अब हाल ये हो गए हैं कि उनके साथ बैठकर हम लोगों को समझ लेना चाहिए कि फिल्मों को सर्टिफिकेट देने, कट लगाने या बैन करने के फैसले वे किस आधार पर ले रहे हैं.
उनका एक ताजा फैसला भी इसकी एक वजह है.

हुआ ये कि 2018 में रिलीज होने जा रही हॉलीवुड फिल्म डेडपूल-2 का ट्रेलर आ गया है. फॉक्स स्टार इंडिया ने हाल ही में इसे रिलीज किया है. इसमें सुपर-हीरो डेडपूल बने वेड विल्सन के कैरेक्टर का बम यानी नितंब और मारवाड़ी में कहें तो ढुंगा दिखाया गया है. न्यूडिटी होने के बावजूद इसे काटा नहीं गया है. जबकि न्यूडिटी का समर्थन निहलानी करते नहीं हैं.
ट्रेलर में विल्सन का कैरेक्टर एक गली में जा रहा होता है और वो देखता है कि एक आदमी चाकू से एक उम्रदराज को लूट रहा होता है. अऩिष्ट की आशंका भांप विल्सन पास ही एक टेलीफोन बूथ की ओर दौड़ता है और उसमें जाकर अपनी सुपरहीरो वाली मरून पोशाक पहनने लगता है, इसी दौरान काफी देर तक हमें विल्सन के कूल्हे के दर्शन स्पष्ट स्पष्ट होते हैं.
आगे समाचार ये है कि कैंचीमैन निहलानी ने बजाय इस न्यूडिटी को काटने के और अपनी गलती मानने के इसे लेकर स्पष्टीकरण दिया है.
एक न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक उन्होंने इसे लेकर कहा, "हमें जो ट्रेलर सेंसर बोर्ड से मंजूरी पाने के लिए दिखाया गया है उसमें नितंब (बम) का पूरा दृश्य नहीं है. ये बम शॉट है लेकिन ब्लर किया गया है. हीरो एक टेलीफोन बूथ में कपड़े बदल रहा है. हम बाहर से एक जरा धुंधले से शीशे में से उसका बम देखते हैं."
उनके मुताबिक, "अगर ये पूरा बम शॉट होता तो हम इसे काट देते. इससे और कोई मकसद पूरा नहीं होता है सिवा ध्यान जुटाने के. बम शॉट्स कहानी को आगे बढ़ाने वाले नहीं होते हैं. इसलिए अगर इंटरनेट पर दिखाए जा रहे ट्रेलर में पूरा बम शॉट नहीं है तो फिर परेशान होने की कोई बात नहीं है."

कितना धुंधला है, कितना साफ है सब यहां साफ-साफ है.
निहलानी का कहना है कि 'डेडपूल-2' के ट्रेलर को सिर्फ एडल्ट्स यानी वयस्कों वाला सर्टिफिकेट दिया गया है.
फिल्म में हिंसा भी बहुत सारी है. उम्मीद थी कि वे इस हिंसा को भी काटेंगे क्योंकि इससे पहले वे स्वच्छ सिनेमा के हिमायती रहे हैं. लेकिन फिल्म आएगी तब तो वे क्या काटेंगे, ट्रेलर में से उन्होंने कुछ नहीं काटा. बल्कि वे खुद ही बताते हैं कि इसमें ख़ून-खराबा है लेकिन फिर भी क्यों चलता है, "इसमें बहुत ही हिंसक कंटेंट है. इसमें सुपर-हीरो को गली में मर्डर कर दिए गए एक आदमी के धड़ पर अपना सिर टिकाकर आराम करते और आइसक्रीम खाते हुए दिखाया गया है. शायद उन लोगों के फन करने का यही आइडिया है. और इसमें हम लोग मंजूर करने वाले या खारिज करने वाले कोई नहीं हैं. हमने इसे एडल्ट मजे के रूप में सर्टिफाई किया है.इस ट्रेलर को यू और यूए फीचर फिल्मों के साथ नहीं दिखाया जा सकता है."

ख़ून बिखरा हुआ है, अपना सुपर-हीरो लाश को सिरहाना बनाकर लेटा है.
हमें 'डेडपूल-2' की हिंसा या न्यूडिटी से कोई आपत्ति नहीं है. फिल्मों को उनकी श्रेणी के हिसाब से रेटिंग देना मौजूदा समझ के हिसाब से बेस्ट आइडिया लगता है. जिस मुताबिक फिल्म सर्टिफिकेशन को लेकर सुधार की सिफारिशें डायरेक्टर श्याम बेनेगल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सौंप भी चुके हैं. जिसमें भी सर्टिफिकेशन पर ही जोर देने की बात की गई है, न कि फिल्मी दृश्यों को कैंची लेकर काटने और उन्हें बैन करने की.
लेकिन सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी फिल्मों को सर्टिफिकेशन देते हुए अपनी मनमानी करते ही दिखते हैं. इसकी शिकायत ख़ुद अशोक पंडित और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी कर चुके हैं जो बोर्ड के सदस्य हैं.
हॉलीवुड फिल्मों के फन और एंटरटेनमेंट की जिस परिभाषा को निहलानी ने 'डेडपूल-2' के टाइम इतनी आसानी से समझ लिया, वैसा तब नहीं कर पाए जब उन्होंने 2015 के आखिर में जेम्स बॉन्ड सीरीज की फिल्म 'स्पैक्टर' में दो किसिंग सीन काट दिए थे. एक डेनियल क्रेग और मोनिका बेलुची के बीच और दूसरा हीरोइन लिया सेदू के साथ. दो पैशनेट चुंबनों से निहलानी विचलित हो गए थे. उन्हें लगा कि भारतीय दर्शकों की मर्यादा इससे टूटेगी. हालांकि फिर इन्होंने ही 'क्या कूल हैं हम-3' और 'मस्तीज़ादे' जैसी 'अश्लील/आपत्तिजनक' कॉमेडीज़ को पास कर दिया था. उनके सर्टिफिकेशन के बाद भी फिल्म में ऐसे जोक्स और ऐसे सीन थे जैसे भारतीय फिल्मों में कभी भी नहीं रहे और हदें पार करने वाले थे.

फिल्म मस्तीजादे और क्या कूल हैं हम-3 के पोस्टर, जिनसे फिल्म के कंटेंट का अंदाजा होता है.
सेंसर सदस्य अशोक पंडित ने कहा था, "स्पैक्टर इंटरनेशनल स्तर पर पसंद की जाने वाली फिल्म है लेकिन फिर से पहलाज निहलानी ने खऱाबा किया है इसमें अपना सोचने का तरीका ठूसकर. उन्होंने हमेशा अपने ही हिसाब से काम किया है. मैं क्रिएटिव राइट्स को यूं काटे जाने के पक्ष में नहीं हूं."
उनके पूर्वाग्रह पिछले साल खुलकर सामने आए थे जब डायरेक्टर अभिषेक चौबे की फिल्म 'उड़ता पंजाब' को सर्टिफिकेट देने में हमेशा की तरह उन्होंने बाधा पैदा कर दी थी. उन्होंने फिल्म में भीषण 89 कट लगाने की शर्त रख दी. ये बहुत ही चौंकाने वाली डिमांड थी. लेकिन मेकर्स इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में गए और कोर्ट ने सिर्फ एक-दो कट के साथ फिल्म को रिलीज करने का फैसला दिया और फिल्म रिलीज हुई.
यही निहलानी कोर्ट के खिलाफ भी हो गए थे जब अक्षय कुमार की फिल्म 'जॉली एलएलबी-2' को उन्होंने तो सर्टिफिकेट देकर पास कर दिया था लेकिन लोगों ने केस कर दिया और कोर्ट ने फिल्म में कट लगाने के लिए कहा. निहलानी का मानना था कि उन्होंने सर्टिफिकेशन देते हुए सब फैसले सही लिए थे. इस मामले में वकीलों का कहना था कि न्यायपालिका की गरिमा को ये फिल्म ठेस पहुंचाती है और भावनाएं आहत होती हैं. लेकिन निहलानी का ऐसा सोचना नहीं था.
हालांकि डायरेक्टर अलंकृता श्रीवास्तव की सात फिल्म फेस्टिवल्स में अवॉर्ड जीत चुकी बेहद अच्छी फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' को पास करने से मना करते हुए निहलानी ने यही लॉजिक दिया कि एक खास सेक्शन की भावनाएं खराब हो सकती हैं.

उन्होंने जब ये भी है कि ये एक अलग तरह की 'महिला उन्मुख' फिल्म है तो बड़ी विचलित करने वाली बात थी. उनके ऐसा कहने से सीधा अर्थ ये निकलता है कि सेक्स और उन्मुक्तता को लेकर उनकी सोच ऐसी है कि औरतों को घरेलू छवि टाइप की होना चाहिए और शर्म लिहाज वाली अपनी छवि से ही जीना चाहिए. महिलाओं के बोल्ड विचारों वाले विषय समाज के लिए ठीक नहीं. और सेंसर बोर्ड के चीफ होने के नाते वे भारतीय संस्कृति को दूषित नहीं होने दे रहे. मुंबई के अपने दफ्तर में बैठे पहरा दे रहे हैं. हर फिल्म उनकी नजर से होकर ही समाज के बीच पहुंचती है.
https://www.youtube.com/watch?v=EpHqeHF8NM0
हालांकि 'डेडपूल-2' में न्यूड सीन को पास करने को लेकर उन्होंने जो एडल्ट सर्टिफिकेट वाला लॉजिक दिया है वो फर्जी ही है क्योंकि 'उड़ता पंजाब' के मेकर्स भी राज़ी थे कि चाहे ए सर्टिफिकेट दे दो लेकिन पास कर दो लेकिन नहीं किया. यही 'हरामखोर' के टाइम भी हुआ. फिल्म पास ही नहीं की. यही 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' के टाइम हो रहा है जब मेकर्स किसी भी सर्टिफिकेट से पास करने की मांग करते रह गए और निहलानी ने पास करने से ही मना कर दिया. अब फिल्म ट्रिब्यूनल में है.
निहलानी को लेकर कुछ भी कहने का कोई फायदा तो है नहीं. उन्हें उनकी गद्दी पर बैठा दिया गया है. इतनी शिकायतें मुंबई फिल्म इंडस्ट्री वाले भी राज्यवर्धन राठौड़ से कथित तौर पर कर चुके हैं लेकिन कुछ हुआ नहीं है. श्याम बेनेगल की सिफारिशें भी अब तक लागू नहीं हुई हैं और होती लगती भी नहीं. ठीक है. चलाइए अपना मठ. लेकिन हर चीज का अंत होता ही है.
अंत में सिर्फ एक ही सवाल पूछना है कि 'डेडपूल-2' में ठीक इसी सीन में सुपरहीरो डेडपूल के ढूंगे की जगह हीरोइन वेनेसा का निर्वस्त्र ढुंगा होता तो क्या निहलानी उसे भी ए सर्टिफिकेट देकर पास कर देते और यही सब लॉजिक देते तो उन्होंने उपरोक्त दिए हैं?
https://www.youtube.com/watch?v=uVfMPLP81mQ
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