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Cannes 2019 समाप्त हो गया, इसकी 5 चुनिंदा फ़िल्में ये रहीं

बोनस में बताएंगे कि क्यूं 'डिएगो मैरेडोना' नाम की डॉक्यूमेंट्री मिस करना इस साल का सबसे बड़ा नुकसान है.

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वंस अपॉन अ टाइम इन हॉलीवुड. पेन एंड ग्लोरी, अ हिडन लाइफ और पैरासाइट मूवीज़ के यू ट्यूब ट्रेलर के स्क्रीनग्रैब. ये सारे ट्रेलर स्टोरी में एम्बेडेड हैं.
सिनेमा प्रेमियों के लिए फ्रांस में एफिल टावर से भी पॉपुलर एक चीज़ है. वहां हर साल होने वाला – Cannes फ़िल्म फेस्टिवल. कान में जिसकी फिल्म गई उस फिल्ममेकर के लिए ये जिंदगी भर का मेडल हो जाता है. हर साल हम इस फिल्म फेस्ट की खबर अखबारों में पढ़ते हैं, वहां के रेड कारपेट पर चलती इंडियन हीरोइन्स की फोटोज़ देखते हैं. लेकिन मूल रूप से इस फेस्ट के बारे में हर साल न के बराबर जानते हैं. पिछले साल हमने इस फेस्टिवल से जुड़ा एक एफएक्यू किया था, जिसे पढ़कर आप भी अपने संगी-साथियों के सामने शो ऑफ़ कर सकते हो कि आपको दुनिया के इस जाने-माने फिल्म फेस्टिवल के बारे में ढेर जानकारी है. इन दिनों कान का 72वां संस्करण चल रहा है. अबकी बार भी हर बार की तरह ही दुनिया की बेहतरीन फिल्में और डॉक्यूमेंट्रीज़ रिलीज से बहुत पहले यहां प्रदर्शित होंगी. पिछली बार हमने फेस्ट की 4 बेहतरीन फ़िल्में चुनी थीं. और अबकी हम 2019 के कान की 6 बेस्ट फिल्मों की क्विक जानकारी आपको देने जा रहे हैं. इन्फेक्ट 5 फिल्मों और 1 डॉक्यूमेंट्री की-
1) पैरासाइट (निर्देशक- बोंग जून-हू)
# कहानी क्या है- दो परिवार हैं एक धनी एक निर्धन. निर्धन के घर का मुखिया पहले तो अमीर के घर में काम करने का अवसर पा लेता है, फिर अपनी अक्लमंदी और महत्वाकांक्षा के बल पर अपने पूरे परिवार को उस घर में दाखिल कर देता है. इसके बाद जो होता है, वो रोमांचक, खतरनाक और बहुत ज़्यादा हिंसक है. पैरासाइट शब्द को मेटाफर की तरह यूज़ किया जाता है. उन लोगों के लिए जो दूसरों पर आश्रित रहते हैं, लगभग अतिक्रमण करते हुए. # क्या ख़ास है- बोंग जून-हू को दुनिया के कुछ बेहतरीन निर्देशकों में काउंट किया जाता है. उनकी पिछली फिल्म ‘ऑक्जा’ भी कान में प्रदर्शित हुई थी. लेकिन ट्रैजिक-कॉमेडी विधा की फिल्म 'पैरासाइट' को इसके साथ जुड़े हुए नाम के लिए नहीं, बल्कि देखा जाना चाहिए इसकी कसी हुई स्क्रिप्ट के लिए. स्क्रिप्ट जो आपको हमेशा आपकी सीट के कोने पर रखती है. लेकिन इस दौरान ये समाज की कई परतों को एक साथ खोलती है. ये केवल अपराध ही नहीं बल्कि अपराध के उन कारणों को भी डाइसेक्ट करती है जो आय के भयंकर अंतर के चलते हैं.

2) वंस अपॉन अ टाइम इन हॉलीवुड (निर्देशक- क्वेंटिन तेरेंटीनो)

# कहानी-  कहानी शुरू होती है '69 से, जिस दौर में एक टेलीविज़न एक्टर और उसका बॉडी डबल काम और नाम पाने के लिए तरस रहे हैं. यूं ये हॉलीवुड के स्वर्णिम काल पर पर एक तंज़ सरीखी है.  जिस चीज़ के लिए इस फिल्म के निर्देशक सबसे ज़्यादा चर्चित हैं, वही इसमें भी है- एक मूवी में ढेर सारी कहानियां, ढेर सारे प्लॉट्स जो एक दूसरे से लूजली कनेक्टेड हैं. # क्या ख़ास है-  'वंस अपॉन अ टाइम इन हॉलीवुड' को ख़ास बनाता है इस फिल्म से जुड़ा दिग्गजों का मजमा. कई लोगों के लिए तो ये फिल्म सिर्फ इस एक बात से ख़ास हो जाती है कि इसके निर्देशक ‘पल्प फिक्शन’ और ‘किल बिल’ फेम क्वेंटिन तेरेंटीनो हैं. क्वेंटिन को कई लोग, कई क्रिटिक सबसे जीनियस जीवित डायरेक्टर मानते हैं. वो पिछले दो तीन दशक से हॉलीवुड को एक से एक मास्टरपीस देते आ रहे हैं. मगर क्वेंटिन अकेले ऐसे नाम नहीं हैं जो इस प्रोजेक्ट को ख़ास बनाते हैं. उनके अलावा 'वंस अपॉन...' की स्टार कास्ट में शामिल हैं लिओनार्डो डी कैप्रियो, ब्रैड पिट, एल पेचिनो जैसे अपने-अपने दौर के हॉलीवुड सुपरस्टार्स.

3) रॉकेटमैन (निर्देशक – डेक्सटर फ्लेचर)

# कहानी- एल्टन जॉन एक सिंगर थे. उनका कंपोज़ हुआ गीत, रॉकेटमैन, उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध गीतों में से एक है. इस गायक, कंपोज़र, प्यानिस्ट की बायोपिक है ये, इसी नाम की फिल्म, ‘रॉकेटमैन’. बायोपिक दिखाती है कि कैसे एल्टन बुलंदियों की नई ऊचाईयों को छूता है और फिर धड़ाम से वहां से गिरता है, गिरता चला जाता है. लेकिन फिल्म इसके बाद उसके रिवाइव को दिखाती है. अगर आपको कहानी सुनकर 'संजू' याद आ रही है तो हम आपको कोई दोष नहीं देंगे. साथ में एल्टन की ड्रग्स की आदतों और उसके रिहेब में बिताए हुए समय को भी ध्यान में रख लिया जाए तो फिर ये राजकुमार हिरानी की 'संजू' से काफी करीब हो जाती है. लेकिन केवल कहानी के हिसाब से. क्यूंकि स्क्रिप्ट तो इसकी अलग ही लेवल की है जहां एक तरफ फिल्म में एल्टन की स्टोरी चलती है और दूसरी तरफ बीच-बीच में लंबे-लंबे म्यूज़िकल सिक्वेंसेज़ हैं. बायोपिक को कहानी के किसी पैटर्न पर बांधना मुश्किल होता है, इसलिए ही तो ये फिल्म निर्माण की एक अलग ही विधा है. और इसलिए ही ‘रॉकेटमैन’ को एक लाइन में नहीं समेटा जा सकता. लेकिन आपकी उत्सुकता इस बात से ज़रूर बढ़ जाएगी कि एल्टन जॉन, जिनकी ये बायोपिक है, का जीवन काफी उतार चढ़ावों भरा रहा था. डिप्रेशन, सेक्शुअल ओरिएंटेशन से लेकर ड्रग एडिक्शन तक कई ऐसी चीज़ें हैं जो उनके जीवन और परिणामस्वरूप इस बायोपिक को एक रोलर कोस्टर राइड बनाती है. # क्या खास है- इस फिल्म की तुलना पिछले साल की ‘बोहेमियन राप्सोडी’ के साथ की जा रही है और ऐसा किया जाना स्वाभाविक भी है, क्यूंकि दोनों ही एक म्यूजिशियन की बायोपिक हैं. फ्रेडी मर्करी पर आधारित ‘बोहेमियन राप्सोडी’ के साथ ‘रॉकेटमैन’ की तुलना होने का कारण केवल यही नहीं है, बल्कि दोनों के मुख्य किरदारों के व्यक्तिव में अद्भुत समानता भी आप पाएंगे. आपको पता ही होगा कि ‘बोहेमियन राप्सोडी’ न केवल दर्शकों और समीक्षकों को पसंद आई थी बल्कि इसने दुनिया भर के कई अवार्ड फेस्टिवल्स में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई थी. इन दोनों फिल्मों में एक और चीज़ कॉमन है और वो है डायरेक्टर डेक्सटर फ्लेचर. डेक्सटर ने ‘बोहेमियन राप्सोडी’ का बचा हुआ भाग भी डायरेक्ट किया था. बचा हुआ भाग मतलब ‘बोहेमियन राप्सोडी’ को पहले ब्रायन सिंगर डायरेक्ट कर रहे थे, थोड़े से बचे रह गए भाग के लिए डेक्सटर आए. अब सबसे ख़ास बात ये है कि जिन दर्शकों और समीक्षकों ने ‘रॉकेटमैन’ देख ली है उनके अनुसार ये अपनी एप्रोच, ह्यूमर और चकचौंध में ‘बोहेमियन राप्सोडी’ से भी एक लेवल आगे की चीज़ है. फैक्चुअल एक्यूरेसी का स्तर भी ‘बोहेमियन राप्सोडी’ से बेहतर बताया जा रहा है.

4) पेन एंड ग्लोरी (निर्देशक- पेड्रो एल्मोडोवर)

# कहानी- एक निर्देशक अपना बेस्ट दे चुका है और अब जहां एक तरफ उसका करियर ढलान पर है तो दूसरी तरफ उसकी बीमारियां और उसकी पुरानी यादें उफान पर. और इस दौरान अगर कोई उसका इंतज़ार कर रही है तो वो है उसकी मृत्यु. एक बहुत ज़्यादा दर्द में पड़ा निर्देशक जो अपनी मां को भी याद करता है, अपने समलैंगिक प्रेमी को भी और अपनी ग्लोरी को भी. यानी ‘पेन एंड ग्लोरी’ में पेन वर्तमान है और ग्लोरी अतीत. # क्या खास है- इस फिल्म से पहले एल्मोडोवर 21 फ़िल्में बना चुके हैं. लेकिन ‘गार्जियन’ नाम का अख़बार इस फिल्म को उनकी बाइसवीं नहीं साढ़े इक्कसवीं फिल्म कहता है. और इसे साढ़े इक्कसवीं फिल्म कहे जाने के पीछे जो रेफरेंस है वही ‘पेन एंड ग्लोरी’ को खास बनाता है. दरअसल बहुत पहले एक फिल्म आई थी. ‘एट एंड हाफ’. फेड्रिक फेलिनी की ये ‘सेल्फ पोट्रेट’ फिल्म दुनिया भर में आलोचकों की मनपसंद रही. इसी तरह ‘पेन एंड ग्लोरी’ को एल्मोडोवर की ‘सेल्फ पोट्रेट’ फिल्म कहा जा रहा है. फेलिनी ने अपनी मूवी का नाम ‘एट एंड हाफ’ रहा था क्यूंकि इससे पहले उन्होंने आठ फ़िल्में डायरेक्ट की थी और इसलिए ही ‘पेन एंड ग्लोरी’ को एल्मोडोवर की साढ़े इक्कसवीं फिल्म कहा जाना उनको दुनिया के महानतम निर्देशक फेलिनी के समकक्ष खड़ा करना. और उनकी पेन एंड ग्लोरी को ‘एट एंड हाफ’ के. यूं इसे गुरुदत्त की कागज़ के फूल के नज़दीक भी रखा जा सकता है. एल्मोडोवर का क्राफ्ट दो समानांतर रखे दर्पण सरीखा है. जिसमें आपको एक फिल्म के अंदर एक और फिल्म उसके अंदर एक और फिल्म दिखती है. वो याद है न पंचतन्त्र की कहानियां, कि जब तक पहली कहानी खत्म होती थी, तब तक कई कहानियां खत्म हो चुकती थीं.

5) अ हिडन लाइफ (निर्देशक- टेरेंस मलिक)

# कहानी- फ्रेंज़ नाम का एक सैनिक ‘थर्ड रीच’ के लिए लड़ने से मना कर देता है और इस चक्कर में उसे मृत्युदंड का सामना करना पड़ता है. थर्ड रीच, हिटलर की सेना थी. ये द्वितीय विश्व युद्ध और उस दौरान हुए नरसंहारों और मानवाधिकारों के हनन के लिए कुख्यात थी. फ्रेंज़ इसमें लड़ने से मना करता है, किसी भय के चलते नहीं, बल्कि अपनी कॉन्शियस के चलते. # क्या खास है- वर्ल्ड वार में हुई तबाही और उन दुखों को समझने का एक अच्छा साधन है मूवीज. क्यूंकि ये उन सीन्स को लगभग जस का तस रिक्रिएट कर देती हैं, और किताबों की तरह ‘कल्पनाओं की चूक’ के वास्ते कुछ नहीं छोड़तीं. 'अ हिडन लाइफ' भी द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका को नज़दीक से दिखाती है. आजकल जिस तरह का नैरेटिव बनाया जा रहा है, उस हिसाब से ये पीरियड ड्रामा होते हुए भी हमारे देश, हमारे काल और हमारी परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे ज़रूरी फिल्मों में से एक हो जाती है. ये इसलिए ख़ास है क्यूंकि ये बताती है कि इतिहास उनका भी बना था, इतिहास हमारा भी बनेगा. हमें चुनना होगा कि हम कहां खड़े होना चाहते हैं. खासतौर पर तब जब दो विकल्पों में से सत्य को चुनना मृत्यु का समानार्थी हो.

6) डिएगो मैरेडोना (निर्देशक- आसिफ़ कपाड़िया)

# कहानी- ‘डिएगो मैरेडोना’ एक लेजेंड हैं. अपनी-अपनी रुचियों के हिसाब से ये लोगों के लिए विख्यात और कुख्यात रहे हैं. उनका गोल्डन गोल जो उन्होंने हाथ से किया था और जिसे रेफरी तक पकड़ नहीं पाया था, आज तक का सबसे बेहतरीन गोल कहलाता है. अर्जेंटीना एक समय अपने पीक पर थी तो इसी शख्स के चलते. 1986 का वर्ल्ड कप जितवाने से लेकर मैरेडोना के निजी जीवन के उतार चढ़ावों को बड़ी ख़ूबसूरती से दर्शकों के सामने परोसती है ये डॉक्यूमेंट्री. # क्या खास है- इसके निर्देशक आसिफ़ कपाड़िया भारतीय मूल के हैं. लेकिन हम इस बिना पर इसको खास नहीं कह देंगे. ‘डिएगो मैरेडोना’ ख़ास है क्यूंकि ये 500 घंटे की रियल वीडियो फुटेज़ को ट्रिम करके बनाई गई दो घंटे के लगभग की डॉक्यूमेंट्री है. लगाइए कि ये कंटेट के हिसाब से कितनी रिच होगी.