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फिल्म रिव्यू- दसवीं

'दसवीं' जिस मसले पर बात करना चाहती है, वो है राइट टु एड्यूकेशन यानी शिक्षा का अधिकार. सबको पढ़ना-लिखना चाहिए. आईएस-वाइएस बनना चाहिए. (सॉरी नो मोर मिर्ज़ापुर जोक्स) मगर जो बात मेरे मम्मी-पापा मुझे नहीं समझा पाए, वो मैं अभिषेक बच्चन के कहने से भी नहीं मानूंगा. क्योंकि दोनों के समझाने का तरीका बोरिंग है

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फिल्म 'दसवीं' के एक सीन में अभिषेक बच्चन.

अभिषेक बच्चन की नई फिल्म 'दसवीं' रिलीज़ हो चुकी है. फिल्म की कहानी हरित प्रदेश नाम के एक फिक्शन राज्य में घटती है. मगर उस फिक्शनल राज्य में हरियाणवी बोली जाती है. खैर, राज्य के मुख्यमंत्री गंगा राम चौधरी पर घोटाले में संलिप्त होने के आरोप लगते हैं. मामला कोर्ट पहुंचता है और सीएम साहब जेल. फाइव स्टार होटल वाली ट्रीटमेंट के साथ पूर्व मुख्यमंत्री साहब अपनी जेल की अवधि पूरी कर रहे हैं. सत्ता परिवार से बाहर नहीं जाए, इसलिए वो अपनी पत्नी विमला देवी को जेल से ही मुख्यमंत्री बनवा देते हैं. विमला ने राजनीति में कदम तो मजबूरी में रखी थी, मगर अब उन्हें मज़ा आने लगा है. 

दूसरी तरफ जेल में नई सुपरिटेंडेंट आती हैं, जिनका नाम है ज्योति देसपाल. ज्योति गंगा राम से खार खाए बैठी है क्योंकि उन्हीं के ऑर्डर पर उसका ट्रांसफर हुआ था. जब उसे पता चलता है कि गंगा राम सिर्फ आठवीं पास है, तो उसकी बेइज्ज़ती करती है. अब गंगा राम अपने नाम के साथ चौधरी सरनेम लगाते हैं. एक लड़की के मज़ाक उड़ाने पर उनकी चौधराहट आहट हो जाती है. वो ज्योति से शर्त लगा लेते हैं कि जेल से 10वीं का इम्तिहान देंगे. अगर पास नहीं हुए, तो कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे. वो दसवीं पास कर पाते हैं कि नहीं, यही फिल्म की कहानी है. क्योंकि इसी रिज़ल्ट पर उनका पूरा करियर टिका हुआ है.

'दसवीं' जिस मसले पर बात करना चाहती है, वो है राइट टु एड्यूकेशन यानी शिक्षा का अधिकार. सबको पढ़ना-लिखना चाहिए. आईएस-वाइएस बनना चाहिए. (सॉरी नो मोर मिर्ज़ापुर जोक्स) मगर जो बात मेरे मम्मी-पापा मुझे नहीं समझा पाए, वो मैं अभिषेक बच्चन के कहने से भी नहीं मानूंगा. क्योंकि दोनों के समझाने का तरीका बोरिंग है. ये वो फिल्म है, जिसका ह्यूमर एक दम घिसा हुआ है. जब गंगा राम को कोर्ट में जेल भेजा जाता है, तो वो गुस्से में अपने वकील से कहते हैं-

''तूने कर लिया काला कोट, अब मैं करूंगा बालाकोट.''

आप इस फर्जी वर्ड प्ले का क्या मतलब निकालना चाहते हैं, वो आपकी समस्या है. क्योंकि गंगा राम जी तो इस लाइन के बाद माइक ड्रॉप करके जेल जा चुके हैं. इसे कहते हैं फोर्स्ड ह्यूमर. यानी यहां komedy की कोई ज़रूरत नहीं थी. ऐसा फिल्म में कम से कम 15 से ज़्यादा मौकों पर होता है. इससे होता ये है कि आपसे जो चीज़ कही जा रही है, उसका इम्पैक्ट कम होता चला जाता है. आप फिल्म को गंभीरता से लेना बंद कर देते हैं. और ऐसा नहीं है कि इस फॉरमूले को फॉलो करने वाली ये इकलौती या पहली फिल्म है. पहले भी कई कॉन्टेंट ड्रिवन फिल्में बनी हैं, जो अपने विषय के साथ न्याय नहीं कर पाई हैं. 'दसवीं' में एक डायलॉग है, जो गंगा राम चौधरी का किरदार बार-बार बोलता है-

''इतिहास से ना सीखने वाले खुद इतिहास बन जाते हैं.''

ये बात 'दसवीं' के मामले में एकदम फिट बैठती है. एंटरटेन और एड्यूकेट करने के बीच झूलती ये फिल्म, कंफ्यूज़ रहती है. उसे एंटरटेनमेंट कोशंट बरकरार रखते हुए लोगों को काम की बात बतानी है. मगर ऐसा भी नहीं लगना चाहिए कि फिल्म ज्ञान झाड़ रही है. इसलिए वो अलग-अलग चीज़ें करती है. कई सारे टॉपिक्स को छूने की कोशिश करती है. राजनीति, मोरैलिटी, जाति व्यवस्था, करप्ट सिस्टम और तमाम समाजिक विषय. एक टॉपिक से दूसरे टॉपिक तक भटकने के चक्कर में किसी भी मसले पर कन्विंसिंग तरीके से बात नहीं कर पाती. हालांकि फिल्म जनता को अपने साथ जोड़ने की हरसंभव कोशिश करती है. 'तारे ज़मीन पर' से लेकर 'रंग दे बसंती' और 'लगे रहो मुन्ना भाई' जैसी फिल्मों के रेफरेंस का स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल करती है. मगर स्क्रीन पर जो कुछ भी घट रहा है, उस पर आप कभी यकीन नहीं कर पाते.  

'दसवीं' अभिषेक बच्चन के लिए अहम फिल्म है. फिल्म में उन्होंने मुख्यमंत्री गंगा राम चौधरी का रोल किया है. ये उनके करियर का वो रोल है, जिसमें उनके पास परफॉर्म करने का स्कोप था. वो इस मौके को पूरी तरह भुनाते हैं. उनके हरियाणवी एक्सेंट को छोड़ दें, तो ये उनकी बेस्ट परफॉरमेंस है. उनकी पत्नी विमला देवी चौधरी का किरदार निभाया है निमरत कौर. पहले विमला घर में गाय-भैसों की चारा-पानी देने का काम करती थी. मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद उसे फेम और राजनीति का चस्का लग जाता है. इसलिए वो अपने पति का ही पत्ता काटने की कोशिश करने लगती है. हालांकि इस कैरेक्टर का ये ट्रांसफॉरमेशन बहुत अधपका है. मगर निमरत ने फुल कॉन्फिडेंस और मजे के साथ ये कैरेक्टर प्ले किया है. यामी गौतम ने जेल की नई सुपरिटेंडेंट ज्योति देसपाल का रोल किया है. यामी हर फिल्म में कुछ हटकर या नया करने की कोशिश कर रही हैं. इस फिल्म में उनकी परफॉरमेंस भी सींसियर है. मगर वो बुरी राइटिंग का शिकार बन जाती हैं.

इनके अलावा छोटे मियां उर्फ अरुण कुशवाहा ने गंगाराम के दोस्त घंटी का रोल किया है, जो उसे मैथ्स पढ़ाता है. और दानिश हुसैन फिल्म में रायबरेली नाम के लाइब्रेरियन का किरदार निभाते दिखाई देते हैं. उनका नाम रायबरेली इसलिए है क्योंकि जेल में आए अधिकतर कैदी लाइब्रेरी नहीं बोल पाते. मैं इस फिल्म के राइटर्स से सिर्फ एक चीज़ कहना चाहूंगा- थोड़ी तो मर्यादा रखिए सर.  

हालांकि इस फिल्म में जो जेल दिखाया गया है, (मैं कभी गया नहीं मगर) वो काफी रियल लगता है. फिल्म का म्यूज़िक सचिन-जिगर ने किया है. मामला लाउड है. मगर जितने भी गाने हैं, वो सब हरियाणवी में हैं. इसलिए ऑथेंटिक फील देते हैं. 'दसवीं' एक अच्छे सब्जेक्ट पर बनी बुरी फिल्म है. क्योंकि फिल्म का बेसिक कॉन्सेप्ट इतना मज़ेदार है कि इसके साथ काफी कुछ किया जा सकता था. बस यहीं पर ये फिल्म फेल हो जाती है.

'दसवीं' को नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा पर स्ट्रीम किया जा सकता है.