
खौफ़ की आग.
# एक्टर्स ने नहीं, लोकेशन और कैमरा वर्क ने डराया फिल्म जहां फिल्माई गई है, वो लोकेशन बहुत उम्दा है. इन फैक्ट डराने का ज़्यादातर काम लोकेशन ने ही किया है. अच्छी लोकेशन के साथ बढ़िया जुगलबंदी रही है कैमरा वर्क की. गन्ने के खेत, बीचोबीच स्थित इकलौता मकान, भुतहा कुआं सब ऐसे ढंग से फिल्माए गए हैं कि बड़ी सहजता से डरावना इफेक्ट पैदा करते हैं. कई बार तो भूतों की चौंकाने वाली एंट्री से ज़्यादा गन्ने के खेत में तेज़-तेज़ घूमता कैमरा डराता है. ड्रोन शॉट्स चिलिंग माहौल बनाते हैं. इस फ्रंट पर फिल्म में अच्छा काम हुआ है. अंशुल चौबे का काम काबिलेतारीफ़ है. फिल्म का BGM भी कुछ हद तक कहानी को कॉम्प्लीमेंट करता दिखाई देता है.
हालांकि फिल्म के कुछ सीक्वेंस बड़े अतार्किक लगते हैं. जैसे पहली बार आप किसी अनजान गांव जाओगे, तो कोई पति अपनी प्रेग्नेंट पत्नी को बीच जंगल छोड़कर घर तलाशने तो नहीं ही जाएगा. ऐसे ही कोई आधी रात को बैग उठाकर नहीं चल देगा, जब उसे पता हो कि शहर बहुत दूर है और आसपास किसी वाहन का अस्तित्व नहीं है. फिल्म में 'औरत ही औरत की दुश्मन होती है' जैसे महा-क्लीशे डायलॉग्स भी हैं, जो लेखन की कमज़ोरी को और भी उजागर करते हैं.

नुसरत.
# नुसरत पास, मीता क्लास एक्टिंग फ्रंट पर बात की जाए तो लगभग सभी कलाकारों ने अपना काम संतोष जनक ढंग से किया है. वैसे ज़्यादातर स्क्रीन स्पेस सिर्फ दो कलाकारों के हिस्से आया है. नुसरत भरुचा और मीता वशिष्ठ. नुसरत ने अपना काम काफी हद तक अच्छे ढंग से लिया है. वो ये आश्वासन देती हैं कि उन्हें अच्छा रोल मिले, तो वो और निखार ला सकती हैं. मीता वशिष्ठ ने अपने कैलिबर के साथ न्याय करते हुए बेहद उम्दा परफॉरमेंस दी है. कुछेक सीन तो शानदार किए हैं उन्होंने. जैसे एक जगह वो नुसरत को कौवे और नागिन की कहानी सुनाती हैं. वो सीन दमदार है. उन्हें परफॉर्म करते देखकर मन में ख़याल आता है कि हिंदी सिनेमा वाले इनकी प्रतिभा को सही से इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं. हेमंत के रोल में सौरभ गोयल और ड्राइवर कजला के रोल में राजेश जैस ने अपना काम अच्छे ढंग से किया है.
मूल मराठी फिल्म के डायरेक्टर विशाल फुरिया ने नही 'छोरी' को डायरेक्ट किया है. उन्होंने अपनी कामयाब फिल्म को हिंदी में उसी इंटेंसिटी से बदला है. दिक्कत सिर्फ इतनी है कि बीते पांच सालों में उनकी फिल्म का सब्जेक्ट कमज़ोर हो गया है. इस कॉन्टेक्स्ट में मुझे आर माधवन की कही एक बात याद आती है. 'रहना है तेरे दिल में' जब हिट हुई थी, तब माधवन से किसी रिपोर्टर ने पूछा था कि आपने ओरिजिनल फिल्म में भी काम किया था, हिंदी रीमेक में काम करके कैसा लगा? माधवन का ऑनेस्ट जवाब था, "बहुत बोर हुआ यार! वही सब रिपीट करना पड़ा". मैं क्यूरियस हूं कि क्या डायरेक्टर विशाल फुरिया को भी ये फिल्म दोबारा बनाने में बोरियत हुई होगी? खैर.

'छोरी' फिल्म का डरावना सीन.
# डर के आगे मैसेज है फिल्म पर आगे बात करने से पहले एक यूनिवर्सल बात कहना चाहूँगा. दुनिया भर में जितनी भी सिनेमा इंडस्ट्रीज़ हैं, उनमें सबसे ज़्यादा भेडचाल की शिकार कोई इंडस्ट्री होगी, वो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ही होगी. हिंदी वाले हमेशा फ़ॉर्मूले के पीछे भागते हैं. किसी थीम पर एक-दो फ़िल्में चल जाएँ बस! थोक के भाव में वैसी फ़िल्में बनने लगती हैं. इस दौर का फ़ॉर्मूला है सोशल मैसेज वाली फ़िल्में. रोमांटिक फिल्म हो, कॉमेडी हो, ड्रामा हो, हॉरर हो सबमें सोशल मैसेज का तड़का लगाया जा रहा है. शायद मेकर्स को लगता होगा कि मैसेजिंग के सहारे नैया पार लग जाएगी. इस भेड़चाल में कई बार ओरिजिनल काम ही रह जाता है. अच्छी फिल्म बनाना.
'छोरी' भी एक ज़रूरी मैसेज देने की कोशिश करती है. दिक्कत ये है कि ये मैसेज थोड़ा पुराना हो गया है. 2016 में शायद ये रिलेवंट रहा हो, लेकिन 2021 आते-आते इस पर बहुत कुछ कहा-सुना जा चुका है. तबसे अब के बीच में OTT नाम की क्रान्ति हुई है और सोशल मैसेजिंग वाली दर्जनों फ़िल्में लोगों ने देख डाली है. ना तो सोशल मेसेज देती हॉरर फिल्म का कांसेप्ट नया है, ना ही जिस मुद्दे पर फिल्म बात करती है वो पहली बार दिखाया जा रहा है. इसलिए 'छोरी' का मैसेजिंग वाला तड़का दर्शकों के लिए उतना काम नहीं करता. हाँ हॉरर एलिमेंट में फिल्म ज़रूर थोड़ा-बहुत स्कोर कर जाती है. पहले हाफ में कहानी का सेटअप बड़े प्रॉमिसिंग ढंग से एस्टैब्लिश होता है. लेकिन सेकंड हाफ में प्रेडिक्टेबल चीज़ों की भरमार थोड़ा निराश कर देती है. आखिर में जो बड़ा ट्विस्ट आता है, वो भी आप घंटे भर पहले भांप चुके होते हैं. फिल्म की लेंथ भी थोड़ी ज़्यादा लगती है. ये और छोटी हो सकती थी.
ओवरऑल हमारी राय ये बनी कि नुसरत-मीता की परफॉरमेंस के लिए देखना चाहें तो देख सकते हैं. हॉरर आपका पसंदीदा जॉनर हैं, तो भी देख डालिए. ज़्यादा अच्छी न सही, बुरी भी नहीं लगेगी. लेकिन 'स्त्री' या 'बुलबुल' जैसी उम्मीदें लेकर जाते हैं तो निराश हो सकते हैं.