भाई की मूवी है.आप लोग ये, या कोई भी रिव्यू पढ़कर भाई की बेईज्ज़ती कर ही क्यूं रहे हो. टिकट बुक करो और देखने जाओ. फ़ौरन से पेश्तर.
जहां तक उन लोगों की बात है जो मूवी देखने जाएं य न जाएं, इस बात से तय करते हैं कि मूवी अच्छी है या बुरी. उनके लिए भी दरअसल रिव्यू एक ही लाइन का है-
ये टिपिकल भाई की मूवी है.

एक अबोध बच्चा जब पेंटिंग बनाता है तो सारे रंगों का प्रयोग करता है. जबकि एक प्रफेशनल पेंटर कलर नहीं टेंपलेट यूज़ करता है. मतलब कुछ एक रंग. और उन इक्का दुक्का रंगों के ही ढेरों शेड्स.# एक बार सेल्फिश होकर देखो न-
एक प्रफेशनल डांस डायरेक्टर, प्रभु देवा कृत इस मूवी में भी भी इन्द्रधनुष नहीं एक टेंपलेट यूज़ किया गया है. टेंपलेट जिसमें भाई के शेड्स हैं. और यूं मूवी में भाई ही भाई हैं. कभी खुद का स्वागत करवाते, कभी बदनाम होते, कभी शर्ट उतारते, कभी चश्मा उछालते, कभी नाचते, कभी पीटते...
... भाई की एक नहीं 5-6 बार एंट्री होती है.
बाकी सोनाक्षी सिन्हा, किचा सुदीप, अरबाज़ खान, सई मांजरेकर तो इस पेंटिंग की आउट लाइन्स भर हैं.
भाई के इतने शेड्स हैं कि बड़ा पर्दा भी छोटा पड़ जाता है और ये शेड्स छलक पड़ते हैं. यूं वो इस मूवी के लेखक भी हैं. आप कहेंगे क्यूं नहीं हो सकते,'पूत पे पूत घोड़े पे घोडा.'

उन्होंने ‘दबंग 3’ को प्रोड्यूस भी किया है. विलेन बाली सिंह के लिए एक दो डायलॉग्स भी लिखे हैं. कुल मिलाकर मूवी का रिव्यू करना भाई का रिव्यू करना है. हां लेकिन अबकी बार उन्होंने लिरिक्स राइटर्स की रोज़ी-रोटी नहीं छीनी और गाने नहीं. लेकिन-
‘दबंग 3’, दबंग फ्रेंचाइज़ की तीसरी मूवी है. पहली दो भी सुपरहिट रही थीं. दबंग 3 को 'दबंग 1' और 'दबंग 2' का प्रीक्वल कहा जाएगा. क्यूंकि इसमें पिछली दो मूवीज़ से पहले की कहानी दिखाई गई है.# कहानी में इतने छेद हैं कि समझ नहीं आता-
'दबंग 3’ के क्लाइमेक्स में इंस्पेक्टर चुलबुल पांडे को अफ़सोस रहता है कि पिछली दो मूवीज़ के विलेन की तरह ही इस मूवी के विलेन ने भी उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया है. ये भाई के किरदार का कन्फेशन है कि अबकी बार भी मूवी में ऐसा कुछ नया या सरप्राइज़ करने वाला नहीं है.
लेकिन फिर भी अगर हम आपको ‘मरजावां’, ‘जॉन विक’ या ‘गजनी’ की स्टोरी बताएं तो– मूवी में हिरोइन को विलेन मार देता है और फिर हीरो बदला लेता है. देखिए अब आप नहीं कह सकते कि हमने ‘दबंग 3’ का स्पॉइलर दे दिया.

लिरिक्स ‘जावेद अख्तर’ टाइप्स हैं. उर्दू के कुछ मखमली शब्द लिए. म्यूज़िक भी ऐसा मानो वो भी उर्दू में लिखा हो. ऑफ़ कोर्स अगर ‘मुन्ना बदनाम हुआ’ को अलग रख दिया जाए.# मूवी बदनाम हुई-
गुड न्यूज़ ये है कि बेड न्यूज़ समाप्त हो चुकी है.- डायलॉग्स कोई ख़ास नहीं हैं पर खूब तालियां बटोरेंगे. मूवी में ह्यूमर है जो हंसाता नहीं. मूवी में इमोशन हैं जो रुलाते नहीं. म्यूज़िक अच्छा है इसलिए भुला दिया जाएगा. डायरेक्टर डांस करता है, विलेन प्यार को लेकर फिलॉसफी झाड़ता है, लीड एक्टर स्टोरी लिखता है. इस मूवी और इस मूवी की मेकिंग में इतने विरोधाभास हैं कि 'सुनहु देव रघुवीर कृपाला, बन्धु न होइ मोर यह काला.' टाइप्स विरोधाभास के बड़े-बड़े उदाहरण धरे के धरे रह जाएं.

अब भाई से एक्टिंग करवाओगे? भाई के इतने ऊंचे कद को एक्टिंग से जज करना ऐसा ही है जैसे रोहित शेट्टी को उनकी मूवी की स्क्रिप्ट से इतर जज करना. हालाकिं भाई इंटरवल से पहले वाले एक सीन में आपको ग़लत साबित करते हुए एक दो मिनट अच्छी एक्टिंग भी कर जाते हैं. वैसे वो सीक्वेंस भी अच्छा बन पड़ा है. इमोशनल.# एक्टिंग न दिल में आती है न समझ में-
बाकी हर सीन में भी भाई हैं हीं. इसलिए सबके साथ उनकी एक्टिंग की बात की जाए तो सोनाक्षी और सलामन रेगुलर हैं, जैसे दबंग 1 और 2 में थे. सई और सलामन की कैमेस्ट्री में कोई कोवेलेंट बॉन्डिंग नहीं दिखती. केमिस्ट्री तो सुदीप और सलमान की सबसे बेहतरीन लगती है. अरबाज़ खान और भाई एक साथ ‘डंब एंड डंबर’ के जिम कैरी और जेफ डैनिएल्स सरीखे लगते हैं बस कॉमेडी और टाइमिंग माइनस कर लीजिए. डॉली बिंद्रा इरिटेट करती हैं. बहुत.
मूवी काफी ढेर सारे रिकॉल्स से भरी पड़ी है और वहां-वहां पर रोचक भी हो जाती है. जैसे रज्जो का डायलॉग,’थप्पड़ से डर नहीं लगता’ या मुन्नी बदनाम का मेल वर्ज़न या ‘इतने छेद करेंगे’# रिव्यू से डर नहीं लगता, फाइनल वर्डिक्ट से लगता है-
यूं मूवी के कई अच्छे मोमेंट्स भी हैं लेकिन आजकल मूवी सिनेमाहॉल से उतरती बाद में है ऑनलाइन या टीवी में पहले आ जाती है. इसलिए सोच समझकर मूवी देखने जाएं. अगर आप सलमान के फैन हैं तो गारंटी है मूवी में नींद नहीं आएगी. बाकियों के लिए ये गारंटी नहीं दी जा सकती.
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इंटरव्यू: पॉर्न साइट्स पर अपने कंटेंट को देख डायरेक्टर, एक्टर ने पूरी भड़ास ऐसे निकाली-