थी, 'देवी' उतनी ही साइलेंट (लेकिन हार्ड हिटिंग) है.

# क्या अच्छा है-
हिंदू माइथोलॉजी में 9 देवियों की पूजा की जाती है. और ‘देवी’ में भी कुल 9 स्त्रियां हैं. यूं इस शॉर्ट मूवी का नाम ‘देवी’ बड़ा सोच समझकर रखा गया है.
भारत की एक सच्चाई जिसे हम बार-बार दोहराते हैं, पर हमेशा उतनी ही डरावनी लगती है-
एक देश जहां ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते’ कहा जाता है, वहां हर दिन 90 रेप के केस रिपोर्ट होते हैं.
इसी आयरनी, इसी विरोधाभास को सेंट्रल आइडिया बनाकर ‘देवी’ की कहानी आगे बढ़ती है. और अपने एजेंडे पर कायम रहती है.
'देवी' के एंड क्रेडिट्स रोल होने से पहले जो टेक्स्ट आता है, वो मूवी के नाम को जस्टिफाई कर देता है. 'देवी' के एंड क्रेडिट्स रोल होने से पहले जो टेक्स्ट आता है, वो मूवी के नाम को जस्टिफाई कर देता है.

इसमें कई डायलॉग्स मेटाफर में हैं. जो पूरी मूवी देख चुकने और इन नौ औरतों की सच्चाई का पता चलने पर और ज़्यादा हिट करते हैं. जैसे-
एक स्त्री मराठी में कहती है: यहां कोई ईश्वर नहीं है.
दूसरी स्त्री मराठी में ही जवाब देती है: लगता है केबल चेक करने गया है.
या
ये तू कौन से एग्जाम की पढ़ाई कर रही है, जो तू कभी देने वाली नहीं है?
केवल 12 मिनट में ये स्टेब्लिश करना कि इन औरतों का अलग-अलग बैकग्राउंड है, उन सबकी स्टोरीज़, मेन प्लॉट का भी आगे बढ़ते रहना और अंत में खुलता सस्पेंस. सस्पेंस जो आपको रुलाने तक की क्षमता रखता है. और ये सब कम से कम डायलॉग्स और बिना नरेशन के. यही इस शॉर्ट मूवी का सबसे स्ट्रॉन्ग पॉइंट है. मतलब आपको ये कहीं नहीं लगता कि मूवी कहीं ज़ल्दी में है. हालांकि टेक्निकल स्तर पर देखा जाए तो ‘देवी’ की पूरी शूटिंग दो दिन में खत्म कर ली गई थी.
नौ देवियों में से एक देवी मुस्लिम है. 'आरज़ू' नाम है उसका. नौ देवियों में से एक देवी मुस्लिम है. 'आरज़ू' नाम है उसका.

साथ ही मूवी में कुछ भी 'स्पून फीड' नहीं किया जाता, और कई चीज़ें लक्षण में हैं. जैसे आपको अंदाज़ा लगाना होता है कि ये औरतें यहां क्यूं हैं और अपने किस रूप में हैं. एक डायलॉग देखिए-
उस लड़की को अंदर नहीं आने देने का, बस्स. इधर सबकी ‘आत्मा’ को शांति मिलेगा.
इस मूवी को लिखा और डायरेक्ट किया है प्रियंका बनर्जी ने. 2017 में प्रियंका ‘कॉमाज़’ (अर्ध विराम) नाम की एक और शॉर्ट मूवी डायरेक्ट कर चुकी हैं. यूं एक डायरेक्टर के तौर पर उनकी शुरुआत बहुत मॉडेस्ट हुई है. और अब भी छोटे-छोटे लेकिन मज़बूत फॉरवर्ड स्टेप्स ले रही हैं. ये मूवी भी उन्हीं कदमों में से एक है, जो प्रियंका को अच्छे से स्थापित कर पाएगी.
एक्टिंग की बात की जाए तो सभी एक्ट्रेसेस बहुत नैचुरल लगी हैं. और उनके ड्रेस से भी उनके बारे में काफी कुछ इस्टैब्लिश हो जाता है. बैकग्राउंड म्यूज़िक भी अच्छा है. ख़ासतौर पर जब टीवी की आवाज़ बैकग्राउंड म्यूज़िक बन जाती है. या डोर बेल की सस्पेंसफुल आवाज़.
# क्या कुछ कमियां भी हैं इस शॉर्ट मूवी में-
कुछ कमियां टेक्निकल स्तर पर देखने को मिलती हैं. जैसे टीवी में अचानक वही चलना जो कहानी को आगे बढ़ाए. (लेकिन ये जस्टिफाइड भी लगता है. अव्वल तो इस वजह से क्यूंकि ये एक शॉर्ट मूवी है और कहानी के इतर चीज़ों को दिखाने की स्पेस इसमें नहीं है. और दूसरा कि जहां ये औरतें हैं, वो जगह थोड़ी ऐब्स्ट्रैक्ट है. यूं, यहां कहानियों का पारंपरिक सेट-अप लागू नहीं होता.)
नीना कुलकर्णी ने मराठी अनपढ़ स्त्री का किरदार 'नेचुरली' निभाया है. अच्छा बुरा की कैटेगरी के इतर नेचुरल. यही हाल बाकि एक्ट्रेसेज़ का भी है. नीना कुलकर्णी ने मराठी अनपढ़ स्त्री का किरदार 'नेचुरली' निभाया है. अच्छा बुरा की कैटेगरी के इतर नेचुरल. यही हाल बाकि एक्ट्रेसेज़ का भी है.

दूसरी कमी ये कि ये शॉर्ट मूवी, बहुत कुछ दर्शकों के विवेक पर भी छोड़ देती है. (हालांकि ये भी ‘स्पून फीडिंग’ न करने के, मूवी की ज़्यादातर चीज़ें लक्षण में होने के और मूवी के शॉर्ट होने के साइड इफेक्ट्स कहे जा सकते हैं.)
तीसरी कमी ये है कि क्लाइमेक्स के बिल्ड अप के दौरान भी ये मूवी इमोशनल होने का प्रयास करती है लेकिन हो नहीं पाती.
# देखें या नहीं-
देखिए अगर ये फीचर फिल्म होती तो हम कहते, ‘देख लीजिए. अच्छी मूवी है.’
लेकिन सोचिए, एक ढाई घंटे की फुल लेंथ मूवी, जिसमें रिव्यू करने के दौरान ही कहा जाता है कि, ‘अपना दिमाग घर छोड़कर आएं.’ साथ ही उसमें आपको टिकट और पॉपकॉर्न के पैसे भी चुकाने पड़ते हैं. उन फिल्मों से तुलना की जाए तो ये फिल्म आपकी मस्ट वॉच लिस्ट में होनी चाहिए. नीचे लिंक दिया है. देख डालिए.



वीडियो देखें:
उधार मांगकर ऑडिशन दिया था और अब इंडियन आइडल 11 का विनर बन गया-

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