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मूवी रिव्यू: ब्लाइंड

फिल्म देखते वक्त कई मौकों पर मुझे अपना फोन चेक करना पड़ा. ये अपने आप में एक स्टेटमेंट है.

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AK Vs. AK के बाद सोनम की अगली फिल्म आई है.

जिया एक पुलिस ऑफिसर थी. भारतीय पुलिस में नहीं बल्कि स्कॉटलैंड पुलिस में. एक हादसे की वजह से उसकी आंखों की रोशनी चली जाती है. साथ ही उसे नौकरी से भी निकाल दिया जाता है. जिया को महसूस होता है जैसे उसके पास से सेंस ऑफ पर्पस छीन लिया गया है. वो बस दिन निकालने के लिए जी रही है. तभी उसी शहर के दूसरे कोने से उसे अपना पर्पस मिलता है. एक-के-बाद-एक लड़कियों की हत्याएं होने लगती हैं. इसका कनेक्शन एक आदमी से है. एक रात उसी आदमी का रास्ता जिया से टकराता है.  

वो उसे हर मुमकिन कोशिश कर के पकड़ना चाहती है. दूसरी ओर वो सीरियल किलर जिया को मारने पर तुला है. उस तक पहुंचने के लिए हर संभव खतरा उठाने को तैयार है. दोनों में से कौन कामयाब होता है, यही फिल्म की मोटा-माटी कहानी है. फिल्म का नाम है ‘ब्लाइंड’. जियो सिनेमा पर रिलीज़ हुई है. सोनम कपूर बनीं हैं जिया. वहीं सीरियल किलर का रोल किया है पूरब कोहली ने. पूरी फिल्म में हमें उनके किरदार का नाम पता नहीं चलता. इसलिए रिव्यू में भी उनके किरदार के लिए सीरियल किलर शब्द इस्तेमाल करेंगे. इन दोनों एक्टर्स के अलावा विनय पाठक ने भी अहम किरदार निभाया है. ‘ब्लाइंड’ कैसी फिल्म है, अब बात उस बारे में.  

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फिल्म की कहानी स्कॉटलैंड में सेट है. 

फिल्म देखने से पहले मुझे लगा कि कहानी को इंडिया की जगह यूरोप में सेट क्यों किया गया. हालांकि फिल्म इस बात को जस्टिफाई कर पाती है. जिया देख नहीं सकती. उसे अपनी लाइफ को आसान करने के जो साधन स्कॉटलैंड में मिलते हैं, वो इंडिया में अवेलेबल नहीं. बाकी फिल्म मुख्य तौर पर तीन लोगों के इर्द-गिर्द ही घूमती है – जिया, किलर और पुलिस ऑफिसर पृथ्वी. ये विनय पाठक के किरदार का नाम है. ‘ब्लाइंड’ सस्पेंस फिल्म नहीं. इसके कुछ हिस्सों के आधार पर इसे थ्रिलर फिल्म कहा जा सकता है. शुरू में ही फिल्म बता देती है कि किलर कौन है. ये खुद को जिया और किलर की लड़ाई की तरह बिल्ड करना चाहती है.  

इसका नुकसान ये है कि फिल्म खुद को साइकोलॉजिकल थ्रिलर की तरह दिखाना चाहती है. लेकिन किसी भी पॉइंट पर किलर के दिमाग में गहराई से नहीं उतरती. बस सतही तौर पर पता चलता है कि उसका बचपन सही नहीं रहा. वो किस वजह से हत्याएं कर रहा है, क्या खुशी मिलती है, फिल्म ऐसे पॉइंट्स से दूर रहती है. कुछ ऐसा ही ट्रीटमेंट जिया को भी मिलता है. हम देखते हैं कि जिया का भगवान से रिश्ता अच्छा नहीं. ये बात कई मौकों पर डायरेक्टली सामने आती है. दूसरा वो गिल्ट के एहसास में भी जी रही है. काश उसे थोड़ा और स्पेस दिया जाता.  

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एक सीरियल किलर जो लड़कियों की हत्याएं करता जा रहा है. 

‘ब्लाइंड’ ऐसी कहानी नहीं जिसे आप पहली बार देख रहे हों. फिल्म के विलेन को देखकर Psycho और The Usual Suspects जैसी मशहूर हॉलीवुड फिल्में याद आती हैं. ऐसा क्यों हैं वो आप फिल्म देखकर ही समझ पाएंगे. बस मेरी शिकायत यही रही कि काश वो उसकी साइकोलॉजी में थोड़ा और इंवेस्ट करती. बहरहाल ये कहानी भले ही नई नहीं. लेकिन फिर भी इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. कुछ सीन्स हैं जो आपके अंदर एक्साइटमेंट जगाते हैं. बस पूरी फिल्म के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता. खासतौर पर फर्स्ट हाफ जो सेट अप करने में ज़्यादा ही वक्त ले लेता है. फिल्म में मुझे दो लूपहोल भी दिखे जिन्हें फिक्स किया जा सकता था. पहला तो जिया की नौकरी चली गई. वो अब एक फ्लैट में अकेले रहती है. किसी पर निर्भर नहीं होना चाहती. ऐसे में उसका खर्चा कैसे निकल रहा है.  

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सोनम एक ही टोन में तमाम डायलॉग डिलिवर करती हैं.   

दूसरा ये कहानी आज के समय में सेट है. CCTV कैमरा की हेल्प से काफी पहले किलर को पकड़ा जा सकता था. अगर एक्टर्स की बात करें तो ये सोनम कपूर का बेस्ट काम नहीं. उनके तमाम डायलॉग एक ही टोन में चलते हैं. किसी भी पॉइंट पर कोई उतार-चढ़ाव महसूस नहीं होता. ऐसे ही एक और सीन है जहां जिया फूट-फूटकर रोने लगती है. उस सीन में ऐसा लगता है कि सोनम बस सीन निपटाना चाहती हैं. बाकी पूरब कोहली के किरदार के लिए भी फिल्म ज़्यादा स्कोप नहीं छोड़ती. वो टिपिकल साइकोलॉजिकल विलेन है. हमेशा गुस्से जैसे भाव चेहरे पर रखेगा. ऐसा प्रतीत होता है कि उसके मन में कुछ-न-कुछ चल ही रहा है. नॉर्मल इंसानों के बीच वो कैसे रहता है, पेश आता है, फिल्म इसे ज़्यादा जगह नहीं देती.  

मैंने ‘ब्लाइंड’ जैसी फिल्म पहली बार नहीं देखी. मुझसे अगर रिकमेंड करने को कहा जाए तो इसे वन टाइम वॉच ही कहूंगा. ये एक ऐसी थ्रिलर फिल्म है जिसके बीच में कई बार मुझे अपना फोन चेक करना पड़ गया.

वीडियो: मूवी रिव्यू : लस्ट स्टोरीज़ 2